विज्ञान-जगत
प्राचीन काल के महान वैज्ञानिक अरस्तू
डॉ. विजयकुमार उपाध्याय
अरस्तू प्राचीन यूनान के एक महान वैज्ञानिक दार्शनिक तथा शिक्षाविद् थे । उनका जन्म ३८४ ईसा पूर्व आएजियन सागर के किनारे एक यूनानी उपनिवेश के स्टैगिरा नामक स्थान पर हुआ था ।
उनके पिता का नाम निकोमैकस था जो मेसिडोनिया के सम्राट अमितास द्वितीय के राज चिकित्सक थे । चूंकि अरस्तू के पिता एक चिकित्सक थे, बचपन से ही अरस्तू के मन मेंजीव विज्ञान के प्रति अभिरूचि जागृत हो गई । वे बचपन से ही जीव जन्तुआें के हावभाव, स्वभाव, खान-पान तथा अन्य आदतों का पर्यवेक्षण काफी गहराई से किया करते थे ।
अरस्तू १७ वर्ष की उम्र में ज्ञान प्रािप्त् के लिए प्लेटो के शिष्य बने । उनके शिष्य के साथ-साथ वे उनके सहयोगी भी बनते गए । वे प्लेटो द्वारा स्थापित एकेडमी ऑफ एथेस के कार्योमें सक्रिय रूप से हाथ बंटाने लगे । उस समय तक एकेडमी के कार्य कलाप काफी बढ़ गए थे । एकेडमी में विज्ञान से संबंधित कई प्रकार के शोध किए जाने लगे थे ।
विशेष कर गणित एवं खगोल विज्ञान का गहन अध्ययन प्रारंभ हो चुका था । इन विषयों के साथ-साथ चिकित्सा विज्ञान का भी अध्ययन अध्यापन प्रांरभ किया गया । हालांकि प्लेटो स्वयं गणित में अधिक रूचि रखते थे, परन्तु उनके प्रमुख शिष्य होने के बावजूद अरस्तु की मुख्य रूचि जीव विज्ञान के क्षेत्र में थी । यही कारण था कि परवर्ती वैज्ञानिकों ने प्लेटो को एक महान गणितज्ञ के रूप में माना, जबकि अरस्तू को एक जीव वैज्ञानिक के रूप में । जहां प्लेटो ने ज्यामिति, संख्याआें के गुण इत्यादि के अध्ययन में समय व्यतीत किया तथा इनसे संबंधित सिद्धांतों का प्रतिपादन किया, वहीं अरस्तू ने जीव विज्ञान के अध्ययन में समय बिताया तथा इससे संबंधित सिद्धांत प्रतिपादित किए ।
आज से लगभग दो हजार चार सौ वर्ष पूर्व जीव विज्ञान के संबंध में अरस्तू ने जो शोध कार्य किए और उनके आधार पर जो सिद्धांत विकसित किए वे काफी महत्वपूर्ण थे । उन्होंने जैविक पदार्थो के लक्षण एवं स्वभाव तथा जीवों की उत्पत्ति पर काफी गहराई से अध्ययन किए । एकेडमी ऑफ एथेंस में रहते हुए ही अरस्तू ने एक महत्वपूर्ण ग्रंथ डायलॉग का लेखन किया था । इस पुस्तक में जीव विज्ञान से संबंधित विभिन्न विषयों की विवेचना संतोषजनक ढंग से की गई थी । परन्तु यह ग्रंथ आज उपलब्ध नहीं है । इस पुस्तक के संबंध मेंकुछ जानकारी विभिन्न विद्वानों द्वारा लिखी गई टीकाआें से प्राप्त् होती है । इन टीकाआें में डायलॉग की काफी प्रशंसा की गई थी । जीव विज्ञान से संबंधित अपने समय का यह सर्वोत्कृष्ट ग्रंथ था ।
३४७ वर्ष ईसा पूर्व प्लेटो के निधन के बाद एकेडमी ऑफ एथेंस के प्रधान उनके भतीजे स्पेडसिप्पसा बने । धीरे-धीरे एकेडमी में अध्ययन-अध्यापन एवं शोध का वातावरण बिगड़ता गया । एकेडमी का माहौल अनुकूल नहीं रहने के कारण अरस्तू काफी चिन्तित एवं असंतुष्ट रहने लगे थे । अंत में वहां की परिस्थिति इतनी बिगड़ गई कि ऊबकर अरस्तू ने वह स्थान छोड़ दिया । एकेडमी ऑफ एथेंस छोड़ने के बाद वे ऐस्सस चले गए तथा वहीं बस गए । परन्तु वे तो स्वभाव से कर्मठ व्यक्ति थे । उन्हें निष्क्रिय बैठे रहना कभी भी अच्छा नहीं लगता था । ऐस्सस में भी अपनी सक्रियता पूर्ववत बनाए रखने के लिए उन्होंने एक विद्यापीठ की स्थापना की । इस स्थान पर वे लगातार तीन वर्षो तक शिक्षण कार्य करते रहे । इस विद्यापीठ में अरस्तू के शिष्यों में उस क्षेत्र क राजा हरयिमास भी शामिल थे । कुछ ही समय बाद लेस्बोस निवासी थियोफ्रेस्टस भी इस विद्यापीठ में आकर रहने लगे तथा शीघ्र ही उनकी गणना अरस्तू के प्रमुख शिष्योंमें होने लगी ।
ऐस्सस के सम्राट हरमियास अरस्तू का बहुत सम्मान करते थे । उन्होंने अरस्तू से अनुरोध किया कि वे उनकी पुत्री को पत्नी रूप में स्वीकार करें । अरस्तू ने उनके अनुरोध को मानते हुए उनकी पुत्री से विवाह कर लिया । कुछ समय बाद अपने प्रमुख शिष्य थियोफ्रैस्टस के बहुत अनुरोध पर वे लेस्बोस द्वीप पर जाकर रहने लगे । लेस्बोस द्वीप आएजियन सागर में एशिया माइनर (वर्तमान तुर्की का एक भाग) से थोड़ी दूर स्थित था ।
