विश्व वानिकी दिवस पर विशेष
विषय - आधारित पौधारोपण
प्रशांत/सुमीत कुमार
सन् १९७१ में२१ मार्च को पहली बार विश्व वानिकी दिवस इस उद्देश्य से मनाया गया कि विश्व के विविध राष्ट्र अपनी-अपनी वनसम्पदा के महत्व को समझें व भूमि पर नैसर्गिक पौधारोपण करते हुए वन सरंक्षण एवं वन-संवर्द्धन करें ।
विषय आधारित अथवा विशेषीकृत पौधारोपण के माध्यम से हर व्यक्ति व समूह से लगाव वाले पौधारोपण की अलख सब और जगायी जा सकती है ।
विषय आधारित पौधारोपण विभिन्न विषयोंसे जोड़कर किया जाये तो उस स्थान को अभूतपूर्व प्रेरणास्त्रोत व दर्शनीय स्थल सहित जीवन्त संग्रहालय अथवा सजीव कक्षा के भी रुप मेंसुस्थापित किया जा सकता है, जैसे - वर्णमाला वन `अ' से अमरुद, `आ' से आम, `क' से कदम्ब, `ख' से खमेर । इसी प्रकार वनस्पति वैज्ञानिक नामों की वर्णमाला वन भी स्थापित की जा सकती है, जैसे कि `ऐ' से अजाडिरेक्टा इंडिका नीम, `बी' से ब्यूटिया मोनोस्पर्मा: पलाश । जेड से जिजिफस ज्रुज्रुबा बेर । वर्णमाला वन किसी भी भाषा से सम्भव है जिससे बच्चे तो बच्चे बल्कि बड़े भी प्रकृति से जीवन के अक्षरोंके जुड़ाव को गहराई से अनुभव कर सकेंगे ।
भारत का मानचित्र धरती पर उकेरकर प्रत्येक राज्य के क्षेत्र मेंउसका राज्य वृक्ष व राज्य-पुष्प रोपित करना । इससे राज्यो सहित राष्ट्र का प्रकृति आधारित जीवंत मानचित्र से वानिकी का संदेश दिया जा सकेगा । इसमेंऐसी प्रजातियों का रोपण कर उनके महत्तव का विवरण लिखा जा सकता है जो एक से अधिक सम्प्रदायों से जुड़ी हो, जैसे कि चौबीसवें नक्षत्र शतभिषक का आराध्य-वृक्ष कदम्ब है एवं बारहवें जैन-तीर्थकर वसुपूज्य का केवली-वृक्ष भी कदम्ब है ।
अपने इष्टदेव/अपनी इष्टदेवी से प्रत्यक्ष रुप से जुड़ी प्रजातियों का रोपण करते हुए उनकी महिमा का बखान लीला-चित्रण के रुप में किया जा सकता है, जैसे कि हनुमानजी के आसपास का स्थान कैसा होता होगा ? सिन्दूर की झाड़ी (असली सिन्दूर इसीके फूल मेंबनता है जबकि हम आप को जो सिंदूर दिखता है तो भारी धातु सीसा इत्यादि की विषाक्त क्रियाआेंकी चमकमात्र है), रामफल, सीताफल, इसी प्रकार असली अशोक (जिसमें सुगंधमय पुष्प खिलते है एवं फलियां बनती है जबकि आजकल अशोक जैसे दिखने वाला पेड़ लगाया जा रहा है जिसमें सुगंधहीन पुष्प व जामुन जैसे दिखने वाले फल होते है)
एक बार सीतामाता को मांग में सिन्दूर लगाते देख हनुमान ने कारण पूछा तो माता बोली कि इससे राम की आयु बढ़ेगी तबसे हनुमान इतने लालायित हो गये कि अपने पूरे शरीर पर सिन्दूर लगाने लगे ताकि राम अमर हो जायें, ठीक इसी प्रकार लंका में स्थान-स्थान पर सीता को खोजने के प्रयासोंके बाद अन्तत: सफलता एक वाटिका में अशोक के वृक्ष के नीचे मिली जहां राम के वियोग से कुल्हलायी सीता राम की बाट जोह रही थी ।
