बुधवार, 20 नवंबर 2019

जीवन शैली
धर्म और पर्यावरण
प्रो. वीरसागर जैन

     पर्यावरण प्रदूषण आज का सबसे अधिक ज्वलन्त मुद्दा है । इसने सारे विश्व को चिन्तित होने पर मजबूर कर दिया है ।
    पर्यावरण प्रदूषण ने न केवल किसी एक देश विशेष को हानि पहुंचाई है, अपितु समुचित जीव जातियाँ इस भयंकर खतरे की चपेट में है । अनेक प्रजातियां तो नष्ट ही हो गई है और अनेक प्रजातियाँ नष्ट (लुप्त्) होने के कगार पर आ गई है । पर्यावरण प्रदूषण के कारण आज प्रकृति का सारा सन्तुलन गड़बड़ा रहा है ।
    विपदाएं तो प्राचीन काल में भी बड़ी-बड़ी आई थीं, पर उनसे एक सीमित क्षेत्र में ही नुकसान होता रहा है, परन्तु पर्यावरण- प्रदूषण तो आज एक ऐसे सर्वग्रासी राक्षस के रूप में हमारे सामने आया है, जिसने कहीं भी किसी को भी नहीं छोड़ा है। अनेकानेक सज्जन, निर्दोष लोग, छोटे-छोटे बच्च्े तक पर्यावरण-प्रदूषण के कारण असमय ही काल के गाल में जा रहे हैं।

