सम्पादकीय
प्लास्टिक प्रदूषण वाली नदियों में गंगा शामिल
जर्मनी के हेमहोल्टज सेंटर फॉर एनवायरमेंटल रिसर्च की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर के कुल प्लास्टिक कचरे का ९० फीसद एशिया और अफ्रीका की दस नदियों से आता है । इसमें पहले और दूसरे स्थान पर क्रमश: चीन की यांग्त्सी और भारत की सिंधु नदी है ।
चिंताजनक पहलू यह है कि जिस पतितपावनी गंगा के वजूद के लिए हम भारतीय चिंतित है वह भी इस सूची में छठे स्थान पर है । रिपोर्ट के मुताबिक अगर इन सभी नदियों को प्लास्टिक प्रदूषण से मुक्त किया जा सके तो दुनिया के समुद्रोंमें मौजूद २.२६ लाख करोड़ किग्रा प्लास्टिक कचरे को आधा किया जा सकेगा ।
शोधकर्ताआें की टीम ने दुनिया की ५७ नदियों के किनारे ७९ जगहों से कूड़े के नमूने एकत्र किए । इसमें पांच मिमी से कम आकार के माइक्रोप्लास्टिक और इससे बड़े आकार के माइक्रोप्लास्टिक शामिल थे । इन नमूनों का अध्ययन करने के बाद शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे है ।
शोधकर्ताआें के मुताबिक प्रदूषक नदियों की पहचान करके अगर उनके जलग्रहण क्षेत्र में ही प्लास्टिक प्रदूषण को रोक दिया जाएगा तो इससे समुद्र में प्लास्टिक नहीं बढ़ेगा । हालांकि प्लास्टिक के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाना ही इस प्रदूषण से निजात पाने का अंतिम तरीका है।
गंगा नदी हर साल ५.४४ लाख टन प्लास्टिक कचरा बंगाल की खाड़ी में उड़ेलती है । चीन की यांग्त्सी नदी सालाना येलो समुद्र में १५ लाख टन प्लास्टिक छोड़ती है । चीन की शी, डोग और झुजियांग नदियां १.०५ लाख टन प्लास्टिक कचरे की वाहक है । इंडोनेशिया की चार नदियां, ब्रंतास (३८.५ हजार टन), सोलो ३२.२ हजार टन), सेरायु (१६.८ हजार टन) और प्रोगो (१२.७ हजार टन) की भी इस कचरे में ही बड़ी हिस्सेदारी है । नदियां भले ही प्लास्टिक प्रदूषण समुद्रमें छोड़ रही हो, लेकिन इसमें उनका नहीं हमारा ही कसूर है । नदियों में यह प्लास्टिक हमारी की लापरवाही से जमा हुआ है । सालों साल तक न सड़ने वाला प्लास्टिक जब यहां-वहां डंप किया जाता है तो आखिर में वह नदियों को ही पनाह लेता है ।
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