शुक्रवार, 18 मई 2018

जल जगत
अपने देश में भी `केपटाउन' संभव है
राजकुमार कुम्भज
जलसंकट को लेकर दुनियाभर की हालत चिंताजनक है । दक्षिण अफ्रीका में एक लंबे समय से बारिश नहीं हो रही है । इस वजह से केपटाउन को जल-आपूर्ति करने वाले संसाधन नेशनल मंडेलाबे पर बने बांध में लगभग तीस फीसदी से भी कुछ कम पानी ही अब शेष रह गया है । तमाम जल आपूर्ति की पाबंदियोंके बावजूद उक्त बांध तीन-चार माह मे पूरी तरह से खाली हो जाएगा, अगर ऐसा हुआ तो हमारे देखते केपटाउन दुनिया का एकमात्र ऐसा पहला महानगर होगा, जिसके पास दैनिक उपयोग और प्यास बुझाने तक का दो बूंद पानी नही होगा । भारत की स्थितियां भी कोई कम दयनीय नहीं है । देश के अधिकतर कुआें, तालाबों बांधों ने पिछले दो दशक में तेजी से पानी खोया है ।
दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केपटाउन इस समय भीषण जल संकट से जूझ रहा है । हालात इतने भयानक हो चुके है कि यहां पानी का संकट अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया है । वैसे तो दक्षिण अफ्रीका का यह खूबसूरत शहर पिछले एक दशक से पानी की किल्लत भोग रहा है और समय रहते इसके समाधान हेतु कुछ नहीं किया जा सका । केपटाउन इस समय भयंकर सूखे की चपेट में है । तकरीबन एक पखवाड़े पहले तक प्रति व्यक्ति जहां ८७ लीटर पानी जैसे-तैसे उपलब्ध करता जा रहा था, वहीं अब यह आपूर्ति प्रति व्यक्ति मात्र २५ लीटर पर सिमट गई है । हैरानी नहीं होना चाहिए कि जल-संकुचन के कारण पैदा हुआ जल-संकट केपटाउन में जल-दंगों की शक्ल ले लें क्योंकि जल-दंगों की आर्थिक से निपटने के लिए सरकार ने सेना और पुलिय को तैयार रहने का जारी आदेश भी दे दिया है ।
केपटाउन मेंतरह-तरह की पाबंदियां आजकल सामान्य है । वहां कम से कम पानी में ज्यादा से ज्यादा नहाना धोना निपटा लेना पड़ता है । दुनिया का कोई खूबसूरत शहर सूखे की वजह से सुर्खिंयों में आ जाए यह दिलचस्प हो सकता है किंतु उससे कहीं अधिक यह खबर भयावह भी है । केपटाउन में घरेलू आपूर्ति लायक भी पानी शेष नहीं है । दरअसल केपटाउन दुनिया के नक्शे मेंउस स्थान पर स्थित है, जहां अटलांटिक और हिंदमहासागर आपस में मिलते है लेकिन यह पानी अत्यधिक खारा होने की वजह से पीने लायक नही है और दैनिक उपयोग के योग्य तो बिल्कुल भी नहीे है । जिस पानी को यहां उपयोग के काबिल बनाया जाता है उसकी बेहद कमी हो गई है । फिर डीसेलीनेशन (गैर लवणीकृत) तकनीक बहुत महंगी भी है ।
विश्व बैंक के अनुसार डीसेलीनेशन तकीनीकी से मिलने वाले पानी की लागत तकरीबन ५५ रुपया प्रति लीटर आती है । विश्व का एक फीसदी पेयजल इसी प्रक्रिया से उपलब्ध हो रहा है । सउदी अरब जहां नदी व झील न के बराबर है, डीसेलीनेटेड वॉटर का दुनिया में सबसे बड़ा स्त्रोत है । ये संसाधन (प्लांट) शहरों मे इस्तेमाल होने वाला ७० फीसदी पानी उपलब्ध करवाते है साथ ही उद्योग धंधों में इस्तेमाल होने लायक जल की आपूर्ति भी करते है । सउदी