शुक्रवार, 18 मई 2018

पर्यावरण परिक्रमा
सस्ते वाहनों की होड़ से बढ़ा वायु प्रदूषण
विश्व में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में ५१ फीसदी मौतें केवल भारत और चीन में हो रही है । भारत में वायु प्रदूषण दिल्ली और आसपास के क्षेत्रो तक सीमित न रहकर पूरे देश को गिरफ्त में ले चुका है । शायद ही कोई राज्य या शहर हो जो विश्व स्वास्थ संगठन के वायु प्रदूषण के मानक पर खरा उतरता हो । वायु प्रदूषण मेंवाहनों से निकलने वाले सल्फर व नाइट्रोजन के ऑक्साइड मुख्य भूमिका निभाते है ।
वायु प्रदूषण का स्तर भले ही परिस्थितियां अनुकूल होने पर सुधर जाता हो लेकिन, मानव शरीर पर उसका असर लंबे समय तक रहता है । इसलिए तात्कालिक और दीर्घकालिन दोनों उपायों की जरुरत है । राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने दस साल पुराने डीजल और पंद्रह साल पुराने पेट्रोल वाहनों के प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया । लेकिन, सस्ते वाहन लाने की होड़ में आ रहे घटिया वाहनों के चलते यह कितना उचित है? वैसे भी वायु प्रदूषण के लिए केवल पुराने वाहन जिम्मेदार नहींबल्कि खराब सड़के और जाम की समस्या भी जिम्मेदार है । अगर किसी वाहन का रखरखाव ठीक हो तो १५-२० साल पुराना होने पर भी वह प्रदूषण स्तर के तय मानक पर खरा उतर सकता है । दूसरी तरफ रखरखाव ठीक न होने अथवा घटिया होने पर ४-५ साल पुराने वाहन भी तय सीमा से अधिक प्रदूषण करने लगते है ।
ऐसे में व्यापक स्तर पर अत्याधुनिक व्हिकल फिटनेस सेंटर खोलने की जरुरत है । हर सेंटर पर टेक्नीशियन की तैनाती हो, जो ठीक तरीके से वाहन की फिटनेस जांच करके निष्पक्षता के साथ फिटनेस सर्टिफिकेट जारी कर सकें । अगर ४-५ साल पुराने वाहन भी फिटनेस के मानको पर खरे न उतरे तो उनका फिटनेस सार्टिफिकेट रिन्यू न किया जाए । ऐसा करने से प्रदूषण में कमी तो आएगी ही साथ में आज के प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में सुरक्षा मानकों को ताक पर रखकर अपने ग्राहकों को एक-दूसरे से सस्ते वाहन उपलब्ध कराने की होड़ में लगी वाहन निर्माता कम्पनियां भी उच्च गुणवत्ता के वाहन बनाने के लिए बाध्य होगी ।
मलेरिया से मुक्ति बेहद जरुरी
मलेरिया आज भी भारत के लिए बड़ी समस्या बना हुआ है । कहने को इससे निपटने के लिए तमाम सरकारी कार्यक्रम और अभियान चलते रहे, पर सब बेनतीजा साबित हुए । यह गंभीर चिंता का विषय है । राजधानी दिल्ली में साल के आठ महीने में मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया जैसी मच्छर जनित बीमारियों के मामले बड़ी संख्या में सामने आते है । दूसरे राज्यों में भी हर साल ये बीमारियां फैलती है । मच्छरों से होने वाली इन बीमारियों की रोकथाम में सरकारें नाकाम रही है । मलेरिया को लेकर भारत की स्थिति आज भी गंभीर है ।
भारत आज भी दुनिया के उन पंद्रह देशों में शुमार है, जहां मलेरिया के सबसे ज्यादा मामले आते है विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की २०१७ की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में भारत चौथा देश है, जहां मलेरिया से सबसे ज्यादा लोग मरते है । दुनिया में हर साल मलेरिया से होने वाली कुल मौतों में सात फीसद अकेले भारत मेंहोती है । नाइजीरिया पहले स्थान पर है, जहां मलेरिया सबसे बड़ी जानलेवा बीमारी बना हुआ है । ज्यादातर विकासशील देशों (जिनमें अफ्रीकी देशों की संख्या ज्यादा है) में मलेरिया से होने वाली मौतों का आंकड़ा आज़ भी चौंकाने वाला है ।
सवाल है कि भारत मच्छर जनित बीमारियों, खासकर मलेरिया से निपट क्यों नही पा रहा है ? मलेरिया के खात्मे के लिए बने कार्यक्रम और अभियान आखिर क्यों ध्वस्त होते जा रहे है ? ऐसी नाकामियां हमारे स्वास्थ्य क्षेत्र की खामियों की ओर इशारा करती है । ये नीतिगत भी है और सरकारी स्तर पर नीतियों के अमल को लेकर भी । मलेरिया उन्मूलन के लिए जो राष्ट्रीय कार्यक्रम बना था, वह सफल नहींहो पाया ? इस पर अमल के लिए सरकारोंको जो गंभीरता दिखानी चाहिए थी, उसमें कहीं न कहीं कमी अवश्य रही । बता दें कि सरकार का मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम कामयाब नहीं हो पाया था, जो वर्ष २०१३ में बंद कर दिया गया । फिर सवाल है कि भारत आखिर मलेरिया से मुक्ति कैसे पाएगा ?