इसमें ऐसे वृक्ष लगाये जा सकते है जो भारतीय पंचांग अनुरुप विभिन्न पर्वो एवं धार्मिक अवसरों से जुड़े हों व प्रत्येक के पास उसका विवरण लिखा हो, जैसे कि गणेश चतुर्थी में दूर्वा एवं जम्बू (जामुन) लगायें क्योंकि दूर्वादल श्रीगणपति को प्रिय है एवं जामुन व कपित्थ (कबीट) उनके पसन्दीदा फल है । बरगद का पेड़ भी अलग से भी लगा लें तो ज्येष्ठ की वट अमावस्या को सुहागिनों का जमघट रहेगा क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन बरगद की परिक्रमाकरने वालियों को बरगद में विराजमान ब्रह्मा, विष्णु व महेश सदा-सुहागिन होने का आशीष देते है ।
शनिवार, शनिजंयती को अथवा शनि की साढ़ेसाती व अढ़ैय्या लगी हो तो काले कँबल,काले तिल, काले कपड़े के दान से अधिक फलदायी होगा यदि काले रंग से जुड़े पेड़-पौधों प्रतिनिधि वृक्ष शमी तथा कौए व काली चींटियों को काले तिलमिश्रित गुड़, काले चने, गली मसूर इत्यादि का सेवन कराया जा सकता है तथा पुराने कपड़ो व सुई धागो की सहायता से कृत्रिम घौंसले बनाकर पेड़ो पर लटकाये जा सकते है क्योंकि वर्तमान में पेड़ पौधे इतने कम बचे है कि पक्षियों को पर्याप्त् स्थान, तिनके वसुरक्षा की सुलभता नहीं हो पाती, हमारे द्वारा लगाये एक घौंसले में तो हमने गिलरियों की पीढ़ियाँ तक देखी है । मौसम कोई भी हो, हर घर कार्यालय इत्यादि में पक्षियों गिलहरियों के लिये सकोरे/मिट्टी के कम से कम दो कटोरे होने ही चाहिए प्रतिदिन एक मेंपानी बदलते रहें एवं दूजे में विभिन्न अनाजों का मिश्रण, सूखी रोटी, बचे चावल इत्यादि डालते रहें ।
विशेषीकृत पौधारोपण (कस्ट- माइज्ड ट्री प्लाण्टेशन) इसमें व्यक्ति व समूह की रुचियों, ज्योतिषीय स्थितियों व अन्य मान्यताआें के आधार पर प्रजातियाँ लगायी जा सकती है, जैसे कि चित्रा नक्षत्र में जन्में जातक के इष्टदेव यदि शिवजी है एवं एक ही पेड़ लगाने का स्थान है तो वह बिल्व (बेल) का पेड़ लगा सकता है क्योंकि यह चित्रा नक्षत्र का आराध्य-वृक्ष है एवं शिव को बेलपत्र चढ़ाये जाने की परम्परा सर्वविदित है ही । जन्म-नक्षत्र के आराध्य-वृक्ष का रोपण व देखभाल करने को जातक के जीवन मेंअत्यन्त कल्याणकारी माना गया है ।
जैन सम्प्रदाय में चौबीस तीर्थकारों में प्रत्येक का एक-एक केवली वृक्ष है जिस तीर्थकर को जिस वृक्ष के नीचे कैवल्यज्ञान प्राप्त् हुआ वह उसका केवली वृक्ष बौद्ध सम्प्रदाय मेंअट्ठाईस बुद्धों में से प्रत्येक का एक-एक महापरिनिर्वाण वृक्ष है जिस वृक्ष के सान्निध्य में जिस बुद्ध को महापरिनिर्वाण की प्राप्ती हुई वह उसका महापरिनिर्वाण वृक्ष ; सत्ताईस नक्षत्रों में से प्रत्येक का एक-एक अराध्य-वृक्ष एवं नवग्रह में से प्रत्येक का एक-एक प्रतिनिधि वृक्ष होता है ; सप्तिर्ष, दस सिक्ख गुरुआें, बारह राशियों में से भी प्रत्येक का एक-एक प्रतीक वृक्ष है, आयें इन प्रतीको को पुनर्जीवन्त कर दें ।
