सोमवार, 18 दिसंबर 2017

स्वास्थ्य
किडनी के लिए खतरा बनते कीटनाशक
भाव्या खुल्लर/ नवनीत कुमार गुप्त

पिछले कुछ वर्षों के दौरान अधिक उपज की चाह में कृषि क्षेत्र में कीटनाशकों की मात्रा दिनोंदिन बढ़ती जा रही है । बढ़ती मात्रा का पर्यावरण क ेविभिन्न घटकों पर असर दिख रहा है। 
यही नहीं, मानव स्वास्थ्य के लिए भी कीटनाशक गंभीर चिंता का विषय बनते जा रहे हैं। हाल ही में विश्व के विभिन्न देशों, जैसे श्रीलंका, एल सेल्वाडोर, मध्य अमेरिका और मेक्सिको में मरीज़ों पर किए गए एक अध्ययन में किडनी विकार वाले मरीजोंके शरीर में कीटनाशकों की मात्रा का स्तर काफी अधिक पाया गया है । भारत में दिल्ली से एक अध्ययन को इस सूची में हाल ही में जोड़ा गया है । इस शोध के नतीजे एनवायरमेंटल हेल्थ एंड प्रिवेंटिव मेडिसिन नामक जर्नल में प्रकाशित हुए हैं। 
चिकित्सकों ने जीर्ण गुर्दा रोग (सीकेडी) वाले मरीजों में ऑर्गेनोक्लोरीनकीटनाशकों के उच्च् स्तर का पता लगाया है। जनवरी २०१४ से मार्च २०१५ के दौरान दिल्ली के मेडिकल साइंसेज यूनिवर्सिटी कॉलेज और गुरु तेग बहादुर अस्पताल में आने वाले ३०० लोगों के समूह पर यह अध्ययन किया गया था । 
दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज के प्रोफेसर अशोक कुमार त्रिपाठी के अनुसार हमने सीकेडी से पीड़ित रोगियों में तीन कीटनाशकों      आर्गेनोक्लोेरीन बीटा-एंडोसल्फान, एल्ड्रिन एवं अल्फा-एचसीएच का स्तर काफी अधिक पाया है। उनकी टीम ने सामान्य स्वस्थ व्यक्तियों की तुलना में किडनी विकारग्रस्त रोगियों में कीटनाशकों का उच्च् स्तर पाया । ३०-५४ वर्ष आयु के व्यक्तियोंके रक्त में नौ प्रकार के आर्गेनोक्लोरीन कीटनाशकों की उपस्थिति का पता लगा । इनमें से अनेक कीटनाशकों का प्रयोग कृषि में नियमित तौर पर किया जा रहा है । 
रोगियों में कीटनाशकों को खोजने के बाद प्रोफेसर त्रिपाठी ने असामान्य गुर्दा कार्यप्रणाली में कीटनाशकों की संभावित भूमिका की आशंका व्यक्त की है । अब वे व्यापक स्तर पर अगले शोध कार्य की तैयारी कर रहे हैंजिसमें सीकेडी में आर्गेनोक्लोरीन कीटनाशकों की भूमिका का अध्ययन किया जाएगा । उनकी टीम का मानना है कि संचित कीटनाशकों से किडनी में ऑक्सीडेटिव तनाव पैदा हो सकता है, जो सीकेडी का कारण बनता है। लेकिन अभी इस परिकल्पना की जांच करना शेष है ।
भारत की आबादी का लगभग १७ प्रतिशत सीकेडी से पीड़ित है । ऐसी बीमारियों से गुर्दों के क्रियाकलाप का क्रमिक नुकसान होता है और अधिकांश मामलों में गुर्दे काम करना बंद कर देते हैं। उच्च् रक्तचाप और मधुमेह के बढ़ते मामलों के साथ ऐसे मामलों के बढ़ने की संभावना होती है । इस बीमारी में, गुर्दे सामान्य रूप से रक्त को छानने का काम करने में असफल रहते हैं, जिससे शरीर में विषाक्त और तरल पदार्थ जमा होते जाते हैं। इससे एनीमिया, प्रतिरक्षा क्षमता में कमी, भूख में कमी और दिल की असामान्य धड़कन बढ़ जाती है। प्रारंभिक चरण में मरीज़ों में गंभीर लक्षण नहीं होते, इसलिए ध्यान नहीं जाता । लेकिन, सीकेडी के कारण किडनी काम करना बंद कर देती    है ।
मेक्सिको, एल सेल्वाडोर और श्रीलंका सहित दुनिया के कई हिस्सों में हुए अध्ययनों में डॉक्टरों ने पाया कि सीकेडी को मधुमेह और उच्च् रक्तचाप के आधार पर नहीं समझा जा सकता ।
श्रीलंका में हुए एक अध्ययन से पता चला है कि पर्यावरण में उपस्थित कृषि रसायनों, जहरीले रसायनों और कैडमियम जैसी धातुओं के कारण भी गुर्दा रोग से पीड़ित रोगी प्रभावित होते हैं । शोध में यह भी पाया गया है कि कृषि क्षेत्र में स्थित कुओं के पेयजल के सेवन से भी किडनी की कार्यप्रणाली के प्रभावित होने की संभावना है । स्पेन में प्रकाशित एक अध्ययन में १८ से २३ वर्ष आयु के युवाओं में कीटनाशकों की उच्च् मात्रा पाई गई थी ।
इस अध्ययन में २२० युवाओं के रक्त में १४ प्रकार के कीटनाशकों की उपस्थिति देखी    गई । इनमें एंडोसल्फान और हैक्सा-क्लोरोसायक्लोहेक्सेन की मात्रा क्रमश: ९२ और ८० प्रतिशत देखी गई । दिलचस्प बात यह रही कि कृषि क्षेत्रों में कार्यरत मांआें के बच्चें में इन दोनों कीटनाशकों का काफी उच्च् स्तर देखा गया । दो साल बाद,  एल सेल्वाडोर के एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि कृषि क्षेत्र में काम करने से सीकेडी का खतरा बढ़ गया है ।
