गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

सामाजिक पर्यावरण
खनन पर नियंत्रण : गोआंचि माटी घोषणा पत्र
राहुल बसु 

गोवा के नागरिक समूहों ने मिलकर एक घोषणापत्र तैयार किया है, जिसके अनुसार गोवा में हो रहे अवैध खनन को न केवल नियमित व नियंत्रण किया जाएगा बल्कि गोवा का प्रत्येक नागरिक खनन से प्राप्त लाभों का हिस्सेदार होगा । साथ ही खनिज संपदा को भावी पीढ़ियों को उपलब्ध करवाने का संकल्प भी लिया गया है ।
गोवा में खनन बेहद विभाजनकारी है । अतएव खनन पर अपना दृष्टिकोण बनाते समय हमने अत्यंत सावधानीपूर्वक सभी भागीदारों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखा है और कुछ सिद्धांन्तों के आधार पर ठोस कदम उठाए हैं जिससे कि सभी पक्ष लाभान्वित हो सकें । खनन पर निर्भर व्यक्तियों को लाभ हो - खनन से प्रभावित व्यक्तियों को लाभ हो  - गोवा की राज्य सरकार लाभान्वित हो - गोवा के नागरिक लाभान्वित हों - गोवा के भविष्य के नागरिक लाभान्वित हों - खननकर्ता २० प्रतिशत तक लाभार्जन कर सकते हैं परंतु अब वे लूट नहीं सकते । 
संविधान के अन्तर्गत (अनुच्छेद २९५) गोवा के खनिज का स्वामित्व गोवा राज्य का है। परंतु सार्वजनिक ट्रस्ट सिद्धांत (डाक्ट्रिन) अनुच्छेद २१,जीवन का अधिकार, के अनुसार राज्य सरकार विशेषकर भविष्य की पीढ़ी के संदर्भ में प्राकृतिक संसाधनों की महज ट्रस्टी  है । दूसरे शब्दों में कहंे तो खनिज गोवा के निवासियों की साझा संपत्ति है । इसके अतिरिक्त आनुवांशिक समता सिद्धांत (इंटरजनरेशनल इक्विटी प्रिसिंपल) (अनुच्छेद २१ जीवन का अधिकार) के अनुसार, हमें तो खनिज विरासत में मिले हैं हम महज इनके अभिरक्षक हैंऔर हमें हर हाल में इन्हें अपनी भविष्य की पीढ़ियों को हस्तांतरित करना    है । 
खनन लीज होल्डर जमीन के नीचे दबे खनिजों के मालिक या स्वामी नहीं हैं । उनके पास महज वैध खनन करने की लीज है । वह वास्तव में केवल कच्ची धातु निकाल सकते हैं । यदि उन्होंने केवल कच्ची धातु के लिए ही भुगतान किया हो तो क्या इससे उन्हें कच्ची धातु पर स्वामित्व भी प्राप्त हो जाता है ?
गोवा की अर्थव्यवस्था में खनन का बहुत बड़ा हिस्सा है। हालांकि यह जी एस डी पी के ७.५ प्रतिशत से अधिक भी नहीं रहा । इससे रोजगार प्राप्त होता है और यह राज्य सरकार को थोड़ा बहुत राजस्व भी प्रदान करता है । परंतु खनन गोवा की सबसे बड़ी पर्यावरणीय एवं सामाजिक समस्या भी है। इसने हमारे खेत, खदान एवं नदियों को नष्ट कर दिया और मछली करी और चावल के स्त्रोतों को भी नुकसान पहुंचाया । इसने खनन क्षेत्र में निवास कर रहे लाखों लोगों के फेफड़ों को क्षति पहुंचाई है और यह असंख्य मौतों के लिए भी जिम्मेदार है ।
खनन गोवा में भ्रष्टाचार का एकमात्र सबसे बड़ा स्त्रोत है और इसकी वजह या जड़ है गोवा की निकृष्ट प्रशासनिक व्यवस्था । सर्वोच्च् न्यायालय ने स्वयं अपने निर्णय में कहा है कि प्रतिबंध लगाने के पहले पांच साल तक हुआ खनन पूरी तरह से अवैध था यानी १०० प्रतिशत अवैध । इसके अलावा भी अवैधानिक खनन को लेकर तमाम रिपोर्ट सामने आ चुकी हैं । जिनमें शामिल हैं (१) पी ए सी रिपोर्ट (२) शाह आयोग रिपोर्ट १ एवं २ (३) सी ई सी रिपोर्ट (४) पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को प्रस्तुत ई ए सी रिपोर्ट, (५) ई आई ए पर सी ई ई/गाडगिल रिपोर्ट (६) शाह आयोग रिपोर्ट-३ (७) १७ चार्टर्ड अकांउटंेट (सी ए) द्वारा प्रस्तुत   रिपोर्ट । इसके अलावा एस आई टी, लोकायुक्त एवं प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जांचें जारी हैं । 
