सोमवार, 16 अक्टूबर 2017

सामाजिक पर्यावरण 
पर्यावरण को नजरअंदाज करने के परिणाम
शर्मिला पाल

बढ़ते तापमान का अर्थ केवल पृथ्वी का गर्म होना नहीं है । इसका सीधा प्रभाव अब सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य के हालात पर पड़ रहा है । 
पृथ्वी के बढ़ते तापमान के लिए इंसानी गतिविधियां तो जिम्मेदार है ही लेकिन टेक्नॉलॉजी भी इसका बड़ा कारण है । बढ़ती जनसंख्या के लिए घर मुहैया कराने के लिए जंगलों की कटाई, अधिक से अधिक उपकरणों का प्रयोग, इसका परिणाम बढ़ते तापमान और पर्यावरण में असंतुलन के रूप में सामने आ रहा है । इसके भयावह परिणामों की चेतावनी पिछले कई दशक से वैज्ञानिक देते आ रहे हैं । 
पृथ्वी के जल, थल और वायु के औसत तापमान मेंहोने वाली वृद्धि ग्लोबल वॉर्मिग कहलाती है । इंटर गवर्मेटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज के अनुसार ग्लोबल वॉर्मिग का मुख्य कारण ग्रीन हाउस प्रभाव है । यह प्रक्रिया तब होती है, जब सूर्य की रोशनी वातावरण को गर्म करती है । ग्रीन हाउस प्रभाव के कारण गर्मी वातावरण को भेद कर निकल नहीं पाती हैं और यहीं कैद होकर रह जाती है । इससे पृथ्वी का तापमान तेजी से बढ़ता जा रहा है । 
ग्लोबल वार्मिग का सीधा-सीधा प्रभाव ग्लेशियर्स पर पड़ रहा   है । तापमान के बढ़ने के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जिससे विश्व के कई हिस्सों में बाढ़ की स्थिति बन जाती है । इतना ही नहीं, समुद्र का स्तर बढ़ने से जीवों की कई प्रजातियां खतरे के जद में आ गई है और हमारे इकोसिस्टम का संतुलन बिगड़ता जा रहा है । 
तापमान में वृद्धि के परिणाम बदलते मौसम के रूप मेंहमें नजर आने लगे हैं । ग्लोबल वॉर्मिग के कारण वाष्पीकरण की प्रक्रिया तेज होने लगती है, जिससे अनियत्रिंत बारिश का खतरा बढ़ता है । कई इलाकों में बाढ़ जैसी स्थिति हो जाती है । अत्यधिक बारिश को कई जानवर और पेड़-पौधे सहन नहीं कर पाते, नतीजतन पेड़-पौधे कम हो रहे है और जानवर अपनी जगह से पलायन कर रहे है । इसका प्रभाव इकोसिस्टम के संतुलन पर पड़ रहा है । 
एक तरफ जहां ग्लोबल वॉर्मिग से बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो रही है, वहीं कई देशों में सूखे की समस्या पैदा हो रही है क्योंकि वाष्पीकरण के कारण केवल बारिश की मात्रा नहीं बढ़ है, बल्कि सुखे की समस्या भी बढ़ रही है । इससे विश्व के कई हिस्सोंमें पीने योग्य पानी की किल्लत बढ़ती जा रही है । सूखे के कारण लोगों को पर्याप्त् भोजन नहीं मिल पा रहा और इससे कई देशों में भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई है । 
जैसे-जैसे तापमान बढ़ता जा रहा है, उसका असर हमारे स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है । अत्यधिक बारिश के कारण जलजनित बीमारियां जैसे मलेरिया, डेंगू का प्रकोप बढ़ रहा    है । वातावरण में कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर बढ़ता जा रहा है, जिससे लोगों को सांस लेने में भी परेशानी का अनुभव होता है । यदि तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो सांस संबंधी बीमारियां और उसके लक्षण तेजी से फैलेगें । 
विश्व स्वास्थ्य संगठन की हेल्थ रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया था कि पूरे विश्व में मध्यम आय वर्ग वाले लोगों में दस्त की वजह से २.४ प्रतिशत लोग और मलेरिया की वजह से ६ प्रतिशत लोगों की मौत होगी । 
यह ग्लोबल वॉर्मिग के एक नए पक्ष के रूप में उभर रहा है जिस पर विशेषज्ञ शोध कर रहे है । ऐसा माना जा रहा है कि जो लोग सूखे, बाढ़, आंधी और ऐसी ही किसी प्राकृतिक आपदा में अपना घर और परिवार खो देते है, उसका प्रभाव उनकी मानसिक सेहत पर पड़ता है । उनमें पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी), गंभीर अवसाद एवं अन्य मानसिक बीमारियों के लक्षण देखे जाते हैं । सूखे की गंभीर स्थिति होने पर कई किसान आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लेते हैं । 
आने वाले वर्षो में ग्लोबल वॉर्मिग का सबसे अधिक प्रभाव हमारी कृषि पर पड़ने वाला है । वैसे कई बार हमें इसका परिणाम फसल की बर्बादी के रूप में भुगतना भी पड़ता है । अधिक तापमान के बीच कई पौधों का पनप पाना मुश्किल होता है और धीरे-धीरे उनका अस्तित्व खत्म होता जाता है । बेमौसम बारिश या अत्यधिक सूखे के कारण कई फसलें टिक नहीं पाती । ऐसे में अनाजों के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं । पेड़-पौधे हमारे भोजन का मुख्य स्त्रोत होते हैं, ऐसे में इनके खत्म होने से हमारा आधार ही छिन   जाएगा । पूरे विश्व में खाने की कमी हो जाएगी और इसकी अत्यधिक आशंका है कि यह कई देशों के बीच युद्ध का कारण बने । 
ग्लोबल वॉर्मिग के कारण अब कई मौसमों के आने का पता भी नहीं चल पाता । कई बार बसंत समय से पूर्व आता है और समय से पूर्व चला भी जाता है । कई हिस्सों में बारिश का मौसम इतना लम्बा चलता है कि फसले बर्बाद हो जाती है और कुछ इलाकों में गर्मी का लंबा मौसम हमारे जीवन को प्रभावित करता है । 
इकोसिस्टम के असंतुलन से कई जानवरों की प्रजातियां खतरे में आ गई है । कई प्रजातियां लुप्त् हो चुकी है तो कई विलुिप्त् के कगार पर खड़ी है । इस तरह जानवरों के खत्म होने से विश्व भर में संतुलन खतरे में पड़ जाएगा । 
बढ़ती गर्मी के कारण जंगलों में लगने वाली आग की घटनाआें में और इजाफा हो गया है । इससे जंगलों में रहने वाले जीव-जन्तुआें के साथ-साथ उसके आसपास रह रहे लोगों के जीवन पर भी संकट मंडरा रहा है । 
फसलों के खत्म होने के साथ-साथ वस्तुआें के उत्पादन और निर्माण पर भी प्रभाव पड़ रहा है । प्रकृति के लगातार प्रभावित होने से खाद्य उद्योगों पर भी उसका गंभीर असर होने लगा है । लोगों की खाने की जरूरतों को पूरा करना अब एक बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है । 
यदि समुद्र का स्तर बढ़ेगा तो बाढ़ की समस्या भी बढ़ती जाएगी और इसका प्रभाव हमारी पूरी बिजली व्यवस्था पर पड़ेगा । आंधी, तुफान और तेज बारिश की वजह से पूरा ग्रिड उखड़ सकता है और इससे हमारी पूरी जीवनशैली तहस-नहस हो सकती है क्योंकि बिजली से ही हमारे कई कार्य संचालित होते हैं । 
समुद्र का स्तर बढ़ने से कई देशों के इसके अंदर समा जाने की आशंका बढ़ती जा रही है । जिस तरह से ग्रीनलैंड जैसे देश का अस्तित्व तेजी से खत्म होता जा रहा है उससे आने वाले समय में सुन्दर शहर, देश और यहां तक कि महादेश भी समुद्र में समाकर इतिहास बन जाएंगे । 
