गुरुवार, 15 मार्च 2018

जीव जगत
डॉल्फिन भी सोच-विचार करते हैं
ज़ुबैर सिद्दीकी
इन दिनों इंस्टिट्यूट फॉर मरीन मैमल स्टडीज़ मेंकैली नामक डॉल्फिन काफी प्रतिष्ठित है । इस संस्थान में सभी डॉल्फिन को अपने पूल में सफाई कि लिए प्रशिक्षित किया गया है - जब वे पूल का कचरा लाकर अपने प्रशिक्षक को देती हैं, तो उन्हें एक मछली उपहार स्वरुप मिलती है । इस तरह, डॉल्फिन अपने पूल को साफ रखने में मदद करती है ।
लेकिन कैली एक मछली पाकर संतुष्ट नही थी । जब भी पूल में उसको कागज़मिलता है, वह उसे पूलमें एक पत्थर के नीचे छिपा देती है और प्रशिक्षक को देखते ही उस कागज़ का एक टुकड़ा लाकर उसे दे देती है । उपहार में मछली मिलने के बाद वह दोबारा उसी कागज़ मेंसे एक और टुकड़ा लाती है ताकि उसे फिर से मछली मिले ।
यह रोचक व्यवहार दर्शाता है कि कैली मेंभविष्य की सोच भी है और वह संतुष्टि को टाल सकती है । और तो और, वह यह भी समझ चुकी है कि पूरा कागज़ लाने पर जो इनाम मिलता है वही इनाम कागज़ का एक टुकड़ा लाने पर भी मिल जाता है ।
और चतुराई यही तक सीमित नहीं है । एक दिन कैली ने एक गल पक्षी को पकड़ा । यह पक्षी काफी बड़ा था, इसलिए उस उपहार में बहुत सारी मछलियां मिलीं । इससे कैलीको एक नया ख्याल आया । अगली बार उसने भोजन में मिली मछलियों में से एक मछली को प्रशिक्षिक की नज़र से बचा कर पूल में छिपा दिया और प्रशिक्षक की अनुपस्थिति में पूल की सतह पर लाकर उस मछली का उपयोग गल पक्षी को ललचाने के लिए किया । गल पक्षी को पकड़कर उपहार में और ज्यादा मछलियां मिलीं । यही चालाकी उसने अपने बच्चों को भी सिखाई और देखते ही देखते यह उनके बीच एक मुख्य खेल बन गया ।
रहन-सहन की विविधता के अनुसार डॉल्फिन ने भोजन प्राप्त् करने की कई रणनीतियोंका भी आविष्कार किया है । जैसे ब्राजील के एक समुद्री मुहाने मेंपाई जाने वाली टुकुक्सी डॉल्फिन नियमित रुप से अपनी पूंछ की फटकार का इस्तेमाल मछली पकड़ने में करती हैं । वे अपनी पूंछ की सहायता से मछली को ९ मीटर तक पानी के उपर उछाल देती है और जब वह पानी की सतह पर भौचक्की होकर गिरती है तो टुकुक्सी उसे पकड़ लेती है । मैजीलान जलडमरुमध्य में पाई जाने वाली डॉल्फिन शिकार के दौरान खुद को छिपाने के लिए समुद्री शैवाल का इस्तेमाल करती है और मछलियोंके बचकर भागने के रास्ते बंद कर देती है । 
टेक्सास स्थित गैल्वेस्टोन खाड़ी में कुछ मादा बॉटजनोज़ डॉल्फिन और युवा डॉल्फिन झींगा पकड़ने वाली नौकाआें का पीछा करते है । डॉल्फिन झींगा जाल में घुस जाती है और जिंदा मछली पकड़कर जाल से बाहर निकल जाती है ।
इतना ही नही, डॉल्फिन समस्याएं हल करने के लिए औज़ार भी बनाती है । वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में पाया कि डॉल्फिन एक बिच्छू मछली को मारकर उसके कंटीले शरीर का उपयोग करके किसी दरार मेंछिपी मोरे ईल को टोंच-टोंचकर बाहर निकलने पर मजबूर कर देती है । ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट पर, बॉटलनोज़ डॉल्फिन उथले पानी में अपनी नाक पर स्पंज का उपयोग कर स्टोनफिश और स्टिंगरे के नुकिले कांटोंसे खुद का बचाव करती है ।
प्रसिद्ध डॉल्फिन विशेषज्ञ केरन प्रोयर का वह प्रयोग प्रसिद्ध है जिसमें डॉल्फिन की नए व्यवहार गढ़ने की क्षमता का परीक्षण किया गया । जब भी डॉल्फिन कोई नया व्यवहार दर्शाती, उनको पुरस्कृत किया जाता था । कुछ परीक्षणोंके बाद ही डॉल्फिन समझ गई कि उनसे क्या अपेक्षा है । इसी तरह का एक परीक्षण मनुष्योंपर भी किया गया था और उन्हें प्रशिक्षित करने में भी लगभग उतना ही समय लगा था । इस परीक्षण में जब डॉल्फिन को यह बात समझ आ गई तो वे उत्साह से टैंक में उछलकूद करते हुए, अधिक से अधिक नए व्यवहार प्रदर्शित करने लगी ।
