पर्यावरण परिक्रमा
गंगा सफाई और उद्योगों का कचरा
नरेन्द्र मोदी सरकार की गंगा की अविरल एवं निर्मल धारा सुनिश्चित करने की पहल के समक्ष इस नदी के किनारे स्थित ७६४ उद्योग और उनसे निकलने वाले हानिकारक अवशिष्ट बहुत बड़ी चुनौती है ।
सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत जल संसाधन एवं नदी विकास मंत्रालय के राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण से प्राप्त् जानकारी के अनुसार गंगा नदी के किनारे कुल ७६४ उद्योग स्थत हैं जिनमें ४४४ चमड़ा उद्योग, २७ रासायनिक उद्योग , ६७ चीनी मिले, ३३ शराब उद्योग, २२ खाद्य एवं डेयरी, ६३ कपड़ा एवं रंग उद्योग, ६७ कागज एवं पल्प उद्योग एवं ४१ अन्य उद्योग शामिल हैं ।
विभाग से प्राप्त् जानकारी के अनुसार उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल में गंगा तट पर स्थित इन उद्योगों द्वारा प्रतिदिन ११२.३ करोड़ लीटर जल का उपयोग किया जाता है । इनमें रसायन उद्योग २१ करोड़ लीटर, शराब उद्योग ७.८ करोड़ लीटर, कागज एवं पल्प उद्योग ३०.६ करोड़ लीटर, चीनी उद्योग ३०.४ करोड़ लीटर, चमड़ा उद्योग २.८७ करोड़ लीटर, कपड़ा एवं रंग उद्योग १.४ करोड़ लीटर एवं अन्य उद्योग १६.८ करोड़ लीटर गंगा जल का उपयोग प्रतिदिन कर रहे है ।
विशेषज्ञों का कहना है कि गंगा नदी के तट पर स्थित प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग और गंगा जल के अंधाधुंध दोहन से नदी के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो रहा है । गंगा की सफाई हिमालय क्षेत्र में इसके उद्गम से शुरू करे मंदाकिनी, अलकनंदा, भागीरथी एवं अन्य सहायक नदियों में होनी चाहिए ।
साउथ एशियननेटवर्क ऑन डैम, रिवर एंड पीपुल के संयोजक हिमांशु ठक्कर का कहना है कि उत्तराख्ंाड में बड़े पैमाने पर बनने वाली जलविद्युत परियोजनाएं गंगा की अविरल धारा के मार्ग मेंबड़ी बाधा है । इसके कारण गंगा नदी समाप्त् हो जायेगी क्योंकि नदी पर बांध बनाने की परियोजनाएं इसे उद्गम पर ही अवस्थित है । आरटीआई के तहत प्राप्त् जानकारी के अनुसार, सरकार ने गंगा की सफाई के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तहत कार्य योजना तैयार की है । इसे तहत तीन वर्षोंा की अवधि के लिये अल्पकालिक योजना पांच वर्ष की अवधि के लिये मध्यावधि योजना तथा १० वर्ष या इससे अधिक अवधि के लिये मध्यावधि योजना तथा १० वर्ष या इससे अधिक अवधि के लिये दीर्घावधि योजना शामिल है । मंत्रालय ने बताया कि पहले जिन परियोजनाआें को मंजूरी मिल चुकी है, उन्हें भी इसे कार्य योजना से जोड़ा गया है ।
मंत्रालय से प्राप्त् जानकारी के अनुसार, २०१४-१५ के केन्द्रीय बजट में समन्वित गंगा संरक्षण मिशन नमामि गंगे के लिये २१३७ करोड़ रूपये आवंटित किये गये थे जो अब २०३५ करोड़ रूपये हो गया है । गंगा की सफाई से जुड़ी परियोजनाआें में इसका अध्ययन करना, अनुसंधान एवं शोध आदि गतिविधियां शामिल है । आरटीआई से प्राप्त् जानकारी के अनुसार, राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकार के तहत विदेशी वित्त पोषण के रूप में विश्व बैंक से ७००० करोड़ रूपये मदद को मंजूरी मिली है जिसका उपयोग गंगा नदी में प्रदूषण को समाप्त् करने के लिये विभिन्न योजनाआें के लिए वर्ष २०१९ तक किया जायेगा ।
