बुधवार, 20 नवंबर 2019

पर्यावरण परिक्रमा
भारत में १९९० के बाद गरीबी दर आधी रह गयी 

    भारत में १९९० के बाद गरीबी के मामले में स्थिति में काफी सुधार हुआ हैं और इस दौरान हमारी  गरीबी दर आधी रह गयी । भारत ने पिछले १५ साल में ७ प्रतिशत से अधिक की आर्थिक वृद्धि दर हासिल की है । विश्वबैंक ने अंतरराष्टीय मुद्रा कोष के साथ सैलाना बैठक से पहले कहा कि भारत अत्याधिक गरीबी को दूर करने समेत पर्यावरण में बदलाव जैसे अहम मुद्दों पर वैश्विक वस्तुआें के प्रभावी अगुआ के तौर पर वैश्विक विकास प्रयासों की सफलता के लिए महत्वपूर्ण देश हैं ।
    विश्वबैंक ने कहा देश ने पिछले १५ साल में ७ प्रतिशत से अधिक की आर्थिक वृद्धि दर हासिल की है और १९९० के बाद गरीबी की दर को आधा कर लिया है । इसके साथ ही भारत ने अधिकांश मानव विकास सूचकांकों में भी प्रगति की हैं । विश्वबैंक ने कहा कि भारत को वृद्धि रफ्तार के जारी रहने और एक दशक मेंअति गरीबी को पूरी तरह समाप्त् कर लेने का अनुमान है ।
    इसके साथ ही देश की विकास यात्रा की राह मेंकई चुनौतियां भी हैं । भारत को इसके लिए संसाधनों की कार्यक्षमता को बेहतर बनाना होगा । शहरी क्षेत्रों में सामुदायिक अर्थव्यवस्था के जरिए और ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि उत्पादन बढ़ाकर जमीन का बेहतर इस्तेमाल करना होगा । विश्वबैंक ने कहा कि भारत को अधिक मूल्यवर्धक इस्तेमाल के लिए पानी आवंटित करने को लेकर बेहतर जल प्रबंधन और विभिन्न क्षेत्रों में पानी के इस्तेमाल का मूल्य बढ़ाने के लिए नीतियों की जरूरत होगी । इसके साथ ही २३ करोड़ लोग बिजली ग्रिडों से अच्छी तरह जुड़े नहीं हैं । देश को कम कार्बन उत्सर्जन वाला विद्युत उत्पादन भी बढ़ाना होगा  ।
    भारत की तेज आर्थिक वृद्धि को बुनियादी संरचना में २०३०  तक अनुमानित तौर जीडीपी के ८.८ प्रतिशत के बराबर यानी ३४३ अरब डॉलर को निवेश की जरूरत होगी । इसके साथ ही टिकाउ वृद्धि के लिए समावेश को बढ़ाना होगा, विशेषकर अधिक और बेहतर रोजगार सृजित करने होंगे ।
    अनुमानित तौर पर प्रति वर्ष १.३० करोड़ लोग रोजगार योग्य आयुवर्ग में प्रवेश कर रहे हैं , लेकिन सालाना स्तर पर रोजगार के तहत ३० लाख अवसर सृजित हो पा रहे हैं । इसके साथ ही भारत के सामने एक अन्य चुनौती महिला कामगारों की संख्या में आ रही कमी है । भारत में श्रमबल में महिलाआें की भागीदारी २७ प्रतिशत हैं, जो विश्व में सबसे कम में से एक है ।
देश में ७० लाख लोगों को है रूमेटोइड ऑर्थराइटिस
    सूर्य की रोशनी अच्छी होने के बावजूद देश के अधिकांश लोगोंमें विटामिन डी की कमी पाई जाती है । प्रदूषण से बचने के लिए लोग कवर्ड होकर निकलते हैं, लेकिन धूप से वंचित हो जाते हैं । देश में बढ़ते ऑर्थराइटिस का यही बड़ा कारण है । देश में ७० लाख लोग इस बीमारी से पीड़ित है ।