  डब्ल्यूएचओ ने दुनिया से मलेरिया का खात्मा करने के लिए २०३० तक की समय सीमा रखी है । भारत को भी अगले बारह साल से इस लक्ष्य को हासिल करना है । स्वच्छता के मामले मेंभी भारत की स्थिति दयनीय है । साफ-सफाई को लेकर लोगों में जागरुकता की बेहद कमी है । दूसरी ओर स्थानीय प्रशासन और सरकारों की लापरवाही भी इसके लिए जिम्मेदार है । मलेरिया को कैसे भागाएं, यह हमें श्रीलंका और मालदीव जैसे छोटे देशों से सिखना चाहिए । श्रीलंका ने जिस तरह मलेरिया का खात्मा किया वह पूरी दुनिया के लिए मिसाला है । श्रीलंका ने मलेरिया खत्म करने के लिए देश के कोने-कोने तक जागरुकता अभियान चलाया, मोबाइल मलेरिया क्लीनिक शुरु किए गए और इन चल-चिकित्सालयोंकी मदद से मलेरिया को बढ़ने से रोका गया । भारत में पल्स पोलियो जैसा अभियान पूरी तरह सफल रहा, तो फिर मलेरिया के खिलाफ हम जंग क्यों नही जीत सकते?
घरेलू गाय ही पृथ्वी पर सबसे बड़ा स्थलीय स्तनधारी होगा
एक अध्ययन के अनुसार यदि भविष्य में बड़े आकार वाले और विलुप्त्प्राय: जीवों का अस्तित्व नहीं रहा तो आने वाले २०० वर्षो में घरेलू गाय पृथ्वी पर सबसे बड़ी स्थल स्तनधारी जीव रह जाएगी । अमेरिका में न्यू मैक्सिको विश्वविद्यालय के नेतृत्व में शोधकर्ताआें ने पाया कि स्तनधारी जैव विविधता का नुकसान एक प्रमुख संरक्षण चिंता है, जो कम से कम १२५००० वर्षो तक चलने वाली लंबी अवधि की प्रवृत्ति का हिस्सा है । एक अध्ययन के अनुसार बड़े आकार वाले स्तनधारी जीवोंपर मनुष्य के प्रभाव से इन जीवोंके अफ्रीका से बाहर चले जाने का अनुमान लगता है । इसका मतलब यह है कि हाथिया, जिराफ और दरियाई घोड़ों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा । न्यू मैक्सिको विश्वविद्यालय के  फेलिसा स्मिथ ने कहा `सबसे चौंका देने वाली खोजों में से एक यह थी कि १२५००० साल पहले, अफ्रीकामें स्तनधारियों का औसत शरीर का आकार पहले से ही अन्य महाद्वीपों की तुलना में ५० प्रतिशत छोटा था ।' स्मिथ ने कहा - `हमे संदेह है कि इसका मतलब यह है कि पुरातन मनुष्यों ने पइले से ही स्तनधारी विविधता और जीवों के शरीर के आकार को प्रभावित किया था ।'
शोधकर्ताआेंने पाया कि जीवों के शरीर के आकार में गिरावट से प्रत्येक महाद्वीप पर समय के साथ ही सबसे बड़ी प्रजातियों के अस्तित्व को खतरा है कि और यह अतीत तथा वर्तमान दोनोंमें मानव गतिविधि की एक बानगी है । अध्ययन के अनुसार यदि भविष्य में यही प्रवृत्ति जारी रही तो शोधकर्ताआें ने चेताया है कि आने वाले २०० वर्षों में घरेलू गाय पृथ्वी पर सबसे बड़ा स्थलीय स्तनधार हो सकता है । 
म.प्र. के शहर लील गए २६० गांव 
भले कोई भारत को गांवो का देश होने का दावा करे, लेकिन बदलते समय के साथ यह गांव तेजी से शहरोंके शिकार बन रहे है । वजह, प्रदेश सरकार मूलभूत सुविधाआेंसे नागरिकों को जोड़ने के नाम पर तेजी के साथ गांवोंका विलय नगरीय निकायों में कर रही है । अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदेश में हर साल ५२ गांवों का अस्तित्व समाप्त् हो रहा है ।
