विज्ञान हमारे आसपास
भ्रम और विज्ञान के बीच झूलते पेड़
डॉ. खुशाल सिंह पुरोहित
पिछले दिनों पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का एक बयान काफी चर्चा में रहा । एक समारोह को संबोधित करते हुए इमरान खान ने कहा कि देश में 10 सालों में हरित आवरण कम हुआ है, इसके नतीजे तो आने थे क्योंकि पेड़ हवा को साफ करते हैं, रात को आक्सीजन देते हैं और कार्बन डाइआक्साइड लेते हैं।
मानव जाति के पूर्वज अपना अधिकांश समय पेड़ों पर बिताते थे । वैज्ञानिक तथ्य इस बात का संकेत करते हैं कि जब तक इंसान दो पैरों पर चलने में पूरी तरह सक्षम नहीं हो गया उस समय तक उसका ज्यादा समय पेड़ों पर ही बितता था । जमीनी पेड़ों का जन्म 50 से 65 करोड़ साल पहले का बताया जाता है ।
भ्रम और विज्ञान के बीच झूलते पेड़
डॉ. खुशाल सिंह पुरोहित
पिछले दिनों पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का एक बयान काफी चर्चा में रहा । एक समारोह को संबोधित करते हुए इमरान खान ने कहा कि देश में 10 सालों में हरित आवरण कम हुआ है, इसके नतीजे तो आने थे क्योंकि पेड़ हवा को साफ करते हैं, रात को आक्सीजन देते हैं और कार्बन डाइआक्साइड लेते हैं।
मानव जाति के पूर्वज अपना अधिकांश समय पेड़ों पर बिताते थे । वैज्ञानिक तथ्य इस बात का संकेत करते हैं कि जब तक इंसान दो पैरों पर चलने में पूरी तरह सक्षम नहीं हो गया उस समय तक उसका ज्यादा समय पेड़ों पर ही बितता था । जमीनी पेड़ों का जन्म 50 से 65 करोड़ साल पहले का बताया जाता है ।
वैज्ञानिकों के अनुसार मानव सभ्यता की शुरुआत के समय धरती पर जितने पेड़ थे वर्तमान में उनमे 46 प्रतिशत की कमी आ गई है । दुनिया में 5 करोड़ पेड़ प्रति वर्ष लगाए जाते हैं जबकि करीब 10 करोड़ पेड विभिन्न कारणों से काटे जाते हैं । इन दिनो पृथ्वी पर कितने पेड़ हैं इसके लिए विश्व भर के 38 शोधकर्ताओं के दल ने विस्तृत अध्ययन कर बताया कि दुनिया में 30 खरब पेड़ मौजूद हैं । इस हिसाब से प्रति व्यक्ति के हिस्से में 422 पेड़ आते हैं, दुनिया में प्रति व्यक्ति 422 पेड़ का आंकड़ा संतोषजनक कहा जा सकता है लेकिन वास्तविक स्थिति देखें तो वर्ष 2015 की रिपोर्ट में 151 देशो मे प्रति व्यक्ति पेड़ों की उपलब्धि की सूची में चीन 130 पेड़ों के साथ 94वें स्थान पर, श्रीलंका 118 पेड़ों के साथ 97वें स्थान पर बांग्लादेश से 6 पेड़ों के साथ 137वें स्थान पर और पाकिस्तान 5 पेड़ों के साथ 138वें स्थान पर है ।
