गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

ज्ञान-विज्ञान
 त्वचा से पानी पीती है कंटीली छिपकली 
ऑस्ट्रेलिया के रेगिस्तान में एक छिपकली पाई जाती है जिसका नाम है कंटीली शैतान । इसके पूरे शरीर पर कांटे पाए जाते हैं । जीव वैज्ञानिक इसे चश्रिलिह हिीळीर्वीी कहते हैं । इसकी एक विशेषता यह है कि यह अपने पूरे शरीर से पानी पीती है । एक मायने यह इसकी मजबूरी भी है । इसके मुंह की रचना खास तौर से चीटियां खाने के लिए बनी है । इसके चलते यह मुंह से सीधे पानी नहीं पी सकती । 
जर्मनी के आर.डब्लू.टी.एच.   आचेन विश्वविद्यालय के फिलिप कोमैन्स ने ऐसी पांच छिपकलियों का अध्ययन करके जर्नल ऑफ एक्सपेरिमेंटल बायोलॉजी में बताया है कि यह अपनी पूरी त्वचा से पानी को सोखकर उसे मंुह की ओर भेजती है जहां इसे निगल लिया जाता है । दरअसल उन्होंने पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया से पांच कंटीली शैतान पकड़ीं और उनका अध्ययन अपनी प्रयोगशाला में किया । 
जब इन छिपकलियों को पानी के बीच में रखा गया तो १० सेकंड के अंदर ही इनका मुंह खुलने और बंद होने  लगा । देखा गया कि पूरी त्वचा से पानी बारीक नालियों से होकर मुंह तक पहुंच रहा है । मगर कोमैन्स की टीम को लगा कि यह तो उनकी प्राकृतिक स्थिति नहीं है । रेगिस्तान में इन्हे ऐसे पानी भरे ग े कहां मिलेंगे । तो उन्होंने प्रयोगशाला में रेगिस्तान की परिस्थिति निर्मित की । 
रेगिस्तान में ओस के कारण रेत में काफी नमी हो जाती है । जब इन छिपकलियों को ऐसी गीली रेत में रखा गया तो इन्होंने खुद की पीठ पर वह रेत बिछा ली । अब इनके शल्कों के बीच जो जगह थी वह नालियों के समान काम करने लगी । एक मायने में शल्कों के बीच की यह जगह स्ट्रॉ की भूमिका अदा कर रही थी । मगर मात्र गीली रेत पर पड़े रहने से काम नहीं बनता । यदि सिर्फ पैर और पेट वाला हिस्सा ही गीली रेत के संपर्क में रहे तो त्वचा पर उपस्थित सारी नालियां पानी से नहीं भर पाती । इसलिए कंटीली शैतान को रेत अपनी पीठ पर भी बिछाना होती है । 
कोमैन्स को लगता है कि कंटीली शैतान की पानी पीने की इस विचित्र विधि को समझकर कई उपयोगी उत्पाद बनाए जा सकते    हैं । जैसे इस विधि से हम रेगिस्तान में पानी इकट्ठा करने की जुगाड़ जमा सकते हैं । इस विधि का उपयोग हायजीन उत्पादों के निर्माण के अलावा इंजिनों के लुब्रिकेशन को बेहतर बनाने के लिए भी किया जा सकता है ।
फुल न हों तो मधुमक्खी क्या करेगी ?
मधुमक्खी और उनका छत्ता हमारे दिमाग मेंएक ही तस्वीर के दो हिस्से हैं । मगर इस प्रचलित तस्वीर के विपरीत अधिकांश मधुमक्खियोंबस्तियों में नहीं बल्कि अकेलीही रहती हैं । वे अपना छोटा-सा घोंसला बनाती हैं और उसमें अपनी संतानों का पालन-पोषण करती हैं । मगर इनके सामने एक समस्या आती हैं । 
बड़े-बड़े छत्ते बनानी वाली मधुमक्खियों के लिए तो शक्कर बना रहता है । आसपास फूल न हों या फूल देर से खिलेंतो भी वे कुछ समय तक काम चला सकती हैं । मगर अकेली मधुमक्खियोंके पास ऐसी कोई जमा पूंजी नहींहोती । फिर वे प्रतिकूल परिस्थितियोंमें क्या करती हैं ?
फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के जोन माइनर्स इसी सवाल के जवाब की तलाश मेंथे । उनको पता था कि अकेली रहने वाली मधुमक्खियों की संतानें वसंत में प्रौढ़ होकर निकलती हैं, भोजन (यानी पराग और मकरंद) तलाशती हैं, बच्च्े पैदा करती हैं और मर जाती हैं । अब यदि वे वसंत से थोड़े पहले ही निकल पड़ें, जब फूल न खिले हों, तो ?
कैलिफोर्निया के पिनेकल राष्ट्रीय उद्यान मेंमाइनर्स और उनके साथियोंने देखा कि कई झाड़ियों पर फफंूदलगी है और इस फफूंद के साथ शर्करा भी है । उन्होंने सोचा कि शायद इस फफूंद मेंही कुछ सुराग मिलेगा । माइनर्स ने यह भी देखा कि वसंत के शुरू में जब बहुत कम फूल खिले होते हैं, मधुमक्खियां इन फफूंद-लगी झाड़ियों पर खूब मंडराती हैं । 
माइनर्स ने एक काम तो यह किया फफंूद-रहित झाड़ियों पर या तो शर्करायुक्त पानी छिड़क दिया या सादा पानी छिड़क दिया । माइनर्स ने सोचा कि यह भी तो हो सकता है कि मधुमक्ख्यिां फफूंद लगी झाड़ियों पर शर्कराकी तलाश में नहीं किसी और वजह से जा रही    हों । तो उन्होंने कुछ फफूूंद लगी झाड़ियों पर एक कीटनाशक का छिड़काव किया जिससे शर्कराका उत्पादन बंद हो गया मगर फफूंद यथावत रही । 
यह देखा गया कि जिन झाड़ियों पर शर्करायुक्त पानी का छिड़काव किया गया था उप पर १०० मधुमक्खियोंं का आगमन हुआ जबकि मात्र पानी वाली झाड़ियों पर १० मधुमक्खियां ही पहुंची । दूसरी ओर फफूूंद युक्त शर्करा विहीन झाड़ियों पर भी मात्र १५ मधुमक्खियों ने ध्यान दिया । इससे तो लगता है कि मधुक्खियां फफूंद द्वारा एकत्रित शकरा को भोजन के स्त्रोत के रूपमें इस्तेमाल करती हैंं । 
मगर एक सवाल का जवाब अभी शेष है । फूलोंके रंग और गंध तो मधुमक्खियोंके लिए संकेत होते हैं कि भोजन कहां मिलेगा । फफूंद और शर्करा का पता कैसे चलता है ? माइनर्स का विचार है कि शायद संयोगवश कोई मधुमक्खी वहां पहुंचती है और फिर देखा-देखी अन्य मधुमक्खियां भी पहुंचने लगती हैं । अब इस विचार की जांच की   जाएगी । 
दूसरी बात यह है कि मधुमक्खियों का काम सिर्फ शर्करा से नहीं चल सकता । उन्हें पराग भी चाहिए क्योंकि वह प्रोटीन का स्त्रोत होता है । तो एक सवाल यह भी है कि प्रोटीन की पूर्ति कैसेहोगी । ये सवाल जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में महत्वपूर्ण हैं क्योंकि बदली हुई जलवायु में फूलों की देर से खिलने की आशंका है ।

