शुक्रवार, 18 मई 2018

हमारा भूमण्डल
खतरे में है जैव विविधता
रवीन्द्र गिन्नौरे
जैव विविधता की दृष्टि से भारत विश्व के समृद्धतम राष्ट्रोंमें प्रमुख है । भारत की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति होने के कारण पुश-पक्षियों एवं पेड़-पौधों को जितनी अधिक प्रजातियां पाई जाती है, उतनी विश्व के गिने-चुने राष्ट्रों में ही मिलती है । पृथ्वी पर उपलब्ध चार जैव भौगोलिक परिमंडलों में तीन पराध्रुव तटीय, अफ्रीकी, तथा इण्डोमलयान के प्रतिनिधि क्षेत्र भारत मेंपाए जाते है । घटते संसाधन और बढ़ते हुए खतरे से आज पूरा विश्व जगत अवगत हो चुका है । परंतु प्रकृति को उसकी जैव विविधता को संजोने का प्रयास आज भी शैशावस्था में है ।
परम्परागत ज्ञान, हमारी सांस्कृतिक धरोहर से सरोकार रखने वाली प्राकृतिक सम्पदा उपभोक्ता संस्कृति के बाजार में मूल्यवान हो गई है । जैव विविधता की दृष्टि से सम्पन्न भारत के उन क्षेत्र मेंघुसपैठ हो चुकी है, जहां दुर्लभ जड़ी-बुटियां और मूल्यवान जीवाष्म मौजूद है । भौगोलिक विभिन्नताआें से परिपूर्ण हर इलाकों में पेड़ पौधों के साथ वन्य पशु पक्षियों का बसेरा अब छिनता जा रहा है । प्रकृतिचक्र के साथ जिन वनवासियों का जीव निहित है, अब वही बाजारवाद के कुचक्र मेंफंस कर अवैध तस्करी के लिए सामान उपलब्ध करा रहे है ।
अपनी अनमोल विरासत से वनवासी अनभिज्ञ है, लेकिन जैव विविधता की कीमत जो समझते है, उसी समुदाय के कुछ लोग बेचने में लगे है । घटते संसाधन और बढ़ते हुए खतरे से आज पूरा विश्व अवगत हो चुका है । परंतु प्रकृति को, उसकी जैव विविधता को संजोने का प्रयास आज भी शैशावस्था मेंहै ।
पृथ्वी के समृद्ध जीवन का मनोहारी स्वरुप को मानव जितना देख सका है, आंकड़ो की सत्यता में उतना अभी तक परखा नहीं गया है । असंख्य ताने-बाने में बुना है प्रकृतिका स्वरुप । वैज्ञानिकों का पृथ्वी पर १६ लाख जीव-जंतुआें की प्रजातियों की जानकारी है, जिसकी संख्या तो दिन ब दिन बढ़ती जा रही है । मगर इसके ठीक विपरीत हजारों प्रजातियों विलुप्त् होती जा रही है । पशु पक्षी किसी जन्तु की प्रजाति विलुप्त् होने के बाद उसकी अहमियत का पता हमें चलता है । 
पृथ्वी के आनुवांशिक संसाधन साझा विरासत है, जिन्हे सम्पूर्ण मानव जाति के द्वारा उपयोग में लाया जाना चाहिए । जैव प्रौद्योगिकी उत्पादों के महत्वपूर्ण इन स्त्रौतों से भारी भरकम व्यापारिक लाभ है । विकासशील राष्ट्र जैव विविधता से सम्पन्न राष्ट्रों से लेने के लिए अपना दबाव बना रहे है । जबकि जैविक संसाधन उस राष्ट्र की सम्पत्ति है, जहां यह आनुवांशिक संसाधन मूल रुप से पाए जाते है । 
जैव विविधता के संरक्षण का प्रश्न तभी से उठ खड़ा हुआ, जब इसके अनुचित दोहन के विरोधी स्वर उठे । जैव विविधता के संरक्षण का अर्थ, किसी भी राष्ट्र की भौगोलिक सीमाआें में पाए जाने वाले पशु-पक्षियों एवं पेड़-पौधों की जातियों को विलुप्त् होने से बचाना । इन जातियों के लगभग पांच प्रतिशत को ही मानव खेतों व बागों में बोता है, उगाता और पालता है, शेष ९५ प्रतिशत जातियों प्राकृतिक रुप से वन क्षेत्रों, नदी-नालों एवं समुद्री तटों में उगती एवं पलती है ।