कभी भी, जब जागो तभी सवेरा, बनाओ अपने अंचल को हरा घनेरा । भारतीय शास्त्रों में तो बैसाख व आषाढ़ में पौधारोपण को और भी अधिक फलप्रद कहा गया है कि इन मासों में वृक्षारोपण करने से समस्त कामनाएँ पूर्ण होती है । बारिश या किसी कालविशेष की प्रतिक्षा न करें, यदि पानी की कमी हो तो पानी की पुरानी बोतल अथवा करवाचौथ के करवा अथवा अन्य मटके आदि में अतिसुक्ष्म छिद्र सुई इत्यादि द्वारा बनाते हुए उसे पौधे के थोड़ा पास जमीन में गड़ा दें व उसमें आवश्यकतानुसार तीन-चार तीन में पानी भरते रहें जिससे शिवलिंग पूजन जैसे पौधे को लगातार पानी मिलता रहेगा । वैसे ड्रिप इरिगेशन के पाइप भी डालवाये जा सकते है अथवा आसपास के लोग अपने चौपहिया वाहन से भी कुछ बाल्टियाँ/कुप्पियाँभरकर एकान्तरित क्रम से सींच सकते है, जैसे कल रामलाल की बारी, परसों श्यामलाल की एव ंनरसों मेघालाल की बारी ।
(शेष पृष्ठ ४२ पर ) हर गली मोहल्ले/पाठशाला एवं वार्ड में यदि कुछ व्यक्ति जागृत हो जायेंतो बड़ा बदलाव लाया जा सकता है जैसे कि एक कागज़पर ये लिखकर सप्तहिक रुप से घर-घर जाकर पूछे कि उनके पास पौधारोपण हेतु कितनी भूमि है, पौधोंकी क्या स्थिति है, गमले कम पड़े तो ५ से १५ लीटर्स के कुप्पे/पीपे एक तरफ से काटकर उनमेंपौधारोपण करके पौधा बड़ा होने पर मंदिरादि में लगाया जा सकता है, वे किस प्रकार के पेड़ लगाना चाहेंगे/लगा सकते है । इस विचार से जन सामान्य प्रेरित हो एवं उनके पास जो-जो वस्तुएँअनावश्यक रुप से उपलब्ध हों उन्हे पौधारोपण के लिये उपलब्ध करा दिया जाये जिससे यह पहल छोटे-बड़े हर स्तर पर आगे बढ़ सके ।
पीपल, बरगद एवं श्रीवृक्ष (बेल का पेड़) को काटने वाला ब्रह्मघाती कहलाता है । वृक्षच्छेदी (हरे पेड़ को काटने वाला) मूक (गूंगे) रुप से जन्म लेगा ऐसा भी कहा जाता है । स्थानीय स्तर पर उपलब्ध डंडियां, बेंत होली पर व कभी न जलायें, एकत्र कर लें, रद्दी पेपर वाले के सम्पर्क मेंरहें एवं लोहा-लंकड़ व पुरानी जालियां उससे खरीद सकते है तथा स्वयं जोड़कर अथवा आवश्यकतानुसार वेल्डर से जुड़वाकर एवं घरों से पुरानी रस्सियां अथवा तार लाकर स्वयं ही सुरक्षा-कवच बड़ी आसानी से बनाये जा सकते है । वैसे पौधो के लिये सुरक्षा-कवच तैयार करने की और भी कई तरीके हो सकते है जिन्हें व्यक्तिगत रुप से चर्चा कर समझाया जा सकता है । ***
विषय - आधारित पौधारोपण