अरब, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन उन देशों में शामिल है जो डीसेलीनेटेड वॉटर का इस्तेमाल करते है । दुनिया के तकरीबन १२० देशों  में समुद्री पानी पीने योग्य बनाने वाली तकरीबन सत्रह हजार डीसेलीनेशन वॉटर प्लांट लगे है और करीब करीब बीस करोड़ लोग इन्हीं प्लांट का बना पानी पी रहे है । सउदी अरब अकवीफर्स प्रक्रिया के जरिये जमीन के नीचे जल संग्रहण करके इस तकनीक का इस्तेमाल करता है ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक जाहिर हुआ है कि वर्ष २०५० तक चीन और भारत भी जल संकट से जूझ रहे होंगे तब समुद्री खारे पानी को पीने योग्य बनाना ही एकमात्र विकल्प होगा । भारत में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर ने भी डीसेलीनेशन तकनीक विकसित की है जिससे समुद्री पानी को पीने योग्य बनाया जा सकता है । इस तरह के कई प्लांटस पंजाब, पश्चिम बंगाल और राजस्थान में काम कर रहे है । भाभा के वैज्ञानिकोंद्वारा विकसित की गई इस तकनीक से प्रतिदिन ६३ लाख लीटर पानी पीने योग्य बनाया जा सकता है । एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष २०३० तक दुनिया के तकरीबन चार अरब लोग पेयजल मेंपरिवर्तित समुद्री खारा पानी इस्तेमाल करने लगेंगे ।
पिछले दिनों भारत पहुंचे इजरायली प्रधानमंत्री बेजामिन नेतन्याहू ने भारत को जो एक डीसेलीनेशन कार भेंट दी थी, वह प्रतिदिन बीस हजार लीटर समुद्री खारा पानी पीने योग्य बनाती है । इस गल मोबाइल डीसेलीनेशन कार का इस्तेमाल कच्छकेरण में तैनात बीएसएफ के जवान करेंगे । यह कार नब्बे किलो मीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से दौड़ सकती है, जिसका स्व-उर्जा स्त्रोत होता है ।
दुनिया की चालीस फीसदी आबादी समुद्री किनारों पर बसती है । जबकि दुनिया के दस में से एक व्यक्ति को पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं होता है । यहां तक कि बाजार में बिकने वाली बोतल बंद मिनरल वॉटर भी सौ फीसदी स्वच्छ शुद्ध नहीं है । भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा तय किए चालीस से अधिक मानको में से यहां कई नदारद है । जिनसे कई तरह की परेशानियां पैदा होती है ।
यहां यह जान लेना बेहद जरुरी होता है कि बोतलबंद पानी बेचने वाली कंपनियों के उत्पादन भी भारतीय मानक ब्यूरों की अनिवार्य प्रमाणनता के अंतर्गत आते है । अभी उपभोक्ता मंत्रालय के मुताबिक वित्त वर्ष २०१७-१८ दौरान बी आई एस (भारतीय मानक ब्यूरो) ने पानी बेचने वाली पच्चीस कंपनियोंपर छापेमारी करते हुए जो नमूने एकत्रित किए थे, उनमें से ज्यादातर खरे नही रहे । कम से कम ग्यारह मामलों में अदालती फैसलों के बाद इस कंपनियों पर कार्रवाई की गई और कंपनियोंसे भारी जुर्माना भी वसूल किया गया । तात्पर्य यही है कि पानी अमूल्य है और पीने का पानी तो अद्वितीय है । पानी बचाना बेहद जरुरी है । पानी बचेगा तो जीवन बचेगा और जीवन बचेगा तो मनुष्य बचेगा । इसीलिए कहा गया है कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए होगा । इसका सबसे ताजा उदाहरण दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केपटाउन है, जहां जल संकट से पैदा होने वाले जल-दंगोंके लिए पुलिस और सेना को सतर्क कर दिया गया है ।