वैज्ञानिकों ने शताब्दियों पहले ही पता लगा लिया था कि मनुष्य समेत सभी प्राणी श्वसन करते हैंउससे प्राá ऊर्जा का अपने कामकाज के लिए उपयोग करते हैं । प्राणियों के समान ही पेड़ पौधे भी श्वसन क्रिया करते हैं, इसमें कार्बन डाइआक्साइड का उपयोग होता है और आक्सीजन का निर्माण होता हैं । यह आंशिक सत्य हैं । मनुष्य जो हवा सांस के लिए अंदर लेते है और जो हवा वापिस बाहर छोड़ते हैं उसकी बनावट में ज्यादा अंतर नहीं होता हैं । श्वसन क्रिया मे कुछ कुछ प्रतिशत ही आक्सीजन का उपयोग होता है ।
जिस वायुमंडल में मनुष्य श्वास लेता है उसमें 78.8 प्रतिशत नाईटोजन 20.95 प्रतिशत आक्सी-जन 0.93 प्रतिशत आर्गन, 0.038 प्रतिशत कार्बनडाइ आक्साइड एवं थोड़ी मात्रा में वाष्प होती है । अब यदि श्वास में छोडी जाने वाली हवा की बनावट देखें तो उसमें 78.8 प्रतिशत नाइटोजन, करीब 16 प्रतिशत आक्सीजन और 0.038 प्रतिशत कार्बन डाइ आक्साईड होती हैं । यानी कुछ प्रतिशत में आक्सीजन का उपयोग हो रहा है । यदि मनुष्य द्वारा आक्सीजन लेकर कार्बन डाइआक्साइड छोड़न की बात सत्य होती तो फिर एक व्यक्ति द्वारा दूसरे को कृत्रिम सांस कैसे दी इस दी जा सकती है ?
अब पेड़ पौधों की बात करें तो पेड़ पौधों में श्वसन के लिए कोई विशेष अंग नहीं होते हैं । पेड़ों मे श्वसन क्रिया पत्तियों में उपस्थित छिद्रों (स्टोमेटा) द्वारा होती है । इस क्रिया में पोधे आक्सीजन का उपयोग करते हुए कार्बन डाइआक्साइड का निर्माण करते हैं । पेड़ पौधे हवा की मदद से एक और क्रिया करते हैं जिसे प्रकाश संश्लेषण कहा जाता है । इसमे कार्बन डाइआक्साइड और पानी की मदद से प्रकाश की उपस्थिति में शर्करा और आक्सीजन का निर्माण करते हैं ।
इसमें खास बात यह है कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया पेड़ पौधों के सिर्फ उन भागों में होती है जहां क्लोरोफिल की उपस्थिति रहती है । प्रकाश संश्लेषण की क्रिया पौधों में सिर्फ पत्तियों तक सीमित है और रात में संभव नहीं है । जबकि श्वसन क्रिया दिन रात चलती रहती हैं । दिन के समय श्वसन में पैदा हुई कार्बन डाइआक्साइड का उपयोग प्रकाश संश्लेषण मे हो जाता है और पौधों से केवb आक्सीजन ही निकलती है । इसके बाद जब रात होती है तो प्रकाश संश्लेषण की क्रिया तो बंद हो गई लेकिन श्वसन चलता रहता है यानि पोधों मे श्वसन के कारण आक्सीजन खर्च हो रही है एवं कार्बन डाइआक्साइड बन रही है । शायद कुछ लोग इसी बात को लेकर चिंतित रहते हैं कि रात मे पेड के नीचे सोना खतरनाक तो नहीं हैं ?
