पर्यावरण परिक्रमा
खेती की कम होती जमीन और जैव विविधता
पौधों, जानवरों और सूक्ष्मजीवों पर हुए संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के पहले अध्ययन के अनुसार जैव विविधता की रक्षा में विफलता के कारण खाद्य उत्पादक भूमि की क्षमता कम हो रही है । जैव-विविधता जीवों के बीच पाई जाने वाली विभिन्नता को कहते है । यह एक ऐसा विषय है जिस पर जलवायु परिवर्तन जितना ध्यान कभी नहीं गया ।
संयुक्त राष्ट्र (यूएन) से जुड़े खाद्य और कृषि संगठन के वैज्ञानिकोंने अपने ताजा अध्ययन में इस संबंध में चेतावनी जारी की है । रिपोर्ट के मुताबिक परागण में सहायक भौरों आदि का अस्तित्व खतरे में है । इसके अलावा पिछले दो दशकों में दुनिया की २० प्रतिशत खेती योग्य जमीन कम हो गई है ।
शोध के मुताबिक, ज्यादातर देशों ने कहा है कि जैव विविधता के नुकसान का मुख्य कारक भूमि रूपांतरण । इसमें खेतों के लिए जंगलों की कटाई, शहरों और सड़कों के लिए घांस के मैदानों को कंक्रीट से ढका जाना शामिल है । पानी की अति खपत, प्रदूषण, एक ही साल में कई फसलें और जलवायु परिवर्तन भी जैव विविधता के क्षरण के लिए जिम्मेदार हैं।
शोधकर्ता बताते हैं कि दुनिया पहले की तुलना में अधिक खाद्य का उत्पादन कर ही है, लेकिन इसकी वजह मोनोकल्चर कृषि में एक ही प्रकार की फसल को बहुत बड़े क्षेत्र में बोया जाता हैं । दो तिहाई फसल उत्पादन सिर्फ नौ प्रजातियों से होता है । इनमें गन्ना, मक्का, चावल, गेंहू, आलू, सोयाबीन और चुकंदर शामिल है । शेष ६,००० प्रजातियों में से कई तेजी से विलुप्त् हो रही है ।
भारतीय थर्मल पावर प्लांट सबसे ज्यादा नुकसानदेह
चीन और अमेरिका में कोयले से सबसे ज्यादा बिजली बनती है, लेकिन स्वास्थ्य पर इसके असर की बात की जाए तो कोयले से चलने वाले भारतीय बिजलीघर सबसे ज्यादा नुकसानदेह हैं । वैश्विक पैमाने पर किए गए एक अध्ययन की रिपोर्ट में यह दावा किया गया हैं ।
स्वि्टजरलैंड स्थित ईटीएच ज्यूरिख के शोधकर्ताआें ने कहा कि कोयला से चलने वाले बिजलीघर कार्बन डाई ऑक्साइड के अलावा कई अन्य खतरनाक गैसों का उत्सर्जन करते हैं, जो वैश्विक तापमान बढ़ाने (ग्लोबल वार्मिंग) के लिए जिम्मेदार हैं ।
ईटीएच ज्यूरिख के इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग के स्टीफेन हेलवेग ने कहा कि मध्य यूरोप, उत्तरी अमेरिका और चीन में सभी बिजलीघर आधुनिक हैं, लेकिन पूर्वी यूरोप, रूस और भारत में अब भी बिजलीघर फ्लू गैस से निपटने में सक्षम नहीं हैं । शोध की अगुवाई हेलवेग ने ही की ।
रिसर्च में यह पता लगाने के लिए कि कहां तत्काल कदम उठाने की जरूरत है, शोधकर्ताआें ने दुनियाभर में कोयले से चलने वाले ७,८६१ बिजलीघरों का स्वास्थ्य पर असरका आकलन किया । नेचर सस्टेनेबिलिटी नाम की पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार चीन और अमेरिका कोयला से सर्वाधिक बिजली पैदा करते हैं, लेकिन स्वास्थ्य पर इसके असर के मामले मेंभारत के कोयला आधारित बिजलीघर सर्वाधिक नुकसानदायक पाए गए ।
रिपोर्ट के अनुसार कोयला जलने से सल्फर डाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और पारा जैसे पदार्थ एवं तत्व निकलने हैं । ये चीजें स्वास्थ्य को नुकसान पहंुचाती हैं ।
रिपोर्ट के मुताबिक भारत स्थित कोयला आधारित बिजलीघर प्रदूषण फैलाने वाले कुछ ही तत्वोंको हटा पाने में कामयाब हैं । इसके अलावा इन बिजलीघरों में प्राय: खराब क्वालिटी के कोयले का इस्तेमाल किया जात है ।
अध्ययन करने वाली टीम के प्रमुख सदस्य क्रिस्टोफर आबर्स-चेल्प ने कहा कि आधे से अधिक स्वास्थ्य संबंधी समस्या के लिए इस तरह के बिजलीघर जिम्मेदार हो सकते हैं । ऐसे में स्वास्थ्य के लिहाज से खतरनाक इन बिजली घरों को तत्काल या तो उन्नत बनाया जाना चाहिए या फिर उसे बंद किया जाना चाहिए ।
अमेरिकी किसानों की सूखी धरती पर खेती की ड्राई फार्मिग
अमेरिका के कैलिफोर्निया प्रांत में भीषण सूखे के बीच करीब २.७५ लाख एकड़ जमीन पर बिना सिंचाई खेती की जा रही है । यह कैलिफोर्निया का खेती की जमीनोंका एक फीसदी हिस्सा है । इसमें टमाटर , आलु, फल्लियां, भुट्टा, कुम्हड़ा और अंगुर उगाए जा रहे हैं । बिना सिंचाई की इस खेती को ड्राईफार्मिंग कहा जा रहा है । इससे किसानों को पहले की तुलना में ३० प्रतिशत ज्यादा मुनाफा हो रहा है ।
