गुरुवार, 15 मार्च 2018

पर्यावरण परिक्रमा
संकट मेंहै हिमालय से निकलने वाली जलधाराएं
हिमालय से निकलने वाली ६०% जलधाराएं सूखने की कगार पर है । इनमें से गंगा, ब्रह्मपुत्र जैसी बड़ी और अहम नदियों की जलधाराएं भी शामिल है । इन जलधाराआें की हालत ऐसी हो चुकी है कि इनमे पानी आता भी है तो सिर्फ बारिश के मौसम में। ये बात नीति आयोग की एक रिपोर्ट से सामने आई है । आयोग के साइंस एंड टेक्नोलॉजी विभाग ने जल सरंक्षण पर रिपोर्ट तैयार की है । 
इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत के अलग अलग क्षेत्रों से करीब ५० लाख जलधाराएं निकलती है । इनमें से करीब ३० लाख तो भारतीय हिमालय क्षेत्र से ही निकलती है । भारतीय हिमालय क्षेत्र से निकलने वाली जलधाराआें की स्थिति का अंदाजा इस बात से लगा सकते है कि उत्तराखंड में जलधाराआें की संख्या में १५० साल में ६ गुना गिरावट आ गई है । इसकी संख्या ३६० से घटकर ६० तक आ पहुंची है । नीति आयोग का सुझाव है कि इस स्थिति से निपटने के लिए तीन चरण में प्लान तैयार किया जाए ।
पहला - ४ साल का शॉर्ट टर्म प्लान । दूसरा - ५ से ८ साल का मिड टर्म प्लान और तीसरा - ८ साल से ज्यादा का लॉन्ग टर्म प्लान । शॉर्ट टर्म प्लान में जलधाराआें की मॉनिटरिंग की जाए ।
मिड टर्म प्लान में इसके मैनेजमेंट का प्लान तैयार हो और लॉन्ग टर्म प्लान में इस पर अमल हो । हिमालय की इन जलधाराआें में ग्लेशियरों के पिघलने से और मौसम में होने वाले बदलावों से पानी बना रहता है । यहीं से गंगा, ब्रह्मपुत्र जैसी तमाम नदियों की जलधारा भी निकलती है । लेकिन जलवायु परिवर्तन की वजह से घटते ग्लेशियर, पानी की बढ़ती मांग, पेड़ कटने की वजह से जमीन में होने वाले बदलाव की वजह से ये जलधाराएं सिकुड़ रही है और सूख रही है । १२ राज्य के ५ करोड़ लोग हिमालय क्षेत्र की इन जलधाराआें के प्रभाव क्षेत्र मेंआते है । 
ये १२ राज्य है - जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल, मेघालय, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा । यहां के लोगों के पीने के पानी से लेकर रोजमर्रा की जरुरतोंका पानी इन्हीं जलधाराआें से मिलता है । अगर फौरन कदम नहीं उठाए गए तो १० साल में ही इन क्षेत्रो को जलसंकट झेलना पड़ेगा । आयोग का सुझाव है कि भारतीय हिमालय क्षेत्र से निकलने वाली सभी जलधाराआें की गणना की जाए और फिर इसकी मैपिंग हो ।आयोग ने जलधाराआें के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रोग्राम लॉन्च करने का भी सुझाव दिया है ।

जर्मनी ५ शहरो में पब्लिक ट्रांसपोर्ट फ्री करेगा
पहली बार दुनिया का कोई देश अपने शहरोंमें वायु प्रदूषण कम करने के लिए लोगों को फ्री पब्लिक ट्रांसपोर्ट मुहैया कराने जा रहा है । ये पहल जर्मनी में हो रही है । जर्मनी देश के पांच शहर चुने है - बॉन, एसेन, हैरेनबर्ग, रुटलिंगेन और मेहेम । इन शहरोंमें लोगों को लोकल बस और ट्रेन का सफर फ्री में कराया जाएगा, ताकि वो अपनी गाड़ियों का कम से कम इस्तेमाल करें और इससे होने वाले प्रदूषण को रोका जा सके ।लोकल प्रशासन की मदद से जुलाई के बाद इस सुविधा का ट्रायल शुरु होगा । ट्रायल सफल रहा तो इसे जारी रखा जाएगा । जर्मन सरकार ने प्रस्ताव अभी यूरोपियन यूनियन को भेजा है । यूरोपियन पर्यावरण मानकों का एयर, क्वालिटी इंडेक्स अभी भी लंदन, पेरिस और दिल्ली जैसे शहरों से कहीं बेहतर है । फिर भी शहर की सेहत को बरकरार रखने के लिए सरकार कोशिश जारी रख रही है । इन ५ शहरों के पब्लिक ट्रांसपोर्ट में टिकट बिक्री से सरकार को ९६ हजार करोड़ रु. मिलते है ।
इस फैसले से जुड़ी दूसरी खास बात ये है कि दुनिया का चौथा सबसे बड़ा वाहन उत्पादक देश होने के बाद भी जर्मनी इस तरह का फैसला ले रहा है । बीएमडब्ल्यू और मर्सिडीज जैसी बड़ी वाहन कंंपनियां सरकार की मुहिम में उसका साथ दे रही है । लोकल ट्रांसपोर्ट को अपडेट करने के लिए ये दोनों, कंपनियां सरकार को १.६ हजार करोड़ रुपए देगी ।
दरअसल यूरोप लगातार प्रदूषण की समस्या से जूझ रहा है । यहां के १३० शहर इस कदर प्रदूषित है कि इसकी वजह से हर साल ४ लाख मौत हो रही है । प्रदूषण की वजह से होने वाली बीमारियों पर यूरोपीय लोग हर साल करीब  २ लाख करोड़ रुपए खर्च कर रहें है । हालांकि इन सबके बीच जर्मनी ने ही पर्यावरण को लेकर सबसे अच्छा काम किया है । प्रदूषण कम करने के लिए जर्मनी ने १५ साल में नवीनीकृत उर्जा पर निर्भरता ६.३% से बढ़ाकर ३४% तक कर दी है ।

