बुधवार, 15 जुलाई 2015

 विशेष रिपोर्ट 
पूणे का सर्पोद्यान व प्राणि संग्रहालय 
सीताराम गुप्त 
मुला और मुथा नदियों के किनारे बसा पूणे आज से दो-ढाई सौ वर्ष पूर्व पेशवाओं के समय में शनिवारवाडा और पर्वती कें इलाकों तक ही सीमित था लेकिन आज यह एक महानगर की सूरत इख्त़ियार कर चुका है । 
बड़े-बड़े शहरों की तरह पूणे में भी अनेक नये व पुराने भवन, संग्रहालय व स्मारक तथा अनेक शैक्षिक संस्थान हैं । मराठा शासन के अवशेष अनेक पर्वतीय दुर्ग हैं, पेशवाओं द्वारा निर्मित शनिवारवाडा तथा पर्वती देवदेवेश्वर संस्थान है, प्रसिद्ध आगा़खाँ पैलेस है, राजा दिनकर केलकर संग्रहालय है तथा केसरी वाडा में स्थित नवनिर्मित तिलकसंग्रहालय है, खडकवासला में नेशनल डिफेंस एकेडमी है, अयंगर योग संस्थान है तथा अध्यात्म पथ के जिज्ञासुआें के लिए विश्व प्रसिद्ध ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिजॉर्ट है, सिंहगड में फोर्ट के अवशेष व तानाजी की समाधि है व पानशेत में तानाजी जलाशय और बाँध हैं और सबको आकर्षित करने वाला एक चिड़िया घर भी पूणे में है ।
     पूणे महानगर पालिका द्वारा संचालित ''राजीव गाँधी प्राणी संग्रहालय व वन्यप्राणी संशोधन केन्द्र्र`` नामक यह प्राणिउद्यान पूणे रेलवे स्टेशन से दस-बारह किलोमीटर की दूरी पर है । पूणे से सतारा की ओर जाने वाले मुंबई-बैंगलौर नेशनल हाइवे पर बाएँ हाथ पर स्थित है कात्रज झील । इसी कात्रज झील के किनारे पर यह प्राणिउद्यान निर्मित   है । कहने को तो यह चिड़ियाघर है लेकिन यहाँ पर पशु-पक्षियों की संख्या काफी कम है । यहाँ दस-बारह प्रकार के जंगली जानवर तथा कुछ पक्षी ही देखे जा सकते हैं । 
पक्षियों के नाम पर कुछ भारतीय मोर तथा सफेद मोर हैं । सफेद मोर मूल रूप से बर्मा का निवासी है । जानवरों में बंदर, भालू, तेंदुआ, चीतल, सांभर, कृष्णमृग, नीलगाय तथा चौसिंगा के अतिरिक्त जो महत्वपूर्ण प्राणी है वह है पांढरा वाघ अर्थात् सफेद शेर (व्हाइट  टाइगर) । मरा ठी मेंे पांढरा का अर्थ है सफेद । सफेद शेर एक अत्यंत दुर्लभ प्रजाति है जो सिर्फ दुनिया के विभिन्न प्राणिउद्यानों में ही बसती    है । बहुत पहले रीवाँ के  जंगलों से प्राप्त एक सफेद शेर के बच्च्े से इस प्रजाति को विकसित किया गया है ।
     वस्तुत: कुछ साल पहले तक यहाँ इन प्राणियों का अस्तित्व ही नहीं था । यहाँ कात्रज झील के किनारे पर जो स्थान था वह था स्नेक पार्क अथवा सर्पोद्यान । यहाँ तरह-तरह के साँपों के अलावा कुछ अन्य सरीसृप या रेंगने वाले जंतु ही मौजूद थे लेकिन अभी कुछ साल पहले सारसबाग स्थित पेशवे प्राणी उद्यान के सभी जंतुओं को यहाँ स्थानांतरित कर इसे चिड़ियाघर का रूप दे दिया गया । पूणे महानगर पालिका तथा महाराष्ट्र ऊर्जा विकास अभिकरण द्वारा संयुक्त रूप से स्थापित इस ऊर्जा उद्यान में ऊर्जा के वैकल्पिक स्त्रोतोंयथा जल-ऊर्जा, पवन-ऊर्जा, सौर-ऊर्जा तथा बायोमास द्वारा प्राप्त ऊर्जा के दोहन के विषय में अच्छी जानकारी दी गई है । यहाँ चलने वाली रेलगाड़ी तथा परिसर में लगे स्ट्रीट लैंप सौर-ऊर्जा से ही कार्य करते हैं ।  
     सर्पोद्यान में न केवल विभिन्न प्रजातियों के साँप और दूसरे सरीसृप प्रदर्शित हैं अपितु इन जीवों के विषय में पर्याप्त जानकारी भी यहाँ उपलब्ध कराई गई है । साँप मनुष्य का बहुत अच्छा मित्र है अत: साँप को मारना नहीं चाहिये । साँप मुख्य रूप से चूहों और छिपकलियों जैसे जीवों को अपना आहार बनाते हैं । यदि साँपों की कुछ प्रजातियाँ नष्ट हो जाएं तो चूहों की संख्या इतनी अधिक बढ़ जाए कि जीना दूभर हो जाए । 
     सभी साँप जहरीले नहीं होते । हाँ कुछ साँप ही जहरीले होते हैं । जहरीले साँप का विष ही औषधि है । सर्पविष से न केवल कई जीवनरक्षक दवाओं का निर्माण किया जाता है अपितु साँप के काटे के उपचार के लिए ''एंटी स्नेक वेनम`` भी साँप के विष से ही तैयार किया जाता है । देश में कई स्थानों पर स्नेकपार्क इसीलिए स्थापित किये गए हैं कि उनसे विष प्राप्त कर उपयोगी औषधियों का निर्माण किया जा सके । वहाँ सिर्फ विषैले साँपों को ही पाला जाता है ।
सर्पोद्यान का पहला बाड़ा धामन साँपों का है । एक दूसरे से लिपटे असंख्य साँप यहाँ सूखी टहनियों पर रेंगते रहते हैं । आठ  फूट तक लंबे होने वाले इस साँप को अंग्रेजी में रैट स्नैक (उर्श्रिीलशी र्ाीलिीीर्ी) कहते हैं । यह विष रहित साँप किसानों का सबसे बड़ा मित्र है क्योंकि यह सप्ताह में कम से कम तीन-चार चूहों को अवश्य ही उदरस्थ कर जाता है । साँप चिकनी सतह तथा सीधी दीवारों पर नहीं चल सकता । यहाँ खुले साँपों के बाड़ों में चारों ओर चिकनी ऊँची दीवारें बनाई गई हैं ताकि साँप बाहर न आ सकेंं और दर्शक साँपों को प्राकृतिक परिवेश में देख सकें ।
धामन साँपों के बाड़े के बाद मगरमच्छ, गोह तथा घड़ियालों के कुछ बाड़े हैं । ये सभी सरीसृप छिपकली की जाति के हैं । कुछ छोटे बाड़ों में जालियों के पीछे साँप, कछुवे तथा मगर के छोटे-छोटे बच्च्े रखे गए हैं । इसके बाद एक प्रदर्शनी कक्ष है जिसमें काँच के अलमारीनुमा अपेक्षाकृत छोटे बक्सों में कई प्रकार के साँप प्रदर्शित किये गए हैं । एक साँप है कॉमन वुल्फ स्नेक । दो फूट लंबा यह साँप विष रहित होता है तथा घरों के आसपास रहता है । कच्च्े घरों तथा खेत-खलिहानों में चूहों की तलाश में घुस आने वाला यह साँप खतरनाक नहीं होता । दूसरा साँप एक विषधर है जिसका नाम हैं सॉ स्केल्ड वाइपर (एलहळी उरीळर्रिींीी) । तटीय क्षेत्रों में पाये जाने वाले इस साँप की लंबाई कम होती है । लगभग एक फूट लंबा यह साँप बच्च्े देता है । इन क्षेत्रों में ज्य़ादातर लोग इसी साँप द्वारा काटे जाते हैं । 
     बच्च्े देने वाला एक अन्य साँप है रेड सैण्ड बोआ (एीूु गहिळळि) । तीन फूट लंबा यह सर्प विषैला नहीं होता तथा इसके मुँह और पूँछ का आकार एक जैसा होता है अत: इसे दुमुही भी कहते हैं । एक मान्यता प्रचलित है कि यह साँप छ: महीने एक मुँह की तरफ चलता है तो छ: महीने दूसरे मुँह की तरफ लेकिन ये सच नहीं है। इसका मुँह एक ही होता है और उम्र भर उसी और चलता या रेंगता है । हाँ, एकाध बार ऐसे साँप भी दिखलाई पड़ जाते हैं जिनके दो मुँह पाए जाते हैं लेकिन ये एक ही तरफ होते हैं और ये किसी विकृतिकी वजह से होते हैं, ऐसी कोई प्रजाति नहीं है ।
