गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

प्रदेश चर्चा 
महाकाल और अहिल्या की नगरियों को बचाओ
आचार्य सत्यम्
विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताजा रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के  २० सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में से १३ भारत के हैं, जिनमें देश की राजधानी भी शामिल है। फिर भी विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र और पूर्व विश्वगुरू भारत की राजधानी में कथित योगऋषि ने देश के प्रधानमंत्री के माध्यम से योग का प्रचार करते हुए विश्व योग दिवस मनाया था । क्या कोई भी योगी जहरीली हवाओं में योगाभ्यास की अनुमति दे सकता है ?
   कविवर बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय का सम्पूर्ण वन्दे मातरम् गीत एक प्रतिशत हिन्दुस्तानियों को भी कंठस्थ नहीं है । हम वन्दे मातरम् गाने के लिए आपस में लड़ रहे हैं । हमारा यक्ष प्रश्न है, मातृभूमि को उपरोक्त विश्ववन्द्य स्वरूप में लाने के लिए उसके कितने बेटे-बेटियां संकल्पित   हैं ? 
सन्त कबीर का ''मालव धरती गहन गंभीर, डग-डग रोटी पग-पग नीर'' भी स्वतंत्र भारत में अदृश्य हो चुका है। हमारी मातृभूमि का यह हृदय प्रदेश, जिसे इसके नाम के अनुरूप ही मा-लव अर्थात् लक्ष्मीजी का निवास कहा गया है, आज वीरान होकर मरूस्थल में परिवर्तित हो रहा है। प्रदेश की औद्योगिक राजधानी के निवासी अपनी नगरी को विश्व की महानतम् और आदर्श शासक, प्रजामाता देवी अहिल्या की नगरी कहलाते हुए इठलाते हैं । नंदीवंश, गोवंश तथा वसुंधरा के पर्यावरण की रक्षार्थ देवाधिदेव महादेव तथा योगेश्वर श्रीकृष्ण ने जिन कथित राक्षसों को परमधाम् पहुंचाया, उनका मुख्य अपराध प्रकृति और पर्यावरण के दैवीय स्वरूप का विनाश ही था ।
धन्वन्तरि, चरक, सुश्रुत और वराहमिहिर जैसी विभूतियों का देश आज अपनी प्राकृतिक सम्पदा से अनजान है । बुद्धिजीवी तथा जानकार पारिजात का नाम सुनते ही चौंक जाते हैं और जिन्हें पारिजात के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ, वे दर्शन को लालायित हो उठते हैं । स्वर्ग के वृक्षों में कल्पवृक्ष की अगली श्रेणी का दैवीय वृक्ष पारिजात भगवान शंकर के नाम से हरश्रृंगार के रूप में भी जाना जाता है, जिसका अपभ्रंश स्वरूप हारसिंगार है । योगेश्वर श्रीकृष्ण का भी यह सर्वप्रिय वृक्ष है, कदम्ब इसके अगले क्रम में आता है । फिर भी हम हिन्दुस्तानी पारिजात की महत्ता के  ज्ञान से वंचित हैं, यह हमारा दुर्भाग्य है । 
देवी अहिल्या का ही प्रताप था कि उनके आराध्य मल्हारी मार्तण्ड (शिव शंकर) जिनके नाम से वे विश्व और अपनी प्रजा के कल्याणार्थ शासन करती थी, उनका प्रिय वृक्ष उनके राज्य में बहुतायत से पाया जाता था । वनस्पतिशास्त्रज्ञों और आयुर्वेदज्ञों के अनुसार पारिजात पर्वतराज हिमालय के साथ नेपाल और बर्मा तथा गोदावरी बेसिन में पाया जाता है । विंध्य पर्वतमालाओं में उसकी बहुतायत में उपस्थिति खोज का विषय हो सकती है । देवी अहिल्या ने समूचे देश में देवस्थानों और सभी धर्मों के उपासना स्थलों पर अनुकरणीय और अद्भुत निर्माणों के साथ ही मालवा और निमाड़ अंचल के अपने राज्य की सीमा में पिण्डारियों और उन्हीं की तरह के अशिक्षित अपराधी गिरोहों को भी कृषि और पर्यावरण संरक्षण के मानवीय कार्य के लिए प्रेरित किया था । 
इसीलिए उनके पश्चात् की मुगल और अंग्रेज सल्तनतें शबे मालवा की दीवानी और संरक्षक    थीं । लेकिन आज जनता के जाये शासकों और नौकर प्रशासकों के रहते मालवा की अनुपम और अद्भुत पारिजात हिल्स भी खतरे में है । पारिजात हिल्स देवी अहिल्या की कर्मभूमि में महेश्वर और इन्दौर के बीच इन्दौर-खण्डवा मार्ग पर बड़वाह से पहले ग्राम गवालू में स्थित हैं । यहां दो ऊँची पहाड़ियों पर बाबा मकबूलशाह कलंदर और खजांची बाबा के रूप में विख्यात सूफी संतों का आस्ताना है । 