कैलिफोर्निया के जिम लीप ने पहली बार यह तकनीक अपने शहर संजुआ बाउटिशा मेंलगाई थी । लीप का परिवार ८ साल से ड्राई फार्मिंग कर रहा है । लीप का कहना है कि ड्राई फार्मिंग कम बारिश वाले इलाकों में उपयोगी है । जमीन की नमी बनाए रखना ड्राई फार्मिंग का आधार है । इसके लिए जमीन की गहरी जुताई की जाती है, ताकि वाष्पीकरण रूके । ऐसी फसल लगाते हैं, जो कम नमी और कम समय में उगे । यह तकनीक १९वीं सदी में इटली और स्पेन में इस्तेमाल की जाती थी । धीरे-धीरे लोग इसे भूल गए । साल २०१४ से इसका इस्तेमाल कैलिफोर्नियामें बढ़ा, क्योंकि यहां बारिश कम होने लगी । इसी साल यहां वाटर मैनेजमेंट एक्ट आया । खेती के लिए पानी की सप्लाई सीमित की गई । दरअसल, यहां उपलब्ध पानी का ८० फीसदी खेती पर खर्च हो रहा था ।
यूएई के रेतीले क्षेत्रों में किनोआ की खेती शुरू की गई है । इसमें बड़ी मात्रा में प्रोटीन होता है । किनोआ की खेती को बढ़ावा देने के लिए दुबई मे इंटरनेशनल सेंटर फॉर बायोसलाइन एग्रीकल्चर (आईसी बीए) का सम्मेलन हुआ । इसमें दुनिया के १०० से अधिक बड़े किसानों, व्यवसासियों, वैज्ञानिकों, रिसर्चरों और सरकारों के प्रतिनि-धियों ने किनोआ की खेती पर विचार-विमर्श किया ।
जमीन से निकले तेल की मालिकी का सवाल
गुजरात के मेहसाणा जिले के एक किसान खुमन सिंह चौहान ने अपनी जमीन से निकाले जा रहे पेट्रोलिय पदार्थोंा पर मालिकाना हक का दावा करते हुए हाई कोर्ट में अर्जी दायर की है । किसान ने याचिका में कहा है कि ऑयल एण्ड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ओएनजीसी) ने कुछ सालों पहले उनकी जमीन का अस्थाई अधिग्रहण किया था और अब तक उसकी जमीन वापस नहीं की गई है । ऐसे में वर्तमान में उसकी जमीन से निकलने वाले तेल का मालिकाना हक उसे देदिया जाए ।
मेहसाणा के कैयल गांव के निवासी खुमन सिंह का कहना है कि साल २००७ में ओएनजीसी ने उसकी जमीन को यहां मौजूद तेल के उत्खनन के लिए अस्थाई रूप से अधिगृहित किया था । उन्होंने ने दलील दी कि ओएनजीसी बिना स्थायी अधिग्रहण किए लगातार उनकी जमीन से तेल निकाल रही है, जो कि अस्थाई अधिग्रहण की शर्तोंा का उल्लंघन है ।
किसान ने याचिका में यह मांग की है कि कोर्ट सरकार और ओएनजीसी को उनकी जमीन लौटाने का आदेश जारी करे । इसके साथ ही चौहान ने यह आग्रह भी किया है कि अगर ऐसा नहीं हो सकता तो या तो उनकी जमीन से निकलने वाले तेल का मालिकाना हक उन्हे दे दिया जाए या फिर जमीन का स्थायी रूप से अधिग्रहण कर सभी शर्तेंा पूरी कर दी जाएं । चौहान के वकील सलीम सैयद ने हालांकि कोर्ट में माना है कि किसी कानून या नियमावली में जमीन से निकलने वाले तेल का मालिकाना हक जमीन मालिक को दिए जाने का प्रावधान नहीं है ।
जस्टिस एपी ठाकुर और जस्टिस हर्षा देवानी की बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए ओएनजीसी और राज्य सरकार को इस संबंध में अपना हलफनामा दायर करने के आदेश दिए हैं । इसी के साथ कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए १३ मार्च की तारीख तय कर दी है । ओएनजीसी ने इस मामले पर यह दलील दी है कि चूंकि यह स्पष्ट नहीं है कि किसान की जमीन से तेल का उत्खनन कब तक हो सकता है इस कारण जमीन का स्थायी अधिग्रहण नहीं किया जा सकता । वहीं खुमन सिंह का कहना है कि अगर जमीन का स्थायी अधिग्रहण नहीं हो सकता तो अस्थाई अधिग्रहण के समझौते को भी खत्म किया जाए ।
गाजर घास एक विनाशकारी खरपतवार
खेतों के आसपास उगी गाजर घास न केवल इंसानों को नुकसान पहुंचाती है, बल्कि दूसरी फसलों को भी नुकसान पहुंचाती है । यह खरपतवारों में सबसे विनाशकारी खरपतवार है, क्योंकि यह कई तरह की समस्याएं पैदा करता है । इसकी वजह से फसलों की पैदावार ३०-४० प्रतिशत कम हो जाती है, इसलिए इसका नियंत्रण बहुत जरूरी है । इस खरपतवार में ऐस्कयुटरपिन लेक्टोन नामक विषाक्त पदार्थ पाया जाता हैं, जो फसलों की अंकुरण क्षमता और विकास पर विपरीत असर डालता है । इसके परागकण, पर-परागित फसलोंके मादा जनन अंगोंमें एकत्रित हो जाते हैं, जिससे उनकी संवेदनाशीलता खत्म हो जाती है और बीज नहीं बन पाते हैं ।
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