ज्ञान विज्ञान
अमेरिका की जलवायु समझौते से हटने की तैयारी
पिछbे दिनों अमेरिका ने विगत 4 नवंबर को पेरिस जलवायु समझौते से पीछे हटने की औपचारिक कार्यवाही शुरू कर दी है। पेरिस समझौता बढ़ते वैश्विक तापमान और जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयास में साल 2015 में हुआ था और इसमें दुनिया के 197 देश शामिल हैं। वैसे साल 2017 से ही अमेरिका का इरादा इस समझौते से बाहर निकलने का था। अमेरिका के राïपति डोनाल्ड टम्प के अनुसार पेरिस जलवायु समझौते में बने रहने से देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचेगा।
अमेरिका की जलवायु समझौते से हटने की तैयारी
पिछbे दिनों अमेरिका ने विगत 4 नवंबर को पेरिस जलवायु समझौते से पीछे हटने की औपचारिक कार्यवाही शुरू कर दी है। पेरिस समझौता बढ़ते वैश्विक तापमान और जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयास में साल 2015 में हुआ था और इसमें दुनिया के 197 देश शामिल हैं। वैसे साल 2017 से ही अमेरिका का इरादा इस समझौते से बाहर निकलने का था। अमेरिका के राïपति डोनाल्ड टम्प के अनुसार पेरिस जलवायु समझौते में बने रहने से देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचेगा।
पेरिस जलवायु समझौते पर अमेरिका के निर्णय की घोषणा करते हुए अमेरिकी विदेश मंत्री माइकल पोम्पियो ने कहा कि साल 2005 से 2017 के बीच अमेरिका की अर्थव्यवस्था में 19 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में 13 प्रतिशत की कमी आई थी ।
वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों ने अमेरिका द्वारा लिए गए इस फैसले की अलोचना की है। कैम्ब्रिज के यूनियन आफ कंसन्र्ड साइंटिस्ट समूह के एल्डन मेयर का कहना है कि राïपति टम्प का पेरिस समझौते से बाहर निकलने का फैसbा गैर-जिम्मेदाराना और अदूरदर्शी है। वल्र्ड रिसोर्स इंस्टीटçूट के एंडय लाइट का कहना है कि पेरिस जलवायु समझौते से पीछे हटने पर अमेरिका के राजनैतिक और आर्थिक रुतबे पर असर पड़ेगा, क्योंकि अन्य देश कम कार्बन उत्सर्जन करने वाली अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहे हैं।
पेरिस समझौते के नियमा-नुसार 4 नवंबर 2019 इस समझौते से बाहर निकलने के लिए आवेदन करने की सबसे पहली तारीख थी । और आवेदन के बाद भी वह देश एक साल तक सदस्य बना रहेगा। अर्थात अमेरिका इस समझौते से औपचारिक तौर पर 4 नवंबर 2020 को बाहर निकल सकेग ा।
वैसे अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जलवायु परिवर्तन की समस्या को संजीदगी से ले रहे हैं। तो यदि इनमें से कोई उम्मीदवार अगला चुनाव जीतता है तो आशा है कि जनवरी 2021 में पदभार संभालने के बाद वे वापस इस निर्णय पर पुनर्विचार करेंगे। पेरिस जलवायु समझौता छोड़ चुके देश, पुन: शामिल होने के अपने इरादे के बारे में राï संघ जलवायु परिवर्तन संधि कार्यालय को सूचित करने के 30 दिन बाद इस समझौते में पुन: शामिल हो सकते हैं।
यदि टम्प दोबारा नहीं चुने गए तो सरकार द्वारा यह फैसला बदलने की उम्मीद है। और यदि टम्प वापस आते हैं तो वहां के शहरों, राज्यों और कारोबारियों पर निर्भर है कि वे जलवायु परिवर्तन के मामले में अपना रुख तय करंे ।