सबसे बदत्तर बात यह है कि, ऐसा अनुमान लगाया गया है कि खनन की लीज देने की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप हमारे खनिजों के मूल्यों में ९५ प्रतिशत से अधिक ही हानि हो जाती है। और जो क्षुद्र सी धनराशि प्राप्त भी होती है, वह भी खर्च हो जाती है और उसे भविष्य के लिए संभाल कर या जमा करके नहीं रखा जाता । कुल मिलाकर यह जबरदस्त नुकसान था । गणना करें तो इससे राज्य के राजस्व को करीब दोगुना घाटा हुआ है या प्रति व्यक्ति आय के २५ प्रतिशत या गरीबी रेखा से तीन गुना घाटा हुआ है । इस घाटे को प्रति व्यक्ति कर के रूप में भी सभी में विभाजित किया जा सकता है । कुछ लोग हमारे बच्चें की विरासत से अमीर बन गए अतएव यह कोई मान्य स्थिति नहीं है ।
भाजपा सरकार को खनन मुद्दा सुलझाने का स्वर्णिम अवसर मिला था । १०,००० करोड़ रु. से अधिक की कच्ची धातु व इकट्ठा सामग्री राज्य की संपत्ति बन गई   थी । कोई भी खनन लीज वैध नहीं थी और उनके पास इस पूरी प्रणाली को नए सिरे से तैयार करने का मौका था । परंतु सरकार ने ८८ लीजों का नवीनीकरण कर दिया । इनमें से तमाम को एक हफ्ते के अंदर मंत्रीमंडल की स्वीकृति एवं अध्यादेश जारी होने के मध्य नवीनीकृत कर दिया गया । 
ओडिशा की तरह न होते हुए गोवा में पिछले दिनांक से भी इन्हें नवीनीकृत कर दिया गया । फलस्वरूप हमारा दावा ही खत्म हो गया । चूंकि यह ९५ प्रतिशत नुकसान वाली पुरानी प्रणाली पर आधारित है अतएव इसके परिणामस्वरूप हमें ७९००० करोड़ रु. का अतिरिक्त घाटा   होगा । यह कुल मिलाकर १,४४,००० करोड़ रु. बैठेगा यानी प्रति व्यक्ति करीब १० लाख रु.। इसे हर हाल में रोकना ही होगा ।
हम इस लीज को तुरंत रद्द करने के सभी वैधानिक तरीके ढूंढेगंे और अपने अधिकार एवं बकाया राशि भी प्राप्त करेंगें । हम शून्य हानि खनन (जीरो लॉस खनन) की नीति जीरो वेस्ट माइनिंग का क्रियान्वयन करवाएंगे और इससे प्राप्त धनराशि को गोवांचि माटी परमानेंट फंड (स्थायी कोष) में जमा करेंंगे तथा केवल वास्तविक आमदनी को नागरिक लाभांश के रूप में वितरित करेंगे ।
खनन पर आगे बढ़ने से पूर्व हम सर्वप्रथम यह सुनिश्चित करेंगे कि हमारी भविष्य की पीढ़ी के पास खनन हेतु यथोचित खनिज उपलब्ध रहें । इसके पश्चात हम यह सुनिश्चित करेंगे कि सभी पर्यावरणीय एवं कानूनी आवश्यकताओं की पूर्ति हो । तीसरा यह कि नए खनन प्रारंभ के पूर्व हम वहां पर जो पहले से पड़ा है उसे निपटाएंगे । इससे स्थायी कोष (परमानेंट फंड) के लिए धन इकट्ठा होगा और यह दो पर्यावरणीय समस्याओं, वहां पर इकट्ठा धातु एवं खाली छोड़ दिए गए गड्ढ़ों से भी निपटने में सहायक होगा । चौथा, नए खनन हेतु हम एकाग्र (कन्सन्ट्रेटेड) खनन का प्रस्ताव दे रहे हैं । 
इसमें केवल एक या दो खदानों को लीज पर दिया जाएगा जो कि व्यापक विध्वंस को न्यूनतम करेगा और इससे हमारे नियंत्रण में वृद्धि होगी । पांचवा, यह कि जिला खनन फेडरेशन, खनन प्रभावितों के साथ पारस्परिक भागीदारी बजट प्रक्रिया के तहत अपनी योजनाएं विकसित करेंगे ।

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