कम्प्यूटर व मोबाईल की फाइल पढ़ सकेंगे दृष्टिबाधित
अभी तक दृष्टिबाधित कम्प्यूटर व मोबाइल में दर्ज जानकारी को सुनकर ही समझ पाते थे, लेकिन अब इनमें दर्ज पीडीएफ, वर्ड फाइल और टेक्सट मैसेज को अंगुलियों से छूकर ब्रेल में पढ़ सकेंगे ।
इंदौर शहर के इंजीनियरिंग कॉलेज एसजीएसआईटीएस के इलेक्ट्रिकल विभाग में सेकेंड ईयर के छात्र अधीश मीना ने यह डिवाइस तैयार की है । फिलहाल यह अंग्रेजी के अल्फाबेट व शब्द को ब्रेल मेंबता रही है । जल्द ही इस डिवाइस के माध्यम से दृष्टिबाधित वाक्य भी पढ़ सकेंगे । 
इस डिवाइस का पिछले दिनों म.प्र. दृष्टिहीन कल्याण संघ के सचिव डॉ. जीडी सिंघल  व हेलन केलर हाई स्कूल फॉर ब्लाइंड के कम्प्यूटर शिक्षक दशरथ पटेल ने परीक्षण किया ।
श्री मीना ने ऑडियो सॉफ्टवेयर व माइक्रो कंट्रोल डिवाइस के माध्यम से प्रोग्राम तैयार किया है इसे सर्वोमोटर डिस्क से जोड़ा गया है । मोटर पर ब्रेल लिपी की एक की-बोर्ड प्लेट लगाकर उसे कम्प्यूटर से जोड़ा गया है । स्क्रीन पर आने वाले शब्दो को सॉफ्टवेयर पढ़कर ब्रेल लिपि प्लेट तक मैसेज भेजेगा । इसके बाद प्लेट के शब्द छूकर दृष्टिबाधित पहचान सकेगा कि स्क्रीन पर क्या लिखा हुआ है ।
मालवा मिल के शिवाजी नगर मेंरहने वाले अधीश के पिताजी जगदीश मीना की किराना दुकान है । अधीश एक एनजीआें के माध्यम से एक ब्लाइंड स्कूल मेेंबच्चें को भोजन देने जाते थे । वहीं से उन्हे यह आइडिया आया ।
अभी दृष्टिबाधितों के लिए ई-बुक्स व ऑडियो बुक्स उपलब्ध है । इसके अलावा ब्रेल बुक्स भी है, लेकिन कीमत ही २०० से ३०० रुपए होती है । अधीश कहते है कि इसी तरह की एक एप भी कॉलेज मेंतैयार की जा रही है ।

गैर संक्रामक रोगोंसे डेढ़ करोड़ लोगो की मौत
विश्व में प्रति वर्ष ३० से ७० वर्ष की आयु के डेढ करोड़ लोगों की मौत गैर संक्रामक रोगोंके कारण हो रही है और इनके पीछे तंबाकू सेवन, शराब पीना, अनियंत्रित और निष्क्रिय जीवन शैली जैसे कारक जिम्मेदार है । इस दिशा मेंगंभीरता से विचार करते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पिछले दिनों एक उच्च् स्तरीय आयोग के गठन की घोषणा की है जिसमें कई देशों के नेता, स्वास्थ्य विकास और उद्यमिता क्षेत्र के पेशेवर है जो लोगोंको ऐसी बीमारियों से बचने के लिए जागरुक बनाएंगें ।
इस आयोग की सह अध्यक्षता उरुगवे के राष्ट्रपति तबारे वाजकुएज, श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाल श्रीसेना, फिनलैंड के राष्ट्रपति साउली निनिस्तो, रुसी स्वास्थ्य मंत्री वेरिनिका स्कवोर्तसोवा और पाकिस्तान की पूर्व केन्द्रींय मंत्री सानिया निस्तार करेंगी ।
यह आयोग गैर संक्रामक रोगों जैसे दिल की बीमारियों, कैंसर, फैफड़ो के रोगों,मधुमेह और शराब से होने वाले रोगों के प्रति लोगों को जागरुक   करेगा । एक अनुमान के अनुसार विश्व मेंप्रतिवर्ष दस में से सात मौतें इन्हीं रोगों के कारण हो रही है  और इनके मुख्य कारक तंबाकू, शराब का सेवन, निष्क्रिय जीवन शैली और शारिरिक श्रम की कमी है । 
इनकी चपेट में अधिकतर निम्न आय वाले देशों के लोग आ रहे है और इनके कारण परिवारोंपर अधिक भार पड़ने से समाज और अंतत: देश की आर्थिक प्रगति प्रभावित हो रही है । समय रहते इन रोगों की पहचान कर उनका इलाज संभव है लेकिन इस दिशा में लोगों को इनके कारकों के प्रति जागरुक किया जाना सबसे बड़ी प्राथमिकता है ।
डॉ. वाजकुएज ने कहा कि गैर सक्रांमक रोग विश्व मेंलोगों के सबसे बड़े हत्यारे है और थोड़ी सावधानी बरत कर इनसे बचा जा सकता है लेकिन लोगों को इनसे बचने के लिए वैश्विक स्तर पर कुछ नही किया जा रहा है । उन्होने कहा कि अगली पीढ़ियों का समय से पूर्व काल के गाल मेंसमाने से रोकने और उन्हें बेहतरीन जीवनशैली के लिए हमें ही प्रयास करने होंगे और लोगों को तंबाकू, शराब, जंक फूड और अधिक चीनी युक्त खाद्य पदार्थोके सेवन से बचने के लिए जागरुक बनाना होगा ।
गैर संक्रामक रोगों के वैश्विक दूत और आयोग के सदस्य माइकल आर ब्लूमबर्ग के मुताबिक विश्व इतिहास में पहली बार संक्रामक रोगों की तुलना में अधिक लोग गैर संक्रामक रोगों जैसे दिल की बीमारियों, मधुमेह और निष्क्रिय जीवन शैली की वजह से मारे जा रहे है । ये रोग अमीर और गरीब, युवा और बूढों में कोई फर्क नहीं कर रहे है और देशों को इनके चलते आथिक खामियाजा भुगतना पड़ रहा है । 
इस आयोग के माध्यम से अधिक से अधिक लोगोंको जागरुक बनाया जाएगा और विश्व स्तर पर इस संदश को ले जाया जाएगा । डब्ल्यू एचओ के महानिदेशक डा टेड्रोस अधानोम गेब्ररेसस की ओर से गठित यह आयोग इस वर्ष अक्टूबर २०१९ तक काम करेगा और अपनी पहली रिपोर्ट इस वर्ष जून में महानिदेशक कार्यालय को सौंपेगा ।

डार्विन के बाद अब न्यूटन पर उठे सवाल
पिछले दिनों केंद्रीय राज्य मंत्री सत्यपाल सिंह ने एक और वैज्ञानिक पर सवाल उठाए है । डार्विन के बाद अब सत्यपाल के निशाने पर महान वैज्ञानिक आइलक न्यूटन है । सत्यपाल का कहना है कि - न्यूटन का मशहूर गति का नियम उनके बताने से पहले ही भारत के प्राचीन मंत्रोंमें बताया जा चुका था । इससे पहले सत्यपाल ने डार्विन के विकासवाद के उस सिद्धांत पर सवाल उठाएं थे, जिसमें बताया गया था कि बंदर असल में मनुष्यों के पूर्वज थे । सत्यपाल ने इस सिद्धांत को गलत बताया था, जिस पर काफी विवाद भी हुआ था । चार्ल्स डार्विन का सिद्धांत वैज्ञानिक रुप से गलत है । इस नियम को पाठ्यक्रम मेंबदलने की जरुरत है । इंसान जब से पृथ्वी पर देखा गया है, हमेशा इंसान ही रहा है । अब सत्यपाल सिंह ने शिक्षा पर सलाह देने वाले सरकार के उच्चतम केंद्रीय सलाहकार निकाय की एक बैठक में कहा कि - हमारे यहां ऐसे कई मंत्र है, जिनमें न्यूटन द्वारा खोजे जाने से काफी पहले गति के नियमों को संहिताबद्ध किया गया था । इसलिए यह आवश्यक है कि परंपरागत ज्ञान हमारे पाठ्यक्रम में शामिल किए जाएं । सत्यपाल ने स्कूलों में प्राचीन विज्ञान की शिक्षा देने पर जोर देते हुए कहा कि - दिल्ली और मुंबई जैसे बड़ शहरों में हत्या से ज्यादा खुदकुशी के मामले सामने आते है । इसकी वजह है लोगो का पुरातन, धार्मिक विज्ञान से दूर होना । ***

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