भारत में जीनोम मैपिंग
लगभग हाल ही में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) द्वारा एक परियोजना के तहत भारत के एक हजार ग्रामीण युवाओं के जीनोम की सिक्वेंसिंग (अनुक्र-मण) की योजना तैयार की गई है। इसके अंतर्गत लगभग दस हजार भारतीय लोगों के जीनोम को अनुक्रमित करने का लक्ष्य है। यह पहला मौका होगा जब भारत में इतने बड़े स्तर पर जीनोम के गहन अध्ययन के लिए खून के नमूने एकत्रित किए जाएंगे ।
हम जीव विज्ञान की सदी में रह रहे हैं। अगर 20वीं सदी भौतिक विज्ञान की सदी थी तो 21वीं सदी निश्चित तौर पर जैव-प्रौद्योगिकी (बायोटेक्नॉलॉजी) की सदी होगी। पिछले दो-तीन दशकों में जैव-प्रौद्योगिकी में, विशेषकर आणविक जीव विज्ञान और जीन विज्ञान के क्षेत्र में, चमत्कृत कर देने वाले नए अनुसं-धान तेजी से बढ़े हैं।
वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों ने अमेरिका द्वारा लिए गए इस फैसले की अलोचना की है। कैम्ब्रिज के यूनियन आफ कंसन्र्ड साइंटिस्ट समूह के एल्डन मेयर का कहना है कि राïपति टम्प का पेरिस समझौते से बाहर निकलने का फैसbा गैर-जिम्मेदाराना और अदूरदर्शी है। वल्र्ड रिसोर्स इंस्टीटçूट के एंडय लाइट का कहना है कि पेरिस जलवायु समझौते से पीछे हटने पर अमेरिका के राजनैतिक और आर्थिक रुतबे पर असर पड़ेगा, क्योंकि अन्य देश कम कार्बन उत्सर्जन करने वाली अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहे हैं।
पेरिस समझौते के नियमा-नुसार 4 नवंबर 2019 इस समझौते से बाहर निकलने के लिए आवेदन करने की सबसे पहली तारीख थी । और आवेदन के बाद भी वह देश एक साल तक सदस्य बना रहेगा। अर्थात अमेरिका इस समझौते से औपचारिक तौर पर 4 नवंबर 2020 को बाहर निकल सकेग ा।
वैसे अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जलवायु परिवर्तन की समस्या को संजीदगी से ले रहे हैं। तो यदि इनमें से कोई उम्मीदवार अगला चुनाव जीतता है तो आशा है कि जनवरी 2021 में पदभार संभालने के बाद वे वापस इस निर्णय पर पुनर्विचार करेंगे। पेरिस जलवायु समझौता छोड़ चुके देश, पुन: शामिल होने के अपने इरादे के बारे में राï संघ जलवायु परिवर्तन संधि कार्यालय को सूचित करने के 30 दिन बाद इस समझौते में पुन: शामिल हो सकते हैं।
यदि टम्प दोबारा नहीं चुने गए तो सरकार द्वारा यह फैसला बदलने की उम्मीद है। और यदि टम्प वापस आते हैं तो वहां के शहरों, राज्यों और कारोबारियों पर निर्भर है कि वे जलवायु परिवर्तन के मामले में अपना रुख तय करंे ।
भारत में जीनोम मैपिंग
लगभग हाल ही में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) द्वारा एक परियोजना के तहत भारत के एक हजार ग्रामीण युवाओं के जीनोम की सिक्वेंसिंग (अनुक्र-मण) की योजना तैयार की गई है। इसके अंतर्गत लगभग दस हजार भारतीय लोगों के जीनोम को अनुक्रमित करने का लक्ष्य है। यह पहला मौका होगा जब भारत में इतने बड़े स्तर पर जीनोम के गहन अध्ययन के लिए खून के नमूने एकत्रित किए जाएंगे ।
हम जीव विज्ञान की सदी में रह रहे हैं। अगर 20वीं सदी भौतिक विज्ञान की सदी थी तो 21वीं सदी निश्चित तौर पर जैव-प्रौद्योगिकी (बायोटेक्नॉलॉजी) की सदी होगी। पिछले दो-तीन दशकों में जैव-प्रौद्योगिकी में, विशेषकर आणविक जीव विज्ञान और जीन विज्ञान के क्षेत्र में, चमत्कृत कर देने वाले नए अनुसं-धान तेजी से बढ़े हैं।