प्रशांत/सुमीत कुमार
सन् १९७१ में२१ मार्च को पहली बार विश्व वानिकी दिवस इस उद्देश्य से मनाया गया कि विश्व के विविध राष्ट्र अपनी-अपनी वनसम्पदा के महत्व को समझें व भूमि पर नैसर्गिक पौधारोपण करते हुए वन सरंक्षण एवं वन-संवर्द्धन करें ।
विषय आधारित अथवा विशेषीकृत पौधारोपण के माध्यम से हर व्यक्ति व समूह से लगाव वाले पौधारोपण की अलख सब और जगायी जा सकती है ।
विषय आधारित पौधारोपण विभिन्न विषयोंसे जोड़कर किया जाये तो उस स्थान को अभूतपूर्व प्रेरणास्त्रोत व दर्शनीय स्थल सहित जीवन्त संग्रहालय अथवा सजीव कक्षा के भी रुप मेंसुस्थापित किया जा सकता है, जैसे - वर्णमाला वन `अ' से अमरुद, `आ' से आम, `क' से कदम्ब, `ख' से खमेर । इसी प्रकार वनस्पति वैज्ञानिक नामों की वर्णमाला वन भी स्थापित की जा सकती है, जैसे कि `ऐ' से अजाडिरेक्टा इंडिका नीम, `बी' से ब्यूटिया मोनोस्पर्मा: पलाश । जेड से जिजिफस ज्रुज्रुबा बेर । वर्णमाला वन किसी भी भाषा से सम्भव है जिससे बच्चे तो बच्चे बल्कि बड़े भी प्रकृति से जीवन के अक्षरोंके जुड़ाव को गहराई से अनुभव कर सकेंगे ।
भारत का मानचित्र धरती पर उकेरकर प्रत्येक राज्य के क्षेत्र मेंउसका राज्य वृक्ष व राज्य-पुष्प रोपित करना । इससे राज्यो सहित राष्ट्र का प्रकृति आधारित जीवंत मानचित्र से वानिकी का संदेश दिया जा सकेगा । इसमेंऐसी प्रजातियों का रोपण कर उनके महत्तव का विवरण लिखा जा सकता है जो एक से अधिक सम्प्रदायों से जुड़ी हो, जैसे कि चौबीसवें नक्षत्र शतभिषक का आराध्य-वृक्ष कदम्ब है एवं बारहवें जैन-तीर्थकर वसुपूज्य का केवली-वृक्ष भी कदम्ब है ।
अपने इष्टदेव/अपनी इष्टदेवी से प्रत्यक्ष रुप से जुड़ी प्रजातियों का रोपण करते हुए उनकी महिमा का बखान लीला-चित्रण के रुप में किया जा सकता है, जैसे कि हनुमानजी के आसपास का स्थान कैसा होता होगा ? सिन्दूर की झाड़ी (असली सिन्दूर इसीके फूल मेंबनता है जबकि हम आप को जो सिंदूर दिखता है तो भारी धातु सीसा इत्यादि की विषाक्त क्रियाआेंकी चमकमात्र है), रामफल, सीताफल, इसी प्रकार असली अशोक (जिसमें सुगंधमय पुष्प खिलते है एवं फलियां बनती है जबकि आजकल अशोक जैसे दिखने वाला पेड़ लगाया जा रहा है जिसमें सुगंधहीन पुष्प व जामुन जैसे दिखने वाले फल होते है)
एक बार सीतामाता को मांग में सिन्दूर लगाते देख हनुमान ने कारण पूछा तो माता बोली कि इससे राम की आयु बढ़ेगी तबसे हनुमान इतने लालायित हो गये कि अपने पूरे शरीर पर सिन्दूर लगाने लगे ताकि राम अमर हो जायें, ठीक इसी प्रकार लंका में स्थान-स्थान पर सीता को खोजने के प्रयासोंके बाद अन्तत: सफलता एक वाटिका में अशोक के वृक्ष के नीचे मिली जहां राम के वियोग से कुल्हलायी सीता राम की बाट जोह रही थी ।