कुदरती उड़ान की रफ्तार का रिकॉर्ड 
ब्राजील के एक चमगादड़ के बारे में दावा किया गया है कि वह जंतु जगत में सबसे तेज उड़ाका है । वह पक्षियों से भी तेज रफ्तार से उड़ सकता है । इस अध्ययन केे मुखिया टेनेसी विश्वविद्यालय के गैरी मैकक्रेकन ने दावा किया है कि उन्होंने इस चमगादड़ को १६० कि.मी. प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ते रिकॉर्ड किया है और यह पक्षियों की सबसे तेज गति से ज्यादा  है । आज तक यह माना जाता था कि एक अबाबील सबसे तेज उड़ता है और उसकी रफ्तार ११२ कि.मी. प्रति घंटा रिकॉर्ड की गई थी । 

अलबत्ता मैकक्रेकन की टीम का यह दावा आते ही इस पर विवाद शुरू हो गया है । दरअसल, मैकक्रेकन की टीम ने सात चमगादड़ों पर वह यंत्र लगाया जो हवाई जहाजों की निगरानी के कामआता है । यह एक मानक प्रक्रिया है । इसके आधार पर उन्होंने देखा कि इन चमगादड़ों को उड़कर जमीनी दूरी तय करने में कितना समय लगता है । देखा गया कि सामान्यत: तो ये चमगादड़ एक औसत ढंग से उड़ते हैं मगर बीच-बीच में वे तेज गति से उड़ने लगते हैं और अधिकतम १६० कि.मी. प्रति घंटे की गति हासिल कर लेते हैं । 
मगर पक्षी विशेषज्ञों का कहना है कि उनके मापन में कई समस्याएं हैं । जैसे एक ता यह बात सामने आई है कि मैकक्रेकन की टीम ने इस बात का कोई ख्याल नहीं किया कि हवा किस गति से चल रही थी । 

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