हमारा भूमण्डल
मछुआरों ने बचाई 'हडसन'
मीनाक्षी अरोड़/पॉल गैले
अमेरिका के सबसे बड़े शहर न्यूयार्क के किनारे बहने वाली ''हडसन नदी'' का पुनरुद्धार उस नदी पर निर्भर मछुआरों ने अपने सतत् संघर्ष से किया ।
आज भारत में गंगा, यमुना, नर्मदा जैसी तमाम नदियां जबरदस्त प्रदूषण का शिकार हैंऔर इस पर निर्भर व इससे लाभान्वित होने वाले समुदाय मौन हैं। जाहिर सी बात है बिना जनभागीदारी के सिर्फ कानूनी लड़ाई से नदी साफ नहीं हो सकती । क्या हम हडसन नदी को इस उपलब्धि से सबक लेंगे ?
डच जहाजी 'डेविड हडसन' लाल-भारतीयों (रेड इंडियन) के देश अमेरिका में जिस नदी के रास्ते घुसे थे, उस नदी का नाम 'हडसन' है। हडसन नदी भारत की गंगा और नर्मदा जैसी बड़ी नदी नहीं है । इसकी लंबाई सिर्फ ५०७ किलोमीटर है और यह एडिरौंडेक पर्वत श्रृंखला से निकलती है और न्यूयार्क सिटी, न्यूजर्सी जैसे कई बड़े शहरों के किनारे होती हुई अटलांटिक सागर में गिरती है । इसकी गहराई और प्रवाह इतना है कि इसमें जहाज चलते हैं। पानी इतना साफ है कि बिना फिल्टर किए सीधे न्यूयार्क वासियों के घरों में हडसन का पानी पहुंचता है ।
ऐसा नहीं है कि यह नदी हमेशा से इतनी शुद्ध रही है । नदी ने काफी बुरे दिन देखे हैं। १९४७-७७ तक के दौर को नदी के सबसे प्रदूषित कालखण्ड के रूप में याद किया जाता है । विभिन्न औद्योगिक कारखानों और 'जनरल इलेक्ट्रिक' के कारखाने से निकला कचरा 'पोलीक्लोराईनेटेड बाईफिनाइल' हडसन के प्रदूषण में सबसे ज्यादा जिम्मेवार था । साथ ही शहरों के सीवेज हालात को और बद से बदतर कर रहे थे । नदी का बढ़ता प्रदूषण जलीय-जीवों के लिए खतरा तो था ही, हडसन की मछलियों को खाने वाले भी बुरी तरह से बीमार हो रहे थे । इन्हीं कारणों से यह सीवर का गंदा नाला समझी जाने लगी थी । प्रदूषण और बदबू से लोेग नदी से दूर रहने लगे और यह लगने लगा था कि हडसन अब महज कहने के लिए एक नदी रह जाएगी ।
लेकिन नदी का यह दर्द हडसन के मछुआरों से देखा नहीं गया । उनका दर्द इस गाने के रूप में सामने आता है, कहां गए हमारे सारे फूल,' जो लड़कियां फूल उठाती थीं, वे कहां गई, वो नौजवान कहां गए, जो फूलोंके आसपास घूमते थे। मछुआरों का दिन-रात का रिश्ता हडसन से था । उन्हें अपने अस्तित्व पर खतरा दिखने लगा । मछुआरे खड़े हुए । यह नदी की ही नहीं उनकी रोजी-रोटी की लड़ाई भी थी, लड़ाई धीरे-धीरे अमेरिका के न्यायालयों से लेकर मैदान तक में हुई । इसी संघर्ष के दौरान एक विश्वप्रसिद्ध गीत 'हम होंगे कामयाब (वी शैल ओवरकम)' की रचना हुई ।
मैदान में लड़ रहे मछुआरों को न्यायालय में बहादुर वकीलों की जरुरत थी, क्योंकि लड़ाई बड़े कॉरपोरेट्स जाइंट 'जनरल इलेक्ट्रिक' जैसी कंपनियों से थी । कंपनियों के पैसे, पैरोकारों के आतंक का जवाब देने के लिए आगे आए अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ' जान एफ कैनेडी' के पोते और वकील जूनियर कैनेडी । हडसन की लड़ाई के लिए मछुआरों और वकीलों की एक समर्पित टीम बनी, जिन्हें हडसन का समाज 'रिवरकीपर (नदी-प्रहरी)' नाम से जानता है । हडसन के जल-जीवों के अधिकार और उन पर आश्रित समाज की ओर से न्यायालय में मुकदमा दायर किया गया । अमेरिकी इतिहास में यह पर्यावरण को लेकर यह पहला कानूनी मुकदमा था ।
