सोमवार, 21 अक्तूबर 2019

विरासत
पर्यावरण पर गुरूदेव के विचार
रूपनारायण काबरा
  युग दृष्टा गुरूदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने लगभग एक शताब्दी पूर्व कहा था पर्यावरण को लेकर जो समस्यायें हमारे सामने खड़ी होने लगी हैं तथा और बढ़ेगी क्योंकि मनुष्य की दृष्टि जो प्रकृति के प्रति बनी है, वही जिम्मेदार है । अगर प्रकृति से तादात्म्य होता तो मनुष्य अपने भोग के लिये उसका दुरूपयोग करने की नहीं सोचता । वह उस पर व्यभिचार नहीं करता, उसके संतुलन को नष्ट नहीं करता । 
गुरूदेव के रहते प्रकृति और मनुष्य के संबंध इतनी वीभत्स नहीं हुये थे जितने वे आज हो गये है किन्तु उन्हें मालूम था कि आधुनिकता के चक्कर में सुख साधन जुटाने में, अति आराम के और ध्वंस करने के साधनों में उसका प्रकृति के साथ सहयोग के बदले शोषण का संबंध हो गया है । इसीलिये उसका रास्ता अपने को ही नष्ट करने की तरफ ले जा रहा है । 
      गुरूदेव के अनुसार तीन जीवन केन्द्र है वे ही सार्थक शिक्षा के केन्द्र है, एक तो वह स्वयं का अपना घर है, अन्य से बिल्कुल अलग, उसका दूसर घर या जीवन केन्द्र है । समाज यानी वह अन्य को साथ सहजीवन सहवास करता है और तीसरा है प्रकृति, विश्व प्रकृति जिसमेंवह कभी बिल्कुल अकेले, कभी औरों के साथ जीव-जन्तुआें व  कुदरत की सभी स्थूल और सूक्ष्म वस्तुआें के दैहिक और अदैहिक तत्वों के साथ एक रिश्ता बनाकर जीता है । इन दिनों मनुष्य का प्रकृति के साथ रिश्ता सहकार के बदले शोषण का हो गया है । 
गुरूदेव को पर्यावरण के दूषित हो जाने के बारे में इतनी चिन्ता नहीं थी जितने आधुनिकता एवं तथाकथित भोगवादी सभ्यता तथा विकास एवं प्रगति के कारण मनुष्य के आंतरिक जीवन में कुरूपता आने की थी । उन्होंने चेताया था कि यह विकास व्यक्ति और समाज तथा प्रकृति की सौन्दर्य साधना को संतुलन की भावना को, भंग कर रहा है । यह दुख उन्हें सताता रहता था क्योंकि इसी कारण संसार में हिंसा बढ़ रही थी । उनकी कविता हिसांय, उन्मत्त पृथ्वी, नित्य निष्ठुर द्वन्द्व, उनकी हार्दिक वेदना का एक नमूना है । प्रकृति को अपनाना अपने को प्रकृति का एक अंग समझना, उनके शिक्षा दर्शन के तीन प्रमुख सिद्धान्तोंमें से एक है । उनका मानना था कि बालक अपने प्राकृतिक और सामाजिक वातावरण के साथ ताल-मेल रखता हुआ प्रकृति से तादात्म्य स्थापित करके अपनी शक्तियों को प्रस्फुटित कर सके । उनके अनुसार व्यक्ति का मानसिक प्रदूषण ही पर्यावरण प्रदूषण का मूल कारण है । इसे न समझ कर आज हम पर्यावरण के प्रति संचेतना के कार्यक्रमों में करोड़ों रूपयो का व्यय कर रहे है । लेकिन मानसिक प्रदूषण यथावत है इसीलिये पर्यावरण प्रदूषण हर स्तर पर जारी है । 
पर्यावरण प्रदूषण इस समय विश्वव्यापी समस्या है, इस निरन्तर बढ़ते प्रदूषण से हमारे जन जीवन को, हमारे स्वास्थ्य को, हमारे मौसम और प्राकृतिक संसाधनों को एवं हमारे मन-मस्तिष्क सभी को बुरी तरह प्रभावित कर रखा है । आज हमने लालच में अपनी धरती, वायु, वनस्पति, जीव जन्तु एवं जल इत्यादि पूरे पर्यावरण को प्रदूषित कर डाला है । कालजयी गंगा और अन्य नदियां तक मैली हो गई है । शहरों में ध्वनि प्रदूषण भी एक चिन्तनीय समस्या है । यह अत्यधिक शोर, बहरापन एवं विक्षिप्त्ता पैदा करता है । 
मानव प्रकृति पर अपनी विजय की महत्वाकांक्षी के कारण उसका अंधाधुन्ध दोहन कर रहा है, शोषण कर रहा है । हमारी संस्कृति के मूल में प्रकृति के प्रति जो आस्था भाव था, जो मैत्री भाव था, वह आज लुप्त् होता जा रहा है । पेड़ पौधों तक की पूजा करने वाले इस देश का वन आवरण भी बहुत कम है । 

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