स्वास्थ्य
पुत्र जीवक वटी बनाम पुत्रदायी बीज
डॉ. किशोर पंवार
आयुर्वेद को जीने की कला कहा गया है । इसमें मनुष्य, पशु एवं पौधों को बीमारी से मुक्त रखने का ज्ञान है । इस परंपरागत चिकित्सा पद्धति में मानव कल्याण के साथ पशुआें और पेड़-पौधों के स्वास्थ की कामना भी की गई है । पशु आयुर्वेद और ऋषि पाराशर के वृक्षायुर्वेेद ग्रंथ इसके उदाहरण है ।
आयुर्वेद में स्पष्ट लिखा है कि औषधि देने में बड़ी सावधानी बरतनी चाहिए । बिना जाने औषधि का उपयोग करने से और गैर जरूरी औषधि देने से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर होता है । आयुर्वेद में मेडिकल एथिक्स पर बड़ा जोर है, परन्तु वर्तमान में हम इसे भूल चुके हैं । जो दवाइयां जानकार वैद्यों के माध्यम से दी जानी चाहिए, वे अब बाजारों में किराने के सामान की तरह बिक रही है । इन दिनों पूरे देश में ऐसी दुकानों, संस्थाआें, आयुर्वेद आचार्यो की बाढ़ सी आई हुई है । इस स्थिति पर गहरे मंथन की जरूरत है ।
पुत्रंजीवा बूटी पर आगे बढ़ने से पहले जरा चरक संहिता (प्रथम अध्याय) की इन बातों पर गौर कर लें :-
* संसार में प्रत्येक वस्तु औषधीय गुण रखती है ।
* यदि चिकित्सा शास्त्र के नियमों का पालन न किया जाए तो अधिकांश औषधियां स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकती है ।
*बढ़िया औषधि बिना कारण उपयोग की गई हो तो विष समान होती है ।
* और सबसे महत्वपूर्ण बात नीम हकीम से औषधि लेने से बेहतर है पिघला सीसा निगल लेना ।
उपरोक्त संदर्भ में देखें तो वर्तमान में व्यावसायिक गला-काट स्पर्धा के चलते आयुर्वेद के सिद्धांतों की तो खिल्ली उड़ाई ही जा रही है । आयुर्वेद के नाम पर यह सब कुछ बेचा जा रहा है, जो नहींबिकना चाहिए ।
आचार्य बालकृष्ण द्वारा लिखित पुस्तक औषध दर्शन, जो वस्तुत: दिव्य फार्मेसी का केटलॉग है, में पृष्ठ २४ पर दिव्य स्त्री रसायन वटी का वर्णन है । यह पुत्र जीवक व शिवलिंगी के साथ चंदन, शिलाजीत, आंवला, नागकेशर वगैरह २१ औषधि का सम्मिश्रण है । यहां पर कहीं वन्ध्यत्व निवारण का जिक्र नहींहै ।
पृष्ठ ५० पर वन्ध्यत्व (बांझपन) के लिए उपचार दिया गया है -
दिव्य शिवलिंगी बीज - १०० ग्राम
दिव्य पुत्रजीवक गिरी - १०० ग्राम
यहां भी कहीं नहीं लिखा है कि इसके सेवन से पुत्र प्राप्त् होगा । यानी कुल मिलाकर दो महत्वपूर्ण औषधियों की बात है - पहली शिवलिंगी बीज और दूसरी पुत्रजीवक गिरी की ।
चूंकि विवाद पुत्रजीवक बीज को लेकर है, पहले इसकी चर्चा कर लेते हैं । आयुर्वेद का एक प्रमुख ग्रंथ है भावप्रकाश निघंटु । दवा निर्माता अक्सर इसका हवाला देते हैं । भावप्रकाश निघंटु के पृष्ठ क्रं. ५३०-३१ पर पुत्रजीवक पौधे का वर्णन दिया गया है -
पितौजिया अथ: पुत्रजीव: वस्य नामानि गुणांश्चाह ।
इसका वानस्पतिक नाम पुत्रंजीवा राक्सबर्गीहै । इसके गुण हैं स्वादिष्ट, कटु, लवण रस युक्त, वीर्यवर्धक, गर्भदायक, रूक्ष और शीतल । यह कफ और वात नाशक भी है ।
इसके गुण एवं प्रयोग के अन्तर्गत लिखा है - ज्वर एवं प्रतिश्याय में इसके पत्र एवं फलों का क्वाथ पिलाते हैं । शिर-शूल में गुठलियों (बीजों) को घिसकर लगाया जाता है । फोड़ों आदि पर लेप लगाने से वेदना कम होती है ।
यह भी स्पष्ट रूप से लिखा है कि जिनके लड़के पैदा होकर मर जाया करते हैंवे लोग इसकी गुठलियों की माला पहनते हैं । यानी बच्च पैदा होने के बाद, उसकी दीर्घायु के लिए इसके बीजोंका प्रयोग किया जाता है । वह भी गले में माला के रूप में । इसके बीजों का प्रयोग पुत्र प्रािप्त् के लिए किए जाने का उल्लेख भावप्रकाश में नहीं है । अर्थात् इसकी बिक्री में एथिक्स को ताक पर रखकर व्यवसाय का पुट जरूर है । ।
एक बड़ी चर्चित एवं प्रसिद्ध किताब है पेड़ों के बारे में । बॉटनिकल गार्डन कोलकाता के पूर्व अधीक्षक एवं वनस्पति शास्त्री फादर एच. सांतापाऊ लिखित कॉमन ट्रीज । इसे नेशनल बुक ट्रस्ट ने प्रकाशित किया है । इस पुस्तक में इसे पुत्रजीवा राक्सबर्गी वाल लिखा है । इसे लक्की बीन ट्री, मराठी में पुत्रवन्ति, जीव पुत्रक एवं बंगाली में पुत्रजीवा के नाम से पुकारते हैं । फादर सान्तापाऊ के अनुसार इस सुन्दर सदाबाहर पेड़ का वर्णन फ्लोरा इंडिका खंड ३ पृष्ठ ७६७ पर है । इसके नाम का अर्थ है पुत्र यानी लड़का जीवा यानी जीवन । रॉक्सबर्गी विलियम राक्सबर्ग के नाम पर है जो रॉयल कोलकाता वनस्पति उद्यान के प्रथम अधीक्षक थे ।
पुत्रंजीवा पूरे देश मेंसड़क किनारे लगाया जाता है । इसकी छाया घनी, ठंडी एवं सुखद होती है । पूरा पेड़ अपनी चमकदार पंखनुमा पत्तियों के कारण बड़ा सुन्दर दिखाई देता है । भोपाल में सड़कों के किनारे इसे बड़ी मात्रा में लगाया गया है । इसकी कटाई-छंटाई करके बागड़ भी बनाई जाती है ।
हॉर्टीकल्चर का यह एक बड़ा उपयोगी वृक्ष है । इन्दौर के होल्कर कॉलेज के प्रांगण में इसके कइ्र बड़े-बड़े पेड़ है जिन पर कोयल, बुलबुल एवं धनेश ने बसेरा बना रखा है । ये पक्षी इसके फल बड़े मजे से खाते है । पेड़ों के नीचे चमकदार सफेद लगभग गोल बीजों के ढेर पड़े रहते हैं ।
ऐसी मान्यता है कि यह बुरी नजर से बचाता है । विशेषकर बच्चें के संदर्भ में । मद्रास के डॉ. बेरी के अनुसार इसके बीजों की माला बनाकर बच्चें के गले में डाली जाती है । ताकि वे स्वस्थ रहें । यही इसके वानस्पतिक नाम पुत्रंजीवा राक्सबर्गी का आधार है ।
पूरे प्रकरण में बीजों को खाने का कहीं जिक्र नहीं है । बीजों का उपयोग बुरी नजर से बचाने के लिए पुरातन काल से किया जाता रहा है । परन्तु यह टोटका कितना कारगर है और ये बीज कब गले की माला से निकलकर निगले जाने लगे यह शोध का विषय है । पुत्र जीवक बीज यदि वाकई बंध्यत्व एवं शुक्र विकार एवं स्त्री विकारों में लाभदायक है जैसा कि दिव्य फार्मेसी के पैकेट पर लिखा है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए । इस पर शोध किया जाना चाहिए । और यदि दिव्य फार्मेसी द्वारा इस पर कोई शोध किया गया हो तो जनहित में उसका प्रकाशन किया जाना चाहिये ।
दिव्य स्त्री रसायन का दूसरा घटक है शिवलिंग बीज । उसका नाम है ब्रायोनिया लेसिनिओसा । यह कद्दू कुल की एक जंगली बेल है जो पूरे भार में जंगलों में अन्य वनस्पतियों पर लिपटी पाई जाती है । इसमें लाल रंग के छोटे-छोटे खरबूजे जैसे फल आते है जिन पर सफेद रंग की धारियां पड़ी रहती है । फलों के अंदर लसलसे पदार्थ से ढके बहुत सारे बीज पाए जाते हैं । इसका नाम शिवलिंगी इसके बीजों के रचना एवं आकार पर पड़ा है । प्रत्येक बीज बिल्कुल शिवलिंग जैसा है जिसके चारों तरफ जलाधारी जैसी सुन्दर नक्काशीदार रचना पाई जाती है । बीजों को अगर हैंडलेंस से देखा जाए तो कुदरत का करिश्मा ही लगते हैं ।
उल्लेखनीय है कि गंगासहाय पाण्डेय एवं कृष्ण चन्द्र चुनेकर द्वारा रचित भावप्रकाश निघंटु में इसका कोई जिक्र नहींहै । अत: यह कोई महत्व की औषधी नहीं है । कहीं-कहीं इसके बीजों को रोज निगलने का प्रावधान है पुत्र प्रािप्त् के लिए ।
पुत्र प्रािप्त् के लिए इसका प्रयोग लगता है डॉक्ट्रीन ऑफ सिग्नेचर (समरूपता का सिद्धांत) से प्रभावित है । सिद्धांत यह कहता है कि कुदरत ने उस चीज पर उस अंग की छाप बना दी है जो उस विशेष अंग के उपचार में काम आती है । जैसे आंखों के उपचार में आंखों जैसी बादाम की गिरी, दिमाग के लिए दिमाग जैसा अखरोट और पूरे शरीर के उपचार के लिए मानवाकृति जिनसेंग की जड़े । यह सिद्धांत संयोगवश कहीं-कहीं काम करता भी नजर आता है ।
जैसे हाल ही में इंटरनेशनल जनरल ऑफ इम्पोटेन्स रिसर्च में सागर विश्वविघालय के औषधि विभाग के डॉ. एन.एस. चौहान एवं वी.के. दीक्षित ने बताया है कि शिवलिंगी के बीजों का सत्व नर चूहों को देने पर उनके वूषण का वजन, शुक्राणु संख्या एवं टेस्टोस्टेरॉन का स्तर बढ़ा । उल्लेखनीय है कि यह आर्युर्वेदिक दवा स्त्री रतिवल्लभ पाक का एक घटक है । मगर जब शिवलिंगी से टेस्टोस्टेरॉन एवं शुक्राणुआेंमें वृद्धि होती है तो फिर स्त्रियों को क्यों दिया जाता है । कहीं यह टोटका तो नहीं है ?
कुल मिलाकर पुत्रजीवक बीज एवं इससे उपजे विवाद से शोध का बढ़ावा मिले तो यह एक शुभ संकेत होगा ।
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