भारत कीटनाशकों के प्रमुख उपभोक्ताओं में से एक है। भारत कीटनाशकों के उपयोग के मामले में दुनिया में दसवे स्थान पर है । कृषि एवं खाद्य संगठन २०१० की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति वर्ष लगभग ४० हज़ार टन कीटनाशकों का उपयोग होता है। संगठन की २०१४ रिपोर्ट के अनुसार भारत करीब २.१ अरब डॉलर के कीटनाशक निर्यात करके जर्मनी, चीन, यूएस और फ्रांस के बाद कीटनाशकों का पांचवां सबसे बड़ा निर्यातक है । 
डीडीटी और एन्डोसल्फान जैसे ऑर्गेनोनोक्लोरीन कीटनाशक फसल के कीड़े मारने में बहुत प्रभावी हैं। लेकिन इन्हें कई देशों में पर्यावरण में उनकी दीर्घकालिकता और मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक परिणामों के कारण प्रतिबंधित कर दिया गया है। लेकिन ये कीटनाशक अभी भी भारत में उपयोग किए जाते हैं। गुर्दा विकारों सम्बंधी हालिया अध्ययन ऐसे कीटनाशकों के उपयोग पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं।
दुनिया भर में १००० से अधिक कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है । जहां अनेक कीटनाशक उत्पादकता बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं,वहीं दूसरी ओर, उनके अनियंत्रित उपयोग से जानवरों व इंसानों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है । कीटनाशकों के प्रभाव को कम करने के लिए फलों और सब्जियों को धोकर या छील कर खाना चाहिए ।
खाद्य और कृषि संगठन और विश्व स्वास्थ्य संगठन कीटनाशकों के संभावित खतरों के  प्रति सचेत कर रहे हैं। इनकी सिफारिशें क्लीनिकल अध्ययन पर आधारित होती हैं। कीटनाशक अवशेषों पर इन दोनों संगठनों की संयुक्त बैठक कीटनाशक के उपयोग की सुरक्षित सीमा को परिभाषित करती है ।
उन्होंने कीटनाशक प्रबंधन पर अंतर्राष्ट्रीय आचार संहिता की स्थापना भी की है, जो किसानों को कीटनाशकों के उत्पादन से लेकर निपटान तक उनसे बचाव की पद्धतियों का पालन करना बताती हैं। 
श्रीलंका के कोलंबो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सरोज जयसिंघे के अनुसार सीकेडी के लिए अज्ञात कारणों को ज़िम्मेदार ठहराया गया था। अब इसे कृषि-जन्य गुर्दा विकार के रूप में देखा जा रहा है । इस अध्ययन से गुर्दा रोगों पर कृषि-रसायनों के प्रभाव के मुद्दे पर चिकित्सकों, शोधकर्ताओं, निर्णय-कर्ताओं और जनता का ध्यान आकर्षित करने में मदद मिलेगी । प्रोफेसर जयसिंघे के अनुसार प्रमाण दो तरह के हैं। पहले में, उच्च् रक्तचाप और मधुमेह जैसे कारकों से सीकेडी के अधिकांश मामले, श्रीलंका में धान के खेतों में काम कर रहे ६० वर्ष से कम उम्र के पुरुषों और मिस्त्र तथा भारत में सब्जियों के खेतों और मध्य अमेरिका में गन्ना खेतों में कार्यरत वयस्कों में देखे गए हैं। दूसरा बिन्दु यह है कि इस आबादी में सीकेडी का प्रसार कृषि क्षेत्रोंमें काम की अवधि के साथ बढ़ता जाता है । 
ऑर्गेनोक्लोरीन कीटनाशक बहुत लंबे समय के लिए पर्यावरण में बने रहते हैं,जो उन्हें अवांछनीय बनाता है । इनमें से कुछ कीटनाशक, जैसे एन्डोसल्फान ५ महीनों से अधिक समय तकमिट्टी में रह सकते हैं। इसी कारण से वे अत्यधिक प्रभावी कीटनाशक हैं, जिसके परिणामस्वरूप, मानव स्वास्थ्य के लिए एक संभावित खतरे के बावजूद उनका उपयोग किया जाता रहा है ।
इस क्षेत्र में कार्यरत कोस्टा रिका के सेन्ट्रेल अमेरिकन इंस्टीट्यूटफॉर स्टडीज़ ऑन टॉक्सिक सबस्टेंसेज़ की कैथेरिना वेसलिंग के अनुसार पहले का कोई भी अध्ययन इस बात को प्रमाणित नहीं कर पाया था कि कीटनाशक गुर्दा रोगों के लिए ज़िम्मेदार हैं । वास्तव में, कई कीटनाशक गुर्दोंा के लिए ज़हरीले होते हैं। इसलिए कीटनाशकों और गुर्दा रोगों के बीच सम्बंधों की खोज आश्चर्यजनक नहीं है। 
इन अध्ययनों से प्रभावी तौर पर निष्कर्ष निकलता है कि आर्गेनोक्लोरीन जैसे कीटनाशकों का सम्बंध सीकेडी से हो सकता है जिससे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल परिणाम पड़ सकता है । ये अध्ययन कीटनाशकों के नियमन पर ज़ोर देने के साथ ही समुदाय में किडनी के रोगों के बोझ को कम करने की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं।

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