    पिछले दिनों बेंगलुरू के रूमेटोलॉजिस्ट डॉ. केएम महेन्द्रनाथ ने यह जानकारी दी । उन्होंने कहा कि १५० तरह के ऑर्थराइटिस होते हैं । सूजन, थकान और सुबह जकड़न होना इसके प्रमुख लक्षण है । इसमें जोड़ों का दर्द होता है पर हर तरह का दर्द ऑर्थराइटिस नहीं होता ।
    हमारे देश में ७० लाख से ज्यादा मरीज हैं, पद उनके लिए पर्याप्त् चिकित्सक नही हैं । इसलिए डाइग्नोसिस में ही महीनों लग जाते हैं । इस कमी को पूरा करने के लिए हम इस तरह के जागरूकता कार्यक्रम और अन्य प्रयासोंके जरिए जनरल फिजिशियंस को ट्रेनिंग देने का प्रयास कर रहे हैं । इसके लिए एक सही सिस्टम बनाने की जरूरत है । फिलहाल देश में १३०० रूमेटोलॉजिस्ट है, इनमें से भी सिर्फ २०० डॉक्टर्स ही पूरी तरह प्रशिक्षित हैं, बाकी जनरल फिजिशियंस हैं जो अपनी रूचि के कारण इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं । इस समय देश में २० हजार रूमेटोलॉजिस्ट की जरूरत है ।
देरी के चलते परियोजनाआें की लागत में बढ़ोतरी
    देरी और कई अन्य वजहोंसे देशभर की ३६० बुनियादी परियो-जनाआें की लागत में कुल ३.८८ लाख करोड़ रूपए की बढ़ोतरी हुई   हैं । ये सभी परियोजनाएं मूल रूप में १५० करोड़ रूपए से अधिक की लागत वाली हैं । सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय १५० करोड़ रूपए  से अधिक लागत वाली बुनियादी ढांचा परियोजनाआें की निगरानी करता है । इन १,६०८ परियोजनाआें में से ३६० की लागत में इजाफा हुआ है, जबकि ५५० परियोजनाएं देरी से चल रही हैं ।
    मंत्रालय की जून २०१९ की रिपोर्ट के अनुसार १,६०८ परियोजनाआें की कुल मूल लागत १९,१७,७९६.०७ करोड़ रूपए थी । अब परियोजना खत्म होने तक इनकी अनुमानित लागत २३,०५,८६०.३३ करोड़ रूपए   होगी । यह दिखाता है कि इन परियोजनाआें की लागत में ३,८८,०६४.२६ करोड़ रूपए का इजाफा हुआ है । यह मूल लागत से २०.२३ प्रतिशत अधिक है ।
    जून २०१९ तक इन परियोजनाआें पर ९,३५,०२१.३९ करोड़ रूपए खर्च किए जा चुके हैंं । यह इन परियोजनाआें की अनुमानित लागत का ४०.५५ प्रतिशत हैं । हांलाकि, रिपोर्ट में कहा गया है कि परियोजनाआें को पूरा करने के नए कार्यक्रम को देखा जाए, तो देरी वाली परियोजनाआें की संख्या घटकर ४७४ पर आ जाएगी । देरी से चल रही कुल ५५० परियोजनाआेंमें से १८२ परियोजनाएं एक से १२ महीने, ११९ परियोजनाएं १३ से २४ महीने, १३३ परियोजनाएं २५ से ६० महीने और ११६ परियोजनाएं ६१ या उससे अधिक महीने की देरी से चल रही हैं ।
जिराफ की आबादी में ४० फीसदी की कमी
    पहली बार जिराफों को खतरे में पड़े जीवों की सूची में डालने की बात हो रही है । संयुक्त राष्ट्र की लुप्त्प्राय जीवों के कारोबार को नियमबद्ध करने वाले विश्व वन्यजीव संरक्षण के सम्मेलन में जिराफ के अंगों के वैध कारोबार को अंतर-राष्ट्रीय नियमोंमें बांधने की कोशिश की गई है । जिसका पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वालों और खासकर उप-सहारा अफ्रीकी देशों ने स्वागत किया है ।
