कविता
नर्मदा गीत
महेश श्रीवास्तव
मात नर्मदा के प्रति हमको अपना फर्ज निभाना है ।
करें प्रदूषण मुक्त, तटों पर चादर हरी उगाना है ।।
शिव के तप से बहा स्वेद, हर प्राणी का कल्याण हुआ ।
भुक्ति, मुक्ति, आनन्द धार का दिव्य नर्मदा नाम हुआ ।।
पापनाशिनी, पुण्यदायिनी, मोक्ष प्रदाता है मैया ।
सदियों से तन, मन, जीवन की तृिप्त् प्रदाता है मैया ।।
हमको माँ के उपकारों का अब कुछ कर्जचुकाना हैै ।
जलधारा को शुद्ध, पुन: अमृत की तरह बनाना है ।।
मात नर्मदा के प्रति ....
माँ पयस्विनी, प्यास बुझाती खेत सींचती है अपने ।
देती ज्योति, उर्जा देती, सच करती सुख के सपने ।।
सोचे जिससे पाया सब कुछ, उसे दिया है क्या हमने ।
नगर-गांव का कचरा डाला, छीन लिये वन के गहने ।।
जगंल से है नदी, नदी से हम, हमने यह जाना है ।
स्वच्छ नर्मदा करके अब अपना अस्तित्व बचाना है ।।
मात नर्मदा के प्रति ....
नर्मदा गीत
महेश श्रीवास्तव
मात नर्मदा के प्रति हमको अपना फर्ज निभाना है ।
करें प्रदूषण मुक्त, तटों पर चादर हरी उगाना है ।।
शिव के तप से बहा स्वेद, हर प्राणी का कल्याण हुआ ।
भुक्ति, मुक्ति, आनन्द धार का दिव्य नर्मदा नाम हुआ ।।
पापनाशिनी, पुण्यदायिनी, मोक्ष प्रदाता है मैया ।
सदियों से तन, मन, जीवन की तृिप्त् प्रदाता है मैया ।।
हमको माँ के उपकारों का अब कुछ कर्जचुकाना हैै ।
जलधारा को शुद्ध, पुन: अमृत की तरह बनाना है ।।
मात नर्मदा के प्रति ....
माँ पयस्विनी, प्यास बुझाती खेत सींचती है अपने ।
देती ज्योति, उर्जा देती, सच करती सुख के सपने ।।
सोचे जिससे पाया सब कुछ, उसे दिया है क्या हमने ।
नगर-गांव का कचरा डाला, छीन लिये वन के गहने ।।
जगंल से है नदी, नदी से हम, हमने यह जाना है ।
स्वच्छ नर्मदा करके अब अपना अस्तित्व बचाना है ।।
मात नर्मदा के प्रति ....
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