प्रसंगवश
भारत में २०२० तक सबसे ज्यादा होगें दिल के मरीज
देश में २०२० तक दिल की बीमारी से पीड़ित लोगों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा होगी । यह दावा पिछले दिनों कार्डियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया की ओर से कराए गए सर्वेक्षण में किया गया है । सर्वेक्षण के अनुसार देश में दिल के मरीजों में इस समय ५४ लाख लोग हार्ट फेल्यर से पीड़ित है ।
कार्डियोलाजिकल सोसाइटी के अध्यक्ष डाक्टर शिरिष हिरेमथ के अनुसार भारत मेंजितनी तेजी से हृदयघात और उससे होने वाली मृत्युदर मेंबढ़ोतरी हो रही है उसे देखते हुए इसे प्राथमिकता देने की जरुरत है । बीमारी के बढ़ते मामलों को देखते हुए सभी हितधारकों को सामुदायिक स्तर पर बीमारी के प्रति जागरुकता बढ़ाने की जरुरत है । उन्होनें कहा कि हार्ट फेल्योर और हार्ट अटैक एक अवस्था नहीं है दोनों में काफी अंतर होता है । हॉर्ट फेल्योर की स्थिति मेंदिल की मांसपेशियां कमजोर हो जाती है जिससे वह रक्त को प्रभावी तरीके से पंप नही कर पाती । इससे दिल तक ऑक्सीजन व जरुरी पोषक तत्वों के पहुचनें की गति सीमित हो जाती है जबकि हार्ट अटैक दिल के काम बंद कर देने की अवस्था होती है जिससे इंसान की मौत हो जाती है ।
विशेषज्ञोंके अनुसार दिल की बीमारी मेंउच्च रक्त चाप, खराब जीवन शैली, मधुमेह, शराब का सेवन, दवाईयों का अत्यधिक इस्तेमाल तथा फैमिली हिस्ट्री की बड़ी भूमिका होती है । इसके लक्षणोंमें सांस लेने में तकलीफ, थकान, टखनों, पेर और पैरों में सूजन, भूख न लगना, अचानक वजन बढ़ना, धड़कन तेज होना और चक्कर आने जैसी परेशानियां शामिल है ।
एम्से के कार्डियोलाजी विभाग के प्रोफेसर डाक्टर संदीप मिश्रा के अनुसार खराब जीवन शैली के कारण दिल की बीमारी पश्चिमी देशोंकी बजाए भारत में लोगों को एक दशक पहले ही बीमार बना रही है । देश में इस बीमारी के होने की औसत उम्र ५९ वर्ष है । जागरुकता की कमी, महंगे इलाज तथा ढांचागत सुविधाआें की कमी से इसके मामले लगातार बढ़ते जा रहे है ।
खासतौर युवाआें में पिछले दो दशक से यह बीमारी तेजी से बढ़ रही है । साल १९९० से लेकर २०१३ तक ऐसे मामलों में १४० फीसदी का इजाफा हो चुका है । जीवन शैली में तेज़ी से हो रहा बदलाव और तनाव युवाआें को इसका शिकार बना रहा है । अमेरिका और यूरोप में दिल की बीमारी से पीड़ित रोगियों की तुलना में भारत में इससे पीड़ित लोगों की आयु १० साल कम है यानि कि वे ज्यादा युवावस्था में ही इसकी चपेट में आ रहे है । सर्वेक्षण के आंकड़ो के अनुसार कम और औसत आय वाले भारत जैसे देश मेंदिल की बीमारी से हाने वाली मृत्युदर उच्च् आय वाले देशों से बहुत ज्यादा है ।
भारत में २०२० तक सबसे ज्यादा होगें दिल के मरीज
देश में २०२० तक दिल की बीमारी से पीड़ित लोगों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा होगी । यह दावा पिछले दिनों कार्डियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया की ओर से कराए गए सर्वेक्षण में किया गया है । सर्वेक्षण के अनुसार देश में दिल के मरीजों में इस समय ५४ लाख लोग हार्ट फेल्यर से पीड़ित है ।
कार्डियोलाजिकल सोसाइटी के अध्यक्ष डाक्टर शिरिष हिरेमथ के अनुसार भारत मेंजितनी तेजी से हृदयघात और उससे होने वाली मृत्युदर मेंबढ़ोतरी हो रही है उसे देखते हुए इसे प्राथमिकता देने की जरुरत है । बीमारी के बढ़ते मामलों को देखते हुए सभी हितधारकों को सामुदायिक स्तर पर बीमारी के प्रति जागरुकता बढ़ाने की जरुरत है । उन्होनें कहा कि हार्ट फेल्योर और हार्ट अटैक एक अवस्था नहीं है दोनों में काफी अंतर होता है । हॉर्ट फेल्योर की स्थिति मेंदिल की मांसपेशियां कमजोर हो जाती है जिससे वह रक्त को प्रभावी तरीके से पंप नही कर पाती । इससे दिल तक ऑक्सीजन व जरुरी पोषक तत्वों के पहुचनें की गति सीमित हो जाती है जबकि हार्ट अटैक दिल के काम बंद कर देने की अवस्था होती है जिससे इंसान की मौत हो जाती है ।
विशेषज्ञोंके अनुसार दिल की बीमारी मेंउच्च रक्त चाप, खराब जीवन शैली, मधुमेह, शराब का सेवन, दवाईयों का अत्यधिक इस्तेमाल तथा फैमिली हिस्ट्री की बड़ी भूमिका होती है । इसके लक्षणोंमें सांस लेने में तकलीफ, थकान, टखनों, पेर और पैरों में सूजन, भूख न लगना, अचानक वजन बढ़ना, धड़कन तेज होना और चक्कर आने जैसी परेशानियां शामिल है ।
एम्से के कार्डियोलाजी विभाग के प्रोफेसर डाक्टर संदीप मिश्रा के अनुसार खराब जीवन शैली के कारण दिल की बीमारी पश्चिमी देशोंकी बजाए भारत में लोगों को एक दशक पहले ही बीमार बना रही है । देश में इस बीमारी के होने की औसत उम्र ५९ वर्ष है । जागरुकता की कमी, महंगे इलाज तथा ढांचागत सुविधाआें की कमी से इसके मामले लगातार बढ़ते जा रहे है ।
खासतौर युवाआें में पिछले दो दशक से यह बीमारी तेजी से बढ़ रही है । साल १९९० से लेकर २०१३ तक ऐसे मामलों में १४० फीसदी का इजाफा हो चुका है । जीवन शैली में तेज़ी से हो रहा बदलाव और तनाव युवाआें को इसका शिकार बना रहा है । अमेरिका और यूरोप में दिल की बीमारी से पीड़ित रोगियों की तुलना में भारत में इससे पीड़ित लोगों की आयु १० साल कम है यानि कि वे ज्यादा युवावस्था में ही इसकी चपेट में आ रहे है । सर्वेक्षण के आंकड़ो के अनुसार कम और औसत आय वाले भारत जैसे देश मेंदिल की बीमारी से हाने वाली मृत्युदर उच्च् आय वाले देशों से बहुत ज्यादा है ।
1 टिप्पणी:
SIR, april month ki e magazine kab tak padhne ko milegi?
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