इसमें ऐसे वृक्ष लगाये जा सकते है जो भारतीय पंचांग अनुरुप विभिन्न पर्वो एवं धार्मिक अवसरों से जुड़े हों व प्रत्येक के पास उसका विवरण लिखा हो, जैसे कि गणेश चतुर्थी में दूर्वा एवं जम्बू (जामुन) लगायें क्योंकि दूर्वादल श्रीगणपति को प्रिय है एवं जामुन व कपित्थ (कबीट) उनके पसन्दीदा फल है । बरगद का पेड़ भी अलग से भी लगा लें तो ज्येष्ठ की वट अमावस्या को सुहागिनों का जमघट रहेगा क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन बरगद की परिक्रमाकरने वालियों को बरगद में विराजमान ब्रह्मा, विष्णु व महेश सदा-सुहागिन होने का आशीष देते है ।
शनिवार, शनिजंयती को अथवा शनि की साढ़ेसाती व अढ़ैय्या लगी हो तो काले कँबल,काले तिल, काले कपड़े के दान से अधिक फलदायी होगा यदि काले रंग से जुड़े पेड़-पौधों प्रतिनिधि वृक्ष शमी तथा कौए व काली चींटियों को काले तिलमिश्रित गुड़, काले चने, गली मसूर इत्यादि का सेवन कराया जा सकता है तथा पुराने कपड़ो व सुई धागो की सहायता से कृत्रिम घौंसले बनाकर पेड़ो पर लटकाये जा सकते है क्योंकि वर्तमान में पेड़ पौधे इतने कम बचे है कि पक्षियों को पर्याप्त् स्थान, तिनके वसुरक्षा की सुलभता नहीं हो पाती, हमारे द्वारा लगाये एक घौंसले में तो हमने गिलरियों की पीढ़ियाँ तक देखी है । मौसम कोई भी हो, हर घर कार्यालय इत्यादि में पक्षियों गिलहरियों के लिये सकोरे/मिट्टी के कम से कम दो कटोरे होने ही चाहिए प्रतिदिन एक मेंपानी बदलते रहें एवं दूजे में विभिन्न अनाजों का मिश्रण, सूखी रोटी, बचे चावल इत्यादि डालते रहें ।
विशेषीकृत पौधारोपण (कस्ट- माइज्ड ट्री प्लाण्टेशन) इसमें व्यक्ति व समूह की रुचियों, ज्योतिषीय स्थितियों व अन्य मान्यताआें के आधार पर प्रजातियाँ लगायी जा सकती है, जैसे कि चित्रा नक्षत्र में जन्में जातक के इष्टदेव यदि शिवजी है एवं एक ही पेड़ लगाने का स्थान है तो वह बिल्व (बेल) का पेड़ लगा सकता है क्योंकि यह चित्रा नक्षत्र का आराध्य-वृक्ष है एवं शिव को बेलपत्र चढ़ाये जाने की परम्परा सर्वविदित है ही । जन्म-नक्षत्र के आराध्य-वृक्ष का रोपण व देखभाल करने को जातक के जीवन मेंअत्यन्त कल्याणकारी माना गया है ।
जैन सम्प्रदाय में चौबीस तीर्थकारों में प्रत्येक का एक-एक केवली वृक्ष है जिस तीर्थकर को जिस वृक्ष के नीचे कैवल्यज्ञान प्राप्त् हुआ वह उसका केवली वृक्ष बौद्ध सम्प्रदाय मेंअट्ठाईस बुद्धों में से प्रत्येक का एक-एक महापरिनिर्वाण वृक्ष है जिस वृक्ष के सान्निध्य में जिस बुद्ध को महापरिनिर्वाण की प्राप्ती हुई वह उसका महापरिनिर्वाण वृक्ष ; सत्ताईस नक्षत्रों में से प्रत्येक का एक-एक अराध्य-वृक्ष एवं नवग्रह में से प्रत्येक का एक-एक प्रतिनिधि वृक्ष होता है ; सप्तिर्ष, दस सिक्ख गुरुआें, बारह राशियों में से भी प्रत्येक का एक-एक प्रतीक वृक्ष है, आयें इन प्रतीको को पुनर्जीवन्त कर दें ।
