गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

पर्यावरण परिक्रमा
मन्दसौर मेंहै दुनिया के सबसे पुराने शैल चित्र
शैल चित्र कला के विशेषज्ञों का कहना है कि म.प्र. के मन्दसौर जिले में भानपुरा के पास दर की चट्टान के शैल चित्र (कप मार्क्स) दुनिया के सबसे पुराने ज्ञात शैल चित्र है और ये २ से ५ लाख वर्ष पुराने   है । दुनिया से सबसे पुराने शैल चित्र के काल की गणना के लिये वैज्ञानिकों ने मन्दसौर जिले की दर की चट्टान में २ नवम्बर २३ नवम्बर २०१६ तक एक सफल अभियान पुरा किया है । इस अभियान का नेतृत्व रॉक सोसायटी ऑफ इण्डिया के महासचिव प्रोफेसर गिरीराज कुमार और आस्ट्रेलिया के वैज्ञानिक राबर्ट जी बेडनारिक ने संयुक्त रूप से  किया ।
श्री कुमार ने बताया कि बेडनारिक शैल कला क्षेत्र में दुनिया के शीर्ष वैज्ञानिक हैं तथा इंटरनेशनल  फेडरेशन ऑफ रॉक आर्ट ऑर्गनाइजेशन के संयोजक भी है । आगरा के दयालबाग शैक्षणिक संस्थान के कला संकाय में रॉक आर्ट साइंस के प्रोफेसर कुमार ने दावा किया कि मन्दसौर में भानपुरा के पास दर की चट्टान की शैल कला दुनिया में अब तक के सबसे पुरानी है । यह दो से पांच लाख वर्ष पुराने है । उन्होनेंकहा कि वर्ष २००२ में अनुसंधान के दौरान दर की चट्टान में गुफा की एक दीवार पर ५३० से अधिक कप मार्क्स मिले । 
श्रीकुमार के अनुसार इस क्षेत्र में अनुसंधान के दौरान के दौरान पांच लाख साल पुराने हथौड़े भी मिलते है । उन्होनें अभियान की जानकारी देते हुए कहा कि मन्दसौर में जमीनी स्तर पर कार्य सम्पन्न हुआ है । इस अभियान का उद्देश्य दर की चट्टान में पाए गए शैल चित्रों के कालखंड की गणना करना है । इसके लिए यहां से नमूने और तथ्य एकत्रित किए गए है । शैल चित्रों की विशेषता यह है यह दुनिया में ज्ञात सबसे पुराने एवं भारत में पाई गई रॉक आर्ट की दो जगहों में से एक   है ।
इस जटिल अभियान की सफलता के लिए इस प्रोजेक्ट ने भारत, आस्ट्रेलिया एवं यूरोप से कई शोधकर्ताआें को शामिल किया गया है । इन शैल चित्रों में से एक क्वार्टजाइट गुफा में पेटेरोग्लिफ शामिल है । कुछ साल से यह चर्चा थी कि ये दुनिया में पाए गए सबसे पुराने शैल चित्र है, लेकिन अब तक वैज्ञानिकों ने इनके बारे में यह नहीं बताया था । 
अब ज्वार से होगा कैंसर और लकवा का इलाज
म.प्र. में राजमाता विजयाराजे सिंधिया एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने १० साल की मेहनत के बाद कैंसर, लकवा और गुर्दे की बीमारियों के इलाज के लिए ज्वार की संकर किस्म राजविजय इक्रिशिफ्ट सार्गव हाईग्रेड ज्वार की नई किस्म पैदा की है । इसकी खासियत यह है कि इसे सूखा प्रभावित क्षेत्रों में बड़ी आसानी उगाया जा सकता है । ज्वार की पिछली किस्मों से करीब ५ गुना अधिक उत्पादन देती है । साथ ही इसमें पोषक तत्वों की मात्रा ६० गुना अधिक है ।
वैज्ञानिकों के अनुसार इस नई संकर किस्म को किसान और दवा इंडस्ट्री के उपयोग के हिसाब से तैयार किया गया है । ज्वार की पिछली किस्मों में जहां किसानों को १.१८ टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उत्पादन मिलता था, वहीं अब नई संकर किस्म में यह उत्पादन बढ़कर ६.५ से लेकर ७.० प्रति टन    मिलेगा । इस किस्म को सूखा ग्रसित क्षेत्रों में भी उगाया जा सकेगा । इसके साथ ही वैज्ञानिकों ने पशुआें के चारे के लिए राजविजय ज्वार १८६२ का आविष्कार भी किया है, जो ११० दिनों में पक जाती है । 
ज्वार की नई किस्म राजविजय हाईगे्रड में १७ प्रतिशत शुगर की मात्रा होने के कारण एनर्जी का प्रतिशत बढ़ जाता है । वैद्य पदमसिंह के अनुसार इसका उपयोग आमातिसार, ज्वर, भगंदर, धतूरे का विष उतारने के साथ मूत्रविंडो के विकार दूर करने के लिए किया जाता है । नई किस्म में औषधीय गुण अधिक होने के कारण पिछली किस्मों से नई फिल्म बेहतर है । 
चीन से ज्यादा भारत में है प्रदूषण 
भारत में वायु प्रदूषण से चीन से ज्यादा लोग मर रहे हैं । यह हकीकत ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजिज की रिपोर्ट से सामने आई है । रिपोर्ट के अनुसार २०१५ में चीन से ज्यादा लोग भारत में प्रदूषण से मरे हैं । ग्रीनपीस ने इससे निपटने के लिए तत्काल कार्यनीति बनाने की मांग की है । अध्ययन से पता चलता है कि १९९० से अब तक लगातार भारत में होने वाले असामयिक मौत की संख्या में बढ़ोतरी हुई है । 
