🌏🌏🌏🌏🥀🦋🥀🌏🌏🌏🌏 गौरैयों को कैसे बचाया जाय...गौरैया संरक्षण ,Sparrow Conservation 30-12-18 🌏🌏🌏🌏🥀🦋🥀🌏🌏🌏🌏
अभी भी समय है कि हम इस 85% से 90% तक विलुप्त हो चुकी इस चिड़िया(गौरैया) के विलुप्ती के कारणों का अतिशिघ्रता से निराकरण करें । वैज्ञानिकों को ऐसे सूचनातंत्र का विकास करना चाहिए कि दूरस्थ व्यक्ति से संवाद भी हो और यह प्रकृति के इस अनुपम जीव पर भी कुछ दुष्प्रभाव न पड़े , नदियों ,तालाबों का पानी प्रदूषण मुक्त करने का कार्य तीव्र और युद्धस्तर पर हो ,हरे-भरे पेड़ों को जहाँ तक संभव हो कम से कम काटा जाय , सही मायने में वृक्षारोपण और उनका पालन हो ,वृक्षारोपण के नाम पर केवल नाटक न हो , घरों में इन नन्हीं चिड़िया के घोसले के लिए अवश्य स्थान छोड़ा जाय । अगर वास्तव में गौरैयों को बचाने के लिए वर्तमान सरकारें और देश के संवेदनशील लोग अगर गंभीर हैं ,तो जैसे बाघों को बचाने के लिए देश में जगह - जगह शिकारियों से मुक्त "बाघ अभयारण्य" बनाये गये हैं ,वैसे ही शहरों से दूर किसी वन्य प्रान्तर में , जहाँ की आबादी अत्यन्त विरल हो ,परन्तु हो, (क्योंकि गौरैया मानव बस्ती के पास ही रहना पसंद करतीं हैं ), के पाँच-सात वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को मोबाईल टावरों और मोबाईल रेडिएशन से एकदम मुक्त क्षेत्र बनाये जाँय ।( क्योंकि गौरैयों के विलुप्तिकरण का सबसे बड़ा कारण मोबाईल टावरों से निकलने वाली ये घातक रेडिएशन किरणें ही हैं )। उसके साथ ही किसी बड़े कीटनाशकों से मुक्त एक स्वच्छ प्राकृतिक जल या कृत्रिम स्रोत की भी व्यवस्था हो ताकि ये नन्हें परिन्दे भीषण गर्मी में अपनी प्यास बुझा सकें ।
-निर्मल कुमार शर्मा , "गौरैया संरक्षण", प्रताप विहार, गाजियाबाद ,9910629632
ईमेल-nirmalkumarsharma3@gmail.com
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{ प्रकृति , पर्यावरण और एक नन्हें जीव ( गौरैया के अस्तित्व को बचाने हेतु ,दिए गये सुझाव को ) हिन्दी जगत के सबसे सुप्रतिष्ठित समाचार पत्र "जनसत्ता" ने दिनांक 14-6-18 को ,नवभारत टाइम्स ने वही लेख 18-6-18 को और राष्ट्रीय सहारा ने वही लेख 25-7-18 को और दैनिक जागरण ने उसे 23-8-18 को प्रकाशित किया है ,ऐसे , प्रकृतिप्रदत्त, पर्यावरण से संबन्धित, सम्यक, आवश्यक,समाजोपयोगी और समयोचित समाचारों को हिन्दी के अन्यान्य समाचार पत्र "प्रकाशित" करना किंचित "व्यर्थ" समझते हैं ! ,इसका हमें ,बहुत-बहुत अफ़सोस है...... ! "गौरैया" जैसी छोटी सी चिड़िया से ही सही हम मानव कुकृत्यों से विध्वंस हो रही प्रकृति और तेजी से विलुप्त हो रहे जीवों को बचाने की मुहिम की शुरूआत का पवित्र कार्यारम्भ किसी छोटे जीव से ही सही ,करना तो प्रारम्भ करिये ....?
यह विडिओ मैंने 1 जनवरी 2019 को शाम को लगभग 4 बजे अपनी छत की बगिया में फिल्माया हूँ ।
-निर्मल कुमार शर्मा , "गौरैया एवंम् पर्यावरण संरक्षण" ,गाजियाबाद ,5-1-19
किसान का मित्र नेवले का भी 'अस्तित्व 'गंभीर संकट में... ______________________________________ ' नेवला ' एक ऐसा निष्पृह शब्द है ,जिसके अवचेतन मन में याद आते ही एक ऐसे चुलबुले , तेज दृष्टि वाले ,मटमैले , चितकबरे ,सुरमुई रंग के छरहरे ,फुर्तीले और बहादुर जीव की तस्वीर उभरने लगती है ,जो हमारे बचपन के दिनों में गाँवों में हमारे घरों के आसपास अक्सर ,रास्तों में ,गलियों में हमारे रास्ते को काटकर आड़े-तिरछे ढंग से तुरन्त भाग कर सुरक्षित जगह जाते हुए दिखना , एक आम बात थी , आज उस वक्त को बीते 40-45 साल बीत चुके हैं । आज के समाचार पत्रों में एक और हृदयविदारक समाचार प्रकाशित हुआ है , हमारे प्रिय नेवले को भी प्रति वर्ष लगभग { 50000 } पचास हजार तक की संख्या में मनुष्य अपने स्वार्थ , हवश और लालच के चलते मार रहा है , नेवलों के चितकबरे बाल बहुत ही मुलायम और पेंटिंग के ब्रश के लिए एकदम उपयुक्त होते हैं ,बस इसी हेतु इस नन्हें ,भोले जीव की इतनी बड़ी संख्या में मानव रूपी नृशंस जीव द्वारा निर्मम 'हत्या' की जा रही है ।* *वाईल्ड लाईफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो { ड्ब्ल्यूसीसीबी } और वाईल्ड लाईफ ऑफ इंडिया { डब्ल्यू टीआई } ने देश भर में कई जगह छापे मारकर नेवले के बालों से बने हजारों ब्रश बरामद किए । उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में तो छापे में आश्चर्यजनक रूप से इस नन्हें ,प्यारे जीव के 155 किलोग्राम बाल बरामद किया गया ? ,जरा गंभीरतापूर्वक सोचिए कि इतनी बड़ी मात्रा में बाल इकट्ठा करने के लिए , कितने मासूम नेवलों की नृशंसता पूर्वक हत्या की गई होगी ! एक आकलन के अनुसार इतने भारी मात्रा में वजन के बराबर बाल इकट्ठा करने के लिए कम से कम 3000 से 4000 के बीच नेवलों की 'हत्या' की गई होगी । इसके अतिरिक्त वहीं के बाजार से 56000 पेंटिंग ब्रश भी पकड़े गये ।
अत्यन्त दुख की बात है कि आज के दौर में हाथियों ,गैंडों , डालफिन्स , तेंदुओं , ह्वेलों आदि बड़े जीवों की हत्या और अवैध शिकार पर भारत और दुनिया भर में आवाज उठाने वाले बहुत लोग हैं ,परन्तु दुखदरुप से इस नन्हें ,अदने ,छोटे जीव 'नेवले' के इतने बड़े पैमाने पर अवैध शिकार , संहार, महाविलोपन और महाविनाश होने के बावजूद , इसको बचाने के लिए और इनको मारने वाले अवैध शिकारियों और तस्करों के खिलाफ आवाज बुलन्द करने वाला 'एक' भी व्यक्ति या वन्य संरक्षण संस्था नहीं है ! ध्यान रखने की एक और विचारणीय बात है कि प्राकृतिक संसार में एक छोटा जीव भी पर्यावरणीय दृष्टिकोण से पथ्वी के जैवमंडलीय ईको सिस्टम में उतना ही महत्वपूर्ण है , जितने कि बड़े जीव की, अतः