ज्ञान-विज्ञान
डब्लूएचओ की एंटीबायोटिक संबंधी चेतावनी
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने चेतावनी दी है कि अगर हम पशुपालन में एंटीबॉयोटिक दवाओं का दुरुपयोग जारी रखेंगे, तो हम एंटीबॉयोटिक-पूर्व के युग में लौट जाएंगे, जिसमें आज आसानी से ठीक किए जाने वाले मामूली रोग भी घातक सिद्ध हो सकते हैं।
युरोपीय संघ ने २००६ से पशुओं में वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए एंटीबॉयोटिक दवाइयों के इस्तेमाल पर रोक लगाई गई है लेकिन इनके उपयोग में कोई महत्वपूर्ण कमी देखने को नहीं मिली है । वहां किसानों से अनुरोध किया गया है कि जब तक किसी रोग का निदान न हो जाए तब तक पशुओं पर एंटीबॉयोटिक दवाओं का इस्तेमाल न किया जाए । डब्लूएचओ ने इन्हीं बातों को दिशानिर्देश के रूप में स्वीकार किया है ।
कई वैज्ञानिको के अनुसार डब्लूएचओ द्वारा जारी किए गए दिशा निर्देशों को गंभीरता से माना जाए तो इससे एक बड़े बदलाव की उम्मीद की जा सकती है परन्तु डब्लूएचओ के
खाद्य सुरक्षा विभाग और ज़ूनॉसेस के निदेशक कजुवाकी मियागीशीमा का मानना है कि ये केवल दिशानिर्देश हैं कोई कानून नहीं । कोडेक्स एलिमेंटेरियस नामक एक
अंतर-सरकारी समूह इन दिशानिर्देशों पर कार्य कर रहा है ताकि इन्हें अंतर्राष्ट्रीय मानकों का रूप दिया जा सके ।
अमेरिका ने १९७७ में एंटीबॉयोटिक के इस्तेमाल पर रोक लगाई थी लेकिन पशुपालक इनका उपयोग करते रहे। वर्ष २०१५ के आंकड़ों के अनुसार पशुओं पर १५५ लाख किलोग्राम एंटीबायोटिक का इस्तेमाल किया गया जिसमे से ९७ लाख किलोग्राम तो ऐसे एंटीबायोटिक थे जो इंसानों के लिए महत्वपूर्ण हैं।
अमरीकी कानून ने मात्र पशुओं की वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए एंटीबायोटिक के इस्तेमाल को गैर कानूनी घोषित कर दिया है । एक ओर अमेरिका कृषि क्षेत्र में एंटीबॉयोटिक के उपयोग को कम कर रहा है, तो वहीं दूसरी ओर चीन इनका और अधिक उपयोग करने लगा है। चीन के किसान कॉलिस्टिन नामक एंटीबॉयोटिक का सूअरों में भरपूर उपयोग कर रहे हैं, जो मानव उपयोग के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसके चलते प्रतिरोध बढ़ रहा है ।
हालांकि चीन ने प्रतिरोध फैलने के बाद इससे जुड़ी औषधि के उपयोग पर रोक लगा दी है, जिससे यह बात सिद्ध होती है कि अन्य देश भी कार्रवाई के लिए तैयार हैंऔर कुछ हल निकालना चाहते हैं। डब्लूएचओ द्वारा वित्त पोषित व्यवस्थित समीक्षा दी लैंसेट प्लेनेटरी हेल्थ में प्रकाशित हुई जिसने डब्लूएचओ को दिशानिर्देश विकसित करने में मदद की । रिपोर्ट के अनुसार इनका पालन करने से एंटीबॉयोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया को ३९ प्रतिशत तक कम किया जा सकता है हालांकि अन्य शोधकर्ताओं का मत है कि एंटीबॉयोटिक में कटौती करने से प्रतिरोध में १० से १५ प्रतिशत के बीच कमी लाई जा सकती है ।
वैज्ञानिक मानते हैं कि जानवरों में एंटीबॉयोटिक की खुराक एक समस्या है, लेकिन अब भी यह पता लगाना मुश्किल है कि एंटीबॉयोटिक प्रतिरोधी समस्या का कितना प्रतिशत पशु उपयोग से आ रहा है । डब्लूएचओ के अनुसार यह दिशानिर्देश वैश्विक रूप से लागू किए जा सकते हैं और सभी देश गैर-जरूरी एंटीबॉयोटिक का उपयोग खत्म कर पशुओं की सेहत के लिए बेहतर आवास और टीकाकरण प्रथाएं अपनाएंगे ।
गोली जिसे खाने पर डॉक्टर को सूचना मिल जाएगी
यूएस के खाद्य व औषधि प्रशासन ने दवा की एक डिजिटल गोली को मंज़ूरी दी है । इस गोली में एक सेंसर लगा है जो पेट में पहुंचते ही एक संदेश प्रसारित करेगा । यह संदेश मरीज़ के सीने पर चिपकी एक पट्टी महसूस करेगी और उसे आगे प्रसारित कर देगी ।
