गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

वातावरण
वैश्विक तपन : कारण और निवारण
रितेन्द्र अग्रवाल
पृथ्वी के चारो ओर २०० मील चौड़ा वायुमण्डल का कवच    है ।  इसी कवच के कारण पृथ्वी पर जीवन है । ऐसा कवच अभी तक अन्य किसी ग्रह पर नहीं मिला है, इसलिए पृथ्वी के अलावा अन्य ग्रहों पर जीवन भी नहीं । यही वायुमण्डल जो ब्राह्मण्ड है, एक अनमोल सौगात है । 
इस वायुमण्डल में कार्बन डाई ऑक्साइड, मीथेन, नाइटे्रस आक्साईड आदि गैसों की परत है जिन्हे ग्रीन हाउस गैसों की परत कहा जाता है । वायुमण्डल में ही ओजोन परत है । ये वायुमण्डलीय गैसों की परत ही पृथ्वी को अंतरिक्ष की खतरनाक विकिरणों से सुरक्षा प्रदान करती है और तापमान को जीवन के अनुकूल बनाती है । अत: वायुमण्डल हम सभी के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है । 
अगर वायुमण्डल न हुआ या बिगड़ा गया तो पृथ्वी भी अन्य ग्रहों की तरह जीवन निर्वहन स्थिति में आ जायेगी । अनेक वैज्ञानिकों के शोध ने यह स्पष्ट कर दिया है कि पृथ्वी की जलवायु में बदलाव आ रहा है । तापमान में बढ़ोत्तरी हो रही है । मौसम के रंग-ढंग बढ़ रहे हैं । गर्मियां लम्बी, सर्दियां छोटी हो रही   है । यही है जलवायु परिवर्तन । 
ग्रीन हाउस गैसों की परत का कार्य सूर्य की ऊर्जा को सोख कर पृथ्वी पर पहुंचा कर उसे जरूरत के अनुसार तापमान उपलब्ध कराती है । अगर ग्रीन हाउस परत न होती तो पृथ्वी ३०० सेल्सिशस से ज्यादा ठण्डी होती और जीवन नहीं होता । पृथ्वी का औसत तापमान १५० सेल्सिशस है और यह बढ़ रहा है । 
आजकल मानवजनित गतिविधियों से दो गैसों का अत्यधिक उत्सर्जन हो रहा है ये गैस पहले से ही ग्रीन हाउस परत में है अत: इनसे ग्रीन हाउस परत मोटी हो रही है । सूर्य के ताप को अधिक सोखकर पृथ्वी को जरूरत से ज्यादा तापमान देकर ज्यादा गर्म कर खतरा उत्पन्न कर रही है । अत: ग्रीन हाउस परत मोटी होकर ओजोन परत को नुकसान पहुंचा रही है । 
अत: वैश्विक तपन (ग्लोबल वार्मिंग) पृथ्व के वातावरण के तपमान में निरन्तर हो रही वृद्धि को कहते है । वैश्विक तपन के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार मनुष्य और उसकी गतिविधियां है क्योंकि मानव आबादी निरन्तर बढ़ रही है । पृथ्वी पर उपलब्ध संसाधन २ अरब मानव को पोषित करने की है और आबादी चार गुना से भी ज्यादा है । 
अत: मानव अपनी क्षुधा पूर्ति के लिए संसाधनों का अंधाधुंध उपयोग कर रहा है जिससे वन समाप्त् हो रहे है । जल स्त्रोत दम तोड़ रहे है, समुद्र के दोहन से जैव विविधता घट रही है जिसके कार्बन डाई ऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रोजन आक्साईड आदि ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा में वृद्धि हो रही है और गैसों का आवरण या परत सघन हो रही है । 
अगर सुधार नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी भी शुक्र ग्रह के समान हो जायेगी, जहां तापमान अधिक हो जाने से एसिड की बारिश होती है ।
वैश्विक तपन के प्रभाव
(१) वातावरण का तापमान बढ़ेगा - पिछले दस वर्षो में ०.३० से ०.६० सेल्सियस तक बढ़ गया है । ऐसी संभावना है इसमें और बढ़ोत्तर होगी । 
(२) समुद्र तल में बढ़ाव - धरती का तापमान बढ़ने से ग्लेशियर की बर्फ पिछले कई स्थानों पर बर्फ पिघलनी शुरू हो चुकी है । इस पिघलाव से समुन्द्रों में पानी की मात्रा बढ़ेगी और जल स्तर बढ़ेगा जिससे तटीय इलाकों के डूबने का खतरा होगा । बहुत से लोग बेघरबार हो जायेगे । 
(३) स्वास्थ्य पर प्रभाव - वैश्विक तपन से हो रहे बदलाव से सबसे ज्यादा प्रभावित मानव स्वास्थ्य ही होगा । ऐसा समय भी आ सकता है जब पीने के लिए स्वच्छ जल, खाने के लिए ताजा भोजन न मिले ।   सांस लेने के लिए शुद्ध हवा तक न मिले । 
(४) पशु-पक्षियों और वनस्पतियों पर प्रभाव - इसका पशु-पक्षियों तथा वनस्पतियों पर भी प्रभाव पड़ेगा । तापमान बढ़ने से कुछ पशु पक्षी उत्तर या पहाड़ों की ओर प्रस्थान कर सकते है और कुछ अपना अस्तित्व भी खो सकते है । 
(५) शहरों पर प्रभाव - यह सही है कि गर्मी तो बढ़ेगी तो गर्मी उत्पन्न करने तथा ठण्ड कम करने के लिए ऊर्जा का उपयोग कम होगा लेकिन गर्मी बढ़ने पर इसे कम करने के लिए ऊर्जा का उपयोग ए.सी. के माध्यम से होगा और वैश्विक तपन में इजाफा होगा । 
बचाव के रास्ते - इसके लिए मात्र विचार या फिर किसी एक के प्रयासों से काम नहीं चलेगा, वरन् मिलजलुकर संयुक्त प्रयास करने   होंगे -  
(१) सभी देश क्योटो संधि का पालन करे । इसके अन्तर्गत गैसों के उत्सर्जन को कम करे । 
(२) मात्र सरकार की जिम्मेदारी नहीं सब मिलजुलकर सहयोग करे । पेट्रोल, डीजल का उपयोग कम करे, ताकि उत्सर्जन कम हो । 
(३) जंगलों की कटाई पर रोक - जंगलों की कटाई कम हो, अधिक से अधिक पेड़ लगाये जाये । इससे भी उत्सर्जन कम   होगा । 
(४) टैक्नीकल विकास - हम ऐसे ए सी व मशीनरियां बनाये कि उत्सर्जन कम से कम या कहे न के बराबर हो आदि । 
निष्कर्षत: धरती पर फिर खतरा मंडरा रहा है । ऐसा भी नहीं कि आजकल में ही अनिष्ट होने वाला है । लेकिन जो संकेत मिल रहे है उसे हम सब महसूस तो कर रहे है लेकिन चेत नहीं रहे । अतएव अब चते जाने का समय आ गया है ।  \

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