गुरुवार, 21 नवंबर 2019

हमारा भूमण्डल
विश्व ऊर्जा का वर्तमान दृश्य
डॉ. बी.जी. देसाई
वर्ष१९७३ के ऊर्जा संकट ने ऊर्जा आपूर्ति और कीमतों को लेकर व्याप्त खुशफहमी को एक झटके में दूर कर दिया था। विश्व ने इसका जवाब ऊर्जा दक्षता में सुधार और तेल के विकल्पों के रूप में दिया । 
ग्लोबल वार्मिंग की चिंता ऊर्जा दक्षता और नवीकरणीय ऊर्जा के  विकास की ओर प्रोत्साहित कर रही है। इस लेख में ऊर्जा संकट के पहले और उसके बाद पूरे विश्व और भारत के परिदृश्य की चर्चा की गई है। उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर आगे की कार्रवाई के लिए कुछ टिप्पणियां की गई हैं । 
१९७३ के अरब-इजराइल युद्ध ने ऊर्जा संकट को जन्म दिया । इस ऊर्जा संकट नेे विश्व को ऊर्जा, विशेष रूप से तेल, की सीमित उपलब्धता और बढ़ते मूल्य के प्रति आगाह किया । विकसित दुनिया ने सुरक्षित ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए १९७४ में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का गठन किया । १९७३ और ऊर्जा संकट के ४० साल बाद २०१४ के विश्व ऊर्जा परिदृश्य को देखना लाभदायक होगा । 
ऊर्जा एजेंसी ने अपना वार्षिक प्रतिवेदन वर्ल्ड एनर्जी स्टेटिस्टिक्स २०१६ (विश्व ऊर्जा सांख्यिकी) प्रकाशित कर दिया है। यह सारांश रूप में भी उपलब्ध है। ये प्रकाशन १९७३ में (ऊर्जा संकट से पहले) और २०१४ में (ऊर्जा संकट के बाद) विश्व ऊर्जा आपूर्ति और खपत के दिलचस्प ऊर्जा रुझान प्रस्तुत करते हैं। यह लेख ऊर्जा संकट के पहले और बाद दुनिया में ऊर्जा आपूर्ति और उपयोग की कुछ विशेषताओं का विश्लेषण करता है। इसमें भारत के लिए भी इसी प्रकार की तुलना की गई है।
प्राथमिक ऊर्जा आपूर्ति 
१९७३ में, विश्व ऊर्जा आपूर्ति ६१०१ एमटीओई थी। (एमटीओई यानी मिलियन टन तेल केसमतुल्य, यह गणना एक कि.ग्रा. तेल = १०००० किलो कैलोरी पर आधारित है।) २०१४ में यह १३,०९९ एमओटीआई हो गई थी। अर्थात १९७३ की तुलना में २०१४ में ऊर्जा आपूर्ति बढ़कर २.२५ गुना हो गई ।  
तेल की कीमतों में तेजी से वृद्धि के चलते इसके विकल्पों की खोज और कुशल उपयोग का मार्ग प्रशस्त हुआ है। १९७३ में कुल ऊर्जा आपूर्ति में तेल का हिस्सा ४६ प्रतिशत था जबकि २०१४ में केवल ३१.३ प्रतिशत ऊर्जा आपूर्ति तेल से हुई । कोयले और गैस का उपयोग थोड़ा बढ़ा। जलाऊ लकड़ी और कंडे जैसे जैव इंर्धन, जिनका उपयोग मुख्यत: भारत जैसे विकासशील देशों में होता है, की ऊर्जा आपूर्ति में अभी भी १० प्रतिशत भागीदारी है। जहां नाभिकीय ऊर्जा के हिस्से में तेज वृद्धि देखी गई, वहीं पनबिजली में काफी कम वृद्धि हुई। विभिन्न इलाकों की हिस्सेदारी में भी नाटकीय परिवर्तन हुए हैं।  
ओईसीडी में युरोप, यूएसए, जापान और अन्य शामिल हैं। गैर गैर-ओईसीडी युरोप में रूस और इसके पूर्व सहयोगी युक्रेन, तुर्कमेनिस्तान आदि शामिल हैं। एशिया में भारत, इंडोनेशिया, श्रीलंका और अन्य शामिल हैं। तालिका से पता चलता है कि चीन और मध्य पूर्व में ऊर्जा उत्पादन में प्रभावशाली वृद्धि हुई है और संयुक्त राज्य अमेरिका तथा युरोप में ऊर्जा आपूर्ति में गिरावट आई है। ऊर्जा आपूर्ति में एशिया की भागीदारी भी बढ़ी है।
वर्ष २०१४ और १९७३ में ऊर्जा के मूल्यों को वास्तविक इकाइयों में दर्शाया गया है और २०१४ व १९७३ में उनका अनुपात दिया गया है। तालिका से स्पष्ट है कि इस अवधि में तेल में अपेक्षाकृत कमी आई है, जबकि गैस और कोयले के साथ-साथ नाभि-कीय बिजली और पनबिजली में भी वृद्धि हुई है। गौरतलब है कि पनबिजली का उत्पादन (३८३३ /२५३५) नाभिकीय से ३१ प्रतिशत अधिक है, लेकिन ऊर्जा एजेंसी जिस तरीके से गणना करता है उसके आधार पर पनबिजली (२.४ प्रतिशत) की तुलना में नाभिकीय ऊर्जा का योगदान अधिक है (४.८ प्रतिशत) है। 
जनसंख्या, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और ऊर्जा उपयोग की तीव्रता को देखना काफी दिलचस्प हो सकता है । यह देखा जा सकता है कि ऊर्जा आपूर्ति की तुलना में जीडीपी काफी तेजी से बढ़ रहा है जिसका श्रेय ऊर्जा दक्षता में वृद्धि और अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तन  को जाता है।