सैंकड़ों पारिजात वृक्षों का उपवन इन्हीं पहाड़ियों पर स्थित है, जिसका संरक्षण प्रदेश का वन विभाग नहीं कर पा रहा है। मालवांचल की अनुपम और अद्भुत पारिजात हिल्स और पारिजात की महत्ता तथा औषधीय गुणों के सम्बन्ध में हमारे लेख इन्दौर और हस्तिनापुर की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने के उपरान्त भी मध्यप्रदेश शासन का वारिस वन विभाग नहीं जागा है । नंदी वंश के संरक्षक बाबा महाकालेश्वर और श्रीकृष्ण गोपाल की गुरूकुल नगरी उज्जयिनी तथा प्रजामाता की नगरी इंदौर का दम घुटने को है, लेकिन दोनों नगरियों के नगर निगम भी स्मार्ट सिटी का झुनझुना बजाकर प्राणवायु के संकट के प्रति बेखबर हैं । 
उधर हस्तिनापुर में जब बाबाजी ने बोट क्लब प्रयोग किया और जगद्गुरू बनकर सारी दुनिया को दमघोटू माहौल में योगासन कराया तो हमने कहा था प्रदूषित वातावरण में योग आत्मघात है बाबा को समझ में आया और न ही सरकार को । जब देश की राजधानी का दम घुटा तो सभी त्राहि-त्राहि कर रहे हैं । क्या मध्यप्रदेश सरकार और उसके स्थानीय निकाय हमें भी एन.जी.टी. का दरवाजा खटखटाने को बाध्य करेंगे ? जैसे श्री श्री ने भगवती यमुना की छाती पर रोलर चलाकर हजारों ढोल बजाकर हस्तिनापुर के पर्यावरण प्रेमियों को मजबूर किया था और ५ करोड़ रूपयों के दण्ड का प्रसाद पाया था । 
हमने लगातार भारत और मध्यप्रदेश की सरकारों को देश के पर्यावरण और गोवंश की रक्षा के  लिए संतों और हमारे सत्याग्रहों के माध्यम से जगाने का प्रयास किया, मार्च २०१२ में शिप्रा रक्षा एवं श्रृंगार सम्मेलन उज्जयिनी के पूर्व हमें सिंहस्थ  २०१६ के पूर्व शिप्रा और गोवंश रक्षा का लिखित वचन कलेक्टर उज्जैन के माध्यम से शिवराज सरकार ने   दिया । ठीक मालवा और उज्जयिनी का पर्यावरण भी ''ग्रीन सिंहस्थ - ग्रीन उज्जैन''के सैंकडों करोड़ के सरकारी विज्ञापनों के बावजूद और अधिक प्रदूषित हो गया और आज हालत यह है कि बढ़ते प्रदूषण से महाकाल और देवी अहिल्या की नगरियों का दम घुट रहा है । 
देश की सरकार हस्तिनापुर ही नहीं बचा पा रही है, काले धन के खिलाफ महाभारत रच रही सरकार काले धुंए को बढ़ने से नहीं रोक पा रही है । देशी-विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के राक्षसी मुनाफे के खातिर वाहनों से निकलने वाला काला जहर सरकारी प्रदूषण निवारण मण्डल रूपी सफेद हाथियों की खाल भी काली कर रहा है । शिप्रा, कहान, चम्बल आदि नदियों को प्रदूषणमुक्त करने के लिए हमने उच्च् न्यायालय में जनहित याचिकाएं भी प्रस्तुत कीं, लेकिन सरकार ने झूठे शपथ-पत्रों के माध्यम से भी न्यायदान का मार्ग अवरूद्ध कर दिया । मोक्षदायिनी शिप्रा, पौराणिक महानदी नर्मदा और चम्बल का अस्तित्व भी खतरे में    है । 
गोपाल के देश में गोवंश को आवारा हमारी दोनों नगरियों में भी वर्षों पूर्व घोषित किया जा चुका है । हम जर्सी, होलस्टिन, फ्रिजीयन और आस्ट्रियन गायों के नाम पर परिवर्तित सुअरनियों का दूध पीने और संतवेशधारी बाबाओं/दुकानदारों के माध्यम से भी इन्हीं गायों का घी खाने को अभिशप्त हैं। गावो विश्वस्य मातर: अब केवल धर्मशास्त्रों की शोभा मात्र रह गया है । 
हमने महाकाल की नगरी में सिंहस्थ २००४ के पूर्व से पर्यावरण एवं गोसंरक्षण का अनुष्ठान निरंतर जारी रखा है । सप्तसागरों की रक्षा के लिए हम भैरवगढ़ जेल की काल कोठारी में भी रहे हैं । उज्जयिनी में थोड़ा बहुत जन-जागरण हुआ है। अब हम देवी अहिल्या की नगरी के वासियों को जगाने और अपनी मातृभूमि तथा महान विरासत की रक्षा के लिए शीघ्र ही जन-जागरण, सत्याग्रह और रचनात्मक अनुष्ठान प्रारंभ करने जा रहे हैं । 
हमारा मालव रक्षा अनुष्ठान इंदौर जिले में स्थित उज्जैनिया, शिप्रा उद्गम पर वर्षों से सक्रिय है । हम आशा करते हैं कि मालववासी अपने अंचल और भारतमाता के ह्दय प्रदेश का संरक्षण कर पूरे देश और दुनिया में पर्यावरण संरक्षण का ऐतिहासिक संदेश अपने सद्कर्मों के माध्यम से देने हेतु   आगे आएंगे और मालवांचल की नगरियों को पारिजात की महक से महकाएंगे ।

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