लघु कथा
उम्मीद की जीत
सुश्री प्रज्ञा गौतम
विद्यालय में समाजोपयोगी उत्पादककार्य (एस यू पी डब्ल्यू) शिविर चल रहा था । विद्यालय इंचार्ज श्री शंकर लाल जी विद्यालय- परिसर के बीचों -बीच खड़े अपनी रोबीली आवाज में छात्रों को दिशा निर्देश दे रहे थे आज सफाई का दिन था । छात्र, परिसर से कागज और टहनियाँ चुन रहे थे सभी अध्यापक अपने -अपने छात्र समूहों के साथ खड़े होकर मुस्तैदी से कार्य करवा रहे थें ।
शंकरलाल जी इसी क्षेत्र के स्थानीय निवासी थे और विद्यालय पर उनका प्रभुत्व था । चलो, आज इन पेड़ों की छंटाई भी कर देते हैं, बहुत फैल गए हैं ये पेड़े उन्होंने कहा तो छात्र भण्डार से कुल्हाड़ियाँ ले आये और वृक्षों पर चढ़ गयें कुल मिलाकर विद्यालय के उदासीन वातावरण में नवीन ऊर्जा का संचार हो गया था बिना नख- दंत के वृद्ध सिंह की तरह, मुखखमंडल पर स्थायी असहायता का भाव लिए अपने कक्ष में बैठे रहने वाले हमारे प्रधानाचार्य जी भी बाहर निकल आये और विद्यालय की दीवारों पर पड़े, हाल ही में हुई पुताई के छींटों को सा? करवाने में जुट गये ।
मैं भी छात्रों के साथ प्रयोगशाला की सफाई करने चली गयी कुछ समय पश्चात जब मैं प्रयोगशाला से निकल कर बाहर आई तो वहां का दृश्य देखकर दंग रह गयीें एक लड़का, विद्यालय के बरामदे से सटे एक तरुण वृक्ष के तने पर अपनी कुल्हाड़ी से प्रहार कर रहा थों मेरे पैर स्वत: ही उस दिशा में दौड़ गये, अरे, यह क्या कर रहा है त ू? इस पेड़ को क्यों काट रहा है ? लड़के के हाथ रुक गयें । अरे काट, काट क्यों रूक गया शंकर लाल जी अपनी दबंग आवाज में बोलेें लड़के ने मेरी तरफ देखा तो उन्होंने उसके हाथ से कुल्हाड़ी छीन ली और स्वयं पूरी शक्ति से उसके तने पर प्रहार करने लगेें ।
मैडम, पेड़ के आगे से हटो, नहीं तो यह आप पर गिरेगों मैं नहीं हटी तो भी उनके प्रहार जारी रहेंमैं बदहवास सी परिसर में खड़े अन्य सभी अध्यापकों के पास गयी । देखिये यह बिलकुल हरा पेड़ है, इसको कटने से रोकियें, सभी लोग बिना एक शब्द बोले निर्लिप्त् भाव से अपने कार्य में लगे रहे मुझे कुछ नहीं सूझा तो मैंने एक पर्यावरण प्रेमी पत्रकार महोदय को सूचना दे दी । एक घंटे के भीतर क्षेत्र के के तहसीलदार महोदय की गाड़ी विद्यालय में आ गयी । शंकर लाल जी, प्रधानाचार्य जी और अन्य अध्यापक उनका स्वागत करने बढ़े । क्या बात है भाई, कौन सा पेड़ काट दिया ? हमें सूचना मिली है...
हे हे, देखिये यह पेड़ हैं विद्यालय की दीवार को क्षति पहुंचा रहा था तो हमने काट दिया । वैसे भी यह सूखने ही वाला था । चापलूसी हंसी के साथ शंकर लाल जी बोलेें ।
किसने दी पेड़ के काटने की सूचना ? तहसीलदार महोदय बोले । जी, मैंने । मैं धीमी आवाज में बोली यह जंगली पेड़ शिरीष हैं आपकोपता है इसको काटने के लिए अनुमति की आवश्यकता नहीं होती । वे मुझे घूर कर बोलेें जी, मैं इतना जानती हूँ कि किसी भी हरे पेड़ को काटना अपराध हैं, मैं विनम्रता से बोलीें । आपको ज्यादा पता है या मुझे ? वे दहाड़ेें, हम तो एक जरूरी मीटिंग में थें ऊपर से फोन आया तो हमें कार्यवाही करने आना पड़ा । वे बोले जब्त कर लो पेड़ को ।
वे साथ आये कर्मचारी की तरफ मुखातिब हुएें परिसर में कुर्सिया लग गयी । चाय -नाश्ता आ गया । अब देखिये हम भी क्या करें, ऊपर से फोन आ गया तो आना ही पड़ा । लिखवाइए क्या लिखवाना है... हे हे लिखिए, पेड़ की टहनियाँ टूट -टूट कर गिरती थीं, बच्चें को नुकसान पहॅुंच सकता था । पेड़ में बीमारी लग गयी थी । ......
अब देखिये सर,यहग्राउंड में नीम का पेड़ । परेड वाले दिन बहुत बुरा लगता है जब बीच में आता है । उस दिन एडीएम् साहब से कहा था मैंने, तो बोले- कटवाने की अनुमति तो नहीं दे सकते । धीरे -धीरे काटकर खत्म कर देना हे हेहे ।
नहीं, नहीं नीम का पेड़ मत काटनों यदि ऊपर से कार्यवाही हुई तो हम भी कुछ नहीं कर पाएंगेें इस पेड़ की क्षतिपूर्ति के लिए भी आठ- दस नए पेड़ लगवा देना । जी, बिलकुल सर । गाड़ी लौट गयी । विद्यालय का स्टाफ मुझ से कट गया । विद्यालय परिवार के एक सदस्य के साथ मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था । मुझ से गंभीर अपराध हुआ था ।
एक सप्तह में मुझे व्यवस्थार्थ बालिका विद्यालय में भेज दिया गया । जाते -जाते मैंने देखा कि परिसर के बीच में खड़ा वह नीम का कद्दावर वृक्ष अपनी शाखाएं फैलाये मुझे दुलार रहा था । शिरीष का पेड़ नहीं बच सका पर उम्मीद है कि नीम बच जायेगा । और यही मेरी जीत थी ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें