कृषि जगत
खाद्य व्यवस्था में फैलते जहर
भारत डोगरा
हाल के दशकों में विश्व स्तर पर खाद्य उत्पादन तो बढ़ा है, पर इसके साथ अनेक खाद्यों की गुणवत्ता कम हुई है व उनमें रासायनिक कीटनाशक, जंतुनाशक व खरपतवारनाशकों के अत्यधिक उपयोग के कारण स्वास्थ्य को क्षति पहुंचाने वाले तत्व बढ़े हैं । अब एक नई समस्या यह आ रही है कि जीएम (जेनेटिक रूप से परिवर्तित) खाद्य फसलों के प्रसार में भी अनेक तरह की नई स्वास्थ्य समस्याएं उपस्थित हो रही हैं ।
इंडिपेंडेंट साइन्स पैनल (स्वतंत्र विज्ञान मंच) में एकत्र हुए विश्व के अनेक देशों के प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों ने जीएम फसलों पर एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ तैयार किया है जिसके निष्कर्ष में उन्होंने कहा है, जीएम फसलों के बारे में जिन फायदों का वायदा किया गया था वे मिले नहीं हैं । और ये फसलें खेतों में समस्याएं पैदा कर रहीं हैं ।... ऐसे पर्याप्त् प्रमाण प्राप्त् हो चुके हैं जिनसे इन फसलों की सुरक्षा सम्बंधी गंभीर चिंताएं पैदा होती हैं ।
यदि इनकी उपेक्षा की गई तो स्वास्थ्य व पर्यावरण की क्षति होगी, जिसकी पूर्ति नहीं हो सकती है । जीएम फसलों को अब दृढ़ता पूर्वक अस्वीकार कर देना चाहिए । जीएम फसलों का सभी जीवों व मनुष्यों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है । जीएम फसलों के गंभीर खतरों को बताने वाले वैज्ञानिकों के ऐसे कई अध्ययन हैं ।
जैफरी एम. स्मिथ की पुस्तक जेनेटिक रूले (एक किस्म का जुआं) के ३०० से अधिक पृष्ठोंमें ऐसे दर्जनों अध्ययनों का सार उपलब्ध है । इनमें चूहों पर हुए अनुसंधानों में पेट, लीवर, आंतों के बुरी तरह क्षतिग्रस्त होने की चर्चा है । जीएम फसल या उत्पाद खाने वाले पशु-पक्षियों के मरने या बीमार होने की चर्चा है व जेनेटिक उत्पादों से मनुष्योंमें भी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का वर्णन है ।
यूनियन आफ कंसर्न्ड साइंटिस्ट्स नामक वैज्ञानिकों के संगठन ने कुछ समय पहले अमेरिका में कहा था कि जेनेटिक इंजीनियरिंग के उत्पादों पर फिलहाल रोक लगनी चाहिए क्योंकि ये असुरक्षित हैं । इनसे उपभोक्ताओं, किसानों व पर्यावरण को कई खतरे हैं । इंडिपेंडेंट साइंस पैनल में मौजूद ११ देशों के वैज्ञानिकों ने जीएम फसलों से स्वास्थ्य के लिए अनेक संभावित दुष्परिणामों की ओर ध्यान दिलाया है, जैसे प्रतिरोधक क्षमता पर प्रतिकूल असर, एलर्जी, जन्मजात विकार, गर्भपात आदि ।
बीटी कपास या उसके अवशेष खाने के बाद अनेक भेड़-बकरियों के मरने व अनेक पशुओं के बीमार होने के समाचार मिले हैं । डा. सागरी रामदास ने इस मामले पर विस्तृत अनुसंधान किया है । उन्होंने बताया है कि ऐसे मामले विशेषकर आंध्र प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक व महाराष्ट्र में सामने आए हैं । पर सरकारी अनुसंधान तंत्र ने इस पर बहुत कम ध्यान दिया है और इस गंभीर चिंता के विषय को उपेक्षित किया है । भेड़-बकरी चराने वालों ने स्पष्ट बताया कि सामान्य कपास के खेतों में चरने पर ऐसी स्वास्थ्य समस्याएं पहले नहीं देखी गई थीं व जीएम फसल के आने के बाद ही ये समस्याएं देखी गइंर् हैं । हरियाणा में दुधारू पशुओं को बीटी कपास के बीज व खली खिलाने के बाद उनमें दूध कम होने व प्रजनन सम्बंधी गंभीर समस्याएं सामने आइंर्।
तीन वैज्ञानिकों में वान हो, हार्टमट मेयर व जो कमिन्स ने जेनेटिक इंजीनियंरिंग की विफलताओं की पोल खोलते हुए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज इकॉलाजिस्ट पत्रिका में प्रकाशित किया है । इस दस्तावेज़ के अनुसार बहुचर्चित चमत्कारी सूअर या सुपरपिग बुरी तरह फ्लाप हो चुका है । इस तरह जो सूअर वास्तव में तैयार हुआ उसको अल्सर थे, वह जोड़ों के दर्द से पीड़ित था, अंधा और नपुंसक था ।
इसी तरह तेजी से बढ़ने वाली मछलियों के जींस प्राप्त् कर जो सुपर-सैलमन मछली तैयार की गई उसका सिर बहुत बड़ा था वह न तो ठीक से देख सकती थी, न सांस ले सकती थी, न भोजन ग्रहण कर सकती थी । इस कारण शीघ्र ही मर जाती थी ।
बहुचर्चित भेड़ डॉली के जो क्लोन तैयार हुए वे असामान्य थे व सामान्य भेड़ के बच्चें की तुलना में जन्म के समय उनकी मृत्यु की संभावना आठ गुना अधिक पाई गई । जेनेटिक इंजीनियरिंग के इन अनुभवों को देखते हुए उससे प्राप्त् भोजन को हम कितना सुरक्षित मानेंगे यह सोचने का विषय है ।
अत: यह स्पष्ट है कि भोजन की सुरक्षा के लिए कई नए खतरे उत्पन्न हो रहे हैं । इनके बारे में सामान्य नागरिक को सावधान रहना चाहिए व उपभोक्ता संगठनों को नवीनतम जानकारी नागरिकों तक पहुंचानी चाहिए । पर सबसे पहले जरूरी कदम तो यह उठाना चाहिए कि जीएम फसलों के प्रसार पर कड़ी रोक लगा देनी चाहिए ।
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