संयुक्त राष्ट्र संघ के आव्हान पर ब्राजील के रियो-डि-जेनेरा `पृथ्वी शिखर' सम्मेलन में उपस्थित राष्ट्रों ने सामूहिक रुप से निर्णय लिया, वह था धरती की जैव विविधता के संरक्षण का निर्णय । जून १९९२ में यह निर्णय लिया गया, जो २९ दिसम्बर १९९३ में लागू हो गया । भारत ने भी इस समझौते को स्वीकृति दे दी है ।
जैव विविधता की दृष्टि से भारत विश्व के समृद्धतम राष्ट्रों में प्रमुख है । भारत की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति होने के कारण पुश-पक्षियों एवं पेड पौधों को जितनी अधिक प्रजातियों पाई जाती है, उतनी विश्व के गिने चुने राष्ट्रों में ही मिलती है । पृथ्वी पर उपलब्ध चार जैव भौगोलिक परिमंडलों में तीन पराधु्रव तटीय, अफ्रीकी, तथा इण्डोमलयान के प्रतिनिधि क्षेत्र भारत मेंपाए जाते है । विश्व के किसी भी देश मेंदो अधिक परिमण्डलों के क्षेत्र नही मिलते । यह कारण है कि यूरोप और उत्तरी अमेरिका की भांति भारत मे हिरणों की आठ प्रजातियां पाई जाति है ।
दुर्लभ विश्व का सबसे छोटा चूहा हिरण (माउस डियर) भारत में ही पाया जाता है । अफ्रीकी महाद्वीप में हिरणों की एक भी जाति नहीं पाई जाती । वहीं सम्पूर्ण यूरोप एवं उत्तरी अमरीकी महाद्वीप में बबर शेर एवं एण्टीलोप की जातियों नही पाई जाती । मानव जाति के निकटस्थ चार प्राकृतिक सम्बन्धियों में गुरिल्ला, चिम्पैंजी, ओरंग उटान और गिब्बन में अंतिम जाति गिब्बन भारत के अरुणाचल प्रदेश के वनोंमे पाई जाती है । यह सभी जीव विषुवत रेखा के सदाबहार वनोंके है । जलवायु की विविधता के साथ-साथ धरातल की विविधता, लम्बा सागरतट एवं अनेक समुद्री द्वीप के कारण भारत में पशु-पक्षियों एवं वनस्पतियों की विभिन्न जातियों का उत्क्रमण भारत में संभव हो सका ।
भारत में अभी तक पशु पक्षियों की ६५ हजार जातियों (मछलियां २ हजार, रेंगने वाले जीव ४२०, जल स्थर चर जीवन १५०, पक्षियों की १२०, स्तनपायी पशुआें की २४० तथा शेष पतंगों की जातियों) एवं पुष्पधारी वनस्पतियों की १३ हजार जातियां पहचानी जा चुकी है । जैव विविधता की दृष्टि से सम्पन्न अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है । पुश पक्षियों की अनेक प्रजातियों तेजी से विलुप्त् हो रही है ।
लगभग ११८६ पक्षियों की प्रजातियों सम्पूर्ण विश्व में अब समािप्त् की ओर अग्रसर है । यह विचार मुंबई नेचुरल हिस्ट्र सोसायटी ने व्यक्त किए है । एम.एन. एच.एस. के अनुसार इनमें से ७८ पक्षियों की प्रजातियों केवलभारत में विलुिप्त् के कगार पर है । उपरोक्त संख्या में १८२ प्रजातियां आने वाले दस वर्षोंा के भीतर खत्म हो जाएगी ।
लगभग ११८६ पक्षियों की प्रजातियों सम्पूर्ण विश्व में अब समािप्त् की ओर अग्रसर है । यह विचार मुंबई नेचुरल हिस्ट्र सोसायटी ने व्यक्त किए है । एम.एन.