अदालत में लोगों ने सरकारी नीतियां खासकर सीवेज नीति के खिलाफ गुहार लगाईर् । हडसन के इस सामुदायिक संघर्ष का देशव्यापी असर पड़ा । सरकार नेशनल इनवायरमेंट पालिसी रिव्यू एक्ट (नीपा) पारित करने पर मजबूर हुई । इसी के साथ सन् १९७२ में क्लीन वाटर एक्ट (सीडब्लूए) पारित हुआ । इस कानून के चलते परमिट के बिना, प्रदूषण करने वाले तत्वों को, चाहे वे ठोस हों या द्रव, नदी में प्रवाहित करना गैरकानूनी करार कर दिया गया । 'रिवर मंे सीवर किसी कीमत पर मंजूर नहीं था । इस फैसले का लब्बो-लुआब यह है किइस फैसले और कानून ने कमाल कर दिया । कानूनी सख्ती के कारण हडसन और उसकी सहायक नदियों में निर्बाध रूप से कचरा डालने पर लगाम लगी । कई प्रदूषक कारखाने बंद हुए । उद्योगों और नगरपालिकाओं को नदी में गंदे पानी का प्रवाह बिल्कुल रोकना पड़ा । यह हडसन के समाज की बड़ी जीत थी ।
गंदा नाला बन चुकी हडसन एक बार फिर चमक उठी और हडसन में दोबारा जान आ गई । मछलियों की संख्या तेजी से बढ़ी । मछुआरों की आजीविका की रक्षा हुई । मछुआरे, केवट और नहाने वाले लोग फिर नदी का आनंद लेने उतर पड़े । लेकिन असली सवाल था इस उपलब्धि को बचाए रखने का । हडसन का समाज 'हाथ-पर-हाथ' रखकर बैठा नहीं रहा, वह चौकस है । नदी ने जो कुछ हासिल किया है वह बचा रहे, इसके लिए लगातार चौकसी जारी है ।
हडसन का समाज जानता है कि शहरी इलाकों से बहने वाला नदी का हिस्सा अभी भी खतरे की जद में है । वजह साफ है कि उन इलाकों में अंधाधुंध विकास हो रहा है । भरोसा नही विकास कब विनाश का रूप ले ले और नदी उसकी जद में आ जाए । यह खतरा ऐसे में और बढ़ जाता है, जब राज्य और संघीय सरकारों के स्तर पर पर्यावरण कानूनों के पालन में लगातार उदासी और निकम्मेपन का भाव बढ़ता जा रहा हो । रिवर-वालंटियर्स अपनी नौकाएं लेकर अभी भी दिन-रात नदी में ही रहते हैं।
वहीं नावों पर ही उन्होंने 'रिवर वाटर क्वालिटी' लैब बना रखे हैं । कहीं से भी लगा कि नदी में कोई प्रदूषण आ रहा है, तो तुरंत उसकी जांच करना और गड़बड़ी पकड़े जाने पर मैदान से माननीय अदालतों तक की कार्यवाही में जुट जाना, उनका रोजमर्रा का काम है । हडसन के रिवर-वालंटियर्स का एक महत्वपूर्ण अभियान है 'फिशेबल रिवर कैंपेन' । इस अभियान के तहत कार्यकर्ता लगे हैं कि जिन मछलियों के लिए हडसन पहचानी जाती है उनकी घटती तादाद को रोक जा सके । अभियान उन तमाम विपरीत परिस्थितियों को ठीक करने में लगा है जो कि मछलियों के खिलाफ हैं जैसे कि उनकी आवासीय स्थितियों का क्षरण, सीवेज का ओवरलो, बिजलीघरों से निकलने वाला प्रदूषण, हमलावर प्रजातियों का बढ़ना, नदी में मछलियों का अंधाधुंध शिकार ।
हडसन के नदी-स्वयंसेवक हर साल एक बड़ा जलसा करते हैं । हजारों की संख्या में हडसन नदी-स्वयंसेवी इकटठा होते हैं। 'क्लीयर वाटर फेस्टिवल' नाम से होने वाले जलसे का मकसद है कि नदी लोगों के ह्दय में जिदा रहे । हडसन के लिए खूब गीत रचे गए हैं। पीट सीगर के गानों एक एलबम है 'क्लीयर वाटर'। इस उत्सव के दौरान लोगों को हडसन की मदद हेतु आगे आने के लिए प्रेरित किया जाता है । पीट सीगर द्वारा शुरु किया गया 'क्लीयर वाटर फेस्टिवल' आज अमेरिका का सबसे बड़ा 'पर्यावरणीय समारोह' बन चुका है। पीट सीगर का ख्वाब था कि 'हडसन और मेरे देश की हर नदी में साफ पानी बहे ।'
जाहिर है हडसन जैसी तमाम नदियांे की बहाली और सुरक्षा के लिये समाज की सक्रियता ही सबसे अहम चीज है ।
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