प्रदेश चर्चा
म.प्र. : आर्थिक संभावनाआें के द्वार खोलती गौशाला
के.जी. व्यास
पिछले दिनों मध्यप्रदेश की नयी सरकार ने हर पंचायत में गोशाला खोलने का प्रशासनिक निर्णय लिया है। इस निर्णय के कारण प्रदेश में २२,८२४ गोशालायें खुलेंगी।
प्रदेश का हर गांव इसके फायदों के दायरे में आयेगा। लगता है नई सरकार का यह कदम कुछ नई संभावनाओं का द्वार भी खोल सकता है। आवश्यकता सही 'रोड-मैप` बनाने और उस पर अमल करने की होगी ।
गोशाला खोलने का काम पंचायतों को करना है। जाहिर है पंचायतें इस काम के लिए अतिरिक्त बजट चाहेंगी । गायों की देखभाल के लिए अमला चाहेंगी। गायों के इलाज के लिए पशु चिकित्सक और दवाओं के लिए धन की मांग करेंगी । यह सामान्य मांगें हैं, मिलना भी चाहिए, लेकिन क्या यह कदम कुछ उजली आर्थिक संभावनाओं तथा स्वावल-म्बन का द्वार खोलता है ? यदि हाँ, तो वह पक्ष बहुत अधिक महत्वपूर्ण हो सकता है।
माना जा सकता है कि पंचायतें गोशाला खोलने के लिए स्थान का आसानी से इंतजाम कर लेंगी, लेकिन गोचर खत्म होने के कारण गायों को चराने तथा उन्हें पूरे साल चारा उपलब्ध कराने की बड़ी समस्या हो सकती है। ऐसे में जंगलों में पैदा होने वाली घास पंचायतों को उपलब्ध कराई जाए तो चारे की समस्या से निपटा जा सकता है। इसमें कुछ योगदान नहरों के आसपास पैदा होने वाली घास का भी हो सकता है। इस व्यवस्था से गोशालाओं में चारे की अच्छी-खासी आवश्यकता पूरी हो सकती है। चारा खरीदने से पंचायतों को निजात दिलाने वाली इस व्यवस्था से समय तथा धन की बचत होगी और पंचायतों को केवल भंडारण और घास की सुरक्षा का इन्तजाम भर करना होगा ।
गोशाला में दूध केउत्पादन से आय प्राप्त की जा सकती है। इस काम में मध्यप्रदेश के दुग्ध संघ से आवश्यक अनुबंध करना होगा। यह प्रशासनिक निर्णय है जिसे लागू करने में कठिनाई का प्रश्न नहीं उठता । इस कदम से दूध के उत्पादन में वृद्धि होगी । गाय के गोबर से देशी खाद और गोमूत्र से कीटनाशक दवाओं को बनाया जा सकता है।
इसे करने के लिए ग्राम स्तर पर इच्छुक युवक-युवतियों से अनुबन्ध किया जा सकता है। यदि ऐसा होता है तो लगभग पचास हजार युवक-युवतियों की ऊर्जा का उपयोग किया जा सकता है। इस काम के लिए पंचायत को आवश्यक ढांचा उपलब्ध कराना होगा जिसे अनुदान के जरिए सरलता से खडा किया जा सकता है। जरूरी ढांचा मिल जाने के बाद ग्रामीण युवा देशी खाद और देशी कीटनाशक दवाओं का उत्पादन कर सकेंगे और उनके माध्यम से किसानों को देसी खाद और दवा उपलब्ध कराई जा सकेगी। देसी खाद और दवाओं की कीमत यूरिया और रासायनिक कीटना-शकों की कीमत का आधा रखा जा सकता है। बिक्री से प्राप्त राशि का ५० प्रतिशत अनुबंधित युवक-युवतियों को सेवा शुल्क के रूप में दिया जा सकता है। यह कदम नगरों की ओर होने वाले पलायन को कम करने में भी सहायक हो सकता है। बाकी ५० प्रतिशत पंचायत की आय होगी। इस आय से गायों की देखभाल, इलाज इत्यादि संभव हो सकता है।
लघु तथा सीमान्त किसान देसी खाद और दवा का नगद भुगतान नहीं कर पाते तो पंचायत की सहमति से उसका भुगतान फसल आने के वक्त भी कर सकते हैं। पंचायतें चाहें तो लघु तथा सीमान्त किसानों को अनाज के रूप में भी भुगतान करने की सुविधा दे सकती हैं। इस तरह से प्राप्त अनाज अन्न बैंक में रखा जा सकेगा। पंचायत इस अन्न बैंकका उपयोग उन कामों के बदले भुगतान में कर सकेगी जिनके लिए प्रावधान नहीं हैं।
यह सुविधा रासायनिक खाद तथा महंगे कीटनाशकों पर होने वाले व्यय में कमी लाएगी, किसान की लागत कम होगी और हानिकारक रसायनों के उपयोग से बचा जा सकेगा । इससे पानी और धरती के प्रदूषण को भी बढ़ने से रोका जा सकेगा ।
उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश के मालवा इलाके में कीटनाशकों के बेतहाशा उपयोग के कारण कैंसर का तेजी से प्रसार हो रहा है। इसे नियंत्रित करने की आवश्यकता है। उल्लेखनीय है कि पंचायत स्तर पर प्रारंभ की जाने वाली गोशालायें कैंसर से बचाव में उल्लेखनीय योगदान दे सकती हैं। वे देशी खाद उपलब्ध करा कर खेतों की मिट्टी की सेहत सुधरवा सकती हैं। उत्पादन वृद्धि में सहयोग दे सकती है। असमतल खेतों तक की मिट्टी की पानी नमी जमा करने की क्षमता में सुधार करा सकती हैं।
खेतों की मिट्टी की कठोरता कम करा सकती हैं। खेती में पानी की मांग कम करा सकती हैं। फसल में कीटनाशकों की बढ़ती मात्रा में कमी करा सकती हैं। आर्गेनिक अनाज पैदा कर उत्पादों को निरापद बना सकती हैं। बीमारियों का खतरा कम करा सकती हैं। यही वे कतिपय संभावनायें हैं जो आर्थिक उन्नति का द्वार खोलती हैं।
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