विज्ञान हमारे आसपास
गर्भवती मोरनी और मोर के आंसू
कंवर बी. सिंह
पिछले दिनोंराजस्थान हाई कोर्ट के न्यायाधीश ने राष्ट्रीय पक्षी मोर के बारे मेंएक हैरतअंगेज तथ्य का खुलासा किया । यह खुलासा उन्होनें तब किया जब वे गाय और मोर दोनों को पवित्र बताने का प्रयास कर रहे थे । उन्होंने कहा कि मोर आजीवन ब्रह्मचारी रहता है । वह मोरनी के साथ कोई यौन क्रिया नहीं करता । मोरनी तो मोर के आसू पीकर गर्भवती हो जाती है ।
माननीय न्यायाधीश के इस कथन ने एक महत्वपूर्ण तथ्य को रेखांकित किया है - इतिहास के आरंभ से ही हर संस्कृति मेंजानवर और पक्षी लोगों को नैतिक मार्गदर्शन प्रदान करते आए है । पक्षियों समेत ईश्वर के समस्त जीव-जन्तुआें को अनुकरणीय आदर्श के रूप में देखा गया है । कितने सारे देशों के राष्ट्रीय प्रतीकों में पक्षी को स्थान मिला है । यू.एस में बाल्ड ईगल (उत्तरी अमेरिका का सफेद सिर वाला गरूड़) इसका एक प्रमुख उदाहरण है ।
नारीद्वैष और पितृसत्ता भारतीय समाज का कलंक रहे है । वैसे विज्ञान भी कभी-कभी लिंगभेदवाही हो सकता है । अभी हाल तक ऐसा माना जाता था कि पक्षियों में नर हॉरमोन की उपस्थिति नर के लैगिक लक्षणों का नियमन करती है - जैसे प्रजनन ऋतु में मोर को अपने सुन्दर पंख फैलाकर प्रदर्शन करना या कई पक्षियों में गीत गाना वगैरह । मगर सच्चई बिल्कुल विपरीत है । पक्षियों में अधिकांश नरनुमा लक्षण उनमें टेस्टोस्टेरोन नामक हॉरमोन की उपस्थिति की वजह से पैदा नहीं होते बल्कि मादा हॉरमोन एस्ट्रोजन की अनुपस्थिति की वजह से प्रकट होते हैं । इसका मतलब है कि पक्षियों में मादा विशेष स्थिति रखती है, नर तो एस्ट्रोजन के न होने पर चूक से बन जाते हैं ।
अन्य पक्षी प्रजातियों के समान, नर मोर में भी एस्ट्रोजन का निर्माण नहीं होता और इसकी वजह से उनमें इतने सुन्दर भड़कीले पंख पाए जाते है । इनको प्रदर्शित करके वे मादा को संभोग के लिए आकर्षित करने का प्रयास करते है । दूसरी ओर, मोरनी में एस्ट्रोजन का निर्माण होता है, जिसके चलते उसके पंख काफी अलग होते है । कोई मादा पक्षी यदि प्रजनन अंगो में किसी गड़बड़ी की वजह से एस्ट्रोजन बनाना बंद कर दे तो वह कभी कभार नर बन सकती है । पक्षियों में इस तरह के आमूल परिवर्तन के कई उदाहरण है ।
माननीय न्यायाधीश ने मोर के बारे में जो वक्तव्य दिया वह अब काफी मशहूर हो चुका है । इसमें उन्होंने कुंआरे जन्म की बात कही । यह हमारे पुराणों में एक सदगुण माना गया है । महाभारत में कर्ण का जन्म तो एक उदाहरण है । प्राचीन ग्रंथों में ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे ।
कुंआरा जन्म एक रोचक यौन गड़बड़ी है । कई पक्षी व अन्य जानवर यौन संबंध के बिना भी प्रजनन कर सकते है । अर्थात इनकी मादाएं नर के योगदान के बगैर भी संतानोत्पति कर सकती है । इसे पार्थेनोजेनेसिस या अनिषेचजनन कहते है । अर्थात ऐसा प्रजनन जिसमें नर शुक्राणु के द्वारा अंडे का निषेचन न हो । किन्तु मोर जैसे जिन पक्षियों मुर्गियां, टर्की, कबूतर में पार्थेनाजेनेसिस देखा गया है, उनमें भू्रण का विकास विकृत हो जाता है । बहुत कम बार ऐसा होता है कि पार्थेनाजेनेसिस का कोई उदाहरण नहीं देखा गया है । अत: नर और मादा के बीच समागम एक सामान्य भ्रूण के निर्माण के लिए अनिवार्य है, जिससे मोर के चूजे पैदा हो सकें ।
अब एक बड़ा सवाल यह है कि पक्षी संभोग कैसे करते है ?
कुछ बड़े पक्षियों - जैसे हंस, बतख और शुतुरमुर्गो में एक छोटा सा लिंग (शिशन) होता है । किन्तु अधिकांश पक्षियों में शिश्न नहीं पाया जाता । शिश्न-विहीन इन सारे पक्षियों में प्रजनन मार्ग क्लोएका नामक प्रकोष्ठ के अंदर खुलता है । क्लोएका आंत के अंतिम छोर के निकट होता है । इसी में आंत का भी समापन होता है । अत: पक्षियों में मलाशय और प्रजनन मार्ग क्लोएका में जुड़ जाते हैं । यही स्थिति मोर में भी पाई जाती है ।
इनमें संभोग का अर्थ होता है कि नर व मादा पक्षी को क्लोएका चंद क्षणों के लिए पास-पास आकर सट जाते हैं । इसे बोलचाल की भाषा में क्लोएकल चुंबन कहते हैं । यह चंद सेकण्ड की यौन अंतर्क्रियाहै जिसके दौरान नर अपने शुक्राणु मादा के क्लोएका में पहुंचा देता है । इस दौरान रोने-गाने, आंसू बहान-पिलाने का वक्त नहीं होता ।
यह जानते हुए कि जोड़ी बनाना और एकपत्नी प्रथा हमारे यहां एक बड़ी बात मानी जाती है, तो मुझे लगा कि यह देखना दिलचस्प होगा कि मोर मोरनी का अपने अभिभावकीय (मातृत्व-पितृत्व) दायित्वों में प्रदर्शन कैसाहोता है । मशहूर पक्षी वैज्ञानिक डेविड लीक का अनुमान है कि लगभग ९० प्रतिशत पक्षी एक-एक का संबंध बनाते है । यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें नर और मादा दोनो मिलकर संतोनों की देखभाल करते हैं ।
अलबत्ता, मोर जिस तरीके से जीवन यापन करते हैं उसे बहुपत्नी प्रथा कहते है । एक-एक नर की कई मादा साथिनें होती है और ये मादाएं नर मोर से संपर्क सिर्फ संभोग के लिए करती है । एक बार संभोग हो जाने के बाद नर मोर को अंडे सेने या चूजों की देखभाल करने की कोई परवाह नहीं होती । सारे अभिभावकीय दायित्व मादा अकेलेही निभाती है । कहने का मतलब है कि हमारा नायक पक्षी किसी मायने में अभिभावकीय गुणों का अच्छा उदाहरण नहीं है ।
पुराने समय में अंधविश्वास और ईश्वर का भय तर्क और सहजबुद्धि पर हावी रहता था । मगर विज्ञान ने प्राकृतिक विश्व के बारे में हमारी समझ को काफी विस्तार दिया है और जीव-जन्तुआें के सेक्स के ईद-गिर्द बुन गए कई मिथकोंको निराधार साबित कर दिया है ।
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