सोमवार, 16 अक्तूबर 2017

पर्यावरण समाचार
अब पुरूषों के लिए प्रजनन-रोधक गोली
फिलहाल पुरूषों के लिए कोई  ऐसा रासायनिक तरीका उपलब्ध नहीं जिसका उपयोग करके वे प्रजनन पर नियंत्रण कर सकें हालांकि यह विचार कई दशकों से चला आ रहा है । अब प्रजनन-रोधक गोली तो नहीं, एक मलहम बनाया गया है जो पुरूषों में शुक्राणुआें के उत्पादन को इतना कम कर देगा कि वे गर्भधारण को संभव नहीं बना पाएंगे । 
इस मलहम के क्लीनिकल परीक्षण यूएस के राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान और जनसंख्या परिषद      के नेतृत्व में २०१८ में शुरू किए जाएंगे । इस परीक्षण में यूके, स्वीडन, इटली, चिली, कीन्या तथा यूएस के कई केन्द्र हिस्सा लेगे । परीक्षण का तरीका यह होगा कि इन देशोंसे तकरीबन ४२० युगलों को भर्ती किया जाएगा । प्रत्येक युगल का पुरूष रोजाना अपने दोनों कंधों पर एक हारमोन युक्त मलहम लगाएगा । ऐसा कुछ दिन करने के बाद जांच की जाएगी कि पुरूष की शुक्राणु संख्या एक हद से कम हो जाए । अब शुरू होगा वास्तविक परीक्षण । 
जब पुरूष के वीर्य मेंशुक्राणु संख्या पर्याप्त् कम हो जाएगी तब एक वर्ष तक उन युगलों का निरीक्षण किया जाएगा । इस दौरान वे गर्भनिरोध की एकमात्र इसी विधि का इस्तेमाल करेंगे । 
उपरेाक्त मलहम त्वचा में अवशोषित होकर रक्त प्रवाह में हारमोन्स का एक मिश्रण प्रविष्ट करा देता है । इस मिश्रण में प्रोजेस्टिन और टेस्टोस्टेरोन नामक दो हरमाने होते हैं । प्रोजेस्टिन वह हारमोन है जो शरीर में शुक्राणु के उत्पादन को दबाता है । पहले किए  गए एक परीक्षण में देखा जा चुका है कि इस मिश्रण के उपयोग से करीब ८९ प्रतिशत लोगों में शुक्राणु संख्या १० लाख प्रति मि.ली. से कम हो जाती है, जो निषेचन करके गर्भधारण के लिए अपर्याप्त् है ।
अब तक जो परीक्षण पुरूष प्रजनन रोधकों पर किए गए थे उनमें दिक्कत यह थी कि उनमें शुक्राणु संख्या पर तो नियंत्रण हो जाता था किन्तु साथ ही शरीर में टेस्टोस्टेरोन का स्तर कम हो जाता था । टेस्टोस्टेरोन शरीर में कई अन्य भूमिकाएं निभाता है । इसका स्तर कम हो जाने की वजह से कई साइड प्रभाव होते है । टेस्टोस्टेरोन की क्षतिपूर्ति मुंह में गोली खिलाकर नहीं हो पाती । मुंह से लेने पर टेस्टोस्टेरोन  शरीर से बहुत जल्दी बाहर निकल जाता है और व्यक्ति को दिन में कई बार गोली खाना पड़ती है । इस मलहम की विशेषता यही है कि इसमें टेस्टोस्टेरोन की क्षतिपूर्ति त्वचा के माध्यम से की जाएगी । यह धीरे-धीरे रक्त प्रवाह में पहुंचता रहेगा और यह इतनी कम मात्रा में पहुंचेगा कि शुक्राणु उत्पादन को बढ़ावा भी नहीं नहीं दे पाएगा । 
यह पहली बार होगा कि पुरूषों की प्रजनन क्रिया में रासायनिक हस्तक्षेप करके गर्भ निरोध के प्रयास होंगे । अब तक पुरूषों के लिए प्रजनन-रोधक के मामले मेंसंयम, कंडोम और नसबंदी के तरीके ही उपलब्ध रहे है । 
उड़ते पानी से ऊर्जा 
दुनिया भर की झीलों-तालाबों - नदियों में से पानी भाप बनकर उड़ता रहता है । इस वाष्पीकरण के लिए ऊर्जा सूर्य से मिलती है । वैज्ञानिकों का विचार है कि यह वाष्पित पानी ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत साबित हो सकता है, बशर्ते कि इसके दोहन के लिए टेक्नॉलॉजी विकसित हो पाए । 
कोलंबिया विश्वविघालय के ओजगुर साहिन और उनके साथियों का कहना है कि अकेले यूएस की वर्तमान झीलों और बांधों से जो पानी वाष्पीकृत होता है उससे हर साल तकरीबन ३० लाख मेगावॉट बिजली का उत्पादन किया जा सकता है । 
इन जलराशियों से वाष्पित होने वाले पानी का दोहन ऊर्जा उत्पादन हेतु करने के लिए इनकी सतह पर वाष्पन इंजिन लगाने    होगें । इससे एक फायदा तो यह होगा कि भाप बनकर उड़ जाने जाने वाले पानी को बचाया जा सकेगा और बिजली का उत्पादन भी किया जा सकेगा । मगर वाष्पन इंजिन अभी बनाया नहीं गया है हालांकि साहिन की टीम ने इसके कुछ प्रारंभिक मॉडल बनाए है । 
इंजिन के एक संस्कारण में पटि्टयों को पानी की सतह के ठीक ऊपर रखा जाता है । जब उसके ऊपर लगे शटर को बंद कर दिया जाता है तो वहां नमी इकट्ठा होने लगती है और पट्टी फैल जाती है । पट्टी फैलने की वजह से शटर खुल जाता है । इस तरह के फैलने सिकुड़ने का उपयोग बिजली बनाने में किया जा सकता है । 

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