इस बीच, नमामि गंगे योजना को अमलीजामा पहनाने के तहत सरकार ने प्रतिष्ठित संगठनों एवं एनजीओ को इस कार्य में जोड़ने का निर्णय किया है ताकि त्योहारों के मौसम और सामान्य दिनों में गंगा में फूल, पत्ते, नारियल, प्लास्टिक एवं ऐसे ही अन्य अवशिष्टों को बहाने पर नियंत्रण किया जा सके । मंत्रालय जिन प्रमुख शहरों एवं धार्मिक स्थलों पर गंगा पर ध्यान केन्द्रित करने पर विचार कर रही है उनमें केदारनाथ, बद्रीनाथ, ऋषिकेश, हरिद्वार, गंगोत्री, यमुनोत्री, मथुरा, वृन्दावन, गढ़मुक्तेश्वर, इलाहाबाद, वाराणसी, वैद्यनाथ धाम, गंगासागर शामिल हैं ।
अब रबड़ तथा स्टील से भी बन सकेंगे डैम
अब रबड़ - ईट, सीमेंट, सरिया आदि सामग्री से बांध के बजाए अब इसका निर्माण रबड़ और स्टील से भी हो सकेगा । बांध विशेषज्ञों का दावा है कि रबड़ और स्टील से बनने वाले बांध की लागत में करीब पांच गुना की कमी आएगी और उसकी उम्र भी अपेक्षाकृत अधिक होगी ।
रबड़ और स्टील से बांध बनाने का पहला प्रयोग उ.प्र. में गोमती नदी में प्रस्तावित है । गोमती नदी को निर्मल और स्वच्छ बनाने के लिए प्रस्तावित योजना के तहत करीब चार मीटर ऊँचा डेम बनाया जायेगा इसकी लागत करीब ७० करोड़ रूपये आने का अनुमान है जबकि सामान्य डैम में इस पर ३५६ करोड़ रूपए से अधिक खर्च हो जाता । सिंचाई मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने बताया कि रबड़ और स्टील से बनने वाले डैम की उम्र करीब ४० वर्ष होती है । इसके मरम्मत में भीा आसानी होती है । उन्होंने बताया कि गोमती नदी में इस तरह का पहला डैम जनेश्वर मिश्र पार्क के पास बनाया जाएगा । यह प्रयोग सफल होने पर इसका निर्माण दूसरी नदियों में भी किया जाएगा ।
श्री यादव ने बताया कि इसमें प्रति डैम करीब ढाई सौ करोड़ रूपये से अधिक की बचत होगी । रीवर फ्रंट बनाने के लिए गोमती नदी की संास्कृतिक विरासत से छेड़छाड़ नहीं की जाएगी । उन्होंने बताया कि रीवर फ्रंट योजना के तहत गोमती नदी के दोनों किनारों को खूबसूरत बनाया जाएगा और हरियाली के साथ ही साइकिल ट्रैक का भी निर्माण कराया जाएगा । श्री यादव ने बताया कि आगरा में शुद्ध पेयजल आपूर्ति के लिए यमुना नदी में भी रबड़ और स्टील का डैम बनाने की योजना है । आगरा में यमुना के अपर स्ट्रीम और लोवर स्ट्रीम में इस डैम को बनाने पर अध्ययन किया जा रहा है । यदि सब कुछ सही रहा तो जल्द ही इस विधि से आगरा को शुद्ध पेयजल उपलब्ध हो सकेगा । इस डैम से नदी में पानी रोकने से बरसात में यह पानी ओवरफ्लो होकर नदी में चला जाएगा ।
म.प्र. के कुछ शहरों में पोलिथिन पर रोक
मध्यप्रदेश में धार्मिक और पर्यटन महत्व वाले शहरों में जुलाई से प्लास्टिक कैरीबैग पर प्रतिबंध लगाया है । यदि कोई व्यापारी पॉलीथिन बेचता है तो उस पर कानूनी कार्यवाही की जाएगी ।
इस संबंध में नगरीय विकास एवं पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव मलय श्रीवास्तव ने एक दर्जन जिलों के कलेक्टरों को आदेश जारी किए हैं ।