मात्र दो अक्षरों का शब्द जीन आज मानव इतिहास की दशा और दिशा बदलने में समर्थ है। जीन सजीवों में सूचना की बुनियादी इकाई और डीएनए का एक हिस्सा होता है। जीन माता-पिता और पूर्वजों के गुण और रूप-रंग संतान में पहुंचाते हैं। डीएनए के उलट-पलट जाने से जीन्स में विकार पैदा होता है और इससे आनुवंशिक बीमारियां उत्पन्न होती हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रहती हैं।
जीन्स के पूरे समूह को जीनोम नाम से जाना जाता है। जीनोम के अध्ययन को जीनोमिक्स कहा जाता है। वैज्ञानिक लंबे समय से अन्य जीवों के अलावा मनुष्य के जीनोम को पढ़ने में जुटे हैं । वैज्ञानिकों के अनुसार मानव शरीर में जीन्स की कुb संख्या अस्सी हजार से एक लाख तक होती है।
वर्ष 1988 में अमेरिकी सरकार ने अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट की शुरुआत की जिसे 2003 में पूरा किया गया। वैज्ञानिकों ने इस प्रोजेक्ट के जरिए इंसान के पूरे जीनोम को पढ़ा । इस परियोजना में अमेरिका के साथ ब्रिटेन, फ्रांस, आस्टेbिया, जर्मनी, जापान और चीन ने भाग लिया था। इस परियोजना का लक्ष्य जीनोम सिक्वेंसिंग के जरिए बीमारियों को बेहतर समझने, दवाओं केशरीर पर प्रभाव की सटीक भविष्यवाणी, अपराध विज्ञान में उन्नति और मानव विकास को समझने में मदद करना था। उस समय भारत का इस परियोजना से अपने को अलग रखना हमारे नीति निर्धारकों की अदूरदर्शिता का परिणाम कहा जा सकता है।
अब सीएसआईआर द्वारा दस हजार ग्रामीण युवाओं के जीनोम की सिक्वेंसिंग की योजना ने जीनोमिक्स के क्षेत्र में भारत के प्रवेश की भूमिका तैयार कर दी है जिससे चिकित्सा विज्ञान में नई संभावनाओं के द्वार खुलेंगे ।
सीएसआईआर की इस परियोजना के अंतर्गत सेंटर फॉर सेल्यूलर एंड मॉलीक्यूलर बायोलॉजी, हैदराबाद और इंस्टीट्यूट आफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटेड बायोलॉजी, नई दिल्bी संयुक्त रूप से काम करेंगे। जीनोम की सिक्वेंसिंग खून के नमूने के आधार पर की जाएगी। प्रत्येक व्यक्ति के डीएनए में मौजूद चार क्षारों (एडेनीन, गुआनीन, साइटोसीन और थायमीन) के क्रम का पता लगाया जाएगा।
डीएनए सीक्वेंसिंग से लोगों की बीमारियों का पता लगाकर समय रहते इलाज किया जा सकता है और साथ ही भावी पीढ़ी को रोगमुक्त करना संभव होगा । इस परियोजना में भाग लेने वाले युवा छात्रों को बताया जाएगा कि क्या उनमे परिवर्तित जीन हैं जो उन्हें कुछ दवाओं के प्रति कम संवेदनशील बनाते हैं। दुनिया के कई देश अब अपने नागरिकों की जीनोम मैपिंग करके उनके अनूठे जेनेटिक लक्षणों को समझने में लगे हैं ताकि किसी बीमारी विशेष के प्रति उनकी संवेदनशीलता के मद्देनजर व्यक्ति-आधारित दवाइयां तैयार करने में मदद मिल सके ।