मध्यप्रदेश में २२ हजार ८२७ ग्राम पंचायतों के अधीन लगभग ५४ हजार से अधिक गांव अस्तित्व में है । लेकिन समय के साथ बढ़ते शहरीकरण के चलते इनके अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है । अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बीते पांच सालोंमें प्रदेश के २६० गांवों को शहर लील गए । सरकार द्वारा भले ही यह कवायद नगर निगम, नगर पालिका परिषद और नगर पंचायतों के पुर्नगठन के नाम पर की गई है । लेकिन जिस तरह आबादी का बोझ शहरोंमें बढ़ रहा है शेष बचे गांवों पर उनके अस्तित्व का संकट मंडराने लगा है ।
जानकारी के अनुसार वर्ष २०१३ से २०१७ के बीच प्रदेश के ५ नगर निगमों के पुनर्गठन की कवायद में१४८ गांव समाप्त् कर दिए गए । इनमें छिंदवाड़ा के २४, मुरैना के २१, जबलपुर के ५६, इंदौर के २८ और भोपाल के २० गांव शामिल है । इसमेंनगर पालिका परिषदोंके लिए खत्म किए गए ८१ गांव शामिल नहीं है ।
गांवों को भले ही विकास के नाम पर शहरों में समाहित कर दिया गया, लेकिन जानकर हैरानी होगी, कि ये अभी भी विकास की मुख्यधारा से कोसों दूर है । न तो यहां पर मूलभूत सुविधाआें के नाम पर सड़क, पानी और प्रकाश का समुचित प्रबंध है और न ही कोई दूसरी सहूलियतें ही मिल रहीं है ।
रीवा की सौर ऊर्जा से दौड़ेगी दिल्ली की मैट्रो ट्रेन
म.प्र. में रीवा जिले की गुढ़ तहसील में विश्व का सबसे बड़ा सोलर पावर प्लांट स्थापित हो रहा है, विध्य क्षेत्र के लिये यह गर्व की बात है, पर्यावरण को बिना हानि पहुंचाये दुनिया की सबसे कम दर पर सोलर ऊ र्जा यहां पैदा होगी, ऊर्जा संरक्षण के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण को बल मिलेगा ।
यहां के सोलर प्लांट से राजधानी दिल्ली की मैट्रो रेल दौड़ेगी, ७५० मेगावाट बिजली का उत्पादन के साथ रीवा अल्ट्रा मेगा सौर ऊर्जा संयंत्र विश्व का सबसे बड़ा सौर ऊ र्जा केन्द्र है इसी वर्ष में सितम्बर माह तक सोलर प्लांट तैयार हो जाने की संभावना है ।
परियोजना का विकास सोलर एनर्जी कारर्पोरेशन म.प्र. तथा ऊ र्जा विकास निगम द्वारा किया जा रहा है, बदवार की उजाड़, बंंजर सैकड़ों एकड़ की भूमि में सौर ऊ र्जा का सबसे बड़ा प्लांट लगेगा, यह कभी किसी ने नहीं सोचा था और न ही कल्पना की थी ।
जनवरी २०१८ में प्लांट का भूमि पूजन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया था, ७५० मेगावाट बिलजी पैदा करने वाले इस प्लांट से मात्र २.९७ रुपये प्रति यूनिट की लागत से बिजली का उत्पादन होगा, जो दुनिया में सबसे कम है इसके निर्माण के लिये १५४२ हेक्टेयर भूमि उपलब्ध कराई गई ।             ***

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