ऐसी गोली बनाने का विचार मरीज़ों द्वारा डॉक्टर की सलाह पर नियमित रूप से दवाई न लेने की समस्या से उभरा है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि मरीज़ों द्वारा समय पर दवा का सेवन ना करना स्वास्थ्य तंत्र के सामने एक बड़ी समस्या है । इसकी वजह से कई बीमारियों का इलाज मुश्किल हो जाता है और खर्चीला भी साबित होता है । ऐसा बताया जा रहा है कि इस समस्या की वजह से लगभग १०० अरब डॉलर का नुकसान होता है ।
फिलहाल जिस डिजिटल दवा को मंज़ूरी दी गई है वह सायकोसिस की दवा एबिलीफाय मायसाइट है । इसका उत्पादन दवा कंपनी ओत्सुका द्वारा प्रोटियस डिजिटल हेल्थ नामक कंपनी के सहयोग से किया जा रहा है । गोली में जो सेंसर लगा है वह तांबा, मैग्नीशियम और सिलिकॉन से बना है। जैसे ही यह सेंसर आमाशय के तरल पदार्थों के संपर्क में आता है, वैसे ही यह एक विद्युत संकेत पैदा करता है। इसके कुछ मिनट बाद व्यक्ति की बाइंर् पसलियों पर लगी एक पट्टी इस संदेश को पकड़ती है। यह पट्टी हर सात दिन में बदलनी होती है । यह पट्टी गोली निगलने की तारीख व समय को ब्लूटूथ के ज़रिए एक मोबाइल फोन ऐप को प्रेषित कर देती है जहां से यह उन सारे लोगों को भेज दिया जाता है जिनके मोबाइल नंबर उसमें डाले गए हैं । मरीज़ चाहे तो इस तरह के संदेश भी जा सकते हैंकि उसने कब आराम किया वगैरह ।
इस नवाचार को लेकर वाद-विवाद शुरू हो चुका है । कुछ विशेषज्ञों का मत है कि हम दवा न लेने की समस्या से निपटने के मामले में एक कदम आगे बढ़े हैं। उनके मुताबिक यह तकनीक खास तौर से उन मरीज़ों के लिए बहुत कारगर साबित होगी जो भूलने की आदत से पीड़ित हैं। यदि वे समय पर दवा लेना भूल जाते हैं तो उनके डॉक्टर या परिजनों को इस बात का पता चल जाएगा और वे मरीज़ को याद दिला सकते हैं ।
दूसरी ओर, कई लोगों का मत है कि यह व्यक्ति की निजता का उल्लंघन है । इन लोगों का कहना है कि इस तकनीक का दुरूपयोग होने की पूरी आशंका है । इसी आशंका के मद्देनज़र फिलहाल यह व्यवस्था की गई है कि मरीज़ की सहमति के बाद ही उसे यह डिजिटल गोली दी जाएगी । इसके लिए मरीज़ को एक सहमति अनुबंध करने और जब चाहे इस अनुबंध को रद्द करने की छूट दी गई है । कुछ लोगों का मत है कि बीमा कंपनियां व्यक्ति पर यह शर्त लागू कर सकती हैं कि उसे ऐसे अनुबंध पर हस्ताक्षर करने ही होंगे। तो इस नई टेक्नॉलॉजी पर बहस चलना लाज़मी है।
क्या है सर्जरी का सही समय ?
क्या आप जानते हैं कि सर्जरी का समय भी आपके स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव डालता सकता है ।
ह्दय वाल्व का प्रतिस्थापन करवा चुके ६०० रोगियों के अध्ययन में देखा गया है कि सुबह के समय सर्जरी किए गए रोगियों की तुलना में दोपहर के समय में सर्जरी किए गए रोगी अधिक स्वस्थ रहे । साथ ही सर्जरी के ५०० दिन बाद भी दोपहर में सर्जरी किए गए रोगियों में मायोकार्डियल इंफार्क्शन (यानी ह्दय की मांसपेशियों की नाकामी) ह्दय की धड़कन रुकना, या मृत्यु का जोखिम अन्य की तुलना में ५० प्रतिशत कम पाया गया । ८८ अन्य मरीज़ों के अध्ययन में भी यही बात सामने आई है कि दोपहर में सर्जरी के परिणाम बेहतर होते हैं।
इस अध्ययन के प्रमुख लिले-फ्रांस विश्वविघालय के प्रोफेसर डेविड मोंटेन बताते हैं कि सर्जरी का समय बदलकर ह्दय की क्षति या मृत्यु दर में कमी लाई जा सकती है ।
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