इसके लिए हमे पेड़ पोधो एवं मनुष्य की ऊर्जा की आवश्यकताओं एवं श्वसन के अंतर को समझना पड़ेगा । प्राणियों एवं पेड़ पोधों की गतिविधियों मे बहुत अंतर है । पेड़ पोधे चलते फिरते नहीं हैं इस कारण उनकी ऊर्जा की आवश्यकता प्राणियों की अपेक्षा बहुत कम है । इसलिए उनकी श्वसन दर भी बहुत कम होती है । कार्बन डाइआक्साइड की उत्सर्जन दर देखें तो एक मनुष्य दिन भर में करीब 500 ग्राम कार्बन आक्साइड उत्सर्जित करता है, रात में यह मात्रा काफी कम होती है । रात को मनुष्य सोते हैं इसलिए श्वसन दर कम रहती है । अनुमान है कि एक व्यक्ति द्वारा रात भर में 100 से 150 ग्राम कार्बन डाइआक्साइड का उत्सर्जन होता हैं । इसके विपरीत पेड़ पौधों का रात में कार्बन डाइ आक्साइड का उत्सर्जन देखें तो यह मात्रा काफी कम होती हैं । पेड़ों की श्वसन दर निकालना मुश्किल काम है,
अनुमान है कि 10 टन वजनी एक सामान्य आकार का पेड़ रात भर में करीब 10 ग्राम कार्बन डाइ आक्साइड उत्सर्जित करता होगा । यह मात्रा इतनी कम है कि इससे किसी को भी संकट नहीं हो सकता हैं । अगर रात में पेड़ के नीचे सोना हैं और एक कमरे में 8-10 लोगों के साथ सोना है तो सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि आक्सीजन की उपलब्धता कहां पर कम हो सकती है ।
पेड़ के नीचे सोने मे यदि रात में आक्सीजन का संकट होता तो अनेक पक्षी और अन्य लघुप्राणी तो रात मे पेड़ पर ही रहते हैं, वह कैसे जीवित रह सकते है ? bेकिन कुछ अन्य कारणों से पेड़ के नीचे सोने से खतरे हो सकते हैंजिनमें पेड़ की शाखा का टूट कर गिर जाना, पक्षियों द्वारा गंदगी करना या रात्रि में पक्षी का पेड़ से नीचे गिर जाना जैसे कारण हो सकते हैं लेकिन पेड़ के नीचे सोने पर कार्बन डाइआक्साइड से संकट पैदा होना कोरा भ्रम है, वैज्ञानिक आधार पर इसको सत्य नहीं कहा जा सकता हैं ।
वैज्ञानिकों ने शताब्दियों पहले ही पता लगा लिया था कि मनुष्य समेत सभी प्राणी श्वसन करते हैंउससे प्राá ऊर्जा का अपने कामकाज के लिए उपयोग करते हैं । प्राणियों के समान ही पेड़ पौधे भी श्वसन क्रिया करते हैं, इसमें कार्बन डाइआक्साइड का उपयोग होता है और आक्सीजन का निर्माण होता हैं । यह आंशिक सत्य हैं । मनुष्य जो हवा सांस के लिए अंदर लेते है और जो हवा वापिस बाहर छोड़ते हैं उसकी बनावट में ज्यादा अंतर नहीं होता हैं । श्वसन क्रिया मे कुछ कुछ प्रतिशत ही आक्सीजन का उपयोग होता है ।
जिस वायुमंडल में मनुष्य श्वास लेता है उसमें 78.8 प्रतिशत नाईटोजन 20.95 प्रतिशत आक्सी-जन 0.93 प्रतिशत आर्गन, 0.038 प्रतिशत कार्बनडाइ आक्साइड एवं थोड़ी मात्रा में वाष्प होती है । अब यदि श्वास में छोडी जाने वाली हवा की बनावट देखें तो उसमें 78.8 प्रतिशत नाइटोजन, करीब 16 प्रतिशत आक्सीजन और 0.038 प्रतिशत कार्बन डाइ आक्साईड होती हैं । यानी कुछ प्रतिशत में आक्सीजन का उपयोग हो रहा है । यदि मनुष्य द्वारा आक्सीजन लेकर कार्बन डाइआक्साइड छोड़न की बात सत्य होती तो फिर एक व्यक्ति द्वारा दूसरे को कृत्रिम सांस कैसे दी इस दी जा सकती है ?
