हमारा भूमण्डल
दुनिया मेंबढ़ रहे हैं पर्यावरण संरक्षण के प्रयास
डॉ. ओ.पी. जोशी
पिछले साल दुनियाभर में पर्यावरण संरक्षण को लेकर कई महत्वपूर्ण प्रयास हुए हैं । इन प्रयासों में एक है, करीब बारह हजार साल पुराना जर्मनी का हम्बख जंगल, जहां ४० से अधिक नस्लों के पक्षी पाये जाते हैं । इस जंगल में पाये जाने वाले कोयले को निकालकर बिजली बनाने हेतु सरकार ने एक कम्पनी आरडब्ल्यूई को १९७८ में अधिकार दे दिया था जिसने पिछले ४० वर्षों में कोयला निकालने के लिए करीब ८० प्रतिशत जंगल काट डाले हैं । शेष बचे जंगल को बचाने की खातिर वहां के ग्रामीणों ने कम्पनी के विरूद्ध वर्ष २०१२ से संघर्ष प्रारंभ किया था जिसने २०१८ तक विशाल रूप ले लिया ।
जंगल बचाने हेतु डेढ़ से दो सौ लोग पिछले कुछ वर्षों से पेड़ों पर ही घर बनाकर रह रहे हैं । ९ सितम्बर १८ को जब पुलिस ने इन लोगों को पेड़ों से हटाने का प्रयास किया, तो इसका भारी विरोध हुआ । हजारों लोग वहां पहुंचे और प्रतिकार में पेड़ों पर अपना आशियाना बनाया । भारी विरोध को देखकर न्यायालय ने भी पेड़ों को काटकर कोयला निकालने पर अस्थायी रोक लगाने के आदेश जारी किये । लंदन में जर्मन दूतावास के सामने 'ग्रीन-पीस` संस्था के कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन कर कम्पनी का अनुबंध निरस्त करने की मांग की ।
कम्बोडिया के रोवेग क्षेत्र के बेंग वन्यजीव-अभयारण्य में लकड़ी के तस्करों ने पिछले कुछ वर्षांे में ३३ प्रतिशत जंगल काटकर समाप्त कर दिये हैं । सरकार जब इन तस्करों के विरूद्ध कोई ठोस कार्यवाही नहीं कर पायी तो वहां के गांववासी जंगल को बचाने आगे आये । गांववासियों ने एक सेना बनाकर जंगल में कई स्थानों पर चौकियां कायम की और वहां रहकर निगरानी का कार्य किया । घूम-फिरकर निगरानी करने हेतु एक पेट्रोलिंग-टीम भी बनायी गयी । गांव के लोगों के इन प्रयासों से डरकर तस्करों ने हाथ पीछे खींच लिए। इस पूरे कार्य में कहीं कोई संघर्ष नहीं हुआ ।
मंगोलिया में इसी तरह घास के मैदान बचाए गये। पिछले कुछ वर्षों में घास के मैदानों के आसपास रहने वाले चरवाहे तथा घुमंतू जाति के लोग रोजगार के लिए शहरों में जाकर बस गये थे। पिछले वर्ष सरकार ने इन लोगों को वापस बुलाकर घास के मैदानों में पुन: बसाने का कार्यक्रम तैयार किया । इन लोगों को टेंट, जानवर और दूसरी सुविधाएं प्रदान की गयीं ताकि वे पहले की तरह जीवन व्यापन कर सकें । इन लोगों की वापसी से घास के मैदान सुधरने लगे एवं पर्यटकों की संख्या भी बढ़ने लगी । सरकार आगामी वर्षों में २० लाख लोगों को वापस लाने की योजना पर काम कर रही है।
जंगलों को बढ़ाने हेतु पौधारोपण का एक सघन प्रयास कनाड़ा में किया गया है जहां चार करोड़ हेक्टर में फैले जंगल समाप्त हो गये थे। यहां देश के ६००० लोगों ने पिछले वर्ष ५० करोड़ पौधे रोपे जिनमें युवाओं की भागीदारी ज्यादा थी। पौध-रोपण के लिए अनुकूल मौसम में जंगलों में शिविर लगाये जाते हैं । सरकार एक पौधा लगाने पर १० सेंट देती है। एक सक्रिय युवा एक दिन में पांच से छह हजार पौधे रोप देता है। कई युवाओं ने पौधा रोपण से प्राप्त राशि से अपनी पढ़ाई का ऋण तक चुका दिया। कनाड़ा सरकार ने ९० प्रतिशत जंगलों की देखभाल की जिम्मेदारी भी जनता को सौंप रखी है जिसे जनता भी ईमानदारी से निभाती है।
दुबई के फैजल -मोहम्मद-अल-शिमारो ने कोई सघन पौधारोपण नहीं किया परंतु नार्वे के एक वैज्ञानिकी विधि से रेगिस्तान में टमाटर एवं भिन्डी की फसल तैयार की । इस विधि में ५० प्रतिशत पानी कम लगता है। समुद्री जल साफ करने एवं जल प्रदूषण रोकने के दो प्रयास भी उल्लेखनीय है। न्यूयार्क में समुद्र के किनारे रोजाना एक दर्जन से ज्यादा संस्थाओं के सदस्य डेढ़-दो फीट गहरे पानी में जाकर सीप छोड़ते हैं।
