गुरुवार, 15 मार्च 2018

सम्पादकीय
चांद की बड़ी तोंद और समंदर का अतीत
हमारे सौर मंडल के कई पिंडों की यह खासियत है कि ध्रुव से ध्रुव तक उनके व्यास की अपेक्षा विषुवत रेखा पर उनका व्यास ज़्यादा होता है । यानी वे विषुवत रेख पर थोड़े ज्यादा फूले हुए होते है । इसका कारण यह है कि पिंड के घूर्णन की वजह से बीच वाले भाग के पदार्थ पर बाहर की ओर थोड़ा ज्यादा बल लगता है ।
यदि पृथ्वी को देखें तो उसका धु्रवीय व्यास ७८९८ किलामीटर है जबकि विषुवत व्यास ७९२६ किलोमीटर है । चंद्रमा के मामले मेंध्रुवीय व्यास विषुवत व्यास से करीब ४.३४ कि.मी. ज्यादा है जो अपेक्षा से २०० मीटर ज्यादा है । वर्तमान में चांद प्रतिदिन एक बार अपनी अक्ष पर घूमता है । कोलेरैडो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने कंप्यूटर अनुकृति बनाकर इसकी एक व्याख्या प्रस्तुत की है । कंप्यूटर अनुकृति का मतलब है कि आप सारे उपलब्ध आंकड़े कंप्यूटर मेंडाल देते है । और साथ में कुछ नियम डाले जाते है । कंप्यूटर इन नियमोंके  अनुसार उपलब्ध आंकड़ो का विश्लेषण करके निष्कर्ष प्रस्तुत कर देता है ।
शोधकर्ता ने बताया है कि अनुकृति से पता चलता है कि चंद्रमा की बाहरी परत और उसकी आकृति लगभग ४ अरब वर्ष पहले अपने वर्तमान स्वरुप मेंआ चुकी थी । यानी जो विषुवत तोंद नजर आती है वह ४ अरब वर्ष पूर्व अस्तित्व में आई थी । इसका मतलब है कि चांद की घूर्णन गति उससे पहले कहीं ज्यादा थी ।
शोधकर्ता दल का मत है कि उनके मॉडल के अनुसार इसका कारण यह है कि उस समय पृथ्वी की घूर्णन गति उतनी रफ्तार से मंद नहींपड़ रही थी । पृथ्वी की घूर्णन गति में धीमी रफ्तार से मंदन का असर यह था कि चांद और पृथ्वी के मिले-जुले तंत्र के घूर्णन संवेग को संतुलित करने के लिए चांद की घूर्णन गति ज्यादा तेज़ी से मंद पड़ी ।
सवाल यह है कि उस समय पृथ्वी की घूर्णन गति में तेज़ी से मंदन क्यों नहीं हुआ ? टीम को लगता है कि इसका कारण शायद यह था कि उस समय पृथ्वी के घूमने की गति को धीमा करने वाले समंदर या तो थे नहीं अथवा वे बर्फ के रुप में जमें हुए थे । इसका कारण यह भी हो सकता है कि उस समय (४ अरब वर्ष पूर्व) सूरज की रोशनी इतनी तीव्र नहीं थी ।

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