यूं तो इंसानों में हिंसा के कई कारण होते है लेकिन आने वाले समय में इसकी मुख्य वजहों में धरती का बढ़ता तापमान भी शामिल हो जाएगा । खाने और पानी की कमी से लोगों में असंतोष पैदा होगा और वे इसे पाने के लिए हिंसा करने से भी नहीं चूकेंगे । यही स्थिति वैश्विक स्तर पर युद्ध का रूप ले सकती     है ।
तापमान में लगातार वृद्धि के कारण घरों और दफ्तरों में एअरकंडीशनर का प्रयोग बढ़ता जा रहा है जिससे घरों या दफ्तरों के अंदर और बाहर तापमान में काफी अंतर पाया जाता है और यही अंतर समस्या का कारण बनता है । इससे त्वचा, म्यूकस मेम्ब्रेन और आंखों में सूखेपन की समस्या हो जाती है । आँखों और श्वसन संबंधी इंफेक्शन की परेशानी बढ़ जाती है । साथ ही तापमान में परिवर्तन के कारण मांसपेशियों मं दर्द महसूस होता है । 
दमा पीड़ितों के लिए इस तरह का परिवर्तन बहुत पीड़ादायी होता है, उन्हें बार-बार इसका दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है । लोगों को नाक बहने, मांसपेशियों में दर्द, साइनुसइटिस, जुकाम, गले में खराश और शरीर में दर्द की समस्या लगातार होती रहती है । इन समस्याआें का सबसे बड़ा कारण एअरकंडीशनर होता है । मौसम में अचानक होने वाले बदलाव के साथ कई सारी परेशानियां जुड़ी होती है । इस परिवर्तन के कारण ब्लडप्रेशर कम हो जाता है । जोड़ों में दर्द की समस्या होती है, सिरदर्द और माइग्रेन की आशंका बढ़ जाती है ।
इन दिनों जैसे-जैसे मौसम में बदलाव होने लगता है, वैसे-वैसे वायरल बुखार के मामले सामने आने लगते हैं । वायरस से होने वाला यह बुखार गला दर्द व नाक बहने की समस्याआें को साथ लेकर आता है जो बच्चें और बड़ों को समान रूप से प्रभावित करता है । किसी के साथ भी ऐसा हो सकता है कि एक सुबह जब वह उठे तो उसके सिर मेंदर्द हो, जोड़ों में दर्द हो या त्वचा पर ददोरे उभर आए हो । वायरस की प्रकृतिके मुताबिक प्राथमिक संक्रमण की अवधि कुछ दिनों से लेकर हफ्तोंतक रह सकती है । यदि बुखार नीचे भी आ जाए तो भी कुछ मामलों में वायरस बढ़ता रहता है जिससे संक्रमण बना रहता है । ज्यादातर वायरल बुखार एक सप्तह में ठीक हो जाते हैं हालांकि कमजोरी हफ्तों तक बनी रह सकती है । 
ग्लोबल वॉर्मिग रोकने के छोटे-छोटे प्रयास ला सकते है बड़ा परिवर्तन । इसे रोकना किसी एक व्यक्ति के बस की बात नहीं, लेकिन छोटे-छोटे प्रयास इसकी गति को कम जरूर कर सकते है । हम चाहे घर पर हो या दफ्तर में हमारी हर गतिविधि पर्यावरण की सुरक्षा को ध्यान में रखकर होनी चाहिए । 
प्रदूषण कम से कम करने और ऊर्जा के साधनों को सुरक्षित रखने का प्रयास करें । जब आप किसी कमरे की लाइट प्रयोग न कर रहे हो या कम्प्यूटर पर काम न कर रहे हो तो उन्हें बंद कर दें । 
सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करें या फिर एक ही स्थान पर जाने के लिए लोग कारपूलिंग करके ईधन की बचत कर सकते    है ।  
ऊर्जा की बचत करने वाले उपकरण ही खरीदें या ऐसी गाड़िया खरीदें जिनमें ईधन की खपत कम होती हो । स्थानीय रूप से उगाई गई सब्जियां या निर्मित उत्पाद ही   खरीदे । इससे ढुलाई में लगने वाले अतिरिक्त ईधन की बचत होगी । 

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