जलसंकट को लेकर दुनियाभर की हालक चिंताजनक है । दक्षिण अफ्रीका मेंएक लंबे समय से बारिश नही हो रही है । इस वजह से केपटाउन को जल आपूर्ति करने वाले संसाधन बेहद खराब स्थिति में पहुंच गए है । इस शहर को जल-आपूर्ति करने वाले नेशनल मंडेलाबे पर बने बांध में लगभग तीस फीसदी से भी कुछ कम पानी ही अब शेष रह गया है और मौसम वैज्ञानिकों का आकलन है कि हाल फिलहाल यहां बारिश होने की कोई संभावना नही है । प्रबल आशंका बनी हुई है कि जल-आपूर्ति की तमाम पाबंदियों के बावजूद उक्त बांध तीन-चार माह में पूरी तरह से खाली हो जाएगा, अगर ऐसा हुआ हो तो हमारे देखते केपटाउन दुनिया का एकमात्र ऐसा महानगर होगा जिसके पास दैनिक उपयोग और प्यास बुझाने तक का एक बूंद पानी नही होगा ।
केपटाउन की तरह संपूर्ण अरब अमीरात भी विकराल जल-संकट की चपेट मेंआ गया है । यहां जल संकट से निपटने के लिए जो योजना बनाई गई है । वह बेहद ही अजीबो गरीब है । यहां अंटार्कटिका से समुद्र के रास्ते एक हिमखंड खींचकर लाने की कोशिश की जा रही है । हिमखंड को खींचकर लाने की जिम्मेदारी एक निजी कंपनी का सौंपी जा रही है । इस योजना के तहत ८,८०० किलोमीटर दूर यह हिमखंड यहां पहुचेगा फिर उसके टुकडे तोड़ तोड़कर संग्रह किए जाएंगे । अनुमान लगाया जा रहा है कि यह हिमखंड लगातार पांच बरस तक यू एई के लोगोंकी प्यास बुझाएगा । संयुक्त अरब अमीरात की इस अजीबों गरीब योजना से यह अदांज लगाना कठिन होता जा रहा है ।
माना कि शेष दुनिया में जल-संकट की समस्या भले ही अभी इतनी विकराल नहीं हों किंतुदुनिया की एक बड़ी आबादी पानी की विकरालता से परेशान तो हो रही है । एक आकलन के अनुसार दुनिया की एक अरब सेअधिक आबादी को आज भी पीने का साफ पानी नहींमिलता है जबकि कम से कम तीन अरब लोग वर्ष मेंकम से कम एक महीना तो पानी की कमी का सामना करते ही है । खबरें बता रही है कि वर्ष २०२५ तक दुनिया की दो तिहाई आबादी जलसंकट की गिरफ्त में आ जाएगी ।
भारत की स्थितियां भी कोई कम दयनीय नहीं है । देश के अधिकतर कुआें, तालाबों, बांधों ने पिछले दो दशक में तेजी से पानी खोया है । दो दशक पूर्व तक जहां पानी २५३० फीट जमीन के नीचे पानी उपलब्ध था वहां वह २००-३०० फीट तक नीचे उतर चुका है । कहीं-कहीं तो इस गहराई ने भी साथ छोड़ दिया है । देश की लगभग तीन सौ नदियों खतरे की सूचना दे चुकी है । हिमालय से निकलने वाली साठ फीसदी जल धाराएं सूखने के कगार पर है जिनमें गंगा और ब्रम्हपुत्र जैसी बड़ी नदियां शामिल है । वर्ष २०१६ में देश के नौ राज्यों के तकरीबन पैंतीस करोड़ लोग जल संकट से प्रभावित हुए थे । आशंका है कि भारत में भी केपटाउन जैसे हालात हो सकते है।***

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