मंगलवार, 15 सितंबर 2015

ज्ञान-विज्ञान
सामान्य बनाम सीज़ेरियन प्रसूति 
आधुनिक चिकित्सा में उपचार का निर्णय मरीज द्वारा करना एक मान्य बात है, लेकिन निर्णय के लिए जरूरी जानकारी भी तो होना चाहिए । सवाल है कि जब बाकी मामलों में निर्णय मरीज के हाथों में होता है तो इस सिद्धांत को प्रसूति के समय लागू क्यों नहीं किया जाता ? 
यह चिंता व्यक्त की गई की कई देशों में सीजेरियन ऑपरेशन (सी-सेक्शन) से होने वाली प्रसूतियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है । पश्चिमी देशों में ही नहीं, चीन और ब्राजील में आधी से ज्यादा प्रसूतियों इसी रास्ते पर हैं । यूके में कथित रूप से महिलाआें को सी-सेक्शन चुनने की अनुमति है, यहां तक कि जब कोई इसके लिए जरूरी एक भी चिकित्सीय कारण न हो । 
   हाल ही में रॉयल कॉलेज ऑफ आब्सटेट्रिशियन एंड गायनेकोलॉजिस्ट (आरसीओजी) ने सलाह पक निकाला है  सी-सेक्शन का चुनाव  । कुछ लोगों का कहना है कि यह सी-सेक्शन के खिलाफ   है । जैसे टाइन हॉस्पिटल के प्रसूति विज्ञानी पॉल आयुक का कहना है कि यह पत्रक एक-तरफा है । उक्त पत्रक में ज्यादा जानकारी सी-सेक्शन के जोखिमों और सामान्य प्रसूति के लाभों के बारे में  दी गई है । जो महिलाएं यह तय करना चाहती हैं कि वे कौन-सा विकल्प चुनें तो उन्हें दोनों के बारे में पूरी जानकारी दी जानी चाहिए । 
दूसरी ओर, आरसीओजी के चिकित्सकीय गुणवत्ता उपाध्यक्ष एलन केमेरॉन को ऐसा नहींलगता । उनका कहना है कि इसमें सामान्य प्रसूति सम्बंधी जोखिमों की चर्चा भी शामिल है हालांकि सी-सेक्शन के जोखिमों के बराबर नहीं । 
गौरलतब है कि सामन्य प्रसव में भी मां और बच्च्े को जोखिम हो सकता है । कभी-कभी प्रसूति में गंभीर गड़बड़ियों के चलते बच्च्े को दिमागी क्षति हो जाती है । एक परेशानी यह है कि सामान्य प्रसूति के बाद बढ़ती उम्र में मां को मूत्र असंयम की परेशानी का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि बच्च्े को जन्म देते समय कूल्हे की मांस-पेशियों, तंत्रिकाआें और लिगामेंट्स की क्षति होती है । एक स्वीडिश अध्ययन में पता चला कि सामान्य प्रसव के २० वर्ष बाद ४० प्रतिशत महिलाआें को मूत्र असंयम की परेशानी हुई जबकि सी-सेक्शन के बाद मात्र २९ प्रतिशत महिलाआें को। 
अन्य ऑपरेशनों के समान सी-सेक्शन चुनने वाली महिलाआें को उसके जोखिमों की जानकारी दी जानी चाहिए मगर आयुक का मानना है कि सामान्य प्रसव के बारे में भी ऐसी जानकारी देना जरूरी है मगर ऐसा होता नहीं है क्योंकि सामान्य प्रसूति को प्राकृतिक माना जाता है । 
अब यूके कोर्ट का एक फैसला इस सोच को चुनौती दे रहा है । नाडिन मॉन्टगोमरी ने एक अस्पताल पर १६ साल बाद मुकदमा दायर किया कि सामान्य प्रसूति के दौरान उनके बेटे को गंभीर रूप से दिमागी-क्षति हुई थी । कोर्ट ने फैसला दिया है कि डॉक्टरों को मॉन्टगोमरी को सामान्य प्रसूति के जोखिमोंके बारे मेंबताना चाहिए था । डॉक्टर का जवाब था कि मॉन्टगोमरी को यह जानकारी नहीं दी क्योंकि आम तौर पर यह जानकारी मिलने पर महिला सी-सेक्शन चुनती हैं और वह महिला के लिए खतरनाक हो सकता है । 
वैसे मॉन्टगोमरी का मामला विशेष है - उसमें सामान्य प्रसूति के दो जोखिम मौजूद थे - उसका कद कम था, यानी उसके कूल्हे सामान्य से छोटे रहे होंगे और उसे डायबिटीज भी थी मगर कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला जोखिम-मुक्त महिलाआें पर भी लागू होता    है । केमेरॉन का मानना है कि अब सामान्य प्रसूति से सम्बंधित जोखिमों के बारे में भी महिलाआें को बताना जरूरी हो जाएगा । 
स्मार्ट सिटी के संभावित खतरे 
आजकल भारत और दुनिया भर में स्मार्ट सिटी की बातें चल रही हैं । दुनिया भर के शहर ऐसी टेक्नॉलॉजी अपनाने पर आमादा हैं जिनकी मदद से सेवाआें को स्व-चालित बनाया जा सकें । जैसे ट्रॉफिक कंट्रोल या सड़क पर रोशनी की व्यवस्था । इस संदर्भ में यह सवाल उठने लगा है कि ऐसे शहरों पर सायबर हमले से बचने के क्या इन्तजाम किए जा रहे हैं । 
ये सवाल सुरक्षा सम्बंधी शोधकर्ता उठा रहे हैं जिन्होंने कंप्यूटर चालित व्यवस्थाआेंमें सेंध लगाने की कोशिश की है ताकि इनकी सुरक्षा को जांचा जा सके । इनमें एटीएम से लेकर पॉवर ग्रिड तक शामिल हैं । 
ऐसे ही शोधकर्ता हैं सिएटल की सुरक्षा सलाहकार कंपनी आईओ एक्टिव लैबस के सेसार सेरूडो । जब उन्होंने देखा कि हैकर्स ने कितनी आसानी से एक शहर के ट्राफिक लाइट्स को अपनी मर्जी से संचालित करने में सफलता पा ली हैं, तो उनके कानखड़े हो गए । जांच करने पर पता चला कि इन उपकरणों में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि यह पता चल सके कि जो आदेश आ रहा है । यानी इनमें कोई भी व्यक्ति आंकड़े डालकर इन्हें अपने मनमाफिक ढंग से चला सकता है । 
सेरूडो इतने चौंक गए कि उन्होंने सीक्योरिंग स्मार्ट सिटी पहल का गठन किया । उन्होंने पाया कि नगरीय अधिकारी किसी टेक्नॉलॉजी का आकलन करते वक्त मात्र यह देखते हैं कि क्या-क्या काम कर सकती है, वे यह नहीं देख्ते कि वह कितनी सुरक्षित है । 
उनका ख्याल है कि हैकर कई स्तरों पर हमला कर सकते हैं । वे अधिकारियों के ईमेल अकाउंट्स से लेकर सड़क पर अंडरग्राउंड कैबल्स तक में घुसपैठ कर सकते हैं । उदाहरण के लिए यदि हैकर्स किसी शहर की बिजली सप्लाई पर नियंत्रण स्थापित कर लेते हैं, तो हाल बुरे हो सकते हैं । जैसे अगस्त २०१३ में उत्तर-पूर्वी यूएस में बिजली गुल हो गई थी । हालांकि वह घटना किसी बदनीयती से नहीं की गई थी मगर सच्चई यह है कि वह घटना सॉफ्टवेयर में एक वायरस की वजह से हुई थी । इसका अर्थ है कि हैकर्स किसी वायरस के जरिए ऐसी घटना को अंजाम दे सकते हैं । पानी सप्लाई को भी निशाना बनाया जा सकता   है । उदाहरण के लिए, पिछले वर्ष देखा गया था कि हैकर्स का एक समूह अमरीका के एक शहर में पानी सप्लाई तंत्र में घुसपैठ करने की कोशिश कर रहा था । कहने का मतलब यह है कि कुछ लोग इन कमजोरियों का फायदा उठाने से नहीं चूकेंगे । लिहाजा स्मार्ट शहरों के नारे के साथ-साथ स्मार्ट शहरों को सुरक्षित बनाने पर भी विचार होना जरूरी है ।

क्या सपनों में आखें चीजों को देखती है ?
आप चुपचाप, बगैर हिले-डुले सो रहे है मगर आपकी आंखें लगातार हरकत कर रही है । ऐसी नींद को त्वरित नेत्र गति यानी रैपिड आई मूवमेंट (आरईएम) की अवस्था कहते है । ऐसी ही नींद के दौरान आप सबसे साफ सपने देखते हैं । मगर वैज्ञानिकों के सामने सवाल यह था कि क्या हमारी गतिशील आंखें वास्तव में उन चीजों को देखती हैं ?
आरईएम नींद का पता सबसे पहले १९५० के दशक में चला था । तब यह विचार बना था कि ऐसी हरकत करते हुए हमारी आंखे किसी काल्पनिक नजारे को स्कैन करती    है । इस्त्राइल के तेल अवीव विश्वविघालय के युवाल निर का मत है कि यह विचार मूलत: सहजबोध पर टिका था, इसका कोई प्रमाण नहींथा । जो भी प्रमाण थे वे सुनी-सुनाई बातों पर आधारित थे । जैसे यदि नींद में किसी व्यक्ति की आंखें दाएं-बाएं डोल रही थी और उसे जगाया गया तो उसने बताया कि वह टेनिस के खेल का सपना देख रहा था । 
    सपने मेंआंखों द्वारा वास्तव में चीजें देखे जाने के कुछ प्रमाण उन लोगों के अवलोकन से मिले थे जो सपना देखते समय शारीरिक हरकतें भी करते हैं । यह देखा गया कि ८० प्रतिशत बार उनकी आंखों की गति और शारीरिक गतियों में तालमेल होता है । मगर ऐसे लोग बहुत कम होते हैं । प्राय: सपने देखते हुए लोगों का शरीर एकदम निश्चल रहता है । 

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