शुक्रवार, 18 मई 2018

कविता
आंगन में वृद्ध पेड़
जगदीश प्रसाद तिवारी `नास्तिक'
वर्षों से मेरे आंगन में,
मौन/ शांत खड़े हुए हो तुम,
चिर-परिचित घने/वृद्ध पेड़ ।
भूलवश बचपन में,
मैने तुम पर कभी
किया था कुठार- वार,
फिर भी तुम मुझको देते रहे,
फल फूल और प्यार,
तुम्हारे मन में,
नहीं बही प्रतिशोध की बयार ।
समझ आ रहा है, तुम्हारा महत्व,
तुम न होते तो,
सुरक्षित न रहता पर्यावरण,
हमारे विपरित हो जाता,
प्रकृति का आचरण,
सामने होते सदा,
मृत्यु और मरण,
सोसों का नहीं मिल पाता,
जीने का अनमोल क्षण ।
हमारे शीश पर,
न होता वायु का आंचल,
तिल-तिल कर घुटते,
सदा रहते हम घायल ।
मेरे आंगन के घने/वृद्ध पेड़,
तुमसे ही है,
खेत-खलिहान और मेड़ ।
आज भी यह बताता है -
भीगा-भीगा सा भादोै,
और हरा भरा सावन:,
तुम्हारा स्मरण है,
पवित्र और पावन । ***

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