किसी भी जीव के इस धरती से विलुप्त होने से 'सब कुछ' असंतुलित होने का खत़रा सदा बना रहता है । हमारे देश की सबसे बड़ी विडम्बना और दुख की बात यह है कि यहाँ वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत नेवलों को मारना, खरीदना ,बेचना आदि कानूनन जुर्म है, इस जुर्म में पकड़े जाने पर सात साल की जेल की सजा और जुर्माना निर्धारित है ,परन्तु दुखद रुप से इतनी संख्या में इस लाभप्रद और निरीह नन्हें जीव को मारा जा रहा है और आश्चर्यजनक रूप से अभी तक एक भी अपराधी को जेल जाने और जुर्माने करने की तो बात छोड़िए ,पकड़ा तक नहीं जा सका है । इसका कारण यहाँ की भ्रष्ट और रिश्वतखोर शासन व्यवस्था है ,जिसमें वन्य अधिकारियों ,पुलिस वालों और जो भी सम्बन्धित विभाग हों , जिनसे अवैध शिकारियों/तस्करों को जरा भी डर हो ,उनके कर्मचारियों/अधिकारियों को रिश्वत देकर इस देश में कुछ भी { सर्वनाश भी } किया जा सकता है ! इसलिए इस नेवले जैसे छोटे से ,नीरीह ,पर कृषि के लिए अत्यन्त लाभप्रद जीव को बचाने की सरकार और जागरुक समाज की तरफ से भरपूर कोशिश होनी ही चाहिए ।
सर आपके लेख ज्ञानवर्धक होते हैं।आम जनता को चिंता नहीं है। घर के पास के पेड़ में जल नहीं देते हैं।दूर मंदिर में जल दूध चढ़ाते हैं। जागरूक बनने की इच्छा नहीं है।
4 टिप्पणियां:
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गौरैयों को कैसे बचाया जाय...गौरैया संरक्षण ,Sparrow Conservation 30-12-18
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अभी भी समय है कि हम इस 85% से 90% तक विलुप्त हो चुकी इस चिड़िया(गौरैया) के विलुप्ती के कारणों का अतिशिघ्रता से निराकरण करें । वैज्ञानिकों को ऐसे सूचनातंत्र का विकास करना चाहिए कि दूरस्थ व्यक्ति से संवाद भी हो और यह प्रकृति के इस अनुपम जीव पर भी कुछ दुष्प्रभाव न पड़े , नदियों ,तालाबों का पानी प्रदूषण मुक्त करने का कार्य तीव्र और युद्धस्तर पर हो ,हरे-भरे पेड़ों को जहाँ तक संभव हो कम से कम काटा जाय , सही मायने में वृक्षारोपण और उनका पालन हो ,वृक्षारोपण के नाम पर केवल नाटक न हो , घरों में इन नन्हीं चिड़िया के घोसले के लिए अवश्य स्थान छोड़ा जाय ।
अगर वास्तव में गौरैयों को बचाने के लिए वर्तमान सरकारें और देश के संवेदनशील लोग अगर गंभीर हैं ,तो जैसे बाघों को बचाने के लिए देश में जगह - जगह शिकारियों से मुक्त "बाघ अभयारण्य" बनाये गये हैं ,वैसे ही शहरों से दूर किसी वन्य प्रान्तर में , जहाँ की आबादी अत्यन्त विरल हो ,परन्तु हो, (क्योंकि गौरैया मानव बस्ती के पास ही रहना पसंद करतीं हैं ), के पाँच-सात वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को मोबाईल टावरों और मोबाईल रेडिएशन से एकदम मुक्त क्षेत्र बनाये जाँय ।( क्योंकि गौरैयों के विलुप्तिकरण का सबसे बड़ा कारण मोबाईल टावरों से निकलने वाली ये घातक रेडिएशन किरणें ही हैं )। उसके साथ ही किसी बड़े कीटनाशकों से मुक्त एक स्वच्छ प्राकृतिक जल या कृत्रिम स्रोत की भी व्यवस्था हो ताकि ये नन्हें परिन्दे भीषण गर्मी में अपनी प्यास बुझा सकें ।