    दुनिया के किसी भी अस्त्र-शस्त्र, रोग, महामारी, अकाल, तूफान, दैत्य, राक्षस आदि से भी सृष्टि का कभी उतना नुकसान नहीं हुआ, जितना कि आज पर्यावरण-प्रदूषण से हो रहा है।
    पर्यावरण-प्रदूषण केवल एक समस्या नहीं है, अपितु अनेकानेक समस्याओं का जनक है, मूल है। इसके ही कारण विश्व में अनेक समस्याएं उत्पन्न हुई हैं- ग्लोबल-वार्मिंग स्वास्थ्य से सम्बन्धित समस्याएं, स्वच्छ अन्न-जल-वायु से सम्बन्धित समस्याएं आदि ।
    पर्यावरण-प्रदूषण से आज समाज में स्वास्थ्य से सम्बन्धित समस्याएं बहुत अधिक बढ़ गई हैं। आजकल कहीं भी कोई व्यक्ति पूर्णरूप से स्वस्थ नहीं रह रहा है, जबकि गली-गली में आधुनिक चिकित्सालय खुले हुए हैं।
    अन्न, जल, वायु आदि में भी प्रदूषण ने अपना भयंकर कुत्सित प्रभाव व्याप्त् कर दिया है। आज शुद्ध अन्न, फल, सब्जी आदि कुछ नहीं मिलता। सभी शरीर को पोषण देने की बजाय शोषण का कार्य कर रहे हैं। पानी की भी कितनी विकराल समस्या हमारे सामने है- यह बताने की आवश्यकता नहीं है। इस विषय में विशेषज्ञों का तो यहां तक कहना है कि अगर अगला विश्वयुद्ध हुआ तो जल के ही कारण होगा। वायु का भी बड़ा बुरा हाल है। सांस लेने तक के  लिए शुद्ध ऑक्सीजन नहीं मिल रही है।
    इस प्रकार पर्यावरण-प्रदूषण से बचने के लिए आए दिन वैश्विक स्तर पर शिखर सम्मेलन, पृथ्वी सम्मेलन एवं अनेक सेमीनार आदि आयोजित किए जा रहे हैं, जिनमें सभी देशों के समाजशास्त्री, राजनैतिज्ञ,दार्शनिक आदि बड़े-बड़े बुद्धिजीवी लोग भाग ले रहे हैं और इस समस्या के समाधान पर विचार कर रहे हैं।
    इस महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करते हैं कि आखिर धर्म की इस विषय में क्या भूमिका हो सकती है, क्या धर्म और पर्यावरण का कुछ रिश्ता है, क्या कोई धर्म पर्यावरण-प्रदूषण की कोई बात कहता है या फिर सभी धर्मों में पर्यावरण-चेतना पाई जाती है?
    विविध धर्म-दर्शनों के यथाशक्ति किए गए अध्ययन के आधार पर मैं तो इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि सभी धर्मों में पर्याप्त मात्रा में पर्यावरण-चेतना पाई जाती है। सभी दर्शनों और धर्मों ने प्रत्यक्ष या परोक्ष किसी भी प्रकार से पर्यावरण-संरक्षण का उपदेश दिया है। जैसे- वेदों में जल, अग्नि, वायु, वनस्पति, सूर्य, चन्द्र आदि को देवता मानकर उनकी उपासना की बात की गई है, इत्यादि।
    आवश्यकता आज इस बात की है कि इस विषय को धर्म-ग्रन्थों के उद्धरणों के द्वारा समाज के  सम्मुख लाया जाए और जनता में पर्यावरण-चेतना जगाई जाए, क्योंकि आजकल लोग धर्म के नाम पर भी बहुत अधिक प्रदूषण फैला रहे हैं। पूजा-पाठ, हवन, यज्ञ, तीर्थयात्रा, पर्वाराधना आदि अनुष्ठान जो मूलत: पर्यावरण-शुद्धि के लिए ही बनाए गए थे, दु:ख का विषय है कि वे ही आज पर्यावरण को प्रदूषित करने के कारण बन रहे हैं। धर्म के नाम चल रही इस धर्मान्धता को धर्मग्रन्थों की समीचीन शिक्षा द्वारा रोकना चाहिए ।
    पर्यावरण को प्रदूषित करना वास्तव में देखा जाए तो एक प्रकार का राष्ट्रद्रोह है, समाजद्रोह है, आने वाली समस्त पीढ़ियों के प्रति किया गया घोर अन्याय है।
    यहां हमें एक बात और भी ध्यान में रखनी होगी कि भारत एक धर्म-प्रधान देश है और आज भी, इतनी वैज्ञानिक चेतना विकसित होने के बाद भी, लोग  वैज्ञानिकों की कम और धर्मगुरुओं की बात अधिक मानते हैं, अत: पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए आज सबसे बड़ी आवश्यकता इस बात की है कि धर्मगुरु लोगों को इस विषय में जागृत एवं प्रेरित करें।
    आज यदि सभी धर्मगुरु यह नारा दे दें कि जिस भी क्रिया से पर्यावरण प्रदूषित होता हो वह क्रिया कदापि धर्म की क्रिया नहीं हो सकती, वह तो पाप की ही क्रिया है, तो हमारा पर्यावरण आज भी बहुत सुन्दर बन सकता है, क्योंकि बहुत सारा प्रदूषण ज्ञान के अभाव मे फैलाया जा रहा हैंजैसे कि -
* नदियों में शव, अस्थि, नख, केश और पूजा-सामग्री, मूर्ति आदि विसर्जित करना ।
* देवी-देवताओं की पूजा के नाम पर खूब हिंसा करना, जीवों को मारना आदि ।
* पूजा के नाम पर ही बहुत अधिक दूध, दही, घी, पानी आदि बरबाद करना ।
* धर्म के नाम पर अस्त्र-शस्त्र बनाकर आतंकवाद फैलाना ।
* पर्वों के नाम पर पटाखे, रंग, भंग आदि के माध्यम से भारी प्रदूषण फैलाना । 
    अत: आज समाज में प्रदूषण फैलाने की हर कोशिश को हमें रोकना ही होगा और यह काम धर्मों की समीचीन शिक्षा देकर ही अच्छी तरह किया जा सकता है। हमें पृथक-पृथक सभी धर्म-दर्शनों में पर्यावरण-चेतना के सूत्रों को खोजकर प्रस्तुत करना होगा और जनता के समक्ष इस बात को बड़े ही स्पष्ट  रूप से रखना होगा कि जो व्यक्ति पर्यावरण को प्रदूषित करे, वह कदापि धर्मात्मा नहीं है, अपितु  महापापी है, अनेक निर्दोष जीवों का हत्यारा है।                             

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