इसका कारण यह है कि सीप केवल जैविक रत्न मोती ही नहीं बनाती, अपितु पानी को साफ एवं कीटाणु-मुक्त भी रखती है। अभी तक इस तरह करीब तीन करोड़ सीप डाली जा चुकी हैंएवं वर्ष २०३५ तक एक अरब सीप डालने का लक्ष्य रखा गया है। न्यूयार्क निकासी सीप डालकर पानी साफ कर रहे हैं तो दूसरी ओर नार्वे की एक जहाज कम्पनी हर्टिगुटन मरी हुई मछलियों से जहाज चलाने हेतु प्रयासरत है। मृत मछलियों से पैदा मिथेन गैस का उपयोग इस कार्य में किया जायेगा । जहाजों में जीवाश्म ईंधन के प्रयोग से प्रदूषण होता है एवं जलीय जीवों पर विपरीत प्रभाव । कम्पनी ने कहा है कि वर्ष २०१९ में मृत मछलियों से चलने वाला पहला जहाज तैयार हो जायेगा ।
यूरोप के प्रदूषित शहरों में १३ वां स्थान पाने वाले पेरिस में २०१८ में कारों की बिक्री लगभग १० प्रतिशत घट गयी है और वर्ष २०२४ तक डीजल वाहनोंको यातायात से हटाने की प्रक्रिया भी प्रारंभ कर दी गयी है। नम्बरों की 'ऑड-ईवन` व्यवस्था के साथ हर माह का पहला रविवार कारों से मुक्त किया गया है। पैदल व सायकल को बढ़ावा देने के लिए कई क्षेत्रों में प्रात: १० से शाम ६ बजे तक कारों का प्रवेश रोका गया है।
जर्मनी में सार्वजनिक परिवहन में यात्रा करने पर कोई टिकिट नहीं लिया जाता । इससे लोग निजी वाहन छोड़कर ट्रेनों, बसों में ज्यादा यात्रा कर रहे हैं ताकि वायुप्रदूषण कम होने के साथ-साथ यातायात भी सुधर जाए । इटली के बोलोग्ना शहर में सायकल चलाने वालों को मुत में सिनेमा के टिकिट, आइस्क्रीम तथा बीयर दी जा रही है। यह सारा कार्य एक एप की मदद से अभी फिलहाल अप्रैल से सितम्बर तक किया गया जिसका लाभ हजारों लोगों ने लिया।
'बिल गेट्स फाउन्डेशन` की ४० करोड़ की सहायता से कनाड़ा की कार्बन इंजीनियरिंग संस्था ने नौ वर्षों में ७० करोड़ रूपये से वेंकुवर शहर के पास एक ऐसा संयंत्र तैयार किया है जो वायुमंडल से कार्बन-डाय-ऑक्साइड सोखकर ईंधन में बदल देता है। एक टन कार्बन-डाय -ऑक्साइड से ईंधन बनाने का खर्च महज ६५०० रूपये होता है।
प्लास्टिक प्रदूषण कम या समाप्त करने के 'विश्व पर्यावरण दिवस` पर किये गये वायदे को मानकर कई देशों ने इस ओर कदम बढ़ाये हैं। एक बार उपयोग के बाद फेंकी जाने वाली प्लास्टिक की वस्तुओं की रोकथाम पर ज्यादा ध्यान दिया गया है। यूरोपीय संघ के २८ देशों में एक बार उपयोग में आने वाली प्लास्टिक की वस्तुओं के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के संसद के प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान की गई है। ताईवान की होटलों में भी इसी प्रकार के नियम लागू किये गये हैं।
ब्रिटेन में डिस्पोजेबल कप पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया गया है। वहां की संसदीय समिति ने सुझाव दिया है कि प्रत्येक कप पर ०.५ पेंस (२२रूपये) का कर लगाया जाए एवं इससे प्राप्त राशि ज्यादा-से-ज्यादा रिसायकलिंग पर खर्च की जाए । नीदरलैंड की राजधानी एम्सटर्डम में एक सुपर मार्केट (इकोप्लाजा) ने अपनी एक शाखा प्लास्टिक रहित बनायी है। यहां ७०० प्रकार के खाद्य पदार्थोका बगैर प्लास्टिक के पैकिंग किया जाता है। इस मार्केट के देश मेंे ७४ स्टोर्स है जहां यह प्रयोग अपनाया जाएगा ।
चीन ने प्रदूषण की रोकथाम हेतु ना सिर्फ १९ हजार करोड़ की योजना बनायी है अपितु पर्यावरण के मानकों का उल्लंघन करने पर ५२८ करोड़ का जुर्माना भी लगाया है। प्रदूषण के प्रति लापरवाही के अपराध में चार हजार अधिकारियों को जेल की सजा दी गयी है। जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए नवम्बर में लंदन में हजारों लोगों ने प्रदर्शन किया। इन प्रदर्शनों से लंदन के पांच बड़े पुलों पर यातायात अवरूद्ध हुआ एवं सेन्ट्रल लंदन में भी घंटों जाम की स्थिति रही। कुल मिलाकर वर्ष २०१८ में विदेशों में पर्यावरण संरक्षण के लिए किये गये प्रयास सराहनीय, अनुकरणीय रह े।
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