मंगलवार, 17 जुलाई 2018

जीव जगत
चींटियां भी पशु पालन करती है ।
डॉ. अरविंद गुप्त्े

चींटिया और पशुपालन बात कुछ अटपटी गलती है  किन्तु चींटियो के पालतू पशु चार टांगों और दो सींगों वाले नहीं होते है जिन्हें इंसान पालते है ।  उनके पालतू जन्तु चींटियों के समान ही कीट होते है जिनकी छह टांगें होती हैं और सिर के आगे एक नुकीली सूंड होती है जिसकी सहायता से वे पौधों का रस चूसते हैं । खटमल कुल के ये कीट बहुत सूक्ष्म होते हैं । इन्हें माहू (अंग्रेज़ी में एफिड) कहते हैं ।  
वैसे तो माहू की लगभग ५००० प्रजातियां पूरे संसार में पाई जाती हैं, किंन्तु समशीतोष्ण प्रदेशों में ये खूब पनपते हैं ।इनका आकार इतना छोटा और वज़न इतना कम होता है कि  हवा इन्हें उड़ा कर एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाती है। मादा माहू के  पंख होते हैंऔर वे अपने बलबूते पर एक स्थान से दूसरे स्थान तक उड़कर जा सकती हैं ।  
माहू की कुछ प्रजातियों का जीवन चक्र पौधों की दो अलग-अलग प्रजातियों पर पूरा होता है तो कुछ प्रजातियां एक ही प्रजाति के पौधों पर ज़िंदगी गुजार देती हैं । कुछ अन्य प्रजातियों की पोषक पौधे को लेकर कोई विशेष पसंद नहीं होती और वे किसी भी प्रजाति के पौधे का रस चूस सकती हैं ।
माहू फसलों, जंगल के वृक्षों और बगीचों में लगे पौधों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं । इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि वे पौधों का  रस चूसकर उन्हें कमज़ोर कर देते हैं । दूसरे, माहू पौधों में कई प्रकार के वायरस को फैलाने का काम करते हैं जो रोगों का कारण बनते हैं । इसके अलावा माहू अपने मलद्वार से मधुरस नामक एक तरल, चिपचिपा पदार्थ रुावित करते हैं जो मीठा होता है। पौधों पर पड़े इस मधुरस पर काले रंग की एक फफंूद उग जाती है जिसके  कारण सजावटी पौधों की सुंदरता नष्ट हो जाती है। 
माहू का नियंत्रण काफी  मुश्किल होता है क्योंकि ये  कई  प्रकार के कीटनाशकों के प्रतिरोधी बन चुके है । इसके अलावा, ये अधिकतर पत्तियों की निचली सतह पर चिपके रहते हैं जहां कीटनाशक के फव्वारे नहीं पहुंच पाते। कई अन्य कीट और कीटों के लार्वा माहू का शिकार करते हैं ।
चींटियों और माहू में परस्पर लाभ का रिश्ता होता है। चींटियों को माहू के शरीर से निकलने वाला मधुरस बहुत पसंद होता है। अत: जिस पौधे पर माहू अधिक होते हैंवहां चींटियों की आवाजाही होती रहती है। चींटियां अपने स्पर्शकों (एन्टेना) से माहू के शरीर को थपथपाती हैं। ऐसा करने पर माहू अपने मलद्वार से मधुरस का स्त्राव करने लगता है और चींटी को स्वादिष्ट पेय मिल जाता है । कुछ मधुमक्खियां माहुओं के  मधुरस से शहद बनाती हैं। चींटियां माहुओं को खाने वाले अन्य कीटों को उस पौधे पर से भगाती हैं और इस प्रकार माहू को सुरक्षा प्रदान करती हैं ।
कुछ चींटियां माहू के अंडों को जाड़े के दिनों में अपनी बाम्बी में ला कर रख लेती हैं और ठंडा मौसम समाप्त् होने पर अंडों में से निकली इल्लियों को वापस पौधों पर छोड़ देती हैं । कुछ पशुपालक चीटियां इससे एक कदम आगे बढ जाती हैं । वे अपनी बाम्बी में माहू के झुंड  पालती हैं (ठीक उसी तरह जैसे पशुपालक पशुओं को पालते हैं ) । ये माहू बाम्बी में ही रहते हैं और बाम्बी के अंदर फैली हुई पौधों की जड़ों का रस चूसते हैं। इस प्रकार चींटियों को अपने घर में ही मधुरस की मधुशाला मिल जाती है। 
जब कोई मादा चींटी अपनी बाम्बी छोड़ कर दूसरी बाम्बी बसाने के लिए निकलती है तब वह माहू के अंडे साथ ले जाती है ताकि नई  बसाहट में माहू के झुंड  की शुरुआत हो सके ।  
पशुपालन की इस कहानी में एक रोचक मोड़ तब आता है जब कुछ ठग किस्म के कीट बाम्बी में घुसपैठ करते हैं । कुछ विशेष प्रजातियों की तितलियां उन पौधों पर अंडे दे देती हैंजहां चींटियां माहुओं को पाल रही होती हैं । इन अंडों से निकलने वाली इल्लियां एक प्रकार का रसायन छोड़ती हैं जिसके कारण चींटियां उन्हें भी अपनी ही तरह की चींटियां समझने लगती हैं और उन पर हमला नहीं करतीं । ये इल्लियां चींटियों के पालतू माहुओं को खाती रहती हैं । इल्लियों को चींटी समझकर वयस्क चींटियां इन इल्लियों को अपनी बाम्बी में ले जाती हैं और उनके लिए भोजन जुटाती हैं । 
इसके बदले में इल्लियां चींटियों के लिए मधुरस का उत्पादन करती हैं । जब इल्लियों की आयु पूरी हो जाती है तब वे शंखी में बदल जाती हैं। शंखी बनने से पहले इल्लियां रेंगकर बाम्बी के दरवाज़े पर पहुंच जाती हैं और वहां निष्क्रिय शंखी में बदल जाती हैं। दो सप्तह के बाद शंखी फट जाती है और तितली उस में से निकल जाती है। अब चींटियों को पता चल जाता है कि उन्हें किस प्रकार ठगा गया और वे तितलियों पर हमला कर देती हैं । किंतु चींटियां डाल-डाल तो तितलियां पात-पात । उनके पंखों पर एक चिपचिपा पदार्थ लगा होता है जिसके कारण चींटियों के जबड़े  काम नहीं कर पाते और तितलियां सुरक्षित रूप से उड़   जाती हैं । 
कुछ माहू भी चींटियों के साथ धोखाधड़ी करने से बाज नहीं आते। एक प्रजाति के माहू के दो रूप होते हैं - एक गोल और एक चपटा । गोल रूप के  माहुओं को चींटियां उसी प्रकार पालती हैं जैसे वे अन्य प्रजातियों के माहुओं को पालती हैं । किंतु चपटे वाले माहू धोखेबाज़ होते हैं । इनकी त्वचा में उसी प्रकार के रसायन होते हैं जैसे चींटियों की त्वचा में होते हैं । इसके फलस्वरूप चींटियां इन्हें अपनी ही इल्लियां समझ कर बाम्बी में लाकर परवरिश करती हैं। किंतु ये चालाक माहू वास्तविक इल्लियों से शरीर के द्रव  चूस लेते  हैं ।     

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