     सॉ स्केल्ड वाइपर की तरह पिट वाइपर भी अत्यंत विषैला होता है लेकिन इसका रंग हरा होता है । रेड सैण्ड बोआ की तरह कॉमन सैंड बोआ विष रहित होता है और उसी की तरह बच्च्े देता है लेकिन इसकी लंबाई उससे कम होती है जो दो फूट तक होती है। एक अन्य साँप बैंडेड रेसर (आीसूीसिशरि ऋरलळश्रिर्रींीी) । कोबरा की तरह दिखता है लेकिन होता है मात्र तीन फूट का हल्का-सा । यह अण्डे देता है । कॉमन करैत (र्इीसिर्रीीी उरर्शीीश्रर्शीी) एक अत्यंत विषैला सर्प है । स्टील ब्ल्यू रंग के इस साँप पर सफेद धारियाँ हाती हैं । चार फूट लंबा यह साँप अण्डे देता है और रात्रि में अधिक सक्रिय होता है । प्राय: रात्रि में आदमी पर हमला भी कर देता है । पानी के निकट पाये जाने वाले साँप (दशिलिहीिर्हिीी झळीलरींिी) विषैले नहीं होते । ये उथले पानी में पड़े रहते हैं लेकिन मुँह पानी से बाहर निकाले रहते हैं । 
     साँपों के बारे में भ्राँतियाँ बहुत  हैं। एक तो सभी साँप विषैले नहीं  होते । कुछ साँप अण्डे देते हैं तो कुछ बच्च्े । दोनों ही तरह के साँप विषैले या विषहीन हो सकते हैं । कुछ साँप ज़मीन पर रहते हैंतो कुछ पानी में । समुद्रों में भी बड़े-बड़े साँप पाए जाते हैं । साँप के रहने के स्थान से भी उसके विषैले या विषहीन होने का संबंध नहीं है । निष्कर्षत: साँप के  रहने के स्थान और प्रजनन संबंधी विशेषता से उसके विषैले या विषहीन होने का कोई संबंध नहीं । साँप की कुछ प्रजातियाँ, चाहे वे जल में रहें या ज़मीन पर, अण्डे दें या बच्च्े, आबादी से दूर रहें या पास, आकार में छोटी हों या बड़ी, ज़हरीली होती हैंजबकि ज्यादातर विषहीन होती है ।  
     साँप के काटने से कई बार इसलिए मृत्यु हो जाती है कि साँप का भय अधिक होता है चाहे वह विषहीन ही क्यों न हो । साँप के काटने पर रोगी को शीघ्र उपचार प्रदान कर अधिकांश मामलों में रोगी को बचाया जा सकता है ।
'अज्ञेय` अपनी एक कविता में पूछते हैं:
''साँप
तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना भी
तुम्हें नहीं आया
फिर कैसे सीखा डसना
ये विष कहाँ से पाया ?``
संभवत: साँप के मुकाबले आदमी आदमी को अधिक चोट पहुँचा रहा है । पर्यावरण को नष्ट कर पूरी मानव जाति के भविष्य से खिलवाड़ कर रहा है ।
     साँपों के आकार-प्रकार में भी विविधता पाई जाती है । भारत में पाए जाने वाले सबसे छोटे साँप की लंबाई मात्र चार इंच हाती है जिसे ब्लाइंड स्नेक कहा जाता है । दुनिया का सबसे लंबा साँप एक अजगर होता है रेटीक्यूलेटिड पाइथन । ये तीस फूट से भी ज्य़ादा लंबा पाया जाता है। ऐनाकोण्डा से तुलना करके देखिए । फिल्म वाले ऐनाकोण्डा से कुछ कम नहीं लेकिन होता है थोड़ा सुस्त । तभी तो कहते हैं'अजगर करे न चाकरी`। 
अजगर का मुख्य आहार खरगोश तथा हिरन जैसे जानवर होते हैं ।  कभी-कभी यह बड़े जानवरों को सटक जाता है और परेशानी में पड़ जाता है। एक बार एक अजगर ने मगरमच्छ को निगल लिया । मगरमच्छ ने अपनी सख्त चमड़ी और तेज दाँतों से अजगर को भीतर से इतना घायल कर दिया कि  अजगर की मौत हो गई लेकिन बचा मगरमच्छ भी नहीं । अजगर अण्डे देता है । इन सभी प्राणियों को यहाँ के सर्पोद्यान में रखा गया है ।