इसके परिणामस्वरूप औद्योगिक ऊर्जा खपत में कमी आती है और परिवहन, आवासीय एवं वाणिज्यिक सेवाओं में ऊर्जा की खपत में वृद्धि होती है।  विशेष रूप से ओईसीडी देशों में औद्योगिक ऊर्जा खपत में गिरावट के रुझान तथा परिवहन और आवासीय ऊर्जा खपत में वृद्धि नजर आती है। मैन्यूफेक्चरिंग ओईसीडी से एशिया की ओर चला गया है। १९७३ और २०१४ में अंतिम ऊर्जा खपत और कुल ऊर्जा आपूर्ति के अनुपात की ओर ध्यान देना उपयोगी होगा ।
वर्ष १९७३ में, अंतिम ऊर्जा खपत/ कुल ऊर्जा आपूर्ति = ४६६१/ ६१०१ यानी ७६ प्रतिशत थी। २०१४ में, अंतिम ऊर्जा खपत / कुल ऊर्जा आपूर्ति = ९४२४/१३,६९९ यानी ६८ प्रतिशत थी।
यह ऊर्जा उपयोग में बिजली के अधिक इस्तेमाल का संकेत देता है। इसके चलते बिजली के उत्पादन के दौरान अधिक नुकसान होता है जिसका परिणाम यह होता है कि आपूर्ति की तुलना में अंतिम उपयोग कम हो जाता है। यह ध्यान देने वाली बात है कि जहां १९७३ की तुलना में २०१४ में विश्व  ऊर्जा की खपत दोगुनी से भी अधिक हो गई, वहीं ओईसीडी की ऊर्जा खपत में केवल २८ प्रतिशत की वृद्धि हुई । भारत में १९७३ और २०१४ ऊर्जा परिदृश्य पर नजर डालना भी उपयोगी हो सकता है। देखा जा सकता है कि ऊर्जा आपूर्ति में नाटकीय वृद्धि हुई है और ऊर्जा दक्षता में सुधार हुआ है।
विश्व ऊर्जा आपूर्ति १९७३ से २०१४ के बीच दोगुनी से भी अधिक हो गई है। तेल उत्पादन केवल ५० प्रतिशत बढ़ा है। यह इंर्धन दक्षता और तेल की जगह अन्य इंर्धन के उपयोग में उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है। बिजली उत्पादन एवं अन्य उपयोगों के लिए तेल की जगह कोयले और गैस का उपयोग किया जाने लगा है। तेल का उपयोग मुख्य रूप से परिवहन क्षेत्र द्वारा किया जा रहा है। 
भारत में तेल की मांग में ८०० प्रतिशत की वृद्धि हुई है जबकि विश्व में यह वृद्धि ५० प्रतिशत है।
ऊर्जा आपूर्ति दुगनी होने के साथ बिजली उत्पादन में लगभग ४ गुना वृद्धि हुई है। यह एक विद्युत-आधारित विश्व के प्रति रुझान को दर्शाता है। ६५ प्रतिशत बिजली का उत्पादन कोयला और गैस द्वारा किया जाता है।
ऊर्जा की उत्पादकता (दक्षता) में नाटकीय सुधार हुआ है। विश्व जीडीपी में १७ गुना और ऊर्जा आपूर्ति में मात्र २.२५ गुना वृद्धि हुई है। मुद्रास्फीति को ध्यान में रखें तो जीडीपी में वास्तविक वृद्धि  इससे १० गुना अधिक होगी ।
भारत ने भी ऊर्जा के सभी रूपों - कोयला, गैस, और बिजली उत्पादन - में प्रभावशाली प्रगति की है। भारत ने ऊर्जा के कुशल उपयोग और संरचनात्मक परिवर्तन की बदौलत ऊर्जा उत्पादकता में काफी सुधार किया है। सेवा क्षेत्र अब जीडीपी का ५० प्रतिशत से अधिक प्रदान कर रहा है जबकि उद्योगों की भागीदारी ७० प्रतिशत से घटकर २५ प्रतिशत हो गई है।
भारत में ऊर्जा परिदृश्य की दो प्रमुख समस्याएं हैं तेल की बढ़ती मांग और बायोमास के उपयोग की कमतर दक्षता। कच्च्े तेल का उपयोग आठ गुना बढ़ गया है। उचित नीतियों से इसे टाला जा सकता था।
तेल की बढ़ती मांग पर अंकुश लगाने के लिए सड़क की जगह रेल परिवहन को तथा निजी वाहनों की जगह सार्वजनिक वाहनों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए । इन दोनों उपायों की तत्काल आवश्यकता है।
पारंपरिक बायोमास इंर्धन ४० साल पहले ५० प्रतिशत ऊर्जा की आपूर्ति करता था, उसकी तुलना में अभी भी २५ प्रतिशत ऊर्जा इसी से मिलती है। इन इंर्धनों का उपयोग मुख्य रूप से खाना पकाने के लिए किया जाता है। 
उन्नत चूल्हे उपलब्ध होने के बाद भी खाना पकाने के चूल्हों की दक्षता ८-१० प्रतिशत ही है। एलईडी लैंप और नवीकरणीय ऊर्जा की तर्ज पर खाना पकाने के कुशल चूल्हों और सोलर कुकर को बढ़ावा देने के लिए बड़े कार्यक्रमों की आवश्यकता है। ठीक उसी तरह जैसे एक कार्यक्रम के तहत जनवरी २०१८ तक २८ करोड़ एलईडी बल्ब वितरित किए जा चुके थे । 

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