धार्मिक एवं पर्यटन महत्व के शहरों में उज्जैन, ओरछा, महेश्वर, आेंकारेश्वर, अमरकंटक, मैहर, पचमढ़ी, मांडू, चित्रकूट, मण्डलेश्वर, दतिया व सांची शामिल है । राज्य सरकार द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि पॉलीथीन बैग पर्यावरण के लिए नुकसानदायक है । इसके उपयोग से मानव जीवन के स्वास्थ्य पर भी इसका प्रतिकूल असर होने से कई तरह की बीमारियां होती है । वहींपशु भी पॉलीथिन में रखी सामग्री खा लेते हैं, जिससे उनके जीवन पर संकट बन जाता है । इन सबको ध्यान में रखते हुए इन शहरों में पॉलीथिन को प्रभावी तरीके सेबेचने पर प्रतिबंध लगाएं ।
आदेश में साफ है कि कलेक्टर धारा १४४ का उपयोग कर अवैध तरीके से पॉलीथिन बैग बेचने वालोंपर कार्यवाही करें जिससे इन शहरों में पूरी तरह से पॉलीथिन बैग को प्रतिबंधित किया जा सके ।
धार्मिक एवं पर्यटन महत्व वाले शहरों में पॉलीथिन पर पूरी तरह से रोक लगाए जाने के बाद राज्य सरकार एक जनवरी २०१६ से पूरे प्रदेश में प्रतिबंध लगाया जाएगा । उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नगरीय विकास एवं पर्यावरण विभाग की समीक्षा बैठक में पॉलीथिन बैग के उपयोग पर रोक लगाने के निर्देश दिए थे । इसी के चलते सरकार ने यह पहला आदेश जारी किया है ।
मरीजों को एटीएम से मिलेगी दवाइयां
मध्यप्रदेश में अभी तक एटीएम से सिर्फ पैसा निकलता था, अब दवाइयां भी निकलेगी । टेलीमेडिसिन के जरिए अब दूर-दराज के क्षेत्रों में दवाइयां उपलब्ध कराने केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय व राज्य सरकार मिलकर एटीएम (एनी टाइम मेडिसिन) मशीनें लगाने जा रही है । नजदीकी मेडिकल कॉलेज या बड़े अस्पताल में बैठे विशेषज्ञ डॉक्टर जैसे ही दवा प्रिस्क्राइव करेंगे एटीएम मशीन से वह दवा निकल आएगी । मरीज इन दवाइयों को लेकर डॉक्टर के बताए तरीके से सेवन कर सकेंगे ।
एटीएम से दवाइयों की स्कीम पायलेट प्रोजेक्ट के तौर पर जल्द ही बैतूल के पांच प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में लगाई जाएंगी । इसके बाद पूरे प्रदेश में इन्हें लगाया जाएगा । यह काम नेशनल हेल्थ मिशन के अधीन आने वाले नेशनल हेल्थ सिस्टम रिसोर्स सेंटर द्वारा किया जा रहा है । अगले सप्तह इन मशीनें को स्वास्थ्य संचालनालय मेंे डिमांस्ट्रेशन के बाद इन्हें बैतूल जिले में लगाया जाएगा । एटीएम के संचालन के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों के कम्पाउंडर व एएनएम को प्रशिक्षण दिया जा रहा है ।
एटीएम मेंजरूरी दवाइयां प्री-लोड रहेगी । डॉक्टर मरीज की बीमारी को सुनकर प्रिस्कृप्शन देगा और मशीन को कमांड देगा । इसके बाद जितने दिन की दवाइयां लिखी गई होगी, वह मशीन से बाहर निकल जाएंगी । दवाइयां तुरन्त मिलेगी, जिसके बाद मरीज डॉक्टर से दवाइयां खाने का तरीका पूछ सकेगा । सरकार कई साल से टेलीमेडिसिन सेवा संचालित कर रही है । लेकिन इसमें सबसे बड़ी समस्या दूर बैठे डॉक्टर द्वारा दवाइयों के प्रिस्क्रिप्शन के बाद आती है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें