सामाजिक पर्यावरण
गैर सरकारी संगठनों की विश्वसनीयता
राजकुमार कुम्भज
भाजपा नीत सरकार के केन्द्र में सत्तारूढ़ होने के बाद गैर सरकारी संगठनों को ''लाइन'' पर लाने का कार्य जोरो शोरों से जारी है । असहमति की आवाज से घबराने की यह परंपरा यू.पी.ए. शासनकाल मंे ही प्रारंभ हो चुकी थी । एनडीए शासन ने इसे नई ऊँचाई प्रदान की है ।
केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने कुछ समय पूर्व जांच पड़ताल के बाद ४४७० गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) के लायसेंस रद्द कर दिए । इसी बरस सरकार ने १३४७० एन. जी. ओ. के लाईसेंस रद्द किए थे । इनमें कई संगठन शामिल हैं जो देश के नामी शिक्षण संस्थाओं और चिकित्सा संस्थानों के संचालन से ताल्लुक रखते हैं । इस सभी के लायसेंस इस आधार पर रद्द किए गए हैंकि इन्होंने विदेशी सहायता नियमन कानून (एफ.सी.आर.ए.) का उल्लंघन किया था ।
गृह मंत्रालय द्वारा इन एन.जी.ओ. को नोटिस का जवाब देने के लिए पर्याप्त समय भी दिया गया था । किन्तु इनमें से ज्यादातर ऐसे रहे जो अपना सालाना रिटर्न ही दाखिल नहीं कर पाए और जिन्होने अपना रिटर्न दाखिल किया उनमें से कई ने आधे अधूरे रिटर्न ही दाखिल करे ।
गृह मंत्रालय ने अपनी जांच में इन संस्थाओं के खिलाफ कई अनियमितताएं पाई थीं जिनका सही-सही निराकरण संस्थाएं नहीं कर पाई । गौरतलब है कि केन्द्र सरकार इससे पहले भी ग्रीन पीस सहित कई नामीगिरामी संगठनों के खिलाफ लायसेंस रद्द करने की कारवाई कर चुकी है । हालांकि इन संस्थाओं का सरकार विरुद्ध विरोध जारी है और मामला आदालत में विचाराधीन है । लायसेंस रद्द हो जाने की वजह से अब येे संगठन विदेशी चंदा नहीं ले सकेंगे । इस अवधारणा से असहमति नहीं है कि गैर सरकारी संगठनों को आज लोकतंत्र का पांचवाँ स्तंभ माना जाता हैं । इसमें भी दो मत नहीं हैं कि कार्पोरेट दुनिया में इन संगठनों की मांग में तेजी से इजाफा हुआ है ।
इसके बावजूद अभी भी ऐसे संगठनों की संख्या कम नहीं है जोे पूरी ईमानदारी, लगन, सेवाभाव, समर्पण और मानवीय प्रतिबद्धता से अपने काम को अंजाम दे रहे हैं । ये संगठन वंचित तबकों को उनके हिस्से का न्याय, अधिकार और लोकतंत्र दिलाने की लड़ाई भी सच्च्े आशय से लड़ रहे हैं लेकिन ऐसे एन.जी.ओ. की आड़ में कुछ ऐसे भी पल बढ़ रहे हैंजिनकी गतिविधियां संदिग्ध प्रतीत होती है ।
कुछ ऐसे ही संदिग्ध एन.जी.ओ. के लिए तथाकथित सामाजिक गतिवधियों का संचालन करना एक लाभकारी उद्योग बन गया है। ये धंधेबाज लोेग एक से अधिक संस्थाओं का अलग-अलग नामों से पंजीकरण करवा लेते हैंऔर देश-विदेश से भारी चंदा उगाही करने में सक्रिय हो जाते हैं । कुछ निपुण दलाल लोगों ने इस परोपकार में अपने हिस्से का भी परोपकार ढूंढ लेने का जुगाड़ कर लिया है । ये लोग अपना कमीशन लेकर किसी भी व्यक्ति के लिए अलग-अलग नामों से कई-कई संस्थाओं का पंजीकरण कराने से लेकर अनुदान दिलाने, कागजों में खर्च दिखाने और फिर तमाम रकम आपस में खुशी-खुशी बांट लेने तक का हुनर बखूबी जानते हैं ।
यही वजह है कि आज एक ही व्यक्ति की जेब में ऐसे कई-कई एन.जी.ओ. रखे हुए हैं और इनके कर्ताधर्ताओं के पास अकूत धन संपदा एकत्रित हो रही है। इस अपार घपलेबाजी के तमाम उदाहरण उपलब्ध हैं। वैसे इसका प्रारंभ उदारीकरण के प्रारंभ से माना जा सकता है । इन तमाम घपलेबाजियों को जानने समझाने की ना तो किसी को फूरसत है और न ही चिंता कि इस सबसे आखिर किस असल सरोकार को सिरे से ध्वस्त किया जा रहा है ?
इस बात से भी किसी को कोई मतलब नहीं है कि वंचितों के असल अधिकारों को कौन किस तरीके से लूटने में लगा है ? देश-विदेश से धन एेंठने में ये एन.जी.ओ. कितनी बेईमानी, कितने झूठ और कितनी मतलब परस्ती से काम लेते है ? ये जानते हैं कि उनके द्वारा एकत्रित किए गए धन का हिसाब-किताब पूछने वाला कोई नहीं है ? इसलिए ये लोग खर्चों का झूठा-हिसाब किताब सिर्फ कागजों पर तैयार करके सारा धन खुद हड़प कर जाते हैं ।
संभव है कि इन संदिग्ध एन.जी.ओ. के लायसेंस रद्द करने की इस सरकारी कार्यवाई का खामियाजा उन असंदिग्ध एन.जी.ओ. को भी भुगतना पड़ सकता है जो अपने कर्तव्यों का निर्वहन संपूर्ण संकल्प, ईमानदारी और प्रतिबद्धता से करते रहे हैं । बहुत संभव है कि समर्पित एन.जी.ओ. के पारदर्शी क्रियाकलापों में सरकार की इस कारवाई से कुछ बाधाएं भी पैदा हांे । सूचना, शिक्षा, भोजन और रोजगार का अधिकार ऐसे ही समर्पित गैर सरकारी संगठनों की गंभीर लड़ाई का नतीजा हैं । इन्हें पाने की खातिर कुछ लोगों का अपनी जान तक से हाथ धोना पड़ा है । इसलिए जरूरी हो जाता है कि विश्वसनीयता पारदर्शिता और प्रतिबद्धता के सम्मान के रक्षार्थ फर्जी एन.जी.ओ. को सिरे से न सिर्फ प्रतिबंधित किया जाए बल्कि उनके विरुद्ध सख्त से सख्त वैधानिक कारवाई भी की जाए ।
अभी हाल-फिलहाल में जिन एन.जी.ओ. के लायसेंस रद्द किए गए हैं उनमें महाराष्ट्र के सबसे ज्यादा ९६४ हैं । इसी तरह उत्तरप्रदेश के ७४०, कर्नाटक के ६१४ और तमिलनाडु के ८८ एन.जी.ओ. के लायसेंस केन्द्र सरकार के गृहमंत्रालय से रद्द हो जाने के बाद ये संगठन अब विदेशी चंदा नहीं ले सकेंगे । तमाम आरोप प्रत्यारोपों के मध्य यह बात आम जनता तक पहुंचनी चाहिए कि गैर सरकारी संगठन अंतत: किसके हित में कार्य कर रहे हैं ।
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