लेस्बोस वही स्थान है जहां ईसा पूर्व सातवी शताब्दी में सेफ्फो नाम की ग्रीक कवयित्री द्वारा लेस्बियन संस्कृति की शुरूआत की गई थी । लेस्बोस द्वीप पर अरस्तू ने दो वर्षो का समय बहुत ही आनंदपूर्वक व्यतीत किया । यहीं पर उन्होंने जीव विज्ञान से संबंधित अनेक शोध किए । यहीं रहते हुए अरस्तू ने प्राकृतिक इतिहास, विशेषकर समुद्री जीव विज्ञान के संबंध में गहन अध्ययन किए तथा कई महत्वपूर्ण सिद्धांत प्रतिपादित किए ।
जिस समय अरस्तू लेसबोस में रह रहे थे, उस समय सिकंदर के पिता फिलिप मेसिडोनिया के सम्राट थे । आजकल प्राचीन मेसिडोनिया का अस्तित्व नहीं रहा । यह स्थान आधुनिक काल में यूनान, युगोस्लाविया तथा बुल्गारिया के बीच विभाजित है । जब फिलिप के कानों में अरस्तू की प्रसिद्धि की खबर पहुंची तो उन्होंने अरस्तू से अनुरोध किया कि वे पेल्ला (मेसिडोनिया) में चलकर रहे । फिलिप की इच्छा थी कि वे उनके पुत्र सिकंदर के गुरू अरस्तू ही बने । अरस्तू फिलिप के अनुरोध को मानकर मेसिडोनिया में रहने लगे । यहां लगभग सात वर्षो तक रहे तथा सिंकदर को शिक्षा प्रदान करते रहे । सम्राट फिलिप तथा उनका पुत्र सिकंदरदोनों ही अरस्तू से काफी प्रभावित थे ।
३३६ वर्ष ईसा पूर्व सम्राट फिलिप का निधन हो गया । उसके बाद उनका पुत्र सिकंदर गद्दी पर बैठा । अब अरस्तू का मेसिडोनिया में कोई काम शेष नहीं बचा था । अत: वे मेसिडोनिया छोड़ एथेंस में जाकर रहने लगे जो यूनान में ज्ञान-विज्ञान का प्रमुख केन्द्र था । इस स्थान पर वे ३३५ ईसा पूर्व से ३२२ ईसा पूर्व तक जीव विज्ञान के गहन अध्ययन में व्यस्त रहे । यहां प्लेटो द्वारा स्थापित एकेडमी ऑफ एथेंस के अलावा अरस्तू ने एक नए सस्थान की स्थापना की जिसे पेरिपैटेटिक स्कूल कहा जाता था । पेरिपेटेटिक शब्द ग्रीक भाषा के शब्द पेरिपैटोस से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ है उद्यान मेंटहलने का रास्ता । चूंकि शुरू-शुरू में अरस्तू उद्यान में टहलते हुए ही अपने शिष्यों को उपदेश एवं ज्ञान प्रदान करते थे अत: इसे पेरिपैटेटिक स्कूल कहा जाने लगा ।
यह स्कूल भी कालक्रम में एक प्रसिद्ध महाविद्यालय के रूप मेंविकसित हुआ । इस संस्थान में पठन-पाठन के अलावा छात्रावास तथा पुस्तकालय की भी सुविधा उपलब्ध थी । इस पुस्तकालय में उस काल के प्रसिद्ध लेखकों की पुस्तकों का संग्रह था । इस प्रकार अरस्तू द्वारा स्थापित यह पेरिपैटेटिक स्कूल उस काल में अध्ययन एवं शोध का एक प्रमुख केन्द्र था । काफी दूर-दूर से लोग इस शिक्षा संस्थान में आते थे तथा अध्ययन एवं शोध कार्य करते थे ।
अरस्तू ने विज्ञान के अलावा भी अनेक विषयों पर अपने लेखनी चलाई तथा कई महत्वपूर्ण ग्रंथों का सृजन किया । अन्य विषयों में शामिल थे - अध्यात्म, राजनीति, खेल, इतिहास, खगोल विज्ञान वगैरह । उनके द्वारा लिखित सबसे प्रसिद्ध पुस्तक थी हिस्टोरिया ऐनिमेलियम जो जीव विज्ञान से संबंधित थी । उस काल के दौरान जीव विज्ञान पर लिखी गई यह सबसे प्रमुख पुस्तक थी । इस पुस्तक की रचना अरस्तू ने अपने शिष्य सिकंदर द्वारा विश्व विजय के दौरान एकत्र की गई वस्तुआें के अध्ययन के आधार पर की थी । इस पुस्तक में विभिन्न जीवों के लक्षण, आचरण तथा मनोविज्ञान के विषय में विवरण दिया गया है । साथ ही इस गं्रथ में कई सिद्धांतों की विवेचना की गई है ।
जब अरस्तू पेरिपैटेटिक स्कूल में कार्यरत थे उसी दौरान ३२३ वर्ष ईसा पूर्व उन्हें सिकंदर के निधन का समाचार मिला । जब तक सिकंदर जीवित थे तब तक यूनान में शांति तथा अनुशासन का वातावरण था । सिकंदर के विरोधी भी सिर उठाने का साहस नहीं कर पाते थे ।
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