सोमवार, 21 अक्तूबर 2019

सम्पादकीय
देश में जीन क्रांति की जरूरत
 हरित क्रांति के बाद अब जीन क्रांति जरूरी है । ऐसी खोज जरूरी है जो क्लाइमेटिक जोन और पानी की उपलब्धता को देखते हुए कृषि उत्पादकता बढ़ा सके । उन्नत प्रजाति के बीज, उचित उर्वरक, कीटनाशक और एग्रो मशीनरी तैयार करने की कोशिश तो हुई, लेकिन इसके आगे की जीन टेक्नोलॉजी का उपयोग वैश्विक स्तर पर किया जा रहा है । बायो टेक्नोलॉजी विधेयक लम्बे समय से संसद में लंबित है, जिसके बगैर इस दिशा में आगे बढ़ना संभव नहीं हो पा रहा है । 
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के १०० से अधिक रिसर्च इंस्टीट्यूट और ७५ से अधिक कृषि विश्वविद्यालयों समेत बायो टेक्नोलॉजी संस्थानों में साढ़े सात हजार से ज्यादा वैज्ञानिक है । 
देश में उदारीकरण के बाद कृषि क्षेत्र में किसानों की जरूरतों के हिसाब से शोध नहीं हुई । देश की ५३ फीसदी खेती असिंचित जमीन से होती है, जिसे ध्यान में रखते हुए न तो उन्नत बीज तैयार किए गए और न ही उपयुक्त टेक्नोलॉजी का विकास हुआ । करीब ४० वर्ष पहले तैयार गेंहू की दो-तीन प्रजातियों का कब्जा देश की दो तिहाई खेती पर है, जबकि गेंहू की लगभग साढ़े चार सौ प्रजातियां विकसित की जा चुकी हैं । ज्यादातर प्रजातियां ऐसी हैं, जिन्हें छह-छह बार सिंचाई की जरूरत पड़ती है । जबकि जरूरत एक या दो सिंचाई वाली प्रजाति की है । कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर रामबचन सिंह का कहना है कि देश में कृषि वैज्ञानिकों के कार्यो को कमतर नहीं आंकना चाहिए । 
जलवायु परिवर्तन के बावजूद खाघान्न की पैदावार लगातार बढ़ रही है । इस समय जरूरत है किसानों की उपज का उचित मूल्य दिलाने की, जो उन्हें नहीं मिल पा रही है । संसद में लंबित बायोटेक विधेयक को मंजूरी तत्काल मिलनी चाहिए । 
कृषि अनुसंधान के क्षेत्र में बजटीय आवंटन बढ़ाने की जरूरत है । नीति आयोग के रणनीति पत्र के मुताबिक फिलहाल कृषि अनुसंधान पर जीडीपी का केवल ०.३ फीसदी खर्च हो रहा है । इसे बढ़ाकर एक फीसदी करने की आवश्यकता ह ै। 

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