एच. एस. के अनुसार इनमें से ७८ पक्षियों की प्रजातियों केवलभारत में विलुिप्त् के कगार पर है । उपरोक्त संख्या में १८२ प्रजातियों आने वाले दस वर्षो के भीतर खत्म हो जाएगी ।
भारत में औषधीय पौधों की लगभग ९५०० प्रजातियों का उपयोग दवाआें के रुप में किया जाता है । एथनो मेडिसीन के इतिहास में मुंड जनजातियों द्वारा इनके इस्तेमाल का प्रमाण मिलता है । ३९०० औषधीय पौधों का संबंध वनवासियों की खाद्य संबंधी जरुरतों से है । २५० पौधोें का के बारे में इतना कहा जाता है कि भोजन के विकल्प के रुप में भविष्य में ये ही मनुष्य की जरुरतों को पूरा करेंगे ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक अमरीका में३३ फीसदी और एशिया में ६५ फीसदी लोग आयुर्वेद चिकित्सा पर विश्वास करते है । मारीशस, नेपाल और श्रीलंका में तो इस चिकित्सा प्रणाली को सरकारी मान्यता प्राप्त् है । भारत, चीन, थाईलैंड, मलेशिया, दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया और इंडोनेशिया में तो प्राचीनकाल से ही जड़ी-बूटियों से इलाज की परम्परा रही है । किन्तु आज अमेरीका, जर्मनी जैसे विकसित देशों में इसकी बढ़ती लोकप्रियता ने एक बहुत बड़ा संकट खड़ा कर दिया है । इन वनौषधियों कों लूटा जा रहा है । भारी पैमाने पर इनकी तस्करी हो रही है । परिणामस्वरुप हमारे वनवासी प्रकृति की इसअमूल्य धरोहर से वंचित होते जा रहे है ।
अर्जेंाटाइना, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, ब्राजील, अमरीका, इंग्लैंड, कनाडा, चीन, फ्रांस, रुस, इजराइल, इटली, थाईलैंड, जापान, स्विटजरलैंड, जोर्डन, केनिया, कोरिया, लेबनान, मोरक्को, वेनेजुएला आदि ऐसे देश है जहां काफी बड़ी कीमत देकर इन वनौषधियों का खरीदा जा रहा है । मिलने वाली बड़ी कीमत ने ही इनकी तस्करी को बढ़ाया है । दो वर्ष पूर्व हुए एक अध्ययन के मुताबिक हर वर्ष ८० हजार टन वनस्पति, जिसमें दुर्लभ जड़ी-बूटियों भी शामिल है, वैध और अवैध तरीके सेभारत से बाहर ले जाई गई है ।
मानव जिंदगी के लिए जिस तरह जमीन, हवा, पानी जरुरी है, उसी तरह वनस्पति और प्राणी भी जरुरी है । प्रकृति का संपूर्ण तंत्र एक विशालकाय मशीन जैसा है, जिसमें कीड़े-मकोड़े, केचुआ, पक्षी, जंगली जानवर से लेकर पौधे और विशालकाय वृक्ष तक शामिल है । सभी प्रकृति रुपी मशीन के कलपुर्जेहै । यही जलीय ग्रह पर जीवन की प्राकृतिक क्रिया का निर्धारण करते है तो इसका दुष्परिणाम प्रकृति के सारे क्रियाकलाप में अनुभव किया जाता है ।
जीवन निर्वाह के लिए धन-दौलत से अधिक हवा, पानी ज्यादा जरुरी है । शुद्ध हवा, पानी व प्राकृतिक संतुलन तभी बना रह सकता है, जब हम सही मायने मेंवसंुधरा को माता समझें और वैसा ही व्यवहार करें । धरती की गोद में मानव तभी सुखी रह सकता है, जब वह दोहन करने की नीति छोड़ कर प्रकृति के  अनुकुल चले । भविष्य में इसी लीक पर मानव चलने को मजबूर होगा, लेकिन तब तक प्रकृतिके उग्रतम रुप देख चुका होगा।
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