-निर्मल कुमार शर्मा , "गौरैया संरक्षण", प्रताप विहार, गाजियाबाद ,9910629632
ईमेल-nirmalkumarsharma3@gmail.com
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{ प्रकृति , पर्यावरण और एक नन्हें जीव ( गौरैया के अस्तित्व को बचाने हेतु ,दिए गये सुझाव को ) हिन्दी जगत के सबसे सुप्रतिष्ठित समाचार पत्र "जनसत्ता" ने दिनांक 14-6-18 को ,नवभारत टाइम्स ने वही लेख 18-6-18 को और राष्ट्रीय सहारा ने वही लेख 25-7-18 को और दैनिक जागरण ने उसे 23-8-18 को प्रकाशित किया है ,ऐसे , प्रकृतिप्रदत्त, पर्यावरण से संबन्धित, सम्यक, आवश्यक,समाजोपयोगी और समयोचित समाचारों को हिन्दी के अन्यान्य समाचार पत्र "प्रकाशित" करना किंचित "व्यर्थ" समझते हैं ! ,इसका हमें ,बहुत-बहुत अफ़सोस है...... ! "गौरैया" जैसी छोटी सी चिड़िया से ही सही हम मानव कुकृत्यों से विध्वंस हो रही प्रकृति और तेजी से विलुप्त हो रहे जीवों को बचाने की मुहिम की शुरूआत का पवित्र कार्यारम्भ किसी छोटे जीव से ही सही ,करना तो प्रारम्भ करिये ....?
यह विडिओ मैंने 1 जनवरी 2019 को शाम को लगभग 4 बजे अपनी छत की बगिया में फिल्माया हूँ ।
-निर्मल कुमार शर्मा , "गौरैया एवंम् पर्यावरण संरक्षण" ,गाजियाबाद ,5-1-19
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किसान का मित्र नेवले का भी 'अस्तित्व 'गंभीर संकट में...
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' नेवला ' एक ऐसा निष्पृह शब्द है ,जिसके अवचेतन मन में याद आते ही एक ऐसे चुलबुले , तेज दृष्टि वाले ,मटमैले , चितकबरे ,सुरमुई रंग के छरहरे ,फुर्तीले और बहादुर जीव की तस्वीर उभरने लगती है ,जो हमारे बचपन के दिनों में गाँवों में हमारे घरों के आसपास अक्सर ,रास्तों में ,गलियों में हमारे रास्ते को काटकर आड़े-तिरछे ढंग से तुरन्त भाग कर सुरक्षित जगह जाते हुए दिखना , एक आम बात थी , आज उस वक्त को बीते 40-45 साल बीत चुके हैं ।
आज के समाचार पत्रों में एक और हृदयविदारक समाचार प्रकाशित हुआ है , हमारे प्रिय नेवले को भी प्रति वर्ष लगभग { 50000 } पचास हजार तक की संख्या में मनुष्य अपने स्वार्थ , हवश और लालच के चलते मार रहा है , नेवलों के चितकबरे बाल बहुत ही मुलायम और पेंटिंग के ब्रश के लिए एकदम उपयुक्त होते हैं ,बस इसी हेतु इस नन्हें ,भोले जीव की इतनी बड़ी संख्या में मानव रूपी नृशंस जीव द्वारा निर्मम 'हत्या' की जा रही है ।*