हाल के आंकड़े बताते हैं कि २०१५ में भारत में रोजाना १६४० लोगों की असामयिक मौत हुई है जबकि इसकी तुलना में चीन में १६२० लोगों की मौत हुई  थी । पहले चीन में दूषित हवा से मरने वालों की संख्या ज्यादा थी, चीन में हर साल १४ लाख लोग समय से पहले मरते थे और वहीं भारत में इसकी तादाद ७ लाख थी, लेकिन अब भारत में प्रदूषण से मरने वालों की संख्या भारत में बढ़ गई है । 
पिछले दिनों जर्मनी में एक शोध हुई थी, जिसमें साफ कहा गया है कि अगर हवा को साफ करने के लिए कुछ किया नहीं गया तो साल २०५० तक सालाना ६० लाख से ज्यादा लोगों की मौत वायु प्रदूषण की वजह से हो सकती है । शोध में कहा गया है कि एशिया में वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा मौतें होती हैं, दुनियाभर में हर साल ३० लाख से ज्यादा लोगों की वायु प्रदूष्ण से मौत होती है । 
ग्लोबल वर्डन ऑफ डिजिज (जीबीडी) एक क्षेत्रीय और वैश्विक शोध कार्यक्रम है, जो गंभीर बीमारियों चोटों और जोखिम कारकों से होने वाले मौत और विकलांगता का आंकलन करता है । 
नैनो तकनीक से होगी मिनटों में जंग की छुट्टी
राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला (एनएमएल), जमशेदपुर के वैज्ञानिकों ने नैनो तकनीक का इस्तेमाल करते हुए एक ऐसा पदार्थ तैयार किया है जिससे लोहे पर लगा जंग और एल्युमिनियम, पीतल तथा काँसे पर से काले दाग पांच मिनट में ही निकल जायेंगे । साथ ही उन्होंने ऐसा पारदर्शी पेंट भी तैयार किया है जो भविष्य में उनमें जंग नहीं लगने देगा । 
इन जगरोधी उत्पादोंं  को यहां प्रगति मैदान में चल रहे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में प्रदर्शन के लिए रखा गया है । इनकी तकनीक झारखंड के जमशेदपुर स्थित एक कंपनी को हस्तांतरित की गई है तथा एक से डेढ़ महीने में इन उत्पादों के बाजार में आने की उम्मीद है । एनएमएल के वैज्ञानिक डॉ. आर.क.े साहू ने बताया कि कंपनी रब्ज क्लीन नाम से यह जेल बाजार में लगा रही है । इसे जंग लगे सामान पर लगाकर पांच मिनट छोड़ देना होता है । इसके बाद किसी कपड़े से पोछने पर जंग बिल्कुल साफ हो जाता है । आम तौर पर कांसे या पीतल के बर्तन पर काले दाग पड़ जाते है जिन्हें हटाने के लिए बाजार मेंउपलब्ध मौजूदा रसायन लगाने के बाद उसे काफी देर तक रगड़ना पड़ता है । इसे तैयार करने में किसी हानिकारक पदार्थ का उपयोग नहीं किया गया   है । इसे नैनो तकनीक से प्राकृतिक पदार्थोंा और मेटल ऑक्साइड से तैयार किया गया है । 
जंग हटाने के बाद भविष्य में भी इन्हें सुरक्षित बनाने के लिए ग्रेफाइन पेंट तैयार किया गया है । इसके पारदर्शी होने के कारण पीतल, काँसे या एल्युमिनियम के सामान अपने वास्तविक रंग में ही रहते है । साथ ही एक बार इसकी परत चढ़ा देने पर आम तौर पर १० साल तक यह सामान को जंग से बचाता है । यदि सामान घर के अंदर रखा गया  है तो और ज्यादा समय तक सुरक्षित रह सकता है । 
अमेरिका में जी.एम. मच्छर छोड़ने की योजना
जेनेटिक रूप से परिवर्तित यानी जीएम जीव पिछले वर्षो में विवाद के केन्द्र में रहे हैं । खास तौर से मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण पर इनके संभावित असर को लेकर काफी शंकाएं हो रही है । अब यूएस के फ्लोरिडा प्रांत के एक क्षेत्र कीवेस्ट में जीएम मच्छर छोड़ने की योजना बनाई गई है । 
इन मच्छरों का विकास यूके की एक कंपनी ऑक्सीटेक ने किया है और इनमें से नर मच्छरों की विशेषता यह है कि इनकी संतानें जल्दी ही मर जाती है । ये संतानें प्रजनन के लिए तैयार हो ही नहीं पाती । इसका मतलब हुआ कि पर्यावरण में इन जीएम नर मच्छरों को छोड़ने पर कई सामान्य मादा मच्छर इनके साथ समागम करेगी और संतानें पैदा करेगी जो प्रौढ़ होने से पहले ही मर जाएंगी । इस तरह से उम्मीद है कि मच्छरों की आबादी पर नियंत्रण हासिल हो पाएगा । 
मच्छरों की आबादी पर नियंत्रण खास तौर से मलेरिया, जीका और डेंगू जैसे रोगों पर अंकुश लगाने के मकसद से किया जा रहा है । ये रोग मच्छरों के माध्यम से ही फैलते है । इससे पहले ब्राजील के पिरासिकाबा क्षेत्र में ऐसे जीएम मच्छरों का परीक्षण किया जा चुका है । इनके उपयोग से उस इलाके मेंडेंगू के मामलों में ९० प्रतिशत की कमी आई थी । 

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