वर्ष 2003 में मानव जीनोम के अनुक्रमण के बाद प्रत्येक व्यक्ति की अद्वितीय आनुवंशिक संरचना तथा रोग के बीच सम्बंध को लेकर वैज्ञानिकों को एक नई संभावना दिख रही है। जीनोम अनुक्रम को जान लेने से यह पता लग जाएगा कि कुछ लोग कैंसर, कुछ मधुमेह और कुछ अल्जाइमर या अन्य बीमारियों से ग्रस्त क्यों होते हैं। जीनोम मैपिंग के जरिए हम यह जान सकते हैं कि किसको कौन सी बीमारी हो सकती है और उसके क्या लक्षण हो सकते हैं। जीनोम मैपिंग से बीमारी होने का इंतजार किए बगैर व्यक्ति जीनोम को देखते हुए उसका इलाज पहले से शुरू किया जा सकेगा । इसके माध्यम से पहले से ही पता लगाया जा सकेगा कि भविष्य में कौन -सी बीमारी हो सकती है। वह बीमारी न होने पाए तथा इसके नुकसान से कैसे बचा जाए इसकी तैयारी आज से ही शुरू की जा सकती है। सिस्टिक फाइब्रोसिस, थैलेसीमिया जैसी लगभग दस हजार बीमारियां हैं जिनके लिए एकल जीन में खराबी को जिम्मेदार माना जाता है। जीनोम उपचार के जरिए दोषपूर्ण जीन को निकाल कर स्वस्थ जीन जोड़ना संभव हो सकेगा ।
अब समय आ गया है कि भारत अपनी खुद की जीनोमिक्स क्रांति की शुरुआत करे। तकनीकी समझ और इसे सफलतापूर्वक लॉन्च करने की क्षमता हमारे देश के वैज्ञानिकों तथा औषधि उद्योग में मौजूद है। इसके लिए राïीय स्तर पर एक दृïि तथा कुशल नेतृत्व की आवश्यकता है।
प्रकाश प्रदूषण से मुश्किb मेंकीटों की प्रजाति
रात के समय कृत्रिम प्रकाश से होने वाbा प्रकाश प्रदूषण कीटोंको विनाश की ओर धकेb रहा है । प्रकाश प्रदूषण पर 200 से ज्यादा अध्ययनों की समीक्षा के बाद वैज्ञानिकों का दावा है कि एक दशक में हम बग के 40 प्रतिशत प्रजातियों को खो देगे ।
जीन्स के पूरे समूह को जीनोम नाम से जाना जाता है। जीनोम के अध्ययन को जीनोमिक्स कहा जाता है। वैज्ञानिक लंबे समय से अन्य जीवों के अलावा मनुष्य के जीनोम को पढ़ने में जुटे हैं । वैज्ञानिकों के अनुसार मानव शरीर में जीन्स की कुb संख्या अस्सी हजार से एक लाख तक होती है।
वर्ष 1988 में अमेरिकी सरकार ने अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट की शुरुआत की जिसे 2003 में पूरा किया गया। वैज्ञानिकों ने इस प्रोजेक्ट के जरिए इंसान के पूरे जीनोम को पढ़ा । इस परियोजना में अमेरिका के साथ ब्रिटेन, फ्रांस, आस्टेbिया, जर्मनी, जापान और चीन ने भाग लिया था। इस परियोजना का लक्ष्य जीनोम सिक्वेंसिंग के जरिए बीमारियों को बेहतर समझने, दवाओं केशरीर पर प्रभाव की सटीक भविष्यवाणी, अपराध विज्ञान में उन्नति और मानव विकास को समझने में मदद करना था। उस समय भारत का इस परियोजना से अपने को अलग रखना हमारे नीति निर्धारकों की अदूरदर्शिता का परिणाम कहा जा सकता है।
अब सीएसआईआर द्वारा दस हजार ग्रामीण युवाओं के जीनोम की सिक्वेंसिंग की योजना ने जीनोमिक्स के क्षेत्र में भारत के प्रवेश की भूमिका तैयार कर दी है जिससे चिकित्सा विज्ञान में नई संभावनाओं के द्वार खुलेंगे ।
सीएसआईआर की इस परियोजना के अंतर्गत सेंटर फॉर सेल्यूलर एंड मॉलीक्यूलर बायोलॉजी, हैदराबाद और इंस्टीट्यूट आफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटेड बायोलॉजी, नई दिल्bी संयुक्त रूप से काम करेंगे। जीनोम की सिक्वेंसिंग खून के नमूने के आधार पर की जाएगी। प्रत्येक व्यक्ति के डीएनए में मौजूद चार क्षारों (एडेनीन, गुआनीन, साइटोसीन और थायमीन) के क्रम का पता लगाया जाएगा।
