गुरुवार, 15 मार्च 2018

खास खबर
शहद के नाम पर मीठा ज़हर
(हमारे विशेष संवाददाता द्वारा)
पिछले दिनों पतंजलि शहद के नाम पर मीठा ज़हर बेचने वाली कंपनी पर रायपुर मे तो कार्यवाई हुई, लेकिन यह ऐसी अकेली कंपनी नहीं है, बल्कि पतंजलि के साथ साथ डाबर, वैद्यनाथ, आयुर्वेद, खादी, हिमालया सहित ऐसे विदेशी ब्रांड भी शहद के नाम पर एक ऐसा ज़हर बेच रहे हैं, जो स्वास्थ्य के लिए घातक है । 
शुद्ध और प्राकृतिक शहद के भ्रम को सीएसई पॉल्यूशन मॉनिटरिंग लैब ने तोड़ दिया है..इस लेब ने चौंकाने वाली रिपोर्ट देते हुए शहद को एंटीबायटिक से प्रदूषित पाया.. भारत में बिकने वाले शहद के विदेशी ब्रांड भी इस प्रदूषण से मुक्त नही हैं । सीएसई लैब की इस जांच ने दिल्ली में बिकने वाले शहद के नामचीन ब्रांड में भी इसी प्रकार का प्रदूषण पाया है, यह वह जहर है, जिसके कारण शहद का लगातार सेवन स्वास्थ्य पर गंभीर विपरीत प्रभाव डालता है । सीएसई ने प्रयोगशाला में जांच के दौरान पाया कि एंटीबायोटिक्स वाले इन शहद से शरीर के संचार मेंबाधा पहंुचती है ।
लीवर क्षतिग्रस्त होता है शरीर का सुरक्षा तंत्र नाकारा हो जाता है यानी जिस शहद को हम अमृत तुल्य मानते हुए उसका सेवन कर रहें होते है, वही हमारे लिए एक स्लो पाइजन की तरह शरीर में प्रभाव छोड़ता रहता है । यही वजह है कि अधिकांश देशों ने खाद्य उत्पादों में एंटीबायटिक का प्रयोग प्रतिबंधित कर दिया है और एंटीबायटिक प्रदूषित शहद का आयात भी नहीं कर रहे है । 
यह दुर्भाग्यजनक है कि भारत एंटीबायटिक शहद का आयात करता है, जो शहद हमारे देश में आ रहा है, उस जहरीले शहद को वहीं कंपनियां खुद अपने ही देश में नही बेच सकतीं । ठीक इसी एंटीबायटिक का उपयोग हमारे देश की नामी कंपनियां कर रही है । इन कंपनियों का यह शहद शरीर में आकर ज़हर बन जाता है । अकेलेडाबर हनी की ही बात करें तो सीएसई रिपोर्ट के  अनुसार उसमें मानक स्तर से ९ गुना ज्यादा एंटीबायटिक पाया गया । वजह साफ है बाजारवाद हावी है और इसी चक्कर में उपभोक्ताआें के साथ लगातार धोखा हो रहा है ।
मुनाफे के बाजार ने लोगोंकी जिंदगी से खिलवाड़ करना शुरु कर दिया है । शहद के नाम पर मीठा ज़हर बेचने वाली इन कंपनियोंको सिर्फ पैसे कमाने से मतलब है । लापरवाही कोई भी करेंपरंतु अंतत: इस मीठे ज़हर से पिसना तो आम जनता को ही है । पूरे देश मेंयह ज़हरीला शहद खुले आम बिक रहा है । लोग भी इन कंपनियोंके शहद को प्योर मानकर सेवन कर नए नए रोग गले लगाते जा रहे है ।