    विश्व वन्यजीव संरक्षण सम्मेलन में हुई वोटिंग में सम्मेलन का आयोजन करने वाली समिति यानी साइट्स ने कुछ प्रस्तावों की रूपरेखा सामने रखी है । इन उपायों से जिराफ के शरीर के हिस्सों के व्यापार को नियंत्रित करने का काम होगा । जिराफ की खाल, हडि्डयों की नक्काशी और मांस के व्यापार पर खास नजर होगी हालांकि इस पर पूरी तरह से बैन नहींलगाया जाएगा ।
    वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसायटी के इंटरनेशनल पॉलिसी की वाइस प्रेसिडेंट सुजन लीबरमान का कहना है, इतने सारे लोग जिराफ के बारे मेंजानते हैं कि उन्हें लगता है बहुत सारे जिराफ होंगे, जैसे दक्षिण अफ्रीका मेंभले ही लगता हो कि वे ठीक होंगे, लेकिन असल में यह गंभीर रूप से लुप्त्प्राय हैं । ` लीबरमान बताती हैं कि पश्चिमी, केंद्रीय और पूर्वी अफ्रीका के हिस्सों में जिराफ खास तौर पर खतरे में हैं ।
    सोसायटी का मानना है कि जिराफ जैसे खतरों का सामना कर रहे हैं, उसके कारण उनकी जनसंख्या घट रही है । जिराफ के रहने की जगह कम होती जा रही है, जलवायु परिवर्तन के कारण ज्यादा सूखा पड़ने लगा ही है, और उनके अंगों के अवैध व्यापार के लिए जिराफ की जान का खतरा बढ़ता जा रहा है । सदस्य देशों को जिराफ के अंगोंके निर्यात का रिकार्ड रखना जरूरी होगा जो फिलहाल केवल अमेरिका कर रहा है । इसके साथ ही कारोबार के लिए परमिट लेना भी अनिवार्य किया जाएगा ।
    अफ्रीकन वाइल्डलाइफ फाउंडेशन की मैना फिलिप मुरूथि का कहना है पिछले ३० सालों में ही जिराफों की आबादी में ४० फीसदी से अधिक कमी आई है।  अगर ऐसा चलता रहा तो हम उन्हें खो देगे ।
    सहारा के आसपास के अफ्रीकी इलाकों में अब सिर्फ ९७५०० जिराफ बचे है । इंटरनेशनल  यूनियन फॉर द कंजर्वेशन ऑफ नेचर के मुताबिक १९८५ की तुलना में यह संख्या करीब ४० फीसदी कम है । पश्चिम और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में भी जिराफ पाए जाते है । वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि ग्लोबल वार्मिग के कारण युरोप में पाया जाने वाला बोहिलिनिया जीव चीन और भारत की तरफ चला आया । बोहिलिनिया को आधुनिक जिराफ का पूर्वज माना जाता है ।
म.प्र. में जहरीली हवा से जीवन के साढे तीन साल कम
    मध्यप्रदेश की हवा तेजी से जहरीली होती जा रही है । इसका असर यह हुआ है कि प्रदेश में रहने वाले लोगों की उम्र औसतन करीब साढ़े तीन साल कम हो रही है । यह चितांजनक जानकारी अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय की शोध संस्था एपिक (एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट एट यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो) द्वारा तैयार किए गए वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक से सामने आई है । एपिक ने प्रदेश के जिलों के अनुसार यह एक्यूएलआई तैयार किया है । इसके अनुसार प्रदेश में सबसे ज्यादा जहरीली हवा भिंड की  है । इससे वहां के लोगोंके जीवन के करीब साढ़े सात साल कम हो रहे है ।

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