*वाईल्ड लाईफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो { ड्ब्ल्यूसीसीबी } और वाईल्ड लाईफ ऑफ इंडिया { डब्ल्यू टीआई } ने देश भर में कई जगह छापे मारकर नेवले के बालों से बने हजारों ब्रश बरामद किए । उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में तो छापे में आश्चर्यजनक रूप से इस नन्हें ,प्यारे जीव के 155 किलोग्राम बाल बरामद किया गया ? ,जरा गंभीरतापूर्वक सोचिए कि इतनी बड़ी मात्रा में बाल इकट्ठा करने के लिए , कितने मासूम नेवलों की नृशंसता पूर्वक हत्या की गई होगी ! एक आकलन के अनुसार इतने भारी मात्रा में वजन के बराबर बाल इकट्ठा करने के लिए कम से कम 3000 से 4000 के बीच नेवलों की 'हत्या' की गई होगी । इसके अतिरिक्त वहीं के बाजार से 56000 पेंटिंग ब्रश भी पकड़े गये ।
अत्यन्त दुख की बात है कि आज के दौर में हाथियों ,गैंडों , डालफिन्स , तेंदुओं , ह्वेलों आदि बड़े जीवों की हत्या और अवैध शिकार पर भारत और दुनिया भर में आवाज उठाने वाले बहुत लोग हैं ,परन्तु दुखदरुप से इस नन्हें ,अदने ,छोटे जीव 'नेवले' के इतने बड़े पैमाने पर अवैध शिकार , संहार, महाविलोपन और महाविनाश होने के बावजूद , इसको बचाने के लिए और इनको मारने वाले अवैध शिकारियों और तस्करों के खिलाफ आवाज बुलन्द करने वाला 'एक' भी व्यक्ति या वन्य संरक्षण संस्था नहीं है ! ध्यान रखने की एक और विचारणीय बात है कि प्राकृतिक संसार में एक छोटा जीव भी पर्यावरणीय दृष्टिकोण से पथ्वी के जैवमंडलीय ईको सिस्टम में उतना ही महत्वपूर्ण है , जितने कि बड़े जीव की, अतः किसी भी जीव के इस धरती से विलुप्त होने से 'सब कुछ' असंतुलित होने का खत़रा सदा बना रहता है ।
हमारे देश की सबसे बड़ी विडम्बना और दुख की बात यह है कि यहाँ वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत नेवलों को मारना, खरीदना ,बेचना आदि कानूनन जुर्म है, इस जुर्म में पकड़े जाने पर सात साल की जेल की सजा और जुर्माना निर्धारित है ,परन्तु दुखद रुप से इतनी संख्या में इस लाभप्रद और निरीह नन्हें जीव को मारा जा रहा है और आश्चर्यजनक रूप से अभी तक एक भी अपराधी को जेल जाने और जुर्माने करने की तो बात छोड़िए ,पकड़ा तक नहीं जा सका है । इसका कारण यहाँ की भ्रष्ट और रिश्वतखोर शासन व्यवस्था है ,जिसमें वन्य अधिकारियों ,पुलिस वालों और जो भी सम्बन्धित विभाग हों , जिनसे अवैध शिकारियों/तस्करों को जरा भी डर हो ,उनके कर्मचारियों/अधिकारियों को रिश्वत देकर इस देश में कुछ भी { सर्वनाश भी } किया जा सकता है ! इसलिए इस नेवले जैसे छोटे से ,नीरीह ,पर कृषि के लिए अत्यन्त लाभप्रद जीव को बचाने की सरकार और जागरुक समाज की तरफ से भरपूर कोशिश होनी ही चाहिए ।
-निर्मल कुमार शर्मा ,गाजियाबाद , 31-12-18
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सर आपके लेख ज्ञानवर्धक होते हैं।आम जनता को चिंता नहीं है। घर के पास के पेड़ में जल नहीं देते हैं।दूर मंदिर में जल दूध चढ़ाते हैं। जागरूक बनने की इच्छा नहीं है।
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