यहाँ कई प्रकार के कछवे प्रदर्शित हैं । कछवे प्राय: तीन प्रकार के होते हैं : समुद्री कछवे, जमीन पर रहने वाले कछवे तथा ताजा पानी में रहने वाले कछवे । सॉफ्ट शेल्ड टर्टल्स पानी में रहते हैंतथा पर्यावरण की शुद्धि में उनका विशेष योगदान रहता है । जलीय वनस्पतियों के अलावा ये मृतमांस आदि को भी चट कर जाते हैं जिसमें जलीय पर्यावरण साफ बना रहता है । जल में इनकी वही भूमिका होती है जो जमीन पर गिद्धों की । यहाँ पहले एक बाड़े में एक गिद्ध भी था बहुत बूढ़ा सा । अब नहीं है । मराठी के सुप्रसिद्ध नाटककार विजय तेंदुलकर की कृति 'गिधाड़े` याद आ जाती है । 'गिधाड़े` अर्थात् 'गिद्ध`ं।
     यहाँ संग्रहालय या चिड़ियाघर देखने के बाद कई महंवपूर्ण तथ्यों का पता चलता है । एक तो ये कि कोई भी प्राणी चाहे वह हिसंक जंतु हो अथवा विषैला प्राणी मनुष्य का शत्रु नहीं है । साँप हों, कछवे हों अथवा गिद्ध हों सभी मनुष्य के मित्र और पर्यावरण के रक्षक  हैं। मनुष्य का अस्तित्व इन्हीं के अस्तित्व से जुड़ा  है । जीव ही दूसरे जीव का भोजन   है । प्रकृति में जो आहार- शृंखला बनती है वह सभी प्राणियों की संख्या को नियंत्रित करती है तथा प्राणियों और वनस्पित जगत में संतुलन बनाए रखती है । 
आज गिद्धों की घटती संख्या को लेकर पर्यावरणविद् और वैज्ञानिक चिंतित हैं । इस प्रकार के चिड़ियाघर या प्राणिसंग्रहालय हमारा मनोरंजन ही नहीं अपितु ज्ञानवर्धन भी करते हैं तथा साथ ही पर्यावरण के प्रति जागरूक भी करते है । जब भी पूणे आएँ या इस मार्ग से गुजरे कात्रज अवश्य आएँ और इस प्राणि संग्रहालय का अवलोकन अवश्य  करें ।
     यहाँ आकर्षण का एक अन्य केन्द्र है 'झील`। प्राणिसंग्रहालय परिसर के पिछवाड़े में स्थित है कात्रज झील । महाराष्ट्र पर्यटन विकास महामण्डल (एम.टी.डी.सी.) ने यहाँ जलक्रीड़ा केन्द्र स्थापित किया है। यहाँ आप बोटिंग का लुत्फ उठा सकते हैं। जलपान गृह पर नाश्ता भी उपलब्ध रहता हैं । यहाँ स्नेकपार्क है, बोटिंग है, स्नैक्स हैं। स्नेक एंड स्नैक्स । केरल में ओणम के अवसर पर स्नेकबोट रेस आयोजित की जाती हैं। विशेष रूप से अलेप्पी (अलापुषा) में साँप की आकृति की लंबी-लंबी नावें जिनमें कई-कई दर्जन लोग एक साथ बैठकर समुद्र से सटे बैकवाटर्स में नाव दौड़ाते हैं केरल की पहचान बन चुकी हैं । 
     चिड़ियाघर देखने तथा बोटिंग करने के बाद जब आप बाहर निकलते हैं तो यहाँ भी कम चहल-पहल नहीं मिलती । गेट के बाहर दुकानों पर खान-पान की व्यवस्था  है । चाय-कॉफी और सॉफ्टड्रिंक्स के साथ पेश है कांदा-भाजी, पाव वड़ा, मिसल पाव, उसल पाव, भेल तथा पानीपूरी अर्थात् गोलगप्पे । बच्चें के लिए झूले तथा घोड़े की सवारी का भी प्रबंध है । इस प्रकार प्रकृति के साथ-साथ महाराष्ट्रीयन लोक संस्कृति और क्षेत्रीय खान-पान    से भी पर्यटकों का परिचय होता  है । 

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