मंगलवार, 17 जुलाई 2018

पर्यावरण समाचार
उत्तराखंड में जीव जन्तुआें के भी मानव की तरह अधिकार
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हवा, पानी व प़थ्वी में रहने वाले जीव जन्तुआें को विधिक दर्जा प्रदान करते हुए उत्तराखंड के नागरिकों को उनका संरक्षक घोषित कर दिया है । कोर्ट ने अहम फैसले में कहा है कि जीव जन्तुआें के भी मानव की तरह अधिकार, कर्तव्य व जिम्मेदारियां है । कोर्ट ने पशु चिकित्सकों से कहा है कि वे बीमार जानवरों का उपचार करें, यदि जानवर चिकित्सक के पास नहीं लाया जा सकता तो चिकित्सक जानवर के पास खुद जाएं और उसका उपचार करे । 
दरअसल सीमांत चंपावत में नेपाल सीमा से सटे बनबसा कस्बे के नारायण दत्त भट्ट ने जनहित याचिका दायर की थी । २०१४ में दायर याचिका में कहा गया था कि बनबसा में महेन्द्रनगर (नेपाल) की दूरी १४ कि.मी. है । इस मार्ग पर घोड़ा, बग्गी, तांगा, भैंसा गाडियों का उल्लेख करते हुए उनके चिकित्सकीय परीक्षण, टीकाकरण के लिए दिशा-निर्देश जारी करने का आग्रह किया गया था । याचिका में यह भी कहा गया था कि बग्गियों, तांगों व भैसा गाड़ियों से यातायात प्रभावित होता है और इन गाड़ियों के माध्यम से मानव तस्करी व ड्रग्स तस्करी की आशंका बनी रहती है । यह भी बताया था कि भारत नेपाल सीमा पर इनकी जांच नहीं की जाती है । इस मामले में भारत-नेपाल सहयोग संधि १९९१ के  उल्लघंन का आरोप लगाया गया था । वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति लोकपालसिंह की खण्डपीठ ने याचिका पर सुनवाई पूरी करते हुए १३ जून को फैसला सुरक्षित रख लिया था जिसे पिछले दिनों जारी किया गया । 
कोर्ट ने अपने आदेश में नक्षर पंचायत बनवासा को नेपाल से भारत आने वाले घोडे, खच्च्रों का परीक्षण करने, सीमा पर एक पशु चिकित्सा केन्द्र खोलने के लिए निर्देश दिए हैं । पंतनगर विवि के कुलपति को निर्देश दिए है कि पशुपालन विभाग की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित करें, कमेटी में दो प्रोफेसर सदस्य बनाए जाएं । कमेटी पशु क्रूरता अधिनियम से संबंधित मामलों में रिपोर्ट पेश करे । कुलपति मुख्य सचिव को रिपोर्ट भेजेंगे, ताकि जरूरत पड़ने पर अधिनियम मे ंसंशोधन कर सकेंगे । 

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