शुक्रवार, 20 दिसंबर 2019

पुण्य स्मरण
जब्बार भाई : एक योद्धा की विदाई
बादल सरोज

    दुनिया की भीषणतम औद्योगिक त्रासदी को समाज और सरकार के दिमाग में करीब 35 साल तक जिन्दा रख पाने में कामयाब रहे अब्दुल जब्बार, जिन्हें सब प्यार से जब्बार भाई कहकर पुकारते थे, पिछले दिनोंहम सबसे सदा के लिए विदा हो गए ।
    सारे ज्ञान और जानकारी के बावजूद इल्bत ये है कि शुतुरमुर्गी-सिन्ड­ोम इतना हावी रहता है कि आप जिन्हें प्यार करते हैं उनके बिना दुनिया की कल्पना तक नहीं करते । वे नहीं रहेंगे तब भी रहना होगा-इस स्थिति के बारे में कभी सोचते तक नहीं और जब ऐसी नौबत आती है तो सन्न रह जाते हैं, इतने कि रो तक नहीं पाते।    

    अनगिनत साथी और कामरेड्स कमाए हैं, जीवन में, ऐसे कि जिन पर आंख मूंदकर एतबार और भरोसा किया जा सकता है। मगर दोस्त इने-गिने हैं, भोपाल में तो और भी कम ये जब्बार भाई उनमें से एक हैं।
    दोस्त यानि जिनसे बिना कहे-सुने ही संवाद हो जाये, दोस्त याने जिनकी याद से ही मन प्रफुल्bित हो जाये, दोस्त मतलब जिनके साथ बैठने भर से हजार हॉर्स पावर की हिम्मत आ जाये, दिलोदिमाग ताजगी से भर जाये, दोस्त मतलब यह तय न कर पायें कि लाड़ ज्यादा है या आदर, दोस्त मतलब आल्टर ईगो । जब्बार हमारे दोस्त और हम जैसों के आल्टर ईगो हैं।   
    मगर जब्बार भाई स्ट­गल-मेड आइकॉन हैं। गली के एक मकान से दुनिया के आसमान तक पहुंचे खुद्दार इंसान हैं। पिछली आधी सदी के भोपाल के जन-संघर्षो के प्रतीक, सिर्फ यूनियन कार्बाइड ही नहीं, हर किस्म की जहरीली हवाओं के विरूद्ध लड़ाई के सबसे सजग और सन्नद्ध योद्धा-एकअजीमुश्शान भोपाली ।
    उनसे पहली मुलाकात दिवंगत कामरेड शैलेन्द्र शैली के साथ 1992 के दिसम्बर में साम्प्रदायिक दंगों के दौरान भोपाल में हुई थी जब दिग्विजय सिंह, शैली, रामप्रकाश त्रिपाठी, हरदेनिया जी आदि की एक छोटी-सी टीम जलते-सुलगते भोपाल की आग बुझाने में लगी थी। जब्बार भाई उसके सबसे सक्रिय और जनाधार वाले हिस्से थे।
    आखिरी बार उनका मेसेज पिछbे दिनों आया था, जब उन्होंने सहयोग के लिए आभार व्यक्त करते हुए मिलने के लिये बुलाया था। अपने ठीक होने की आश्चस्ति जताई थी । हम पेंडिंग काम निबटाने और अखबार निकालने में ऐसे मशगूल और मशरूफ हुए कि चिरायु अस्पताल जाना आज के लिए टाल दिया।
    पिछली साल भोपाल के जेल फर्जी एनकाउंटर के खिलाफ आंदोलन की एक मीटिंग उनके  दफ्तर में हुई थी। मीटिंग के बाद जब लौट रहे थे तब उन्होंने जिद करके  वापस बुलाया और कहा चाय पी जाइये, एक बात बतानी है। थोड़ी देर में उनकी शरीके-हयात चाय लेकर आईं । उनसे परिचय कराते हुए वे बोले ‘’ये मेरी बेगम हैं। कामरेड सुल्तान अहमद की बेटी - फिर शरारती मुस्कान के  साथ जोड़ा य इस तरह मैं सीपीएम का दामाद हूँ। हमने तुरन्त अपनी नई कलम निकाली उन्हें भेंट की और कहा: वलीमे की दावत के लिए बाद में बुलाएंगे । जब्बार भाई, आपकी दावत उधार है -अब हमेशा उधार रहेगी ।
    अकेले एक शख्स का जाना भी संघर्षों की शानदार विरासत वाले शहर भोपाल को बेपनाह और दरिद्र बना सकता है। एक आवाज का खामोश होना भी कितना भयावह सन्नाटा पैदा कर सकता है -कल शाम से महसूस हो रहा है।
    मगर उनका, अपनों के बिना जाना अखर गया । जब्बार भाई, पिछली आधी सदी के सबसे कंसिस्टेंट, संघर्षशील, अजीमुश्शान भोपाली थे - मगर उनका सबसे बड़ा योगदान गैस कांड की लड़ाई और कामयाबियां नहीं हैं। उनका ऐतिहासिक योगदान भोपाल की महिलाओं को उस लड़ाई में सड़कों पर उतारना और उनमें से सैकड़ों - जी, सैकडों - में आत्मविश्वास और नेतृत्व की क्षमता विकसित करना   था ।
    हिन्दू, मुसलमान, दलित, सवर्ण सभी समुदायों की भोपाली महिलाओं की जितनी तादाद, पांच से 10 हजार तक के जितने भी बड़े हुजूम हमने देखे हैं, वे जब्बार साब की रहनुमाई में देखे हैं। उनके तो संगठन का नाम ही भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन था।   
    कल उनका घर तलाशने में एक-के-बाद- एक, तीन महिलाओं से पूछा, तीनों ने कहा ये ‘‘भाई का   घर ?  भाई को तो अभी-अभी ले गए ।
    इस सबके बाद कल की  सबसे बड़ी त्रासद विडम्बना यह थी कि भाई अकेbे थे - उनकी लड़ाईयों की मुख्य ताकत जो महिलाएं थीं, वे ही उनकी अंतिम यात्रा से दूर थीं दूर रखी गई थीं ।
    कुछ महिला एक्टिविस्ट्स कब्रिस्तान पहुंच गईं थीं। घंटे भर तक, खुद को खुदाई खिदमतगार मानने वाले डेढ़ दर्जन से ज्यादा बन्दे, उन्हें कभी एक गेट पर तो कभी दूसरे गेट पर बाहर जाने की सलाह देने पधारते रहे। जब वे उसकी वजह पूछतीं तो बिना कोई लॉजिक दिए ये सलाहदाता आगे बढ़ लेते थे। इनमें से एक साथी ने पूछा भी कि यहां औरतें भी तो दफ्न होती होंगी, फिर ..... बहरहाल वे डटी रहीं। कम थीं, मगर थीं।
    गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन का अजीम नेता आखिर में उन्हीं की मुट्ठी भर मिट्टी पाये बिना सुपुर्दे-खाक हो गया, जो उसे सबसे भरोसेमंद भाई मानती थीं। जो उसकी फौज और ढाल दोनों थीं। अगर ऐसी कोई रवायत है तो उसे आज ही बदल दिया जाना चाहिए ।
    अलविदा जब्बार साब यू लॉन्ग लिव अब्दुल जब्बार, द वन एंड ओनली । सिर्फ भोपाल ही नहीं, समूची इंसानियत मिस करेगी आपको।                           

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