अब पेड़ पौधों की बात करें तो पेड़ पौधों में श्वसन के लिए कोई विशेष अंग नहीं होते हैं । पेड़ों मे श्वसन क्रिया पत्तियों में उपस्थित छिद्रों (स्टोमेटा) द्वारा होती है । इस क्रिया में पोधे आक्सीजन का उपयोग करते हुए कार्बन डाइआक्साइड का निर्माण करते हैं । पेड़ पौधे हवा की मदद से एक और क्रिया करते हैं जिसे प्रकाश संश्लेषण कहा जाता है । इसमे कार्बन डाइआक्साइड और पानी की मदद से प्रकाश की उपस्थिति में शर्करा और आक्सीजन का निर्माण करते हैं ।
इसमें खास बात यह है कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया पेड़ पौधों के सिर्फ उन भागों में होती है जहां क्लोरोफिल की उपस्थिति रहती है । प्रकाश संश्लेषण की क्रिया पौधों में सिर्फ पत्तियों तक सीमित है और रात में संभव नहीं है । जबकि श्वसन क्रिया दिन रात चलती रहती हैं । दिन के समय श्वसन में पैदा हुई कार्बन डाइआक्साइड का उपयोग प्रकाश संश्लेषण मे हो जाता है और पौधों से केवb आक्सीजन ही निकलती है । इसके बाद जब रात होती है तो प्रकाश संश्लेषण की क्रिया तो बंद हो गई लेकिन श्वसन चलता रहता है यानि पोधों मे श्वसन के कारण आक्सीजन खर्च हो रही है एवं कार्बन डाइआक्साइड बन रही है । शायद कुछ लोग इसी बात को लेकर चिंतित रहते हैं कि रात मे पेड के नीचे सोना खतरनाक तो नहीं हैं ?
इसके लिए हमे पेड़ पोधो एवं मनुष्य की ऊर्जा की आवश्यकताओं एवं श्वसन के अंतर को समझना पड़ेगा । प्राणियों एवं पेड़ पोधों की गतिविधियों मे बहुत अंतर है । पेड़ पोधे चलते फिरते नहीं हैं इस कारण उनकी ऊर्जा की आवश्यकता प्राणियों की अपेक्षा बहुत कम है । इसलिए उनकी श्वसन दर भी बहुत कम होती है । कार्बन डाइआक्साइड की उत्सर्जन दर देखें तो एक मनुष्य दिन भर में करीब 500 ग्राम कार्बन आक्साइड उत्सर्जित करता है, रात में यह मात्रा काफी कम होती है । रात को मनुष्य सोते हैं इसलिए श्वसन दर कम रहती है । अनुमान है कि एक व्यक्ति द्वारा रात भर में 100 से 150 ग्राम कार्बन डाइआक्साइड का उत्सर्जन होता हैं । इसके विपरीत पेड़ पौधों का रात में कार्बन डाइ आक्साइड का उत्सर्जन देखें तो यह मात्रा काफी कम होती हैं । पेड़ों की श्वसन दर निकालना मुश्किल काम है,
अनुमान है कि 10 टन वजनी एक सामान्य आकार का पेड़ रात भर में करीब 10 ग्राम कार्बन डाइ आक्साइड उत्सर्जित करता होगा । यह मात्रा इतनी कम है कि इससे किसी को भी संकट नहीं हो सकता हैं । अगर रात में पेड़ के नीचे सोना हैं और एक कमरे में 8-10 लोगों के साथ सोना है तो सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि आक्सीजन की उपलब्धता कहां पर कम हो सकती है ।
पेड़ के नीचे सोने मे यदि रात में आक्सीजन का संकट होता तो अनेक पक्षी और अन्य लघुप्राणी तो रात मे पेड़ पर ही रहते हैं, वह कैसे जीवित रह सकते है ? bेकिन कुछ अन्य कारणों से पेड़ के नीचे सोने से खतरे हो सकते हैंजिनमें पेड़ की शाखा का टूट कर गिर जाना, पक्षियों द्वारा गंदगी करना या रात्रि में पक्षी का पेड़ से नीचे गिर जाना जैसे कारण हो सकते हैं लेकिन पेड़ के नीचे सोने पर कार्बन डाइआक्साइड से संकट पैदा होना कोरा भ्रम है, वैज्ञानिक आधार पर इसको सत्य नहीं कहा जा सकता हैं ।
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