सोमवार, 18 दिसंबर 2017

प्रदेश चर्चा 
छत्तीसगढ़ : तालाबों की समृद्ध लोक परम्परा
पंकज चतुर्वेदी

छत्तीसगढ़ में जल-संसाधन और प्रबंधन की समृद्ध परम्परा के प्रमाण, तालाबों के साथ विद्यमान   हैं । राजधानी रायपुर में तालाबोें के गहरीकरण और सौंदर्यीकरण की योजनाएं हर साल बनती हैंऔर   पानी की तरह रुपये बहाए जाते हैं । बावजूद इसके तालाब घटते    गए । 
छत्तीसगढ़ राज्य और उसकी राजधानी रायपुर बनने से पहले तक यह नगर तालाबों की नगरी कहलाता था, ना कभी नलों में पानी की कमी रहती थी और ना आंख में । लेकिन अलग राज्य क्या बना, शहर को बहुत से दफ्तर, घर, सड़क की जरूरत हुई और देखते ही देखते ताल-तलैयों की बलि चढ़ने लगी । 
कोई १८१ तालाबों की मौजूदगी वाले शहर में अब बमुश्किल एक दर्जन तालाब बचे हैंऔर वे भी हांफ रहे हैं अपना अस्तित्व बचाने के लिए । वैसे यहां भी सुप्रीम कोर्ट आदेश दे चुकी है   कि तालाबों को उनका समृद्ध अतीत लौटाया जाए, लेकिन लगता है कि   वे गुमनामी की उन गलियों में खो चुके हैं जहां से लौटना नामुमकिन होता है । 
वैसे रायपुर में तालाबों को खुदवाना बेहद गंभीर भूवैज्ञानिक तथ्य की देन है । यहां के कुछ इलाकों में भूमि में दस मीटर गहराई पर लाल-पीली मिट्टी की अनूठी परत है जो पानी को रोकने के लिए प्लास्टिक परत की तरह काम करती है । पुरानी बस्ती, आमापारा, समता कालोनी इलाकों में १० मीटर गहराई तक मुरम या लेटोविट, इसके नीचे १० से १५ मीटर में छुई माटी या शेलएलो और इसके १०० मीटर गहराई तक चूना या लाईम स्टोन है । तभी जहां तालाब हैं वहां कभी कुंए सफल नहीं हुए । 
यह जाना माना तथ्य है कि रायपुर में जितनी अधिकतम बारिश होती है उसे मौजूद तालाबों की महज एक मीटर गहराई में रोका जा सकता था । जीई रोड पर समानांतर तालाबों की एक श्रंृखला है जिसकी खासियत है कि निचले हिस्से में बहने वाले पानी को यू-शेप का तालाब बना कर रोका गया है । 
ब्लाक सिस्टम के तहत हांडी तालाब, कारी, धोबनी, घोडारी, आमा तालाब, रामकुंड, कर्बला और चौबे कालोनी के तालाब जुड़े हुए हैं । बूढा तालाब व बंधवा के ओवर फ्लो का खरून नदी में मिलना एक विरली पुरानी तकनीक रही है । बेतरतीब निर्माण ने तालाबों के अंतर्संबंधों, नहरों और जल आवक रास्तों को ही निरूद्ध नहीं किया, अपनी तकदीर पर भी सूखे को जन्म दे दिया । रही बची कसर यहां के लोगों की धार्मिक आयोजनों में बढ़ती रूचि ने खड़ी कर दी । 
महानगर में हर साल कोई दस हजार गणपति, दुर्गा प्रतिमा आदि की स्थापना हो रही है और इनका विसर्जन इन्हीं तालाबों में हो रहा है । प्लास्टर ऑफ पेरिस, रासायनिक रंग, प्लास्टिक के सजावटी सामान, अभ्रक, आसेनिक, थर्मोकोल आदि इन तालाबों को उथला, जहरीला व गंदला कर रहे    हैं ।  
कभी बूढ़ा तालाब शहर का बड़ा-बूढ़ा हुआ करता था । कहते हैं कि सन् १४०२ के आसपास राजा ब्रहृदेव ने रायपुर शहर की स्थापना की थी और तभी यह ताल बना । वैसे इसे लेकर भी पूरे देश की तरह बंजारों व मछुआरों की कहानियां मशहूर हैं । सनद रहे बूढा तालाब पहले इस तरह अन्य तालाबों से जुड़ा था कि इसमें पानी लबालब होते ही महाराजबंध तालाब में पानी जाने लगता था और उसके आगे अन्य किसी में इन तालाब-श्रंृखलाओं के कारण ना तो रायपुर कभी प्यासा रहता और ना ही तालाब की सिंचाई, मछली, सिंघाड़ा आदि के चलते भूखा । 
कहते हैं कि इस तालाब के किनारे से कोलकाता-मुंबई और जगन्नाथ पुरी जाने के रास्ते निकलते थे । लेकिनआज यह जाहिर तौर पर कूड़ा फैंकने व गंदगी उड़ेलने की जगह बन गया है। वैसे आज इसका नाम विवेकानंद तालाब हो गया, क्योंेकि इसके बीचों बीच विवेकानंद की एक प्रतिमा स्थापित की गई है, लेकिन यहां जानना जरूरी है कि बूढ़ा से विवेकानंद तालाब बनने की प्रक्रिया में इसका क्षेत्रफल १५० एकड़ से घट कर ६० एकड़ हो गया । बताते हैं कि जब स्वामी विवेकानंद १४ वर्ष के थे, तो रायपुर आए थे व तैरकर तालाब के बीच में बने टापू तक जाते थे ।
शहर के कई चर्चित तालाब देखते-देखते ओझल हो गए- रायपुर शहर में रजबंधा तालाब का फैलाव ७.९७५ हैक्टर था, आज वहां चौरस मैदान है । छह हैक्टर से बड़े सरजूबंधा को पुलिस लाईन लील गई तो डेढ़ हैक्टर से भी विशाल खंतांे तालाब पर शक्तिनगर कालोनी बन गई । पचारी, नया तालाब और गोगांव ताल को उद्योग विभाग के हवाले कर दिया गया तो ढाबा तालाब (कोटा) और डबरी तालाब(खमरडीह) पर कब्जे हो गए । ऐसे ही कंकाली ताल, ट्रस्ट तालाब, नारून तालाब आदि दसियों पर या तो कब्जे हो गए या फिर वे सिकुड़ कर शून्य की ओर बढ़ रहे हैं । यह सूची बानगी है कि रायपुर शहर के बीच के तालाब  किस तरह शहरीकरण की चपेट में आए । 
यहां जानना जरूरी है कि छत्तीसगढ़ में तालाब एक लोक परंपरा व सामाजिक दायित्व रहा  है । यहां का लोनिया, सबरिया, बेलदार, रामनामी जैसे समाज पीढ़ियों से तालाब गढ़ते आए हैं । अंग्रेजी शासन के समय पड़े भीषण अकाल के दौरान तत्कालीन सरकार ने खूब तालाब खुदवाए थे और ऐसे कई सौ तालाब पूरे अंचल में 'लकेटर तालाब` के नाम से आज भी विद्यमान हैं । 'छत्तीसगढ़ मित्र` को यहां की पहली हिंदी पत्रिका कहा जाता है । 
इसके मार्च-अप्रैल, १९०० के अंक में प्रकाशित एक आलेख गवाह है कि उस काल में भी समाज तालाबों को लेकर कितना गंभीर व चिंतित था । आलेख कुछ इस तरह था-''रायपुर का आमा तालाब प्रसिद्ध है यह तालाब श्रीयुत् सोभाराम साव रायपुर निवासी के पूर्वजों ने बनवाया था । अब उसका पानी सूख कर खराब हो गया है। उपर्युक्त सावजी ने उसकी मरम्मत पर १७००० रूपए खर्च करने का निश्चय किया है। काम भी जोर शोर से जारी हो गया है। आपका औदार्य इस प्रदेश में चिरकाल से प्रसिद्ध है । सरकार को चाहिए कि इसी ओर ध्यान देवे ।``
रायपुर का तेलीबांधा तालाब भ्रष्टाचार, लापरवाही और संवेदनहीनता की बानगी बना हुआ  है । वर्ष १९२९-३० के पुराने राजस्व रिकार्ड में इसका रकबा ३५ एकड़ था, लेकिन आज इसके आधे पर भी पानी नहीं है । उस रिकार्ड के मुताबिक आज जीई रोड का गौरव पथ तालाब पर ही है । इसके अलावा जलविहार कालोनी की सड़क, बगीचा, आरडीए परिसर, लायंस क्लब का सभागार भी पानी की जगह पर बना है । यहां १२ एकड़ जमीन खाली करवा कर वहां बसे लोगों को बोरियाकला में विस्थापित किया गया । जब यह जमीन खाली हुई तो इससे दो एकड़ जमीन नगर निगम मकान बनाने के लिए मांगने लगा । 
वह तो भला हो जनवरी-२०११ में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जगपाल सिंह बनाम पंजाब राज्य के मुकदमे के फैसले का जिसमें अदालत ने देश के सभी राज्यों को आदेश दिया था कि तालाब के पानी व निस्तार की जमीन पर किसी भी तरह का निर्माण ना हो । अब सरकार खुद पशोपेश में है क्योंकि राज्य सरकार ने तेलीबांधा से हटाए लोगों को उनकी पुरानी जगह पर ही ७२० मकान बना कर देने का वायदा कर दिया है। अब तालाब पर बेहद खामोशी से खेल हो रहा है- इसके कुछ हिस्से में पानी बरकरार रख, शेष पर बगीचे, कालोनी बनाने के लिए लोग सरकार के साथ मिल कर गुंताड़े बिठा रहे    हैैं । 
अब तो नया रायपुर बन रहा है, अभनपुर के सामने तक फैला है और इसको बनाने में ना जाने कितने ताल-तलैया, जोहड़, नाले दफन हो गए हैैं । यहां खूब चौड़ी सड़के हैं, भवन चमचमाते हुए है, सबकुछ उजला है, लेकिन सवाल खड़ा है कि इस नई बसाहट के लिए पानी कहां से आएगा ? तालाब तो हम हड़प कर गए है । 

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