सीएसई पाल्यूशन मॉनीटरिंग लैब ने ६ एंटीबायटिक्स के लिए १२ ब्रांड्स का परीक्षण किया और इनमें से ११ ब्रांड्स में एंटीबायटिक्स को पाया । ये सेंपल सामान्य रुप से दिल्ली की दुकानों से २००९ में खरीदे गए । इन १२ में से १० भारतीय और २ आयातित ब्रांड्स थे । जो ६ एंटीबायटिक्स इनमें पाए गए वे ऑक्सीटेट्रासाइक्लीन, क्लोरमफेनीकॉल, एम्पीस्लीन, इरीथ्रोमाइसिन, यूरोफ्लोक्सासिन और सिप्रोफ्लोक्सासिन थे । जो घरेलू ब्रांड टेस्ट किए गए इनमें डाबर इंडिया कंपनी की डाबर शहद भी थी, जिसका बाजार में७५ प्रतिशत कब्जा है । हिमालया ड्रग कंपनी की हिमालया फारेस्ट शहद (भारत की पुरानी आयुर्वेदिक ड्रगकंपनी में से एक), हरिद्वार स्थित पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड की पतंजलि शुद्ध शहद और वैद्यनाथ आयुर्वेद भवन (कोलकाता) की वैद्यनाथ जंगली फूलों की शहद जिसका बाजार में १० प्रतिशत कब्जा है, शामिल है । 
दो विदेशी ब्रांड्स में कैपिलानो हॅनी लिमिटेड (ऑस्ट्रेलिया की प्रमुख कंपनी) की कैपिलानो प्योर एंड नेचुरल हॅनी, जिसका निर्यात विश्व के ४० देशोंमे होता है, स्विट्जरलैंड की नेक्टाफ्लोर नेचुरल ब्लाज्म हॅनी सेंपल में ५० प्रतिशत सेंपल ऑक्सीटेट्रासाइक्लीन था, ओटीसी की मात्रा प्रति किलो २७ से २५० माइक्रोग्राम पाई गई । यह भारत द्वारा निर्यात की जाने वाली शहद के लिए निर्धारित स्तर से ३ से ५ गुना ज्यादा है ।
इसका सर्वाधिक उच्च स्तर मधेपुरा (बिहार) के खादी ग्राम उद्योग सेवा समिति द्वारा उत्पादित खादी हॅनी मेंपाया गया । ईयू में प्रतिबंधित क्लोरफेनिकाल २५ प्रतिशत सेंपल में पाया गया । एम्पीस्लन ६७ प्रतिशत सेंपल में पाया गया । इसका सर्वाधिक स्तर स्वीट्जरलैंड की शहद नेक्टाफ्लोर नेचुरल ब्लाजम शहद में मिला । किसी भी देश में शहद के अंदर एम्पीस्लीन का स्तर निर्धारित नहीं है । इसका कारण यह मान्यता है कि मधुमक्खी पालने में इसका प्रयोग नहीं किया जाता । इस कारण यह शहद के लिए अवांछनीय घटक है । 
इसी प्रकार इंफ्रोफ्लाक्सासिन, सिप्रोफ्लाक्सासिन और एरीथ्रोमाइसीन का भी कोई स्तर नहीं है । इनका इस्तेमाल गैरकानूनी ढंग से होता है ।
मधुमक्खी पालन उद्योग में मधुमक्खियों को बीमारी से बचाने के लिए एंटीबायटिक्स दिए जाते है । इससे शहद उत्पादन में भी वृद्धि होती है और यह एंटीबायटिक्स व्यक्ति द्वारा एक चम्मच शहद के जरिए शरीर में प्रवेश कर जाते हैं । ऐसा मधुमक्खियों की नस्ल परिवर्तन के कारण भी हो रहा है । 
भारतीय मधुमक्खियां प्राकृतिक वातावरण के अधिक समीप होती है, परंतु अब इनका स्थान यूरोपियन मधुमक्खियोंने ले लिया है । इसी प्रकार शहद एकत्र करने का ढंग भी बदल गया है । यह छोटे उत्पादकों के हाथ से निकलकर उच्च स्तर की उत्पादकता वालों के हाथ जा चुका है, जिसका स्वास्थ्य से कोई लेना-देना नहींहै ।                       ***

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