डॉल्फिन जल्द सीखती है । डॉल्फिन का बच्चा कई सालों तक अपनी मां के साथ रहता है । अत: उन्हे सीखने का काफी समय मिलता है, खासकर अनुकरण करके । एक डॉल्फिनेरियम में एक व्यक्ति ने देखा की पूल की खिड़की से डॉल्फिन का बच्चा उसे देख रहा था । जब उसने अपनी सिगरेट से धुएं का एक गुबार छोड़ा, तो वह बच्चा तुरंत अपनी मां के पास गया और वापस लौटकर अपने मुंह से दूध की बौछार फेंकी, ठीक सिगरेट के धूएं जैसी ।
डॉल्फिन के सामाजिक रहन-सहन पर भी काफी अध्ययन किया गया है । डॉल्फिन की कई प्रजातियां काफी पेचीदा समाज में रहती है । इस समाज में रहने के लिए युवा डॉल्फिन को समाज के तौर तरीकों और आपसी सहयोग को समझने की भी आवश्यकता होती है । वैज्ञानिक रैन्डाल वेल और उनके सहयोगियोंने निरीक्षण में पाया कि किशोर लड़को की तरह व्यवहार करते है । अपने सिर का उपयोग करके दूसरे डॉल्फिन को पानी के बाहर फेंकना उनकी शरारतों का एक हिस्सा है ।
यह भी देखा गया कि डॉल्फिन धीरे-धीरे रिश्तों के नेटवर्क का निर्माण भी करते है, जिसमें एक मां और उसके बच्चे के बीच मज़बूत बंधन से लेकर अन्य समुदाय के सदस्योंके साथ अच्छी दोस्ती शामिल है । वयस्क नर डॉल्फिन प्राय: जोड़ियों में रहते है और कई बार बड़ा गुट भी बना लेते है । बड़े सामाजिक समूहों में विभिन्न सम्बंधों की पहचान के लिए वे कुशल संचार प्रणाली का उपयोग करते है । डॉल्फिन संपर्क में रहने के लिए विभिन्न क्लिक और सीटी की आवाज़ों के अलावा स्पर्श तथा शारीरिक हाव भाव का उपयोग भी करते है । हमारी परिभाषा के अनुसार अभी तक इस बात का कोई प्रमाण नहींहै कि डॉल्फिन किसी भाषा का उपयोग करते है, लेकिन अभी तक हमने पर्याप्त् परीक्षण भी नहीं किए है । प्रयोगो में पता चला है कि डॉल्फिन न केवल अलग-अलग शब्दों के अर्थ समझती है, अपितु वे वाक्य भी समझ सकती है । अक्कामाई नाम की एक डॉल्फिन ने ६० से ज्यादा शब्द सीखे है और २००० से अधिक वाक्य समझ सकती है ।
डायना रीस और उनके साथियों ने न्यूयॉर्क एक्वैरियम के अंदर कुछ दर्पण लगाए । वे यह देखना चाहते थे कि क्या बॉटलनोज़डॉल्फिन अपने प्रतिबिंब को पहचान पाती है । उन्होने डॉल्फिन के शरीर पर जगह-जगह काली स्याही के निशान लगा दिए । डॉल्फिन तैर कर दर्पण के सामने गई और काले निशान को आईने की ओर करके देखा । देखा गया कि निशान लगने के बाद वे दर्पण के सामने पहले से अधिक समय भी बिताने लगी । खुद को दर्पण मेंपहचानने की क्षमता आत्म-चेतना का संकेत देती है, जो पहले केवल मनुष्यों और बंदरों में देखी गई थी । वास्तव में बुद्धिमता शब्द को अलग-अलग तरह से परिभाषित किया जाता रहा है । जानवरों में तो दूर, मनुष्यों में भी इसे समझ पाना मुश्किल है । आम तौरप बड़े दिमाग को बेहतर सूझबूझ से जोड़ा जाता है, और बॉटलनोज़ डॉल्फिन का दिमाग मनुष्य दिमाग से औसतन २५ प्रतिशत भारी होता है । किंतु बड़े प्राणियों का दिमाग भी बड़ा होता है इसलिए मस्तिष्क क्षमता का सटीक अनुमान मस्तिष्क और शरीर के आकार के अनुपात से मिलता है । इसे दिमागीकरण अनुपात (ई.क्यू.) कहा जाता है । गोरिल्ला का ईक्यू १.७६, चिंपैंजी का २.४८ और बॉटलनोज़डॉल्फिन का ५.६ है । 
आश्चर्य की बात यह है कि केवल मनुष्य ही ७.६ ईक्यू के साथ डॉल्फिन से आगे है । लेकिन हमें मस्तिष्क के कामकाज़के बारे मेंपर्याप्त् जानकारी नहीं है जिससे हम यह बता सकें कि यह आंकड़ा वास्तव में किस चीज़ का द्योतक है । अलबत्ता, अधिकांश वैज्ञानिक मानते है कि बुद्धिमता का पैमाना व्यवहार होना चाहिए दिमाग की साइज नहीं ।
अभी भी हमारे लिए जानने के लिए बहुत कुछ है, लेकिन अब तक के प्रमाणोंसे ऐसा लगता है कि डॉल्फिन वास्तव में बुद्धिमता की श्रेणी में काफी उपर है ।                                       ***

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