प्रसंगवश
देश में २०२० तक ५२ लाख टन होगा ई-कचरा
डिजिटल क्रांति और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र मेंलगातार हो रहे बदलाव के कारण वर्ष २०२० तक देश मेंई-कचरा का उत्पादन बढ़कर ५२ लाख टन तक हो सकता है । वर्ष २०१६ में देश का कुल ई-कचरा २० लाख टन था ।
उद्योग संगठन एसोचैम और ईवाई के संयुक्त अध्ययन के मुताबिक, सामाजिक और आर्थिक विकास, डिजिटल बदलाव, तेजी से उन्नत होती प्रौद्योगिकी और विकसित देशोंद्वारा विकासशील देशों तथा अविकसित देशों में इलेक्ट्रिकल तथा इलेक्ट्रॉनिक कचरा डाले जाने के कारण देश में ई-कचरा बड़ी तेजी से बढ़ रहा है ।
सबसे अधिक ई-कचरा उत्पादित करने वाले दुनिया के पांच देशों में भारत भी शामिल है । अन्य चार देश चीन, अमेरिका, जापान और जर्मनी हैं । देश में सबसे अधिक ई-कचरा महाराष्ट्र में उत्पादित होता है । देश में उत्पादित कुल ई-कचरा में महाराष्ट्र का योगदान १९.८ प्रतिशत हैं, लेकिन यह हर साल मात्र ४७,८१० टन ई-कचरे की रिसाइकलिंग करता है । तमिलनाडु का योगदान १३ प्रतिशत है और यह ५३,४२७ टन की रिसाइकलिंग करता है ।
ई-कचरा सभी प्रकार के इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रिॉनिक उपकरणों से उत्पादित होता है, जैसे टीवी, कम्प्युटर, लेपटॉप, टेबलेट, मोबाइल फोन, टेलीकम्युनिकेशन उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक मशीन आदि । घातक रसायनों और धातुआें जैस पारा, कैडमियम, क्रोमियम, शीशा, पीवीसी, ब्रोमिनेटेड फ्लेम, रिटार्डेटस बेरिलियम, एंटीमोनी और थैलेट्स आदि की उपस्थिति के कारण ई-कचरा हानिकारक होता है ।
इसके अलावा कुल ई-कचरे मेंउत्तरप्रदेश का योगदान १०.१ प्रतिशत का है और यह करीब ८६,१३० टन कचरे की रिसाइकलिंग करता है । पश्चिम बगाल का योगदान ९.८ प्रतिशत, दिल्ली का का ९.५ प्रतिशत, कर्नाटक का ८.९ प्रतिशत, गुजरात का ८.८ प्रतिशत तथा मध्यप्रदेश का ७.६ प्रतिशत है । रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर मेंवर्ष २०१६ में ४.४७ करोड़ टन ई-कचरा उत्पादित हुआ और इसके हर साल ३.१५ प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है । ई-कचरा जितनी तेजी से बढ़ रहा है, उसके मुताबिक वर्ष २०२१ तक यह ५.२२ करोड़ टन हो जाएगा ।
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