बुधवार, 15 जुलाई 2015

सामाजिक पर्यावरण
स्वस्थ भारत का सपना
डॉ. एस.एन. सुब्बराव
भारत में मानसिक परेशानियों के बढ़ने के कारण मानसिक विकार भी बढ़ते जा रहे  हैं । आधुनिक उपभोेगवादी संस्कृति की बढ़ती पैठ कहीं न कहीं इस मुसीबत की जड़ में है । यदि हमारे देश की १० प्रतिशत आबादी बीमारी मानसिक तौर पर विचलित है तो यह खतरे की घंटी है । हमें विकास के अपने मॉडल पर पुनर्विचार कर ऐसी जीवनशैली अपनाना होगी जो कि हमें शांति प्रदान कर सके ।
पुराने या नए मित्र जैसे ही मिलते हैंपहला प्रश्न पूछते हैं:- ''स्वास्थ्य कैसा है ?'' वस्तुत: मेरा स्वास्थ्य अच्छा कहने जैसा तो नहींहै परंतु मैं जबाव देता हँू ''भारत माता के स्वास्थ्य से मेरा स्वास्थ्य अच्छा   है ।'' आजकल कड़वी खबरों की भी कमी नहीं है । 
कुछ बैचेन करने वाली खबरें जैसे ११ वर्ष के एक बालक ने मात्र इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि उसकी माँ ने उसे डांट दिया था, सुनाई देती हैं । आज की भाषा में एक शब्द चल निकला है -''ट्रामा'' (ढीर्रीार) । मैं सोचता हॅूं मेरे छुटपन में मेरी माँ ने मुझे न जाने कितनी बार डांटा होगा, शायद कभी चाँटा भी मारा होगा, पर यह ट्रामा क्या बला है हम जानते ही नहीं थे । मैं सिर्फ इतना जानता था कि वेमेरी माँ हैं, मुझे प्यार करती हैं और इस उसी प्यार के चलते उन्होंने मुझे डांटा है ।
आतंकवादी तो दुनियाभर में विध्वंस कर ही रहे हैं । पर अभी थोड़े दिन पहले खबर आई कि जर्मनी का एक विमान चालक इतने तनाव में था कि उसने अपने वरिष्ठ चालक को काकपिट से बाहर करके विमान को दुर्घटनाग्रस्त कर दिया जिससे कि १५० यात्रियों की जान चली गई । ऐसी तमाम खबरंे आ रहीं हैं । इसी के साथ अभी जानकारी मिली है कि १० प्रतिशत भारतीय तनावग्रस्त (डिप्रेस्ड) हैं । इतना ही नहीं तनावग्रस्त समझने के कुछ लक्षण भी बताए गए हैं जैस :-
* वे बात-बात में नाराज होने लगते हैं । 
* किसी बात में रुचि नहीं लेते ।
*पहले जिन बातों से लगाव दिखाते थे वह कम होने लगता है ।
*वह अधिकांशत: आलस से घिरे रहते है ।  
* स्वयं को एवं वस्तुओं को भूल जाते हैं । 
१० प्रतिशत याने करीब १३ करोड़ भारतीय इस बीमारी के  शिकार हो गए हैं । समझना पड़ेगा कि इतने लोग इस बीमारी से क्यों ग्रस्त हैं और अंतत: इस बीमारी का इलाज क्या है ?
वैसे मनोविज्ञान शास्त्र में इसके इलाज का कुछ प्रयास होता   है । इसमें डाक्टर मरीज के साथ खूब वार्तालाप करते हैं और मरीज भी इससे कुछ लाभ होना बताते हैं। पिछले दिनों अमेरिका के एक राज्य मिशिगन के हाईस्कूल शिक्षकों से पूछा गया था कि छात्रों को पढ़ाने में उनके सामने क्या समस्या आती है ? ९० प्रतिशत शिक्षकों ने कहा कि चंूकि घर में बच्चें को माता पिता का प्यार नहीं मिलता इसीलिए बच्च्े शाला में समस्या पैदा करते हैं । 
मैं और आप या आम भारतीय नागरिक और हमारे बच्च्े शायद उन १० प्रतिशत भारतीयों में भले ही नही होंगे जो अशांत या मानसिक रोगी हों, पर कभी कभार हमारा चित्त भी थोड़ा अशांत तो हो ही जाता है । जीवन में निराशा तो होती रहती है । क्या इसका इलाज   है ? हां गोली और सूई तो है ही । लेकिन सदियों से भारत दुनिया को कहता आया है कि मनुष्य सुखी रह सकता है और वह इसलिए कि सुखी रहना हर मनुष्य का स्वभाव है और अधिकार भी है । तो मनुष्य से उसका यह अधिकार कैसेछीना जा सकता  है ? हमारे एक मित्र श्रीकुमार पोद्दार, जो छह महीने अमेरिका रहते हैं, का कहना है कि आज इसीलिए लोग रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) और कैंसर जैसे बीमारियों के शिकार हो रहे हैं क्योंकि कि वे सब जहर खा रहे हैं । श्रीकुमार के हिसाब से जो जैविक खाद्यपदार्थ नहीं हैं वे सब जहर हैं । 
जहां रासायनिक खाद का उपयोग हुआ वहां जहर आ गया । उसके साथ आए प्रदूषण के कारण जहर बुझी वायु हमारे फेफड़े में जा रही है । इन सबके ऊपर हमारे ईद गिर्द सबकुछ कितना कुछ विषयुक्त हो रहा हैं ऐसी खबरों  से अखबार भरे रहते हैं । जब हम ऐसी दुनिया में रहते है तो क्या फिर भी हम हमारे मन को प्रफूल्लित रख सकेगें? भारत के हजारों ऋषि-मुनिजन, साधू संत इसके बावजूद इस विषय पर 'हां' बोलते हैं । पवित्र ग्रंथ गीता बोलती है कि युद्ध लड़ते समय भी मन शांत और क्रोध रहित रह सकता है। भगवान बुद्ध के सामने क्रोधी  अंगुलीमाल उनको मारने की तैयारी से आया तब भी उन्होंने प्यार से उसका स्वागत किया । महात्मा गांधी दिखाते हैं कि चारांे ओर सांप्रदायिक हिंसा, आगजनी के बीच ''सबको सन्मति दे भगवान'' का संदेश मन को शांति दे सकता है । आचार्य विनोबा ने दिखाया कि बंदूकधारी खंूखार माने जाने वाले डाकू-बागियों को भी अपना प्यारा भाई बनाया जा सकता है । 
जब गांधी बेरिस्टर मोहनदास गांधी से, महात्मा नहीं बने थे तब उन्होंने सन् १८९३ में दक्षिण अफ्रीका की अंग्रेजी हुकूमत को चेतावनी दी और लोगों ने पूछा कि पुलिस, सेना, बंदूकधारी हुकूमत का मुकाबला कैसे कर सकेंगे ? तो उन्होंने कहा कि ''मैं अंग्रेजों की शक्ति को पहचानता हँू ।  वे मुझे मारेंगे तो मार सहन कर लूंगा, जेल भी ले जाएं तो खुशी से चला जाऊँगा, जान से मार भी दंे तो मर जाऊँगा । फिर भी मेरी अहिंसक लड़ाई जारी रहेगी क्योंकि मेरे अंदर सत्य और न्याय की एक ऐसी शक्ति है जो बंदूक की शक्ति से कई गुना अधिक बलवान है । 
महात्मा गांधी का मानना था कि वह आध्यात्मिक शक्ति मुझमें, आप में और प्रत्येक मनुष्य में है । एक छोटा बालक एक बड़े हाथी को चलाता है । इसका अर्थ है उस छोटे से बालक में कोई एक बड़ी शक्ति है जो उस बलवान हाथी में नहीं है । आवश्यकता इस बात की है कि हमारे बच्चें को अपने अंदर छिपी शक्ति का पहचान होंं । सभी    धर्म बोलते हैं कि प्रत्येक मनुष्य ईश्वर ही है ।
भारत  में  ऋषियों ने कहा ''अहम बृहास्मि'' मैं साक्षात ब्रह्म   हँू । भगवान बुद्ध ने कहा, ''आप्प दीपो भव'', अपने दीपक स्वयं    बनो ।
ईसा मसीह कहते है, ''ढहश घळसिविा षि हशर्रींशि ळी ुळींहळि ूिीर्'' आपके अंदर ही स्वर्गलोक मौजूद    है । सिख गुरूओं ने कहा, ''मन तू ज्योत पहचान'' यानि पहचानों कि आपके भीतर वह दिव्य ज्योति विद्यमान है । इस्लाम के सूफी संतो ने गाया कि यदि अपने आपको पहचाना तो खुदा को पहचान    लिया । जैन धर्म तो किसी दूसरे भगवान को मानता ही नहीं, उसके अनुसार मनुष्य ही अपने सुविचार, सद्वचन व सदाचार से ईश्वर बनता है । 
हमारे बच्चें को किसी अपने बचपन से यह सबक मिले कि वह कमजोर नहीं, शक्तिशाली हैं,  चरित्रवान हैं और महान व पवित्र हैं ताकि वह एक शक्तिशाली चरित्रवान नागरिक बनें तो वे गलत सोच, गलत बात एवं गलत काम कर ही नहीं पाएंेगे । 

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