शुक्रवार, 18 मई 2018

सामयिक
लू और आपदा प्रबंधन
नवनीत कुमार गुप्त
विश्व मौसम संगठन के अनुसार २०११ से २०१२ के दौरान वैश्विक तापमान मेंनिरंतर वृद्धि देखी गई है । तापमान का बढ़ना समाज को विभिन्न प्रकार से प्रभावित करता है । तापमान बढ़ने से प्राकृतिक आपदाआेंजैसे बाढ़, सूखा, असामान्य बारिश, खेती आदि पर प्रभाव होता है । यह हम जानते है कि कृषि प्रधान देश होने के कारण हमारी पूरी अर्थ व्यवस्था खेती पर निर्भर है ।
लगभग एक अरब बत्तीस करोड़ की आबादी के साथ भारत आबादी के हिसाब से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है । वर्ष २०११ की जनगणना के अनुसार भारत की ३१ प्रतिशत आबादी शहरों और ६९ प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है । रुझानों से पता चलता है कि शहरी आबादी निरंतर वृद्धि हो रही है । सामान्यत: शहरो में हरियाली और पानी की कमी अधिक देखी गई है । ऐसे में प्राकृतिक आपदाआें के प्रति भारत को भविष्य में अधिक सचेत रहने की आवश्यकता है ।
जलवायु में परिवर्तन के कारण मौसम में बदलाव से हमारा स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है । भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देशों में गर्मी के मौसम में लू लगने की घटनाएं काफी देखने को मिलती है जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाले सालों में लू की घटनाआें और उनकी तीव्रता में वृद्धि होने की आशंका है । ऐसे में बचाव की जानकारी ही हमें इससे बचा सकती है ।
लू गर्मियों में उत्तर पूर्व तथा पश्चिम से पूर्व की ओर चलने वाली गर्म और शुष्क हवा है । गर्मियों में दिन का अधिकतम तापमान लगातार तीन दिनों तक सामान्य तापमान से ३ डिग्री अधिक हो तो लू चलती है । विश्व मौसम संगठन के अनुसार लगातार पांच दिनो तक तापमान का सामान्य तापमान से ५ डिग्री सेल्सियस अधिक होने से भी लू चलती है । यदि किसी स्थान का तापमान ४५ डिग्री सेल्सीयस से अधिक होता है तो वहां लू चल सकती है । भारतीय मौसम विभाग के अनुसार मैदानी क्षेत्रों में ४६ से अधिक तापमान लू को जन्म देता है ।
यदि वायुमंडलीय तापमान ३७ डिग्री सेल्सियस रहता है तो मानव शरीर पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है । लेकिन इससे अधिक तापमान पर शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । लू लगने का प्रमुख कारण शरीर में लवणों और पानी की कमी होना है । पसीने के रुप में लवण और पानी का बड़ा हिस्सा शरीर से निकलकर खून की गर्मी को बढ़ा देता है । सिर में भारीपन मालूम होने लगता है, नाड़ी की गति बढ़ने लगती है, खून की गति भी ठीक नही रहती तथा शरीर में एेंठन-सी लगती है । बुखार काफी बढ़ जाता है । हाथ और पैरों के तलुआें में जलन-सी होती है । आंखे भी जलती है । इससे अचानक बेहोशी व अंतत: रोगी की मौत भी हो सकती है ।
भारत में आम तौर पर अप्रेल से जून के दौरान लू चलती है और कुछ मामलोंमें तो यह जुलाई तक जारी रहती है । इसके परिणाम स्वरुप निर्जलन, लू लगना, थकान और यहां तक कि घातक हीट स्ट्रोक भी हो सकता है । लू लगने के कारण देश में२०१५ में लगभग ढाई हजार और वर्ष २०१६ में करीब १६०० लोगों की मौत हुई थी ।
१५ से १६ जून २०१७ के दौरान नई दिल्ली में संपन्न आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए राष्ट्रीय मंच की दूसरी बैठक में लू के प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण यानी एनडीएमए द्वारा किए गए कार्योकी जानकारी दी गई । इसके अंतर्गत लू को भी प्राकृतिक आपदा माना गया है । देश मेंलू की तीव्रता को देखते हुए एनडीएमए ने इसकी रोकथाम और प्रबंधन के लिए पिछले साल एक कार्य योजना तैयार करने के निर्देश दिए थे । इसी के अंतर्गत इस वर्ष के आरंभ से ही इस विषय पर जागरुकता कार्यक्रमोंका आयोजन आरंभ किया गया था । मार्च से पहले से ही देश के अनेक स्थानोंमें लू से बचाव के सर्वोत्तम तरीकों पर कार्यशालाआें का आयोजन किया गया ।
ऐसी कार्यशालाआें का मुख्य उद्देश्य लू से बचने के लिए राज्यों को जागरुक करना और इससे बचाव के तरीकों का प्रसारित करना रहा । कुछ राज्यों ने लू से बचाव के तरीकों को लागू करने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किए और अपने अनुभवों और योजनाआें को दूसरों के साथ साझा भी किया । राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने लू से सम्बंधित कार्य योजना और जोखिम न्यूनीकरण, लू से प्रभावित राज्यों के साथ अनुभव साझा करने और इससे निपटने के उपायोंतथा लू के बारे मेंपूर्वानुमान आदि कार्यक्रमोंपर विशेष ध्यान दिया । इसके अलावा भारतीय मौसम विभाग द्वारा समय-समय पर तापमान की सटीक जानकारी से भी लोग सचेत हो जाते है ।
सरकार एवं विभिन्न संगठनों के  प्रयासोंके साथ लोगोंकी जागरुकता का ही नतीजा रहा है कि अभी तक इस वर्ष लू से मरने वालों का आकड़ा काफी कम रहा है । आशा है आने वाले समय में अधिक लोग जागरुक होंगे।
लू से बचने के उपाय
लू से बचने के लिए तेज़ धूप में बाहर नहीं निकलना चाहिए । अगर बाहर जाना ही पड़े तो सिर व गर्दन को तौलिए या अंगोछे से ढक लेना चाहिए ।
गर्मी के दिनोंमें हल्का भोजन करना चाहिए । बाहर जाते समय खाली पेट नहीं जाना चाहिए ।
गर्मी के दिनों में बार-बार पानी पीते रहना चाहिए ताकि शरीर में पानी की कमी नही हो ।
गर्मी के दौरान नरम, मुलायम, सूती कपड़े पहनना चाहिए । ऐसे कपड़ो जो शरीर के पसीने को सोखते रहेंऔर उसे हवा में बिखराते रहे ।
गर्मी में मौसमी फलों, जैसे खरबूज, तरबूज, अंगूर इत्यादि एवं छाछ, दही का सेवन नियमित करना चाहिए ।
गर्मी के दिनों में प्याज़ का सेवन भी अधिक करना चाहिए ।
लू लगने पर क्या करें
लू लगने पर तत्काल योग्य डॉक्टर को दिखाना चाहिए । डॉक्टर को दिखाने के पूर्व कुछ प्राथमिक उपचार करने पर भी लू के रोगी को राहत महसूस होने लगती है ।
बुखार तेज़होने पर रोगी को ठंडी खुली हवा में आराम करवाना चाहिए । तेज बुखार होने पर बर्फ  की पट्टी सिर पर रखना चाहिए ।                 ***

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