डीएनए सीक्वेंसिंग से लोगों की बीमारियों का पता लगाकर समय रहते इलाज किया जा सकता है और साथ ही भावी पीढ़ी को रोगमुक्त करना संभव होगा । इस परियोजना में भाग लेने वाले युवा छात्रों को बताया जाएगा कि क्या उनमे परिवर्तित जीन हैं जो उन्हें कुछ दवाओं के प्रति कम संवेदनशील बनाते हैं। दुनिया के कई देश अब अपने नागरिकों की जीनोम मैपिंग करके उनके अनूठे जेनेटिक लक्षणों को समझने में लगे हैं ताकि किसी बीमारी विशेष के प्रति उनकी संवेदनशीलता के मद्देनजर व्यक्ति-आधारित दवाइयां तैयार करने में मदद मिल सके ।
वर्ष 2003 में मानव जीनोम के अनुक्रमण के बाद प्रत्येक व्यक्ति की अद्वितीय आनुवंशिक संरचना तथा रोग के बीच सम्बंध को लेकर वैज्ञानिकों को एक नई संभावना दिख रही है। जीनोम अनुक्रम को जान लेने से यह पता लग जाएगा कि कुछ लोग कैंसर, कुछ मधुमेह और कुछ अल्जाइमर या अन्य बीमारियों से ग्रस्त क्यों होते हैं। जीनोम मैपिंग के जरिए हम यह जान सकते हैं कि किसको कौन सी बीमारी हो सकती है और उसके क्या लक्षण हो सकते हैं। जीनोम मैपिंग से बीमारी होने का इंतजार किए बगैर व्यक्ति जीनोम को देखते हुए उसका इलाज पहले से शुरू किया जा सकेगा । इसके माध्यम से पहले से ही पता लगाया जा सकेगा कि भविष्य में कौन -सी बीमारी हो सकती है। वह बीमारी न होने पाए तथा इसके नुकसान से कैसे बचा जाए इसकी तैयारी आज से ही शुरू की जा सकती है। सिस्टिक फाइब्रोसिस, थैलेसीमिया जैसी लगभग दस हजार बीमारियां हैं जिनके लिए एकल जीन में खराबी को जिम्मेदार माना जाता है। जीनोम उपचार के जरिए दोषपूर्ण जीन को निकाल कर स्वस्थ जीन जोड़ना संभव हो सकेगा ।
अब समय आ गया है कि भारत अपनी खुद की जीनोमिक्स क्रांति की शुरुआत करे। तकनीकी समझ और इसे सफलतापूर्वक लॉन्च करने की क्षमता हमारे देश के वैज्ञानिकों तथा औषधि उद्योग में मौजूद है। इसके लिए राïीय स्तर पर एक दृïि तथा कुशल नेतृत्व की आवश्यकता है।
प्रकाश प्रदूषण से मुश्किb मेंकीटों की प्रजाति
रात के समय कृत्रिम प्रकाश से होने वाbा प्रकाश प्रदूषण कीटोंको विनाश की ओर धकेb रहा है । प्रकाश प्रदूषण पर 200 से ज्यादा अध्ययनों की समीक्षा के बाद वैज्ञानिकों का दावा है कि एक दशक में हम बग के 40 प्रतिशत प्रजातियों को खो देगे ।
रात के समय कृत्रिम प्रकाश से जब हम अपने जीवन में प्रकाश फैbाते है, उसी समय कई कीट प्रजातियों को खोते भी जाते है ।
हमारा यह कृत्रिम प्रकाश कई तरीकों से कीटों के जीवन को प्रभावित करता है । यह उन्हें हमसे कहीं दूर जाने के bिए विवश करता है तो कई बार उनके जीवनचक्र को ही बदb देता है । इस घटते कीट संख्या से वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र के बिगड़ने की भी आशंका जताई जा रही है । जैसे कि पिछbे 50 वर्षो में उत्तरी अमेरिकी पक्षियों की संख्या में 30 करोड़ की कमी आई है ।
हमारा यह कृत्रिम प्रकाश कई तरीकों से कीटों के जीवन को प्रभावित करता है । यह उन्हें हमसे कहीं दूर जाने के bिए विवश करता है तो कई बार उनके जीवनचक्र को ही बदb देता है । इस घटते कीट संख्या से वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र के बिगड़ने की भी आशंका जताई जा रही है । जैसे कि पिछbे 50 वर्षो में उत्तरी अमेरिकी पक्षियों की संख्या में 30 करोड़ की कमी आई है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें