मंगलवार, 17 जुलाई 2018

हमारा भूमण्डल
एंटीबॉयोटिक के लिए नयी गाइड लाईन
राजकुमार कुम्भज
सरकार देर से ही सही चेती जरूर है, अब शीघ्र ही देश में एंटीबॉयोटिक के उपयोग के लिए एक गाइड लाइन जारी होने जा रही है । उम्मीद की जाना चाहिए कि गाइड  लाइन  के  लागू होने जाने  से है । इसके दुष्प्रभावों और दवा कम्पनियां की लूट से आम आदमी बच सके गा ।
हमारा देश भारत, दुनिया के उन देशों में शामिल है, जहां एंटीबॉयोटिक दवाओं का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है । विश्व स्वास्थ्य संगठन का सर्वेक्षण कहता है कि भारत के ५३ फीसदी लोग डॉक्टर की सलाह लिए बगैर ही एंटीबॉयोटिक लेना शुरू कर देते हैं । यहां तक कि फीस बचाने के चक्कर में किसी गंभीर बीमारी के लिए भी डॉक्टर के पास जाने की बजाय सीधे मेडिकल स्टोर से ही अपनी मर्जी से एंटीबॉयोटिक खरीद लेते हैं और जो लोग डॉक्टर के पास सर्दी-जुकाम जैसी अपनी किसी साधारण-सी बीमारी लेकर जाते भी हैं, तो डॉक्टर से एंटीबॉयोटिक लिखवा लेने की ही उम्मीद रखते हैं । यही एक ऐसी भ्रामक मानसिक अवस्था से उपजी व्यवस्था है, जिसकी वजह से हमारे देश में अवैध तरीकों से अधिकांश एंटीबॉयोटिक दवाएं खरीदी-बेची जा रही हैं । भारत में बिकने वाली साठ फीसदी से अधिक एंटीबॉयोटिक दवाएं अवैध ही नहीं,बल्कि अप्रमाणिक  भी हैं ।
ब्रिटिश जर्नल ऑफ क्लीनिकल फार्मेसी में छपी एक रिपोर्ट से ज्ञात हुआ है कि भारत में बिकने वाली ६४ फीसदी एंटीबॉयोटिक दवाएं तय किए गए मानकों के अनुसार नहीं हैं । दुनिया की कई बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ बिना किसी प्रामाणिक स्वीकृति के ऐसी दर्जनों दवाएं बेच रही हैं । ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि एंटीबॉयोटिक दवाएं जल्दी बंद कर देने से जीवाणुओं की प्रतिरोधक क्षमता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है । इसके विपरीत दरअसल होता ये है कि एंटीबॉयोटिक दवाएं अधिक मात्रा में लेने से मरीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आ जाती है । इसलिए एंटीबॉयोटिक दवाओं का कम से कम इस्तेमाल और डॉक्टर की सलाह पर ही किए जाने का मानक बताया गया है, किन्तु किसी भी मानक को मानता कौन है ?
यह जानकर हैरानी हो सकती है कि मांस उत्पादन बढ़ाने के लिए दुनिया भर के पशुपालक अपने जानवरों को धड़ल्ले से एंटीबॉयोटिक खिला रहे हैं ।  चिकन के शौकीनों को यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि वे अपने भोजन में जिस चिकन का मजा ले रहे हैं, उसमें चालीस फीसदी तक एंटीबॉयोटिक होता है । जाहिर है कि मांसाहारी लोगों के  शरीर में इस खाद्य के साथ-साथ एंटीबॉयोटिक में पाए जाने वाले खतरनाक रसायन भी पहुंच रहे हैं ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि दुनिया के २२ देशों में पाँच लाख लोगों में एंटीबॉयोटिक प्रतिरोध पाया जा चुका है । भारत में गहन चिकित्सा ईकाई (आई.सी.यु) में भर्ती दस में से चार मरीज एंटीबॉयोटिक प्रतिरोधकके शिकार पाए गए हैं । हमें यह जानकर चिंता होना चाहिए कि देश में चिकन का वजन बढ़ाने के लिए पोल्टफॉर्मिंग में लोग एंटीबॉयोटिक का उपयोग सबसे अधिक करते हैं । जिस तरह से दूध बढ़ाने के लिए ऑक्सीटोसिन, उसी तरह चिकन बढ़ाने के लिए एंटीबॉयोटिक का प्रयोग होता है । 
हमारे देश में मांसाहारियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जिस कारण मांस की खपत में भी बड़ा इजाफा हो रहा है । मांस की खपत बढ़ने की वजह से एंटीबॉयोटिक की खपत भी तेजी से बढ़ रही है । `इंडिया स्पैंड' की एक रिपोर्ट के  मुताबिक देश के पशु पालन केन्द्रों में एंटीबॉयोटिक की खपत में इजाफा चौंकाने वाला हो सकता है । एक आकलन के अनुसार इस मामले में भारत चौथे स्थान पर पहुंच गया है। `जर्नल साइंस` का कहना है कि वर्ष २०१३ में हमारे देश के पशुपालकों ने अपने खाद्य-पशुओं को तकरीबन २६३३ टन एंटीबॉयोटिक दवाएं खिलाई थीं । यह वर्ष २०३० तक यह आंकड़ा ४७९६ टन पहंुच जाएगा । 
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक हमारे देश की आधी से अधिक आबादी डॉक्टर के पास जाना पसंद नहीं करती है और डॉक्टर के  परामर्श बगैर ही एंटीबॉयोटिक दवाओं का इस्तेमाल शुरू कर देती है । बहुराष्ट्रीय कंपनियां लोगों की इस गलत आदत का फायदा उठाते हुए अपनी तमाम अवैध एंटीबॉयोटिक दवाएं बेच लेती हैं । देश के मेडिकल स्टोर इस काम में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की मदद करते हैं ।
हर किसी बीमारी के लिए एंटीबॉयोटिक  दवाएं  लेने से शरीर के  अंदर इन दवाओं की प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो जाती है, किंतु एंटीबॉयोटिक प्रतिरोधक हो जाने के बाद शरीर पर फिर किसी भी तरह की अन्य दवाओं का असर कम होने लगता है। एक आम भारतीय एंटीबॉयोटिक की ग्यारह गोलियां प्रतिवर्ष खाता है । भारत के अलावा चीन, रूस, तुर्की और ब्राजील जैसे देशों में भी एंटीबॉयोटिक दवाओं की खपत बहुतायत से हो रही है, जो कि खतरनाक है। इन दवाओं के दुष्प्रभावों को लेकर सामान्यत: लोगों में गंभीरता का अभाव बना हुआ है ।
जहाँ हमारे मेडिकल स्टोर्स से प्रतिबंधित दवाएं भी सहज ही उपलब्ध हो जाती हैंवहाँ बिना डॉक्टर की पर्ची के एंटीबॉयोटिक दवाएं सहज ही मिल जाना कोई बड़ी घटना नहीं है। आमतौर पर देशभर में मेडिकल स्टोर्स प्रतिबंधित दवाएं उपलब्ध करवा देने के लिए पर्याप्त ख्याति अर्जित कर चुके हैं । प्रतिबंधित दवाओं में वे कुख्यात ड्रग्स भी शामिल हैं जो जानलेवा श्रेणी में आते हैं । यह सच्चई भी अब किसी से छुपी नहीं है कि अवैध ड्रग्स और अवैध हथियारों के एक बहुत बड़े हिस्से पर दुनियाभर के माफिया संगठनों का एक साथ आधिपत्य है। यह एक ऐसा साम्राज्य हो चला है, जिसने दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं के समानांतर अपनी एक अलग ही सत्ता कायम कर रखी है, जिसे तोड़ना दुनियाभर की सरकारों के लिए बड़ा सिरदर्द बनता जा रहा है । कहीं-कहीं तो ये ड्रग्स माफिया इतने अधिक ताकतवर हो गए हैं कि इनके सामने सरकारें भी खुद को असहाय समझने लगी हैं । इस सबका समाधान बेहद जरूरी है ।
सबसे पहले तो यही जरूरत बनती है कि डॉक्टर जरूरी तौर एंटीबॉयोटिक दवाएं लिखना बंद करंे । फिर उतनी ही बड़ी जिम्मेदारी मरीजों और उनके परिजनों की बनती हैंकि वे एंटीबॉयोटिक दवाएं अनावश्यक तौर पर लिखने का दबाव न बनाएं और तीसरा यह कि जहां तक संभव हो एंटीबॉयोटिक के इस्तेमाल से दूरी बनाएं रखें । अभी देश में तकरीबन ६५, फीसदी एंटीबॉयोटिक अवैध तौर पर बिकती है । यह सब कारोबार सरकार की नाक के नीचे हो रहा है। अब सरकार चेती है और जल्दी ही इस संबंध में एक नई गाइड लाइन जारी करने जा रही है। जहाँ क्लीनिक स्टेबलिशमेंट एक्ट काम कर रहा है, वहां-वहां यह लागू होगी।                    

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