कभी भी, जब जागो तभी सवेरा, बनाओ अपने अंचल को हरा घनेरा । भारतीय शास्त्रों में तो बैसाख व आषाढ़ में पौधारोपण को और भी अधिक फलप्रद कहा गया है कि इन मासों में वृक्षारोपण करने से समस्त कामनाएँ पूर्ण होती है । बारिश या किसी कालविशेष की प्रतिक्षा न करें, यदि पानी की कमी हो तो पानी की पुरानी बोतल अथवा करवाचौथ के करवा अथवा अन्य मटके आदि में अतिसुक्ष्म छिद्र सुई इत्यादि द्वारा बनाते हुए उसे पौधे के थोड़ा पास जमीन में गड़ा दें व उसमें आवश्यकतानुसार तीन-चार तीन में पानी भरते रहें जिससे शिवलिंग पूजन जैसे पौधे को लगातार पानी मिलता रहेगा । वैसे ड्रिप इरिगेशन के पाइप भी डालवाये जा सकते है अथवा आसपास के लोग अपने चौपहिया वाहन से भी कुछ बाल्टियाँ/कुप्पियाँभरकर एकान्तरित क्रम से सींच सकते है, जैसे कल रामलाल की बारी, परसों श्यामलाल की एव ंनरसों मेघालाल की बारी ।
(शेष पृष्ठ ४२ पर ) हर गली मोहल्ले/पाठशाला एवं वार्ड में यदि कुछ व्यक्ति जागृत हो जायेंतो बड़ा बदलाव लाया जा सकता है जैसे कि एक कागज़पर ये लिखकर सप्तहिक रुप से घर-घर जाकर पूछे कि उनके पास पौधारोपण हेतु कितनी भूमि है, पौधोंकी क्या स्थिति है, गमले कम पड़े तो ५ से १५ लीटर्स के कुप्पे/पीपे एक तरफ से काटकर उनमेंपौधारोपण करके पौधा बड़ा होने पर मंदिरादि में लगाया जा सकता है, वे किस प्रकार के पेड़ लगाना चाहेंगे/लगा सकते है । इस विचार से जन सामान्य प्रेरित हो एवं उनके पास जो-जो वस्तुएँअनावश्यक रुप से उपलब्ध हों उन्हे पौधारोपण के लिये उपलब्ध करा दिया जाये जिससे यह पहल छोटे-बड़े हर स्तर पर आगे बढ़ सके ।
पीपल, बरगद एवं श्रीवृक्ष (बेल का पेड़) को काटने वाला ब्रह्मघाती कहलाता है । वृक्षच्छेदी (हरे पेड़ को काटने वाला) मूक (गूंगे) रुप से जन्म लेगा ऐसा भी कहा जाता है । स्थानीय स्तर पर उपलब्ध डंडियां, बेंत होली पर व कभी न जलायें, एकत्र कर लें, रद्दी पेपर वाले के सम्पर्क मेंरहें एवं लोहा-लंकड़ व पुरानी जालियां उससे खरीद सकते है तथा स्वयं जोड़कर अथवा आवश्यकतानुसार वेल्डर से जुड़वाकर एवं घरों से पुरानी रस्सियां अथवा तार लाकर स्वयं ही सुरक्षा-कवच बड़ी आसानी से बनाये जा सकते है । वैसे पौधो के लिये सुरक्षा-कवच तैयार करने की और भी कई तरीके हो सकते है जिन्हें व्यक्तिगत रुप से चर्चा कर समझाया जा सकता है । ***
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